जगन्नाथ रथ यात्रा इतिहास और महत्व | Jagannath Puri Temple Rath Yatra

जगन्नाथ रथ यात्रा इतिहास और महत्व  Jagannath Puri Temple Rath Yatra– जगन्नाथ धाम/पूरी भगवान् श्री कृष्ण की नगरी हैं, जगन्नाथ रथ यात्रा बड़े धूमधाम से निकाली जाती हैं.

हमारे धार्मिक ग्रन्थ कहते हैं भगवान् श्री कृष्ण बद्रीनाथ धाम में स्नान करते हैं| द्वारिका में वस्त्र धारण करते हैं उड़ीसा के पूरी धाम में भोजन करते हैं और तमिलनाडू के रामेश्वर में आराम किया करते हैं|

Jagannath Rath Yatra in Puri जगन्नाथ रथ यात्रा इतिहास महत्व

जगन्नाथ रथ यात्रा इतिहास और महत्व | Jagannath Puri Temple Rath Yatra

त्रेतायुग के बाद द्वापर युग में भगवान् श्री कृष्ण ने पूरी को ही अपना स्थल बनाया और पूरी में ही रहते हैं| जगन्नाथ यानि विश्व के स्वामी| पूरी में अपने भाई बहिन के साथ विराजमान होते हैं|

हिन्दू प्राचीन मन्दिरों में श्री जगन्नाथ मंदिर महत्वपूर्ण स्थान हैं यहाँ आपकों जगन्नाथ पुरी की कहानी जगन्नाथ रथ यात्रा पुरी यात्रा और भगवान जगन्नाथ की कथा के बारे में विस्तार से जानकारी दी जा रही हैं|

वैष्णव सम्प्रदाय के चार धामों में प्रमुख जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा राज्य के पूरी शहर में अवस्थित हैं| प्रत्येक वर्ष में एक बार जगन्नाथ रथ यात्रा बड़ी धूमधाम से निकाली जाती हैं|

इस मन्दिर का निर्माण आज से 1300 साल पूर्व 7 व़ी सदी में अनंतवर्मन् चोडगंग देव द्वारा करवाया गया था|

कई साल पुराना मन्दिर होने के कारण कई बार इनकी मरम्मत भी करवाई जा चुकी हैं| उपलब्ध प्रमाणित साक्ष्यो के मुताबिक जगन्नाथ मंदिर का पहला जीर्णोद्वार अनंग भीम देव ने बाहरवी शताब्दी में करवाया था|

कलिंग वास्तुकला से निर्मित इस जगन्नाथ मंदिर में कृष्ण इनके बड़े भाई बलभद्र और बहिना सुभद्रा की मुर्तिया प्रतिस्थापित हैं|

उड़ीसा का यह मन्दिर भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र का प्रतीक समझा जाता हैं इस मन्दिर के शिखर पर एक लाल रंग की ध्वजा फहरी रहती हैं| ऐसा नही हैं इस मन्दिर पर विधर्मियो की कुद्रष्टि नही पड़ी|

मन्दिर के पूर्ण निर्माण से 16व़ी सदी तक इसमे विधिवत रूप से पूजा होती रही| एक अफगान सेनापति काला पहाड़ ने जगन्नाथ मन्दिर पर हमला किया और इसे तहस-नहस कर दिया|

जगन्नाथ मन्दिर के पुजारियों ने मन्दिर की मूर्तियों और पूजा सामग्री को पास ही की झील में छुपा कर रख दी| ताकि इन अक्रान्ताओ की नजर इन पर न पड़ सके|

आखिर पूरी में एक हिन्दू शासक रामचन्द्र देब के शासनकाल में जगन्नाथ मन्दिर की मूर्तियों की पुनर्स्थापित की गईं और जगन्नाथ रथ यात्रा फिर से आरम्भ की गईं|

जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास (History of Rath Yatra)

मान्यता हैं इस रथ की बंधी रस्सियों को खीचने या छूने भर से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं| भले ही आधुनिक विज्ञान इन बातों को माने या ना माने जगन्नाथ रथ यात्रा (Puri Jagannath rath yatra) लाखों-करोड़ो लोगों की आस्था और विशवास का विषय हैं|

जगन्नाथ पूरी मन्दिर अपने आप में कई रहस्य छुपाए हुए हैं जिनके बारे में आज तक किसी को पता नही हैं आप यकींन नही करेगे जगन्नाथ पूरी मन्दिर की उपरी ध्वजा हमेशा पवन के विपरीत दिशा में लहराती हैं|

अक्सर कोई भी ध्वजा वायु की दिशा में ही लहराती हैं मगर जगन्नाथ पूरी मन्दिर में आपकों यह देख अचरज ही होगा|

पूरी में जगन्नाथ पूरी मन्दिर के अतिरिक्त कई सारे मन्दिर हैं, सभी मन्दिरों पर कृष्ण का सुदर्शन चक्र ही नजर आएगा| हालाँकि इस बात की हमे कोई पुष्टि नही हैं,

किवदन्ती हैं कि जगन्नाथ पूरी मन्दिर के उपर से कोई भी जीव या यंत्र नही गुजरता हैं| यहाँ तक पक्षी भी नही| चाहे करोड़ो या अरबो श्रद्धालु इस मन्दिर को आए प्रसाद रूपी भोजन कभी समाप्त नही होता हैं| इस मन्दिर के शिखर की छाया अभी तक किसी के द्वारा नही देखी गईं हैं|

जगन्नाथ रथ यात्रा के बारे में कहा जाता हैं जब भगवान श्री कृष्ण की बहिन सुभद्रा ने सभी चारों नगरी देखने की इच्छा जताई तो भगवान ने सुभदा को रथ पर विराजमान करवाकर तीनो लोक के दर्शन करवाए|

कहते हैं जगन्नाथ मन्दिर के पीछे स्वय ब्रहमाजी जी वास करते हैं|जो मूर्ति के पीछे उनके दर्शन करने की हिमाकत करता हैं उनकी म्रत्यु हो जाती हैं|

इसी कारण जगन्नाथ मूर्ति बदलने के दिन राज्य सरकार ने पुरे शहर में लाईट बंद कर दी थी| ताकि किसी के साथ कोई अनर्थ ना हो|

जगन्नाथ रथ यात्रा कहानी (Jagannath Puri Rath Yatra Information in Hindi)

jagannath puri की रथ यात्रा और मन्दिर मूर्ति स्थापना की कथा कई साल पुरानी हैं| इन्द्रद्युम्न उस समय उड़ीसा के शासक थे| समुद्र के किनारे उनकी बसती थी|

एक दिन इन्द्रद्युम्न इधर-उधर टहल रहे थे कि उनकी नजर एक विशालकाय लकड़ी के गट्टे को देखा| इन्द्रद्युम्न भगवान् विष्णु जी के परम भक्त थे|

अत: इन्होने इस विशालकाय लकड़ी के गट्टे से अपने आराध्य देव भगवान् विष्णु की मूर्ति बनवाने का निश्चय किया| तभी भगवान् ब्रह्माजी स्वय एक बूढ़े खाती का रूप लेकर वहा उपस्थित हुए – इन्द्रद्युम्न ने अपने मन की बात बताई| मगर ब्रहमाजी ने यहाँ एक शर्त रख दी वो यह थी|

कि मुझे एक ऐसा रहने का स्थान दो जहां मूर्ति निर्माण तक कोई दूसरा व्यक्ति वहा ना आए| यह बात राजन ने मान ली|

कुछ दिन बीत जाने पर राजा को ख्याल आया वह कोन व्रद बढाई हैं इससे पूर्व इन्हें कभी देखा नही| कई दिन बीत गये बिना खाए पिए वह कैसे रहेगा| वो जिन्दा भी हैं या नही|

इसी आशंका के बिच इन्द्रद्युम्न ने उस घर का मुख्य द्वार खोला जहा ब्रहाजी मूर्ति बना रहे थे|जब इन्द्रद्युम्न ने द्वार खोलकर अंदर झाका तो कुछ नही था सिवाय जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम अधूरी मुर्तिया के|

इससे राजन बड़े परेशान हो उठे आखिर कैसा अनर्थ हो गया| तभी आकाश से आकाशवाणी हुई, वत्स क्यों परेशान हैं हम इसी रूप में रह लेगे|

आप इन्हे गंगाजल और द्रव्य से पवित्र कर स्थापित कर दो| आज भी वही अधूरी मुर्तिया जगन्नाथ रथ यात्रा में शोभा बढ़ा रही हैं|

Jagannath Puri Rath Yatra | जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा

पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य में हैं, भगवान कृष्ण को समर्पित यह हिन्दुओं के चार धामों में से एक हैं.

राज्य सरकार द्वारा Jagannath Puri Rath Yatra के लिए राज्य सरकार द्वारा विशेष तैयारी व प्रबंध किये जाते है. लाखों की संख्या में देशी व विदेशी यात्री यहाँ दर्शन करने आते हैं. पुरी शहर समुद्र तट पर स्थित हैं, इसका शाब्दिक अर्थ होता संसार का स्वामी.

आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया को जगन्नाथ रथ यात्रा का उत्सव मनाया जाता हैं. इस दिन भगवान का रथ सुभद्रा सहित बड़े धूम धाम से निकाला जाता हैं. जगन्नाथ पुरी में भगवान जगदीश का जो रथ निकाला जाता हैं, वो पूरे भारत में विख्यात हैं.

जगन्नाथ जी का जो रथ उठता हैं वह ४५ फीट ऊँचा, ३५ फीट चौड़ा तथा ३५ फीट लम्बा होता हैं, जिसमें 16 पहिये होते हैं. इसी तरह सुभद्रा जी का रथ ४३ फुट ऊँचा तथा १२ पहियों वाला होता हैं. प्रतिवर्ष नयें रथों का इस्तमोल किया जाता हैं.

मंदिर के सिंह द्वार से रथासीन होकर भगवान जनकपुर की ओर प्रस्थान करवाएं जाते हैं. जनकपुर पहुचने पर भगवान वहां तीन दिन निवास करते हैं. इसी स्थल पर लक्ष्मी जी से भी उनका साक्षात्कार होता हैं. तत्पश्चात पुनः रथ जगन्नाथपुरी को लौट आता हैं.

जगन्नाथ रथों का निर्माण

इस रथयात्रा के लिए विशेष प्रकार से निर्मित रथों का प्रयोग किया जाता हैं. इन रथों की सबसे खास बात यह हैं, कि इनकें निर्माण में तनिक भर भी धातु का उपयोग नही किया जाता है.

सम्पूर्ण रथ सामग्री को नीम के वृक्ष की लकड़ी से बनाया जाता हैं. इसके निर्माण का जिम्मा मंदिर संचालन समिति द्वारा गठित समिति को दिया जाता हैं.

यह समिति कई दिन पूर्व से इस कार्य में जुट जाती हैं, तथा पूर्ण स्वास्तिक नीम के वृक्ष की इस कार्य के लिए टीका जाता हैं, उस पहचाने गये पेड़ को आमभाषा में दारु के नाम से पुकारा जाता हैं.

हरे व गेरुएँ रंग से निर्मित बलराम रथ को तालध्वज, जगदीश रथ को नदीघोष अथवा गुरुद्ध्वज कहा जाता हैं, जिनमें लाल एवं पीले रंग की प्रधानता होती हैं. नीले व काले रंग से निर्मित रथ  दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ कहा जाता है, जो सुभद्रा जी का रथ होता है.

जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा की कहानी | Jagannath Puri Rath Yatra Story In Hindi

पुरी की इस रथ यात्रा से जुडी कई पौराणिक कथाएँ एवं मान्यताएं हैं. पुरी का संबंध भगवान श्री कृष्ण से हैं तथा इनके साथ भाई बलराम तथा बहिन सुभद्रा से जुड़े प्रसंग सुनने को मिलते हैं. यहाँ आपको पुरी रथ यात्रा से जुडी कुछ स्टोरी संक्षिप्त में बता रहे हैं.

  1. कहते हैं, कि कृष्ण की बहिन सुभद्रा अपने पीहर में आती है, तथा बलराम व श्रीकृष्ण से शहर यात्रा के बारे में इच्छा जताती हैं, तब दो भाई व बहिन रथ में बैठकर नगर की यात्रा को निकलते हैं. तथा इस मान्यता के कारण आज भी रथयात्रा निकाली जाती हैं.
  2. प्रसिद्ध गुडिचा मंदिर में विराजमान देवी को बलराम सुभद्रा श्रीकृष्ण की माँ की जसोदा की बहिन बताया जाता हैं, मौसी के आग्रह पर तीनों उनके घर रथ के द्वारा मिलने गये थे, जिसकी परम्परा में हर साल रथ यात्रा का आयोजन होता हैं.
  3. कुछ लोग इस यात्रा को मामा कंस से जोड़ते हैं, माना जाता हैं कि कंस के बुलाने पर कृष्ण व भाई बहिन रथ में बैठकर जातर हैं, जबकि यह भी विश्वास हैं, कि कंस की मृत्यु के उपरांत नन्दलाल अपने भाई बलराम को राज्य की सैर रथ द्वारा करवाते हैं.

जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा इतिहास ( Jagannath Puri Rath Yatra History)-

मान्यता है, कि भगवान श्री कृष्ण के देह त्यागने पर उन्हें द्वारका लाया जाता हैं. इनकी मृत्यु का सबसे अधिक कष्ट बड़े भाई बलराम तथा बहिन सुभद्रा को होता हैं.

भाई कृष्ण के पार्थिव शरीर को देखकर बलराम इसे लेकर समुद्र में कूद जाते हैं. साथ में सुभद्रा भी कूद जाती हैं.

उसी समय की बात हैं. राजा इन्द्रद्युम्न जो नीलांचल सागर, उड़ीसा के शासक हुआ करते थे, एक रात्रि में उन्हें स्वप्नं आया, जिसमें उन्हें भगवान कृष्ण को समुद्र में तेरते हुए देखा.

अपने स्वपन की सच्चाई पता करने के लिए जब वे सुबह समुद्र तट पर गये तो वहां कृष्ण का कंकाल मिला. इस पर उन्होंने एक भव्य कृष्ण मंदिर बनाने की सोची.

राजा कई दिनों तक मन ही मन विचार कर ही रहा था, कि कौन बढ़ई इसे बना सकता हैं, तभी विश्वकर्मा स्वयं बढ़ई का अवतार लेकर आए, तथा बोले राजन व्यथित ना हो, मूर्तियाँ मैं बना दूंगा,

मगर मेरी एक शर्त हैं, मैं उसी घर में काम करुगा जहाँ मुझे कोई स्त्री पुरुष न देख सके. मुझे न तो कुछ खाने की जरूरत हैं न पीने की. शर्तनुसार बढ़ई राजा के एक बंद कमरे में ठहरे.

कुछ दिन बीतने के बाद रानी को यह शंक हुआ कि भला कैसे कोई इंसान बीना खाएं पीएं काम कर सकता हैं, उसने जब दरवाजा खोला तो विश्वकर्मा जी अपनी शर्त के अनुसार अन्तर्धान हो गये, तथा अधूरी कृष्ण, बलराम तथा सुभद्रा की मूर्तियाँ वहां पड़ी थी. जब राजा को इस बात का पता चला तो वह बहुत व्याकुल हुआ.

तभी तेज गर्जना के साथ आकाशवाणी हुई ” राजन दुखी मत हो” इन मूर्तियों को गंगाजल से पवित्र कर सुभद्रा की इच्छा के अनुसार कृष्ण, बलराम तथा सुभद्रा की रथयात्रा पर ले जाओं और इन्हें स्थापित कर दो. माता सुभद्रा की नगर भ्रमण इच्छा में हर साल रथ यात्रा का आयोजन किया जाता हैं.

श्री जगन्नाथ रथ यात्रा / ଶ୍ରୀ ଜଗନ୍ନାଥ ରଥ ୟାତ୍ରା JAGANNATH PURI RATHA YATRA ESSAY HINDI / BAHUDA YATRA

यह रथ यात्रा (Ratha Yatra) भारत के प्रसिद्ध उत्सवों की तरह मनाई जाती हैं, 9-10 दिनों तक धूमधाम से रथ यात्रा का आयोजन किया जाता हैं. कृष्ण, बलराम तथा सुभद्रा के रथ 9 दिनों तक चलते हैं,

फिर मुख्य धाम पुरी की ओर प्रस्थान करते हैं, जिन्हें बहुडा कहा जाता हैं. भारत के अतिरिक्त कुछ अन्य देशों में भी इसे मनाया जाता हैं. तीनों रथों को दो सौ किलोंग्राम सोने के साथ सजाया जाता हैं.

हर हिन्दू अपने जीवन में जगन्नाथ पुरी की यात्रा करने का पुण्य पाता हैं. भगवान की इस नगरी में रथ यात्रा के दौरान रथ की रस्सी खीचने की परम्परा हैं, लाखों जात्री इस आशा में पुरी पहुचते है, कि वो भी इस रस्सी को अपना हाथ लगाकर अपने जीवन को सफल बना सके.

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