वन महोत्सव पर निबंध Essay On Van Mahotsav In Hindi: नमस्कार दोस्तों प्रति वर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में वन महोत्सव दिवस / सप्ताह मनाया जाता हैं.
आज के निबंध में हम जानेगे वन महोत्सव क्या है कब और क्यों मनाते है इसक महत्व और इतिहास क्या हैं जानेगे. उम्मीद करते है आपको यह निबंध पसंद आएगा.
वन महोत्सव पर निबंध Essay On Van Mahotsav In Hindi
वन महोत्सव निबंध (300 शब्द)
भारत में वनों के महत्व को समझते हुए वर्ष 1950 में तत्कालिन कृषि मंत्री डॉ. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी द्वारा की गई थी। इसके बाद वन महोत्सव प्रति वर्ष जुलाई महीने में प्रथम सप्ताह के दौरान मनाया जाता है।
वन महोत्सव के अवसर पर देश के सभी विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, सरकारी दफ्तरों, कई संगठनों और संस्थाओं द्वारा पूरे देश में पेड़ पौधे लगाने के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
हमारे देश भारत में में वन महोत्सव के माध्यम से वृक्षों की कटाई पर रोक लगाने के साथ-साथ नए वृक्षों को लगाने के कई अभियान चलाए जा रहे हैं।
वन महोत्सव के माध्यम से वृक्षों की कटाई कम करके जल की समस्या को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है और बर्षा के चक्र को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। जहां पेड़ पौधे अधिक होते है वहां वर्षा भी अच्छी होती है और मृदा अपरदन को भी पेड़ो के द्वारा ही रोका जा सकता है।
वन महोत्सव का महत्व समझने के लिए हमें वनों की कटाई से होने वाले दुष्प्रभाव के बारे में जानना होगा। यदि वनों की कटाई ऐसे ही लगातार होती रही तो पृथ्वी का तापमान इतना अधिक हो जाएगा, की हिमालय की सारी बर्फ पिघल जाएगी,
जिससे नदियों का जलस्तर बढ़ जाएगा और बाढ़ जैसी विकट स्थिति पैदा हो जाएगी। इस से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा भी बढ़ जाएगा।
इसीलिए हमें वनों की कटाई पर रोक लगाकर, नए पेड़ों को लगाने पर जोर देना चाहिए। यह बात वन महोत्सव के माध्यम से देश भर के सभी लोगों तक पहुंचाना ही वन महोत्सव का उद्देश्य है। वन महोत्सव के द्वारा वनों और पेड़ पौधे के महत्व को जन जन तक पहुंचाया जाता है।
वनों की संख्या में लगातार कमी आ रही है और पृथ्वी पर जीवन के लिए वन अति आवश्यक है। वन महोत्सव पर हमें दिन हमे ज्यादा से ज्यादा संख्या में पेड़ पौधे लगाने चाहिए और उनकी सुरक्षा करनी चाहिए।
वन महोत्सव पर निबंध 1000 शब्दों में
वन महोत्सव दिवस पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से प्रतिवर्ष जुलाई माह के पहले पखवाड़े में मनाया जाने वाला उत्सव हैं. घटती हुई वनों और वन्य जीवों की संख्या ही प्रकृति के असंतुलन का सबसे बड़ा कारण हैं.
इन्ही विषयों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा 1960 के दशक से प्रतिवर्ष वन महोत्सव सप्ताह का आयोजन राजधानी नई दिल्ली और देश के सभी शहरों में आयोजित किया जाता हैं.
वन महोत्सव दिवस के दिन सभी पर्यावरण प्रेमी अपनी धरती को हरी भरी करने के उद्देश्य से बड़ी संख्या में वृक्षारोपण कर वनों के सरक्षण और इनके महत्व पर जोर दिया जाता हैं. देश की आजादी से पूर्व ही मोर्य और गुप्त वंश के शासकों ने भी इस दिशा में सराहनीय कार्य किये हैं.
वन महोत्सव की विधिवत शुरुआत 1950 से मानी जाती हैं, नेहरु केबिनेट के तत्कालीन कृषि मंत्री श्री कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी द्वारा पर्यावरण आन्दोलन इसके सरक्षण और आम जन में इसके प्रति जन जागरूकता लाने का श्रेय इन्ही को जाता हैं.
70 साल से जारी इस मुहीम में आज लाखों भारतीय सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं, इसी का नतीजा हैं कि प्रतिवर्ष पर्यावरण दिवस और वनमहोत्सव दिवस के अवसर पर करोड़ो पेड़ पौधे लगाकर इनके सरक्षण का जिम्मा आम नागरिक उठाते हैं.
सरकार द्वारा भी प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक से अपेक्षा की जाती हैं, कि वे प्रतिदिन कम से कम एक वृक्ष लगाकर वन और वन्य जीव सरक्षण में अपनी सक्रिय भूमिका निभाए.
भारतीय सभ्यता में पृथ्वी और वृक्षों को पूजनीय मानकर उसकी पूजा की जाती हैं, वन महोत्सव इसी का उदाहरण हैं. इस पर्यावरण आन्दोलन की शुरूआती देश की आजादी के शुरूआती सालों में ही कर दी थी.
कई लोकप्रिय और प्रकृति प्रेमी नेताओं के इसके पीछे हाथ रहा जिनमे डॉ. राजेंद्र प्रसाद एवं मौलाना अब्दुल क़लाम आज़ाद कन्हैयालाल मनिकलाल और जवाहरलाल नेहरु जैसी हस्तियाँ ऐसे कार्यक्रम को आमजन के बिच लेकर गईं.
importance of van mahotsav वन महोत्सव का महत्व
वर्ष 2013 में देवभूमि उत्तराखंड में बाढ़ और प्राकृतिक आपदा का द्रश्य दशकों तक हमारी आँखों से ओझल नही होगा, प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और खिलवाड़ का ही नतीजा था.
कि कई हरे भरे शहर जिस पर कुदरत हमेशा से मेहरबान रही ,फिर अचानक यह कहर ढहाना हमारे कुकर्मो और पर्यावरण के साथ अपनी मनमानी का ही नतीजा था. यह जरुर हैं, अंग्रेजो के शासनकाल तक भारत में वन और वन्य जीव सरक्षण पर किसी ने ध्यान नही दिया.
मगर आजादी की प्राप्ति के बाद कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जी ने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. उनका ध्यान बड़ी संख्या में वनों की कटाई को रोकने और पौधरोपण के कार्य का शुभारम्भ किया गया.
विद्यालयों में भी वन महोत्सव को लेकर ओपचारिक रूप से कार्यक्रमों का आयोजन किया जाने लगा. लाल बहादुर शास्त्री जी का जय जवान जय किसान ने भी लोगों के ध्यान को प्रक्रति की ओर आकृष्ट करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया.
भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कई अहम कदम उठाए हैं, केंद्र सरकार ने हाल ही के वर्षो में कृषि समृद्धि योजना की शुरुआत की हैं, जिसके तहत खेतो के चारों और मेडबंदी करने और पौधे लगाने के बदले उन्हें परिश्रमिक देने का भी प्रावधान हैं.
इस योजना में जन-जन जागृति के लिए वन विभाग के अधिकारियो की भी मदद ली जा रही हैं. सरकार और विभिन्न स्वयसेवी संस्थाओ द्वारा प्रतिवर्ष पौधे लगाने का एक नया लक्ष्य निर्धारित किया जाता हैं. हमे भी अपने पर्यावरण की सरक्षा की खातिर सरकार के इन कार्यक्रमों में तन मन से सहयोग देना होगा.
वन महोत्सव का महत्व आवश्यकता
इस तथ्य से हर कोई वाफिफ हैं, प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रकृति और वातावरण का अहम योगदान हैं, वृक्षारोपण का सीधा अर्थ – अधिक से अधिक संख्या में पौधारोपण से हैं. आज के पर्यावरण में असंतुलन का सबसे बड़ा कारण वनों का विनाश और अनियत्रित कटाई.
- वन विभाग के आकड़ो के मुताबिक देश के कुल क्षेत्रफल पर 33 फीसदी वन होने चाहिए.
- एक समय था. जब हमारे कुल क्षेत्रफल पर आधे से अधिक क्षेत्र वन से अच्छादित थे.
- मगर जनसंख्या वृद्दि के कारण बढ़ती हुई मानव आवश्यकताओ के कारण हमारे वन निरंतर लुप्त हो रहे हैं.
- आज के हालात यह हैं, हमारे कुल क्षेत्रफल पर 30 फीसदी से कम वन रह गये हैं.
- इसके दुष्परिणाम देखने का इन्तजार करना ही नही पड़ा.
बीते कुछ वर्षो में आने वाले संभावित खतरे के संकेत मिल चुके हैं.वन महोत्सव की भागीदारी, जन सहयोग और सरकारों की सक्रियता के कारण भारत में वनों की स्थिति में कुछ सुधार आया हैं.
भारत के वन विभाग की 14 व़ी सूची जो 2015 में सार्वजनिक की गईं उस पर नजर डाली जाए तो भारत के कुल क्षेत्रफल में से लगभग 5100 वर्ग km की वन क्षेत्र में बढ़ोतरी दर्ज की गईं हैं.
- कुल वन क्षेत्र के आकड़े 794,245 वर्ग किमी हैं जो तक़रीबन 25 फीसदी हैं.
- वनों में क्षेत्रफल की द्रष्टि से मध्यप्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य हैं.
- राज्य में लगभग 77 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में वन हैं,
- इसके बाद क्रमश अरुणाचल प्रदेश और छतीसगढ़ आते हैं,
- यदि प्रदेश के कुल क्षेत्रफल में वन प्रतिशत की बात की जाए
- तो 89 फीसदी कुल वन क्षेत्र के साथ मिजोरम पहले और लक्षद्वीप दुसरे स्थान पर हैं.
वन महोत्सव कार्यक्रम
वन महोत्सव पर्व हर वर्ष जुलाई महीने के पहले पखवाड़े में मनाया जाता हैं, देश भर में पर्यावरण सरक्षण और वृक्षारोपण को लेकर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं.
1947 से शुरू हुई इस परम्परा में केंद्र सरकार स्थानीय सरकारों और स्वयसेवी संस्थाओ द्वारा जनजागरूकता और वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए इस पर्व को मनाया जाता हैं.
अपनी माँ पृथ्वी को बचाने उन्हें फिर से हराभरा करने के लिए लोग घरों, कार्यालयों, स्कूलों, कॉलेजों में बड़ी संख्या में पोधरोपण कर अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हैं.
ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण प्रदुषण के दुष्प्रभावो से आम जन को जागरूक बनाने के लिए हर भारतीय का यह कर्तव्य हैं, कि वो वन महोत्सव 2017 में कम से कम एक पौधा अपने घर अथवा ऑफिस में लगाए और उनकी सुरक्षा देखभाल का संकल्प ले.
कभी-कभी पेड़ काटना जरुरी भी हो जाता हैं, कोई पाप नही हैं यदि हम किसी आवश्यक परिस्थति में एक वृक्ष को काटे, मगर उनकी जगह फिर पांच नए वृक्ष जरुर लगाए.
अक्सर आए दिन पढ़ने या सुनने को मिलता है, कहीं जल संकट तो कही वर्षो से सुखा साथ ही कई बार जंगली जानवरों द्वारा आवासीय बस्तियों में घुसने की खबरे तो आम हो गईं हैं.
क्या हम कभी विचार करते हैं, आखिर वो ऐसा क्यों करते हैं. जब किसी का घर उजड़ जाता हैं अथवा उजाड़ दिया जाता हैं, तो मजबूरन उसे कही आश्रय लेना पड़ता हैं.
यकीनन हम उनके जंगलो को काटेगे उनके घरो का विध्वंस करेगे, तो एक दिन यह भी हो सकता हैं ये जानवर शहरों की ओर पलायन कर जाएगे.
चाहे खनन माफिया हो या लकड़ी की तस्करी करने वाले वनों के विनाश के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं. सरकार को कड़े नियम बनाकर इन पर कठोर कार्यवाही करने की जरुरत हैं.