पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है Capitalist Economy In Hindi

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है Capitalist Economy In Hindig in Hindi : पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है.

उत्पति के सभी साधनों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व व नियंत्रण होता है तथा आर्थिक क्रियाओं का संचालन निजी हित व लाभ प्रेरणा के उद्देश्य से किया जाता है. सरकार के आर्थिक कामकाज के प्रबंध में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नही करती है.

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है Capitalist Economy In Hindi

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कप स्वतंत्र बाजार अर्थ व्यवस्था, बाजार अर्थव्यवस्था एवं मुक्त अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है. विश्व में इस आर्थिक प्रणाली का उदय सन 1760 से 1820 के मध्य औद्योगिक क्रांति के समय हुआ.

आज विश्व के किसी भी देश में पूंजीवादी अपने विशुद्ध रूप में नही है. परन्तु आर्थिक गतिविधियों के संचालन व नियन्त्रण के आधार पर पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका (usa), जर्मनी, कनाडा, इटली, जापान, फ़्रांस ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में अर्थतंत्र पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कहलाते है.

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है?

1776 में छपी प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ की किताब ‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’ को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की मूल स्रोत कहा जाता हैं. स्काटिश अर्थाशास्त्री एडम स्मिथ को ही इस विचारधारा का जनक माना जाता हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो के प्रोसेफरों के साथ मिलकर स्मिथ ने एक विचार को जन्म दिया जो अमेरिका और यूरोपीय देशों में तेजी से लोकप्रिय हुआ.

यह पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का विचार था. यह वह दौर था जब पश्चिम के देशों में व्यापार आदि पर राज्य के हस्तक्षेप के खिलाफ आवाज उठा रहे थे.

एडम स्मिथ के अनुसार आर्थिक विकास दर को ऊपर उठाने के लिए श्रम विभाजन जरूरी है साथ ही अर्थव्यवस्था को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखा जाना चाहिए.

उनके विचार में एक अर्थव्यवस्था तभी लोकहितकारी हो सकती है जब उसमें पर्याप्त प्रतिस्पर्धा का स्थान हो. अमेरिका की स्वतंत्रता के बाद देश की विकास नीति में इस अर्थशास्त्री के सुझावों को महत्व दिया गया.

वेल्थ ऑफ नेशन्स के प्रकाशन के बाद कई यूरोपीय देशों में यह विचार तेजी से लोकप्रिय हुआ और सन 1800 आते एक नई प्रकार की विचारधारा का चलन पश्चिम से हुआ जो पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कहलाई.

इस प्रणाली में उत्पादन क्या और कितना करना है तथा किन दरों पर इसे बेचना है इसका निर्धारण कोई सरकार या राज्य न करके स्वतंत्र बाजार प्रणाली करती हैं. जिसमें आपूर्ति और मांग के अनुरूप वस्तुओं के मूल्य निर्धारित होते हैं.

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं (Features of Capitalist Economy)

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के घटक जैसे भूमि, खानें, कारखाने, मशीनें आदि पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व होता है. इन साधनों के स्वामी अपनी इच्छानुसार इनका प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र होते है. व्यक्तियों की सम्पति रखने, उसे बढ़ाने व उसे प्रयोग करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है.

  • उपभोक्ताओं को चयन की स्वतंत्रता (Freedom of choice of consumers) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता प्रभुसता सम्पन्न होते है. अर्थात उपभोक्ता के खर्च व उसकी इच्छा के अनुरूप ही उत्पादक वस्तुओं का उत्पादन करते है. इसे ही उपभोक्ता की संप्रभुता कहते है. यह आर्थिक प्रणाली ,में उपभोक्ता अपनी आय को इच्छानुसार व्यय करने के लिए स्वतंत्र होता है. उपभोक्ता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त होने के कारण ही इस आर्थिक प्रणाली (economic system) में उपभोक्ता को बाजार का राजा कहा जाता है.
  • उद्यम की स्वतंत्रता (Enterprise independence)– प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार किसी भी आर्थिक गतिविधि का संचालन कर सकता है. उत्पादन करने की तकनीक के चयन करने की, उद्योग स्थापित करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है. सरकार का कोई हस्तक्षेप नही होने के कारण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र उद्यम वाली अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है.
  • प्रतिस्पर्धा (Competition)– पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में विक्रेताओं के बिच अपने अपने उत्पाद तथा वस्तुओं को बेचने के लिए तथा क्रेताओं के बिच अपनी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रतियोगिता चलती रहती है. इससे बाजार में कुशलता बढ़ती है. विज्ञापन देना, उपहार देना, मूल्य में कमी कर देना आदि तरीके प्रतिस्पर्धा हेतु अपनाएँ जाते है.
  • निजी हित एवं लाभ का उद्देश्य (Purpose of personal interest and profit)-पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किसी भी कार्य का निर्णय अथवा किसी वस्तु का उत्पादन का निर्णय मुख्य रूप से लाभ की भावना के आधार पर ही लिया जाता है. अर्थात काम करने में क्या व कितना लाभ प्राप्त होग? इसी प्रकार उपभोक्ता भी वस्तुओं का उपयोग निजी हित के लिए करते है.
  • वर्ग संघर्ष (class struggle) – पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में समाज दो वर्गों में विभाजित हो जाता है. एक ओर साधन सम्पन्न वर्ग होता है. जो पूंजीपति कहलाता है. तथा दूसरी ओर साधन विहीन वर्ग होता है. जो श्रमिक कहलाता है. पूंजीपतियों में लाभ बढ़ाने का उद्देश्य व श्रमिकों के शोषण से बचने का उद्देश्य वर्ग संघर्ष को जन्म देते है.
  • आय की असमानता (Income inequality)- सम्पति के असमान वितरण के कारण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में गरीब व अमीर के बिच विषमता की खाई बढ़ती जाती है. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का विश्लेष्ण इस प्रकार कर सकते है.

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के गुण (advantages of capitalist economy)

  1. उत्पादन क्षमता व कुशलता का बढ़ना
  2. उपभोक्ताओं को अधिक संतुष्टि
  3. साधनों का अनुकूलतम प्रयोग
  4. तकनिकी विकास
  5. रहन सहन का स्तर ऊँचा होना
  6. आर्थिक स्वतंत्रता
  7. शोध, अनुसंधान का विकास

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के दोष (merits and demerits of capitalist economy)

  1. आय व सम्पति की विषमताएं
  2. क्षेत्रीय असमानताएं
  3. आर्थिक अस्थिरता
  4. एकाधिकारों का स्रजन
  5. उत्पाद्कीय संसाधनो का दुरूपयोग
  6. अमर्यादित उपभोग
  7. नैतिक मूल्यों में गिरावट

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का इतिहास (History of capitalist economy)

मिस्र, कार्थेज, रोम, बेबिलोनिया और यूनान में भी पूंजीवाद के पद चिह्न मिलते है. अथवा यूँ कहे कि जब से मानव संस्कृतियों का विकास आरम्भ हुआ तब से भिन्न भिन्न स्थानों पर इस विचारधारा का प्रभाव रहा, दास प्रथा जैसी परम्पराएं इस मॉडल के प्राचीन होने का साक्ष्य रही हैं.

वानिज्यवाद तथा सामन्तवाद के रूप में पूंजीवादी विचारधारा का सर्वाधिक प्रचार अठारवी शदी में यूरोप के देशो में हुआ. विश्व में औद्योगिक क्रांति के जन्म में पूजीवाद का बड़ा योगदान था.

इसे Mass Production Capitalism भी कहा जाने लगा. वैसे तो संस्थागत रूप से सोलहवीं सदी में ही पूंजीवाद ने यूरोप में स्वयं को प्रस्तुत कर दिया था.

आर्थिक स्वतंत्रता का सर्वप्रथम उल्लेख एडम स्मिथ की द वेल्थ ऑफ नेशंस में लिया गया. हालांकि स्मिथ ने अपनी किताब में पूंजीवाद शब्द का प्रयोग नहीं किया था. ऐडम स्मिथ का यह व्यक्तिगत पूँजी और स्वतंत्र उद्योग का उदारवादी मत आधुनिक पूँजीवाद का मेरुदंड हैं.

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में यह मत प्रमुखता से रहा कि यदि आर्थिक व्यापार को नियंत्रण से मुक्त कर दिया जाए तो उत्पादन क्षमता को कई गुना तक बढाया जा सकता हैं. बीसवीं सदी के आरंभ में मैक्स वेबर ने इसे सही ढंग से परिभाषित कर सबके समक्ष रखा.

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