जम्मू कश्मीर का भारत में विलय व विवाद | Jammu Kashmir Instrument of Accession And conflict in Hindi

जम्मू कश्मीर का भारत में विलय व विवाद | Jammu Kashmir Instrument of Accession And conflict in Hindi : कश्मीर औपनिवेशिक भारत की सबसे महत्वपूर्ण रियासत थी.

न केवल इसका क्षेत्रफल सबसे बड़ा था अपितु इस भौगोलिक स्थति भी सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण थी. जम्मू कश्मीर की सीमाएं अफगानिस्तान, चीन और तिब्बत से मिलती थी.

जम्मू कश्मीर रियासत के मुख्यत चार भाग थे. जम्मू क्षेत्र जो पंजाब से लगा हुआ था, जो अपेक्षाकृत अधिक मैदानी है.

कश्मीर घाटी, लद्दाख की ऊँची चोटियों और लद्दाख के पश्चिम में बहुत कम आबादी का इलाका गिलगित और बलूचिस्तान. एक नजर जम्मू कश्मीर रियासत का भारत में विलय एवं इसके विवाद व इतिहास पर.

जम्मू कश्मीर का भारत में विलय व विवाद Jammu Kashmir in Hindi

भारत का मुकुट कहे जाने वाले जम्मू कश्मीर राज्य का विवाद काफी प्राचीन हैं. वर्ष 1947 से भारत विभाजन के साथ ही कश्मीर विवाद को लेकर भारत पाक के मध्य तीन युद्ध भी हो चुके हैं.

मगर समस्या खत्म होने की बजाय दोनों देशों के बीच के विवादों का मूल कारण यह क्षेत्र ही हैं. आज हम जानेगे कि कश्मीर विवाद या समस्या क्या है.

जम्मू कश्मीर रियासत का इतिहास व स्थिति (History and status of the state of Jammu and Kashmir In Hindi)

रियासतकालीन जम्मू कश्मीर के इन दूर दराज इलाकों को एक छतरी के नीचे लाने का कार्य डोगरा राजपूत घराने ने किया. जिसने 1830 के दशक में लद्दाख जीत लिया और 1840 के दशक में अंग्रेजों से कश्मीर घाटी हासिल कर ली.

आजादी के समय जम्मू कश्मीर रियासत भारत पाक की सीमा पर स्थित होने के कारण राजनितिक रूप से महत्वपूर्ण थी. कश्मीर पर 1925 ईस्वी से महाराजा हरिसिंह का शासन था. 1932 में जम्मू कश्मीर में मुस्लिम कांफ्रेस का गठन हुआ.

मुस्लिम कांफ्रेस ने जम्मू कश्मीर में महाराजा के खिलाफ असंतोष पैदा करने का कार्य किया. बाद में इसका नाम नेशनल कांफ्रेस कर दिया और शेख अब्दुल्ला इसके बड़े नेता बने.

भारत पाक विभाजन एवं जम्मू कश्मीर विवाद (India-Pak partition and J & K dispute in hindi)

15 अगस्त 1947 तक महाराजा हरिसिंह ने अपनी रियासत के बारे में कोई फैसला नही लिया. उधर पाकिस्तान येन केन प्रकारेण जम्मू कश्मीर रियासत का अपने में विलय चाहता था. उसने महाराजा को अनेक लोभ व प्रलोभन देने के प्रयास किये, लेकिन उसे सफलता प्राप्त नही हुई.

ऐसे में स्वतंत्रता के तुरंत बाद पाकिस्तान ने सितम्बर 1947 से ही घुसपैठियों के वश में अपनी सेना की कश्मीर में घुसपैठ प्रारम्भ करवा दी.

अक्टूबर के अंत में पाकिस्तानी सेना श्रीनगर के करीब तक पहुच गई. 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर की स्थति को लेकर नई दिल्ली में बैठक हुई, जिसमे कश्मीर के प्रधानमंत्री मेहरचंद महाजन व नेशनल कांफ्रेस के शेख अब्दुल्ला शामिल थे.

जम्मू कश्मीर रियासत का भारत में विलय (Merger of Jammu and Kashmir principality in India)

महाजन और शेख दोनों ने भारत सरकार से अपील की कि जम्मू कश्मीर रियासत में सेना भेजकर पाकिस्तानी हमलावरों को खदेड़ा जाए. 26 अक्तूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने भारतवर्ष में जम्मू कश्मीर का विलय उसी विलय पत्र के आधार पर कर लिया.

जिस विलय पत्र से दूसरी रियासतों का विलय हुआ. महाराजा ने कहा था ” मै एतद्द्वारा इस विलय पत्र को स्वीकार करता हु” भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 के अनुसार शासक द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के उपरांत आपत्ति करने का अधिकार स्वयं हस्ताक्षरकर्ता सहित किसी को नही था.

इस प्रकार जम्मू कश्मीर रियासत का भारत में विलय हुआ तथा 1950 में भारत के संविधान की पहली अनुसूची में भाग ख राज्य में जम्मू कश्मीर को शामिल किया गया.

आजादी के बाद जम्मू कश्मीर (history of jammu and kashmir after 1947 in hindi)

सन 1951 में जम्मू कश्मीर राज्य की संविधान सभा के चुनाव हुए. 75 सदस्यीय संविधान सभा ने 6 फरवरी 1954 को जम्मू कश्मीर राज्य के भारत में विलय की पुष्टि की.

जम्मू कश्मीर के संविधान की धारा 3 के अनुसार ”जम्मू & कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है. और रहेगा तथा इस धारा में कभी कोई संशोधन नही हो सकेगा.

इस प्रकार तत्कालीन महाराजा हरिसिंह ने विलय पत्र तथा जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की घोषणा से जम्मू-कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय हुआ व भारत का अभिन्न अंग बना.

भारत सरकार ने अपने राज्य जम्मू और कश्मीर को पाकिस्तानी कबाइली हमले से बचाने के लिए अपनी सेना कश्मीर भेजी. नवम्बर के अंत तक भारतीय सेना ने अपना काफी बड़ा भू-भाग पाकिस्तान से वापिस जब्त कर लिया.

जम्मू कश्मीर विवाद और संयुक्त राष्ट्र संघ (Jammu Kashmir dispute and UNO In Hindi)

यदपि जम्मू-कश्मीर के कुल भाग का एक तिहाई हिस्सा अब भी पाकिस्तान के अधीन ही है. तब वर्ष 1948 में भारत ने लार्ड माउंटबेटन के आग्रह पर कश्मीर के सवाल को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाना तय किया.

संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक आयोग का गठन कर दोनों में युद्ध विराम करवा दिया. परिणामस्वरूप आज भी जम्मू कश्मीर का एक तिहाई भाग पाकिस्तान के पास ही है, जिसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (pok) कहा जाता है.

कश्मीर विवाद क्या है इतिहास व विशेष दर्जा | What Is Kashmir conflict in Hindi

भारत पाकिस्तान के मध्य अन्य सभी समस्याओं में उज्ज्वल और स्थाई हैं कश्मीर की समस्या. दोनों देशों किए बीच यह एक ऐसे ज्वालामुखी की तरह हैं.

जो समय समय पर लावा उगलती रहती हैं. अलाप माइकल के शब्दों में कश्मीर समस्या अनिवार्यतः भूमि या पानी की समस्या नहीं यह दोनों देशों के लोगों और प्रतिष्ठा का प्रश्न हैं.

कश्मीर की समस्या भारत और पाकिस्तान के बीच सबसे उलझी हुई समस्या हैं. स्वतंत्रता के बाद जहाँ भारत और पाकिस्तान दो नयें देश बने वहीं देशी रियासतों एक प्रकार से स्वतंत्र हो गई.

ब्रिटिश सरकार ने घोषणा कर दी थी कि देशी रियासतें अपनी इच्छानुसार भारत अथवा पाकिस्तान में विलय हो सकती हैं.

अधिकांश रियासतें भारत अथवा पाकिस्तान में मिल गई और उनकी कोई समस्या उत्पन्न नहीं हुई. भारत के लिए हैदराबाद और जूनागढ़ ने अवश्य ही समस्या उत्पन्न कर दी थी. परन्तु वह शीघ्र ही हल कर दी गई. कश्मीर की स्थिति कुछ विशेष प्रकार की थी.

भारत की उत्तर पश्चिम सीमा पर स्थित यह राज्य भारत और पाकिस्तान दोनों को जोड़ता हैं. यहाँ की जनसंख्या का बहुसंख्यक मुस्लिम धर्मी था.

परन्तु वहां का आनुवांशिक शासक एक हिन्दू शासक था. अगस्त 1947 में कश्मीर के शासक ने अपने विलय के विषय में कोई तत्कालिक निर्णय नहीं किया.

पाकिस्तान इसे अपने साथ मिलाना चाहता था. 22 अक्टूबर 1947 को उत्तर पश्चिम सीमाप्रांत के कबाइलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर में घुसपैठ कर आक्रमण कर दिया.

साथ ही पाकिस्तान ने अपनी सीमा पर भी सेना का जमाव कर दिया. 4 दिनों के भीतर ही हमलावर आक्रमणकारी श्रीनगर से २५ मील दूर बारामुला तक जा पहुचे.

26 अक्टूबर को कश्मीर के राजा ने आक्रमणकारियों से अपने राज्य को बचाने के लिए भारत सरकार से सैनिक सहायता की मांग की. और साथ ही कश्मीर को भारत में सम्मिलित करने की प्रार्थना की. भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को तत्काल स्वीकार कर लिया.

27 अक्टूबर को भारतीय सेनाएं कश्मीर भेज दी गई तथा युद्ध समाप्ति पर जनमत संग्रह की शर्त के साथ कश्मीर को भारत का अंग मान लिया गया.

भारत द्वारा जम्मू व कश्मीर की सुरक्षा व कश्मीर के भारत में विलय के निर्णय के कारण और उधर पाकिस्तान द्वारा आक्रमणकारियों को सहायता देने की नीति के कारण कश्मीर दोनों राष्ट्रों के बीच युद्ध का क्षेत्र बन गया.

भारत सरकार ने पाकिस्तान से कहा कि कबाइलियों का मार्ग बंद करे परन्तु जब इस बात के प्रमाण मिलने लगे कि पाकिस्तान सरकार स्वयं इन कबाइलियों की सहायता कर रही है तो १ जनवरी १९४८ को भारत सरकार ने सुरक्षा परिषद में शिकायत की कि पाकिस्तान की सहायता से कबाइलियों ने भारत के प्रमुख अंग कश्मीर पर आक्रमण कर दिया हैं.

जिससे अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा है. कई सामरिक विश्लेषक भारत के इस निर्णय को भारत के हितों के विपरीत मानते है.

सुरक्षा परिषद ने इस समस्या का समाधान करने के लिए 5 राष्ट्रों चेकोस्लोवाकिया, अर्जेन्टीना, अमरीका, कोलम्बिया और बेल्जियम को सदस्य नियुक्त कर मौके की स्थिति का अवलोकन करके समझौता कराने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र आयोग की नियुक्ति की.

संयुक्त राष्ट्र आयोग के कार्य (UN Commission’s work)

संयुक्त राष्ट्र आयोग ने तुरंत कार्य आरम्भ कर दिया और मौके पर स्थिति का अध्ययन कर 13 अगस्त 1948 को दोनों पक्षों से युद्ध बंद करने और समझौता करने हेतु निम्नांकित आधार प्रस्तुत किये.

  • पाकिस्तान अपनी सेनाएं कश्मीर से हटाये तथा कबाइलियों व घुसपैठियों को भी वहा से हटाये
  • सेनाओं द्वारा खाली किये गये प्रदेश का शासन प्रबंध स्थानीय अधिकारी करे.
  • पाकिस्तान द्वारा उपर्युक्त वर्णित शर्तों को पूरा करने की सूचना भारत को दे तब समझौते के अनुसार वह भी अपनी सेनाओं का अधिकांश भाग वहा से हटा ले.
  • भारत सरकार युद्ध विराम के अंदर उतनी ही सेनाए रखे जितनी कि इस प्रदेश में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के कार्य में स्थानीय अधिकारियों को सहायता देने के लिए वांछनीय हो.

इस सिद्धांत के आधार पर दोनों पक्ष एक लम्बी वार्ता के बाद 1 जनवरी 1949 को युद्ध विराम के लिए सहमत हो गये. कश्मीर के विलय के अंतिम निर्णय जनमत संग्रह से किया जाना था.

जनमत संग्रह की शर्तों को पूरा करने के लिए एक अमेरिकी नागरिक एडमिरल चेस्टर निमित्ज को प्रशासक नियुक्त किया गया.

उन्होंने जनमत संग्रह के संबंध में दोनों पक्षों से बातचीत की किन्तु उसका कोई परिणाम नहीं निकला. अंत में उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. युद्ध विराम के साथ सीमा रेखा निर्धारित हो जाने पर पाकिस्तान के हाथ में कश्मीर का ३२ हजार वर्गमील क्षेत्रफल रह गया.

जिसकी जनसंख्या 7 लाख थी. पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को आजाद कश्मीर नाम से पुकारा. युद्ध विराम रेखा के इस पार भारत के अधिकार में 53 हजार वर्गमील क्षेत्र्फल्था जिसकी जनसंख्या ३३ लाख थी. स्पष्ट है कश्मीर भारत का ही अंग बना था.

भारत पाक के बीच स्थाई है कश्मीर विवाद

स्वतंत्रता के समय भारत की आबादी लगभग 34 करोड़ थी और वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश था. हम आज भी दूसरे स्थान हैं.

अपने पडौसियों के साथ यदि हमारे संबंध शांतिपूर्ण रहते है तो आर्थिक व सांस्कृतिक सहयोग की बात बढ़ाई जा सकती थी.

मगर पाकिस्तान इस बात के लिए कतई तैयार नहीं था. पाकिस्तान यह मानने को तैयार नही था कि कश्मीर घाटी की बहुसंख्यक मुसलमान आबादी भारत के साथ शेख अब्दुल्ला के बताए जनतांत्रिक, धर्म निरपेक्ष मार्ग पर ही चलने की इच्छुक हैं.

पाकिस्तान इस बात को भी बहुत जल्द भूल गया कि उसने कश्मीर पर नाजायज कब्जा करने के लिए घुसपैठिये सैनिक भेजे थे. और भारत पर एक अघोषित युद्ध थोप दिया था.

अक्टूबर 1947 के कबायली आक्रमण से लेकर अब तक पाकिस्तान ने कश्मीर समस्या को पेचीदा बनाने में कोई कसर नहीं रखी हैं.

धन व धर्म का सहारा लेकर पाकिस्तान ने इस विवाद को धार्मिक रंग देकर अत्यंत गम्भीर बना दिया हैं. कश्मीर का मुद्दा भारत की सुरक्षा व अखंडता से जुड़ा हुआ मुद्दा हैं.

तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य के शासक हरिसिंह को जम्मू कश्मीर राज्य को माउंट बैटन योजना के तहत स्वतंत्र घोषित करना और तत्पश्चात पाकिस्तान के साथ स्टेंडस्टिल एग्रेमेंट (Standstill Agreement) करना कश्मीर और भारत दोनों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रहा.

पाकिस्तान ने अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने के लिए 22 अक्टूबर 1947 को कबायलियों के भेष में कश्मीर पर आक्रमण के लिए भेज दिया.

विकट परिस्थतियों में तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य के शासक हरी सिंह ने अपनी ऐतिहासिक भूल को सुधारते हुए जम्मू व कश्मीर राज्य को भारतीय संघ में शामिल करने के विलय पत्र पर 26 अक्टूबर 1947 को हस्ताक्षर कर दिए.

पंडित नेहरु ने तत्कालीन परिस्थतियों में यह घोषणा कर डाली थी कि कश्मीर विवाद के निपटारे के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका को सहर्ष स्वीकार किया जाएगा. और कश्मीरी जनता की इच्छा को जानने के लिए आत्म निर्णय का अधिकार देने वाला जनमत संग्रह कराया जाएगा.

आज जब कभी भी भारत से सहयोग की बात होती हैं. तो पाकिस्तान कश्मीर का काँटा चुभा कर वार्ताओं को असफल कर देता हैं. यदपि उस घटना के बाद कश्मीर में हुए चुनावों ने जनमत के तर्क की हवा निकाल दी हैं.

इसीलिए भारत का तर्क यह है कि जम्मू कश्मीर राज्य में एक नहीं, अनेक बार निष्पक्ष चुनाव हो चुके है और वहां की जनता ने अपने आत्म निर्णय के अधिकार का प्रयोग कर यह दिखला दिया है कि वह भारत के साथ ही रहना चाहती हैं.

कश्मीर का विशेष दर्जा

जिस समय कश्मीर भारत का अंग बना था उस समय शेख अब्दुल्ला के प्रभाव के कारण भारतीय संघ में कश्मीर राज्य की स्वायत्तता की खास पहचान को बनाये रखने के लिए विशेष स्थिति को संवैधानिक संरक्षण दिया गया था.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर राज्य ने अपना अलग संविधान बनाया. विदेशी संबंध, प्रतिरक्षा मामलों एवं संचार जैसे संवेदनशील मुद्दों को छोड़कर इच्छानुसार कानून पास करने की आजादी जम्मू कश्मीर राज्य की विधान सभा को दी गई.

आयकर, उत्पादन शुल्क आदि के बारे में भी इस राज्य की विशेष स्थिति को मान्यता दी गई. जो बात सबसे अधिक महत्वपूर्ण थी वह यह की भारत के किसी नागरिक को, जो कश्मीर राज्य का नागरिक न रहा हो, वहां जमीन खरीदने का अधिकार नहीं था.

इन सब कारणों ने जम्मू कश्मीर राज्य को देश की मुख्यधारा से अलग थलग रखा. जहाँ इस व्यवस्था ने कश्मीरी नेताओं के और वहां के कुलीन शासक वर्ग के अहंकार को तो तुष्ट किया और उनके स्वार्थों को संरक्षित रखा, वहीं अलगाववाद की भावना को भी प्रोत्साहित किया.

कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के लिए आधार 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 प्रारम्भ से ही विवाद का विषय रहा हैं. इसी प्रावधान के कारण जम्मू व कश्मीर राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था. लेकिन यह एक पुर्णतः अस्थायी अंशकालीन व्यवस्था थी. जो तत्कालीन परिस्थतियों के कारण प्रदान की गई थी.

विगत 70 वर्षों में इस समस्या के समाधान के लिए सरकार ने अपने अपने ढंग से प्रयास किये परन्तु अभी तक इसका समाधान नहीं ढूंढा जा सका हैं. कश्मीर समस्या अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पेचीदगियों में फसी हुई हैं.

कश्मीर समस्या और धर्मनिरपेक्षता और भावनात्मक मुद्दा

कश्मीर का विवाद सिर्फ विवादग्रस्त भू भाग तक सिमित नहीं हैं. कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहना उसकी धर्म निरपेक्ष पहचान की एक बड़ी कसौटी भी हैं.

कश्मीर राज्य का अर्थ सिर्फ श्रीनगर की घाटी ही नहीं वरन यह लद्दाख का विस्तृत इलाका, जहाँ सियाचिन का ग्लेशियर भी फैला हुआ हैं.

जो इसी राज्य का हिस्सा हैं. भारत चीन सीमान्त का सबसे बड़ा अतिसंवेदनशील भाग हैं. भारत सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर और श्रीनगर की घाटी के बीच सम्बन्धों को सामान्य बना कर यह नहीं मान सकता कि विवाद का निपटारा किया जा चूका हैं.

ना ही विस्थापन की अनदेखी कर सकती हैं. कश्मीर से हिन्दुओं के पलायन ने बहुसंख्यक आबादी को उद्देलित किया हैं.

जम्मू कश्मीर अनुच्छेद 370 And 35a In Hindi

पिछले वर्ष हमारे देश में कई ऐतिहासिक कार्य हुए जिनमें एक जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 35A और 370 को हटाना भी एक था.

5 अगस्त 2019 की तिथि को सात दशक बाद भारत के जम्मू कश्मीर प्रान्त को देश के अन्य राज्यों की भांति बराबरी का अधिकार मिला तथा वहां के नागरिको को मूलभूत अधिकार मिले जिनसे वे आज तक वंचित थे. आज के जम्मू कश्मीर अनुच्छेद 35A और 370 के बारे में विस्तार से बताएगे.

आजादी के बाद से जम्मू कश्मीर को हम एक शब्द अर्थात भारत का अटूट अंग कहने को विवश थे. हमने कभी पंजाब,गुजरात  राजस्थान, हरियाणा यहाँ तक कि किसी राज्य के सन्दर्भ में इस पंक्ति का उपयोग नहीं किया. हमें यह साबित करने की जरूरत ही नहीं पड़ी कि यूपी भारत का अंग हैं.

मगर क्या आपने कभी इस पर विचार किया हैं कि हमें जम्मू कश्मीर राज्य के सन्दर्भ में ही ऐसा क्यों कहना पड़ता हैं. क्योंकि हम जब से समझने लगे है हमने यही पढ़ा हैं यही सुना हैं.

सदा से जम्मू कश्मीर को भारत का विवादित राज्य बना दिया गया था. इसके पीछे उस समय के राजनेताओं की नासमझी थी.

भारत के संविधान में डाले गये दो कानून जिन्हें हम धारा 370 और 35 A के रूप में जानते हैं, यही कानून इस समूचे षड्यंत्र की जड़ रही.

बेकडोर से संविधान की प्रतियों में ये धाराएं जोड़ी गई, हो सकता है उस समय के भारतीय शासक इस सच्चाई से परिचित थे, मगर उन्होंने इसे चुपचाप स्वीकार कर लिया था,

जो आगे चलकर भारत की शान्ति और जम्मू कश्मीर राज्य की प्रगति के लिए राह का रोड़ा बन गई थी. एक आम भारतीय ही नहीं बल्कि कानून के जानकार भी 370 और 35A इन एक्ट का नाम तक कभी नहीं सुना था.

ये दो कानून जम्मू कश्मीर को न केवल एक विशेष राज्य का दर्जा दिया गया बल्कि राज्य के लिए अलग कानून, अलग झंडा, भारतीय संसद के सभी कानून, उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार से भी राज्य को बाहर रखा गया था.

इस कानून की बदौलत राज्य के लोगों को शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, चुनाव आयोग के दायरे से भी मुक्त रखा गया था. आपने कई कानूनों के बारे में पढ़ा गया.

अमुक कानून अमूक तिथि को जम्मू कश्मीर राज्य को छोडकर शेष भारत में लागू हुआ, ये लाइन स्पष्ट कर देती हैं कि भारतीय विधायिका द्वारा बनाये गये कानून जब तक जम्मू कश्मीर में लागू नही किये जाते तब तक वहां की विधानसभा उसे स्वीकृति नहीं देती हैं.

राज्य में पंचायतीराज एक्ट भी नहीं था. वहां का मुख्यमंत्री जिसे पहले जम्मू कश्मीर के सदर यानी प्रधानमंत्री कहा जाता था. वही पंचायतो के सम्पूर्ण अधिकारों का उपयोग करते थे.

जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35A के चलते शेष भारत से पुर्णतः अलग कर दिया गया. जहाँ देश की अधिकतर केन्द्रीय संस्थाएं काम नही कर सकती थी.

यहाँ तक कि अन्य राज्यों से जाने वाले लोगो को परमिट लेना पड़ता था. कोई बाहरी व्यक्ति मकान तक नही ले पाता.

ऐसे में इस कानून की मदद से शेख अब्दुल्ला और मुफ़्ती परिवार ने कश्मीर के लोगों के हित की बजाय अपने को मजबूत बनाया. राज्य में इस्लामिक अलगावाद, कट्टरवाद, आतंकवाद को प्रश्रय दिया जाने लगा.

वहां की अल्प संख्यक हिन्दू, सिख आबादी का नरसंहार कर दिया गया, जो भी वहां थे उन्हें अपनी जमीन जायदाद छोड़ने के लिए विवश किया गया.

जब से भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई उन्होंने अपने एजेंडे में जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाना अपना प्रमुख मुद्दा बनाया, धीरे धीरे यह एक आमजन की आवाज बन गई,

आखिरकार 5 अगस्त 2019 नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में इस ऐतिहासिक कार्य करते हुए जम्मू कश्मीर राज्य से धारा 370 और 35A को हटा लिया गया. जब इस कानून को हमारे संविधान में जोड़ा गया तब एक शब्द उसके आगे लिखा गया था,

टेम्परेरी एंड ट्रांजियट यानी यह उस समय के हालत के अनुसार संविधान में किया गया संशोधन था जो अस्थायी था. आखिरकार अनुच्छेद 370 की एक धारा को छोडकर सभी धाराओं को हटा दिया गया,

इसके साथ ही राज्य को दिए गये समस्त विशेषाधिकार समाप्त हो गये. जम्मू कश्मीर को अब एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में बनाया गया तथा समूचे प्रदेश को दो हिस्सों जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख में बांटा गया.

जब हम अनुच्छेद 370 की बात करते है तो स्वतः ही 35A की बात भी आ जाती हैं. भारतीय संविधान में यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर राज्य को एक विशेष दर्जा (स्पेशल स्टेट्स) देता था.

राज्य के शासन को अनुच्छेद 35A वह शक्ति दिलाता था जिससे राज्य के स्थायी निवासी को परिभाषित किया जा सके. यह वहां के लोगों को स्पेशल स्टेट्स दिलाती थी.

राज्य के बाहर का कोई व्यक्ति यहाँ तक कि जम्मू कश्मीर से बाहर विवाह करने पर उनकी संतानों को राज्य में सम्पति के अधिकार से बेदखल कर दिया गया.

भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत राष्ट्रपति के आदेश द्वारा 14 मई 1954 को यह 35A की धारा को जोड़ा गया था.

शेष भारत से जब जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 को रिवोक / एब्रोगेशन की बात आई, तब तब वहा के स्थानीय राजनेताओं द्वारा इसका विरोध किया जाता रहा हैं.

कश्मीरी नेता इस कानून की मदद से अनेक सुविधाओं के स्वयंभू बने हुए थे. भारत के अन्य राज्यों की तुलना में जम्मू और कश्मीर को चार गुना अधिक वित्तीय सुविधाएं दी जाती थी. इसके बावजूद वहां की जनता गरीबी में जीवन जीने के लिए मजबूर थी.

घर घर बिजली न होना, संचार सुविधाओं की कमी आदि का कारण वहां के शासक ही रहे थे. भारत सरकार द्वारा बनाये गये रक्षा, विदेश एवं संचार विषय के कानून केवल जम्मू कश्मीर में लागू होते थे.

जम्मू कश्मीर के नागरिकों को धारा 370 द्वारा दोहरी नागरिकता प्रदान की गई. राज्य का अपना राष्ट्रध्वज था. शेष भारत के राज्य की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष हैं, जबकि जम्मू कश्मीर में यह 6 वर्ष था.

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होते थे. वहां की पुलिस भी राज्य शासन के आदेश पर काम करती थी. कई बार भारतीय ध्वज और प्रतिको के अपमान होता था, मगर यह अनुच्छेद अपराधियों को कार्यवाही से बचाता रहा हैं.

17 अक्तूबर, 1949 को संविधान में शामिल, अनुच्छेद 370 भारत के संविधान में जोड़ा गया था, जिसे संविधान संशोधन (जम्मू कश्मीर) संशोधन आदेश 2019 द्वारा निरस्त कर दिया गया था.

भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत अन्य देशी रियासतों की तरह जम्मू कश्मीर का भी भारत में विलय हुआ था.

इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन डोक्युमेंट पर हरिसिंह और माउंट बेटन के मध्य हस्ताक्षर हुए थे. राज्य की वे समस्त मांगे मानी गई थी. जो कथित रूप से राज्य के लोगों के हितो के लिए केंद्र सरकार के समक्ष रखी गई थी.

इन सबके बावजूद राज्य के हालात बद से बदतर होते नये इन्ही के परिणामस्वरूप मोदी सरकार ने राज्य की नई व्यवस्था बनाई,

72 वर्षों से चली आ रही व्यवस्था को आखिर भंग करना पड़ा. आम भारतीय जो लम्बे समय तक कश्मीर मुद्दे पर उदासीन था अपना पेट काटकर कश्मीरी भाइयों के लिए मदद करने के लिए सदैव आगे आता था.

मगर कट्टरवाद और आतंकवाद के समर्थन के कारण देश के लोगो ने भी सरकार के इस फैसले को सही ठहराया.

Leave a Comment