देवनारायण जी का इतिहास व जीवनी | History Of Devnarayan In Hindi

देवनारायण जी का इतिहास व जीवनी History Of Devnarayan In Hindi: देवजी राजस्थान के एक लोकदेवता हैं, एक पराक्रमी यौद्धा के रूप में जाने जाते है गुर्जर समुदाय इन्हें अपना आराध्य मानते हैं.

ये बगडावत वंश के नाग वंशीय गुर्जर थे जिनका मूल स्थान वर्तमान में अजमेर के निकट नाग पहाड़ था. गुर्जर जाति एक संगठित, सुसंस्कृत वीर जातियों में गिनी जाती है. जिनका आदिकाल से गौरवशाली इतिहास रहा है.

भगवान देवनारायण जी का इतिहास व जीवनी | History Of Devnarayan In Hindi

नामदेवनारायण
मूल नाम उदय सिंह
जन्मविक्रम संवत 968 (911 ई.)
मृत्युविक्रम संवत 999 (942 ई.)
जन्म स्थान मालासेरी
पिता का नामसवाई भोज
माँ का नामसाढ़ू खटाणी
जीवनसाथीपीपलदे परमार, नागकन्या, दैत्यकन्या
अश्त्रतलवार, भाला
लोकप्रिय मंदिरआसीन्द
पहचानगौरक्षक
जयंतीभाद्रपद शुक्ल सप्तमी
सवारीनीलागर घोड़े

समाज में प्रचलित लोक कथाओं के माध्यम से गुर्जर जाति के शौर्य पुरुष देवनारायण के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी मिलती है. देवनारायणजी महागाथा में इनकों चौहान वंश से सम्बन्धित बताया है.

देवनारायण की फड़ के अनुसार मांडलजी के हीराराम, हीराराम के बाघसिंह और बाघसिंह के 24 पुत्र हुए जो बगडावत कहलाए. इन्ही में से बड़े भाई सवाई भोज और माता साडू (सेढू) के पुत्र के रूप में विक्रम संवत् 968 (911 ईस्वी) में माघ शुक्ला सप्तमी को आलौकिक पुरुष देवनारायण का जन्म मालासेरी में हुआ.

देवनारायण पराक्रमी यौद्धा थे. जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरुद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किये. वे शासक भी रहे उन्होंने अनेक सिद्धिया प्राप्त की. चमत्कारों के आधार पर धीरे धीरे वे गुर्जरों के देव स्वरूप बनते गये एवं अपने इष्टदेव के रूप में पूजे जाने लगे.

देवनारायण को विष्णु के अवतार के रूप में गुर्जर समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण पश्चिमी मध्यप्रदेश में अपने लोकदेवता के रूप में पूजा होती है.

उन्होंने लोगों के दुखो व संकटों का निवारण किया. देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के बिच रोचक युद्ध का वर्णन है. देवनारायणजी का अंतिम समय ब्यावर तहसील से 6 किमी दुरी पर स्थित देह्माली (देमाली) स्थान पर गुजरा.

भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को वहीँ उनका देहावसान हुआ था. देवनारायण से पीपलदे द्वारा सन्तान विहीन न छोड़ जाने के आग्रह पर बैकुठ जाने से पूर्व पीपलदे से एक पुत्र बीला व पुत्री बीली उत्पन्न हुई. उनका पुत्र ही देवनारायण जी का प्रथम पुजारी हुआ.

कृष्ण की तरह ही देवनारायण भी गायों के रक्षक थे. उन्होंने बगडावतों की पांच गायें खोजी, जिनमे सामान्य गायों से विशिष्ट लक्ष्ण थे. देवनारायण जी प्रातकाल उठते ही सरेमाता गाय के दर्शन करते थे. यह गाय बगडावतों के गुरु रूपनाथ ने सवाई भोज को दी थी.

देवनारायण जी के पास 98000 पशुधन था जब ये देवनारायणजी की गायें राण भिणाय का राणा घेर ले जाता है तो देवजी गायों की रक्षार्थ खातिर राणा से युद्ध करते है और गायों को छुड़ाकर वापिस लाते है.

देवनारायण की सेना में ग्वाले अधिक थे. 1444 ग्वालों का होना बताया जाता है, जिनका काम गायों को चराना और गायों की रक्षा करना था. देवनारायण ने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा करने का संदेश दिया.

इन्होने जीवन में बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को जन्म दिया. आतंकवाद से संघर्ष कर सच्चाई की रक्षा की एवं शान्ति स्थापित की. हर असहाय की रक्षा की. राजस्थान में जगह जगह इनके अनुयायियों ने देवालय बनाए है जिनको देवरा भी कहा जाता है.

ये देवरे अजमेर, चितोड़, भीलवाड़ा व टोंक में काफी संख्या में है. देवनारायण का प्रमुख मन्दिर भीलवाड़ा जिले के आसींद कस्बे के निकट खारी नदी के तट पर सवाई भोज में है. देवनारायण का एक प्रमुख देवालय निवाई तहसील के जोधपुरिया गाँव में वनस्थली से 9 किमी दूर स्थित है.

देवनारायण का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Devnarayan Birth and Early Life)

भगवान विष्णु का अवतार कहे जाने वाले गुर्जर जाति के आराध्य देव भगवान श्री देवनारायण जी का जन्म विक्रम संवत 968 माघ शुक्ल की सप्तमी के दिन मालासेरी में हुआ था, इनके पिताजी का नाम सवाई भोज एवं माँ का नाम साढू था, इस कारण इन्हें साढू माता का लाल भी कहा जाता हैं.

बचपन में देवजी का नाम उदय सिंह था, इनका विवाह राजकुमारी पीपल दे एवं दो अन्य रानियों नाग कन्या और दैत्य कन्या के साथ हुआ था. इनके एक बेटा बीला जो बाद में प्रथम पुजारी भी बने तथा बेटी का नाम बीली था.

कहा जाता है कि देवजी के जन्म के एक दिन पूर्व भादवी छठवीं तिथि को उनके प्रिय घोड़े नीलागर का जन्म हुआ था, मान्यता के अनुसार माँ साडू को स्वप्न में देवजी के अवतार से पूर्व उनकी सवारी के जन्म का संकेत मिला था.

बचपन

देवनारायण जी के पिता सवाई भोज ने दो विवाह किये थे, पहली रानी का नाम पद्मा था. मारवाड़ के सोलंकी सामंत की बेटी जयमती सवाई भोज से विवाह करना चाहती थी, मगर उसके पिता राण के राजा दुर्जन साल के साथ उनका विवाह सम्पन्न करवाना चाहते थे.

जब दुर्जन साल बरात लेकर गोठा जाते है तो सवाई भोज भी वहां पहुच जाते हैं. यहाँ दोनों यौद्धाओ के मध्य भयंकर युद्ध होता है इस युद्ध में सवाई भोज और जयमती वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं.

साथ ही दुर्जन साल अपने होने वाली रानी के खोने और अपमान का बदला भोज के खानदान को समाप्त करके लेना चाहते थे.

उस समय भोज की दूसरी रानी साढू गर्भवती थी, गुरु रूपनाथ जी ने उस समय कहा था रानी आपके गर्भ में पल रहा एक महान यौद्धा होगा,

जो बड़ा होकर अपने पिता की मौत का बदला लेगा. साढू माता अपने बेटे को बचाने के लिए मालासेरी में रहना आरम्भ कर देती है वहां सवाई भोज का जन्म होता हैं.

मगर जब दुर्जन साल को इसकी खबर मिली तो साढू माता और उनके बेटे को मारने के लिए सेना भेजी. जब यह खबर साढू माँ के कानों पड़ी तो उन्होंने देवनारायण को लेकर अपने पीहर देवास का रुख किया.

इस तरह अपने ननिहाल में देवजी बड़े हुए तथा अश्त्र विद्या तथा घुड़सवारी का भी ज्ञान प्राप्त किया. देवास के एक सिद्धवट के नीचे वे बैठकर साधना किया करते थे.

देवनारायण जी के चमत्कार (Devnarayan Miracles)

राजस्थान के चमत्कारी लोक देवताओं में देवनारायण जी भी एक थे, ये एक सिद्ध पुरुष थे जिन्होंने अपनी सिद्धियों का प्रयोग समाज कल्याण और उत्थान के कार्यों में किया.

उनके मुख्य चमत्कारों में छोछूं भाट को जीवित करना, पीपलदे की कुरूपता दूर करना, सूखी नदी में पानी बह निकलना, सारंग सेठ को पुनर्जीवित करना आदि थे.

विष्णु की साधना करने वाले देवनारायण जी में दैवीय शक्तियाँ थी. एक बार की बात हैं धार के राजा जयसिंह अपनी पुत्री पीपलदे की अस्वस्थता के चलते देवजी के पास आए,

उन्होंने अपनी शक्तियों से पीपलदे को बिलकुल ठीक कर दिया. आगे चलकर इन्ही राजकुमारी के साथ देवजी का विवाह हुआ.

देवनारायण जी की फड़ (Devnarayan ji ki Phad)

सम्पूर्ण भारत में गुर्जर समाज का यह सर्वाधिक पौराणिक तीर्थ स्थल है. देवनारायण की पूजा भोपाओं द्वारा की जाती है.

ये भोपा विभिन्न स्थानों पर जाकर गुर्जर समुदाय के मध्य फड़ (लपेटे हुए कपड़े पर देवनारायण जी की चित्रित कथा) के माध्यम से देवजी की गाथा का वाचन करते है.

देवनारायण जी की फड़ में 335 गीत है. जिनका लगभग 1200 पृष्ट में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियाँ है. ये गीत परम्परागत भोपाओं को कंठस्थ याद रहते है. देवनारायण की फड़ राजस्थान की फडों में सर्वाधिक लोकप्रिय व सबसे बड़ी है.

देवनारायण का निधन (Devnarayan Death Story)

संवत 999 में महज 31 वर्ष की अल्पायु में भगवान देवनारायण ने इस लोक को अलविदा कहा, जीवन भर गायों की सेवा एवं रक्षा करने वाले देवजी को गौरक्षक लोक देवता के रूप में पूजा जाता हैं उनके थान को देवरा कहा जाता हैं.

उनकी लोककथा का वाचन फड़ के माध्यम से किया जाता हैं. भारत सरकार ने इनके सम्मान में 2 सितंबर 1992 और 3 सितंबर 2011 को 5 रु के नोट पर देवनारायण जी की फड का चित्र अंकित किया.

आसीन्द धाम पर भादों शुक्ल सप्तमी तिथि के दिन विशाल मेला भरता हैं तथा राजस्थान, मध्यप्रदेश और हरियाणा से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ पहुचकर बाबा के दर्शन करते है. हालांकि कुछ लोग उनकी जयंती की तिथि अक्षय तृतीया के दिन भी मानते हैं.

9 thoughts on “देवनारायण जी का इतिहास व जीवनी | History Of Devnarayan In Hindi”

  1. History पूरी नही है
    कही पर नाम भी गलत है
    सुधार करे

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    • सर मुझे इसमें संतुष्टि पूर्ण जवाब नहीं मिला जो मालवा क्षेत्र में चौहान रहते हैं उनकी भी गोत्र बगड़ावत बताते हैं और वह भी देवनारायण भगवान को पूछते हैं जबकि वह राजपूत हैं जैसे झालावाड़ जिले के गांव मोगरा कोटडा सरोज लुक्का चिकन्या आदि में कई राजपूत बगड़ावत लगाते हैं इसका मुझे संतुष्टि पूर्ण जवाब दें

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  2. श्री देवनारायण भगवान कमल फूल में अवतार लिया था मालेशर डुगरी व देवमाली है देवनारायण भगवान के मन्दिर भारत वर्ष में अनेक जगहों पर है देवनारायण भगवान विष्णु के अवतार हैं पिता का नाम सवाई भोज ओर माता का नाम साडु मां खटाणा है गुर्जर के वंश में अवतार लिया

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