Child Marriage (बाल विवाह) कम उम्र में बच्चों की शादी कर देने से उनका स्वास्थ्य, मानसिक विकास और खुशहाल जीवन पर असर पड़ता है. कम उम्रः में शादी करने से पुरे समाज में पिछड़ापन आ आता है.
जो अंततः समाज की प्रगति में बाधक बनता है. कानून में शादी करने की भी एक उम्रः तय की गई है. अगर शादी करने वाली लड़की की उम्रः 18 साल से कम हो, या लड़के की उम्रः 21 साल से कम हो तो ऐसा विवाह बाल विवाह कहलाएगा.
बाल विवाह (Child Marriage In Hindi)
बाल विवाह का अर्थ व इसके कारण (Child Marriage Meaning & Causes In Hindi)
भारत में कानूनन विवाह करने की न्यूनतम आयु लड़के के लिए 21 वर्ष व लड़की के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है. अतः इस निर्धारित उम्रः से कम उम्रः में बच्चों का विवाह करना ही बाल विवाह कहा जाता है.
इस प्रकार बाल विवाह बच्चों की छोटी उम्रः में विवाह कर देने की कुप्रथा है. जिसका प्रचलन निम्न जातियों एवं मुस्लिम धर्मावलम्बियों में अधिक है.
प्रतिवर्ष राजस्थान में अक्षय तृतीया या पीपल पूर्णिमा पर सैकड़ों-हजारों बच्चें इस सामाजिक बुराई का शिकार होते है. व विवाह बंधन में बाँध दिए जाते है. बाल विवाह मानवाधिकारों का प्रत्यक्ष उल्लघन है. बचपन के दिन बालक/ बालिका के खेलने व पढ़ने के दिन होते है.
यही वह समय होता है जब उसका शारीरिक व मानसिक विकास धीरे धीरे अपनी पूर्णता की ओर अग्रसर होता है. ऐसी कच्ची उम्रः में बच्चों के विवाह जब उन्हें वैवाहिक जीवन के बारे में बिलकुल भी कुछ भी समझ नही होती है. मगर उन्हें उन्हें इस बंधन में बाँध दिया जाता है.
बाल विवाह किये जाने से न सिर्फ उन बालक बालिकओं का शारीरिक व मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है, बल्कि बड़े होने पर उनमें कई बार पसंद के जीवन साथी मिल जाने पर उनसे विवाह करने की भी इच्छा होती है. फलस्वरूप उनके विवाहित जीवन साथी को अत्यधिक मानसिक संताप सहन करना पड़ता है.
बाल विवाह के लिए कुछ पूर्वाग्रह तथा कुछ विशवास उत्तरदायी है. जो विशेषत ग्रामीण और पिछड़े हुए समुदायों में प्रचलित है.
विवाह के सम्बन्ध में प्रचलित अवधारणा यह है कि बच्चों के लालन पोषण के लिए तथा अन्य कार्यों को करने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. महिलाओं को आखिर में अपने पिता के घर से पति के घर जाना होता है.
इसी कारण माता-पिता लड़की को औपचारिक शिक्षा दिलाने में अरुचि रखते है. वे बालिकाओं का कम उम्रः में ही विवाह कर देना शुभ समझते है. ताकि अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से मुक्त हो ले.
बाल विवाह प्रथा के कारण (early marriage causes and effects in hindi)
- अशिक्षा- शिक्षा की कमी के कारण लोग बाल विवाह के दुष्परिणामों से अनभिज्ञ होते है. साथ ही स्त्री शिक्षा के महत्व को न समझ पाना आदि बाल विवाह के कारण है.
- कृषि की प्रधानता- भारत की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण है, जो कृषि व पशुपालन के द्वारा अपना जीवन यापन करती है. इन दोनों कार्यों में अधिक मानव शक्ति की आवश्यकता होंने के कारण कम उम्रः में विवाह कर दिए जाते है. जिससे जल्दी बच्चें पैदा हो सके व घर के कार्यों में हाथ बटाने हेतु मानव श्रम उपलब्ध हो सके.
- स्त्रियों की निम्न दशा- वैदिक सभ्यता में स्त्रियों को परिवार में पुरुष के समान स्थान प्राप्त था. धीरे धीरे महिलाओं की स्थति निम्न होने लगी. भारत में मुगलों के आने के साथ ही महिलाओं की स्थति बद से बदतर होती चली गई. इन दुष्ट लोगों की नजरो से बचाने के लिए महिलाओं व बालिकओं के लिए पर्दा प्रथा व बाल विवाह जैसी प्रथाओं की शुरुआत की गई.
- माता पिता की जल्दी से जल्दी बच्चों का विवाह कर जिम्मेदारी से मुक्त होने की प्रवृति भी बाल विवाह का एक कारण है.
- गरीबी- निर्धनता भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा का एक कारण है. निर्धनता के कारण घर में कमाने वाले सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए कम उम्रः में ही विवाह कर दिए जाते है. ताकि जल्दी ही घर में कमाने वाला कोई अन्य पैदा हो सके.
धार्मिक मान्यता-हमारा देश सामाजिक विविधताओं से परिपूर्ण है, जहाँ अनेक जाति, धर्म के लोग निवास करते है जिनकी अलग अलग प्रथाएं एवं परम्पराएं है.
भारतीय समाज धार्मिक मान्यताओं एवं परम्पराओं को अधिक महत्व देता है जो बाल विवाह की प्रचलित रीति का सबसे बड़ा कारण है.
बाल विवाह के ऐतिहासिक कारण (Historical reasons for child marriage)
बाल विवाह के पीछे ऐतिहासिक कारण भी रहे है. भारत पर विदेशी ताकतों का हमला हुआ. बहिन बेटियों की इज्जत की खातिर बचपन में ही लड़कियों की शादी की जाने लगी.
इस प्रचलन ने कालांतर में एक दृढ रुढ़ि का रूप धारण कर लिया. इसकी वजह से आज भी बड़े पैमाने पर बालविवाह होते है.
- महिलाओं से छेड़छाड़ एवं बढ़ते यौन अपराध-कारण कुछ भी हो लेकिन वास्तविकता यह है कि यहाँ कानून व्यवस्था की स्थति सन्तोषजनक नही है. महिलाओं के विरुद्ध छेड़छाड़ एवं यौन अपराधों की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ रही है. जिससे हर बेटी का बाप डरा सहमा और आशंकित रहता है. ऐसे वातावरण में वह अपनी बेटी को बाहर पढ़ने भेजने के लिए भी डरता है. इसी डर से निजात पाने के लिए उसे लड़की की छोटी उम्रः में शादी कर देना सुरक्षित लगता है. जिसकी परिणिति बड़े पैमाने पर बाल विवाह में होती है.
- माँ बाप के मन में बेटी के चरित्र की चिंता-समाज में लड़के के चरित्र की अधिक परवाह नही है. लेकिन लड़की की शादी उसके अच्छे चरित्र पर निर्भर करती है. फिल्म टीवी इन्टरनेट जैसे साधनों ने सब बच्चों तक पहुचा दी है. उनके मन में भोग विलास के प्रति आकर्षण बढ़ा दिया है. पढ़ाई लिखाई या रोजगार के सिलसिले में बच्चियों को बाहर जाना पड़ता है. ऐ\सी स्थति में माँ बाप लड़की के चरित्र के प्रति आशंकित रहते है. और उन्हें इस दिशा में एकमात्र रास्ता छोटी उम्रः में लड़की की शादी करने के रूप में दिखता है. जिससे बाल विवाहों में वृद्धि होती है.
- घटता लिंगानुपात-प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण एवं कन्या भ्रूण हत्या के प्रचलन के परिणामस्वरूप हमारे यहाँ लड़का लड़की के अनुपात में कमी आ रही है. कुवारे लड़को की संख्या बढ़ रही है, जिससे लड़को की शादी होने की चिंता उनके माँ बाप के मन में रहती है. वे जल्दी से जल्दी अपने बेटे की शादी के लिए अपने रिश्तेदारों व मिलने वालों पर दवाब डालते है. जिसकी परिणिति भी कई बार बाल विवाह के रूप में सामने आती है.
- जातिगत परम्पराएं- कुछ जातियों में ऐसी परिपाटी है कि दो परिवार एक दुसरे की लड़की की शादी आपस में अपने अपने परिवार के लड़को के साथ कर देते है. यह परिपाटी भी कम उम्र में लड़की की शादी करने की वजह बनती है.
बाल विवाह के आर्थिक कारण (Financial reasons for child marriage)
- खर्चीली शादी-हमारे समाज में गहरी आर्थिक विषमता है. गरीब अमीर की खाई बढ़ती जा रही है. अमीर अपनी बेटियों की शादी में बेहताशा खर्चा करते है. दिखावा भी करते है. आर्थिक स्थति में भले ही जमीन आसमान का अंतर हो लेकिन गरीब अमीर माँ-बाप के मन में अपनी बेटी के प्रति प्रेम में कोई अंतर नही होता है. ऐसी दशा में गरीब माँ बाप की इच्छा भी होती है कि वह अपनी बेटी की शादी धूमधाम से करे, लेकिन आर्थिक स्थति इसकी इजाजत नही देती, इसलिए वह अपनी बेटी की शादी जल्दी से जल्दी सामूहिक विवाह सम्मेलन में या आपसी रिश्तेदारी में करने के लिए विवश होता है. इसकी परिणिति बड़े पैमाने पर बाल विवाह के रूप में सामने आती है.
- गरीबी-हमारे समाज का बड़ा वर्ग गरीब है जिनके सामने अपना पेट पालने का संकट है. ऐसी दशा में लड़की को उनके माँ बाप पराया धन मानते है. और उनके खान-पान, पढ़ाई-लिखाई में चाहते हुए भी सक्षम न होने के कारण जल्दी से जल्दी बेटी की शादी करने पर विवश हो जाते है. जिससे बाल विवाह की समस्या को और अधिक बढ़ावा मिलता है.
- शादी की एवज में धन लेने की प्रथा-कुछ जनजातियों में आज भी आर्थिक विषमता के चलते या पुरानी परम्पराओं के कारण बेटी की शादी की एवज में धनराशी लेने का रिवाज है. जिसकी वजह से लड़की के माँ-बाप जल्दी से जल्दी धन प्राप्त करने की नियत से छोटी उम्र में ही लड़की की शादी कर देते है. यह भी बाल विवाह को बढ़ावा देने वाले कारणों में से एक है.
बाल विवाह के दुष्परिणाम Child Marriage Effects In Hindi
प्राचीन समय के कुछ रीती रिवाज जो उस समय की आवश्यकता का अनुकूल बनाए गये थे. मगर वर्तमान में अन्धानुकरण के चलते आज भी बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं हमारे देश में प्रचलित है.
नन्हें मुन्ने बालकों को विद्यालय में व खेल में मैदान में शोभा देते है, इस उम्रः में उन्हें विवाह के मंडल में बिठाकार एक महत्वपूर्ण संस्कार सम्पन्न करवा देना, जब वे विवाह की abcd की नही जानते है. एक आधुनिक भारतीय समाज में कंलक है.
इस कुप्रथा के चलते बालक-बालिका पर निम्न दुष्प्रभाव पड़ते है.
- बच्चों का मानसिक विकास रुक जाता है.
- बच्चों का बचपन समाप्त हो जाता है.
- विशेषकर बालिकाओं का कम उम्रः में विवाह कर देने से वह उच्च शिक्षा नही प्राप्त कर पाती है.
- कम उम्रः में विवाह होना बालिका के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है. लडकियों का विवाह छोटी उम्रः में कर दिए जाने से छोटी उम्रः में गर्भवती हो जाती है, जिससे कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती है. कुपोषण, अत्यधिक कार्यभार, अशिक्षा, यौन व्यवहार की अनभिज्ञता के कारण इन गर्भवती लड़कियों का जीवन भयंकर खतरे में पड़ जाता है.
- ये अपरिपक्व गर्भधान, यौन सक्रमण तथा एड्स जैसी बीमारियों से ग्रसित हो जाती है. साथ ही इनमें से अधिक के बच्चें कुपोषण के शिकार होते है. कम वजन के होते है और उनकी मृत्यु का खतरा अधिक होता है.
- छोटी उम्रः में बालिकाओं पर परिवार की जिम्मेदारी आ जाती है. यह उनके पूर्ण मानसिक व शारीरिक विकास में बाधक होता है.
- कई बार बालिकाएं बाल विधवा हो जाती है. इस शाप से जो जीवनभर मुक्त नही हो पाती है, तथा पूरा जीवन वैधव्य के साथ बिताना पड़ता है.
- कई बार लड़के बड़े होकर अच्छा व्यवसाय या नौकरी कर लेते है. वे छोटी उम्रः में की गई पत्नी को छोड़कर नया विवाह रचा लेते है. ऐसे में उस युवती को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
- कम उम्रः में बाल विवाह कर दिए जाने से जनसंख्या बढ़ती है, तथा जनसंख्या वृद्धि का परिणाम देश व समाज को भुगतना पड़ता है.
- बाल विवाह से मातृ मृत्यु दर व शिशु मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी होती है.
बाल विवाह रोकने का कानून व उपाय Child Marriage Low & Measures to Stop In Hindi
बाल विवाह पुरातन प्रेमी समाज द्वारा बालक बालिकाओं पर थोपा गया सामाजिक रिवाज है. आज इसका महत्व शून्य के बराबर है.
बल्कि कई भावी कर्णधारों के भविष्य के सपनों को धूमिल करने का कार्य बालविवाह एवं इस बुराई का समर्थन करने वालों ने किया है. भारत में 1929 में बाल विवाह निषेध एक्ट पारित हुआ था.
भारतीय शासन स्थापना के बाद भी कई प्रभावी कानून बनाए गये. मगर आज भी यह समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है.
बाल विवाह रोकने के उपाय व सुझाव (Measures to Stop child marriage)
बालिकाओं को शिक्षित करना इस कुप्रथा को रोकने का सबसे प्रभावी उपाय है. जब लड़कियां शिक्षित होने लगेगी तो वे स्वयं ही बालविवाह की बुराई को ठुकरा देगी. अतः बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए.
दूरस्थ क्षेत्रों में मोबाइल शिक्षा प्रणाली लागू की जानी चाहिए तथा बच्चों को व्यवसायपरक शिक्षा देने की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए. साथ ही इस प्रथा को समाप्त करने का दूसरा अहम उपाय समाज में जागरूकता पैदा करना है.
बाल विवाह की प्रथा को समाप्त करने के लिए इस कुप्रथा के विरुद्ध समाज में जागरूकता लानी चाहिए. माँ बाप व अभिभावकों को इस कुप्रथा के नुकसान के बारे में बताना चाहिए. इस कार्य के लिए समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों, साधु-सज्जनों व धर्म से जुड़े हुए व्यक्तियों तथा ngo की मदद ली जा सकती है.
फिल्मों रंगमंच, वृतचित्र व नुक्कड़ नाटकों आदि के द्वारा इस कुप्रथा के दुष्परिणामों का प्रदर्शन भी समाज में जागरूकता लाने में अहम भूमिका निभाता है.
इसके अतिरिक्त गरीब व निम्न जातियों को सरकार द्वारा विशेष सहायता राशि के प्रावधान करने चाहिए, क्योंकि यह कुप्रथा इस वर्ग के लोगों में अधिकतर व्याप्त है.
सरकार द्वारा इन जातियों के लोगों को प्रलोभन के रूप में इस प्रकार की योजनाएं शुरू करनी चाहिए, जिसमें बेटी का विवाह उसके योग्य होने पर ही करने पर आर्थिक सहायता व रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकेगे.
बाल विवाह की समस्या को रोकने के लिए व्यापक कानून व्यवस्थाएं तथा दृढ राजनितिक इच्छा शक्ति व जनसहभागिता की विशेष आवश्यकता है.
बाल विवाह रोकने के लिए बने कानून (Laws to Stop Child Marriage in india in hindi)
सरकार ने बाल विवाह की रोकथाम के लिए सजा का भी प्रावधान किया गया है. लेकिन अभी तक ये कानून पूर्ण रूप से प्रभावी नही हुए है. अतः इस कुप्रथा को सामाजिक स्तर पर ही समाप्त किया जाना चाहिए.
भारत बाल विवाह व सती प्रथा के इतिहास में कानून निर्मित करवाने व जागरूकता फैलाने में राजा राममोहन राय एवं ईश्वरचंद विधासागर का नाम महत्वपूर्ण है. राजा राममोहन रॉय के प्रयासों से 1829 में सती प्रथा रोकथाम कानून बनाया गया. 1891 में एक संशोधन के लिए लड़की की न्यूनतम आयु 12 वर्ष की गई.
यह अधिनियम भारत सरकार द्वारा 1891 में age of consent act नाम से 19 मार्च 1891 को लागू किया गया. जिसमें लड़की के लिए न्यूनतम वैवाहिक आयु 12 वर्ष रखी गई थी. महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने इस कानून का विरोध भी किया था.
भारत में बाल विवाह कानून की जानकारी व इतिहास (Information and History of Child Marriage Law in India)
भारत में बाल विवाह रोकथाम के लिए अजमेर राजस्थान के हरविलास शारदा ने 1929 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम प्रस्तावित किया, जो गर्वनर जनरल व वायसराय लार्ड इरविन के समय में सितम्बर 1929 में भारतीय की केन्द्रीय असेम्बली से पारित किया गया था. तथा शारदा एक्ट के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
यह अधिनियम 1 अप्रैल 1930 से पूरे भारत में लागू हुआ. इस कानून से पहले वाल्टरकृत राजपूत हितकारिणी सभा के निर्णयानुसार जोधपुर राज्य के प्रधानमंत्री सर प्रतापसिंह ने 1885 में बाल विवाह प्रतिबंधक कानून बनाया था.
बाल विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट (sharda act in hindi)
शारदा एक्ट में शुरुआत में बालिकाओं के विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष व बालक की न्यूनतम आयु 18 वर्ष तय की गई थी. 1940 में बालिका की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 15 साल कर दिया गया था.
1978 में संशोधन द्वारा इस कानून के तहत बालिकाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष तथा बालकों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की गई. इस कानून में 1992 में संशोधन कर ऐसे माता-पिता व अभिभावकों को जो बाल विवाह का समर्थन प्रदान करते है, उन्हें दंडित करने का प्रावधान भी किया गया है.
बाल विवाह उन्मूलन के लिए वर्तमान में भारत में कानून (Laws in India for the Elimination of Child Marriage)
2006 में शारदा एक्ट को समाप्त कर नये अधिनियम ”बाल विवाह निरोध अधिनियम 2006” को 1 नवम्बर 2007 से लागू किया गया है. इस अधिनियम के द्वारा यह प्रावधान किया गया है कि बाल विवाह को वयस्क होने के दो साल के भीतर व्यर्थ (void) घोषित किया जा सकता है.
इस अधिनियम में बाल विवाह के लिए दोषी सभी व्यक्तियों को 2 साल का कठोर कारावास या एक लाख रुपयें का जुर्माना या दोनों से दंडित किये जाने का प्रावधान है. इस अधिनियम में बालकों की न्यूनतम विवाह योग्य आयु 21 वर्ष एवं बालिकाओं की 18 वर्ष निर्धारित की गई है.
यद्यपि बाल विवाहों को रोकने बाल विवाह करवाने वाले लोगों को दंडित करने के लिए समय समय पर कानून बने है. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 में बाल विवाह को रोकने और बाल विवाह को करने व कराने वालों को कठोर दंड से दंडित करने के प्रावधान है. हालांकि बाल विवाहों में कमी आई है, लोग बाल विवाह खुलेआम करने से डरते है लेकिन अभी भी बड़े पैमाने पर बाल विवाह हो रहे है.
यह स्थति समाज के लिए चिंताजनक है. इस बुराई को दूर करने के लिए चौतरफा प्रयास किये जाने की आवश्यकता है. विधिक सेवा संस्थाओं को सभी सरकारी विभागों का स्वयंसेवी संगठनो का एवं जनप्रतिनिधियों का साथ व सहयोग लेकर बालविवाह के विरुद्ध सघन प्रचार व प्रचार करना होगा.
जन जन तक यह बात पहचानी होगी कि बालविवाह एक कानूनी अपराध है, व्यवस्था ऐसी हो चुकी है कि छुपकर बाल विवाह करने पर भी कानून की नजरो में बचना संभव नही है.
यदि बाल विवाह किया तो निश्चित रूप से बाल विवाह करने वाले, करवाने वाले, मदद करने वाले और जानबूझकर सुचना नही देने वाले, कानून की नजरों से नही बचेगे. और निश्चित रूप से दंडित होगे.
प्रचार प्रसार के साथ ऐसी ठोस कार्य प्रणाली तैयार करनी होगी कि यह सिर्फ कागजी कार्यवाही या जुबानी जमा खर्च नही रहे और सभी स्टेक होल्डर अपने दायित्वों का निष्ठां से निर्वहन करे और यह सुनिश्चित करे कि बाल विवाह आयोजित होने से पहले ही निश्चित रूप से रोके जाए.
यदि फिर भी कोई बालविवाह हो तो सम्बन्धित दोषी व्यक्ति कानून के समक्ष लाए जाए और दंडित किये जाए. यदि हम उपरोक्त व्यवस्था धरातल पर करने में सफल हो जाए तो वह दिन दूर नही जब हमारा समाज बाल विवाह की बुराई से मुक्त होगा.