बहस, तर्क पर सुविचार अनमोल वचन | Argument Quotes In Hindi नमस्कार मित्रों आज का आर्टिकल आर्गुमेंट बहस विवाद आदि के उद्धरण के विषय पर दिया गया हैं.
दोनों लोगों के बीच की तकरार या वार्तालाप कई बार बहस का रूप ले लेता हैं दोनों तरह से तर्क वितर्क किये जाते हैं इन्ही के बारे में विद्वानों ने क्या कुछ कहा हैं, आज के आर्टिकल हम जानने वाले हैं.
बहस, तर्क पर सुविचार अनमोल वचन | Argument Quotes In Hindi
Quotes:- Logic is considered very few to be against its tendency.
In Hindi:- तर्क बहुत कम व्यक्ति को उसकी प्रवृति के विरुद्ध समझा जाता है.
Quotes:- Dispute is the death of the conversation. The conversation ends with the beginning of the dispute.
In Hindi:-विवाद वार्तालाप की मृत्यु है. विवाद के आरम्भ होने के साथ ही बातचीत समाप्त हो जाती है.
Quotes:-When you can not agree with anyone, then you can anticipate that subject. There is no need to be bitter, because you know that you are right.
In Hindi:-जब तुम किसी से सहमत नही हो सकते तो, उस विषय का पटाक्षेप कर दो. कटु बनने की कोई आवश्यकता नही है, क्युकि तुम जानते हो कि तुम सही हो.
Quotes:-No more tragic object can be found in a country.
In Hindi:-एक तर्कशील व्यक्ति से अधिक कष्टदायक वस्तु किसी देश में नही हो सकती.
Quotes:-There is no benefit to logic with the inevitable. When the east wind goes, there can be only one argument with that the overcoat is worn.
In Hindi:-अवश्यम्भावी के साथ तर्क करने का कोई लाभ नही होता है. जब पूर्वी हवा चले, तो उसके साथ एक ही तर्क हो सकता है कि ओवरकोट पहन लिया जाएं.
Quotes:-The argument of more powerful is always the best.
In Hindi:-अधिक शक्तिशाली का तर्क हमेशा सर्वोतम होता है.
Quotes:-There can be no dispute without ceasefire
In Hindi:-छिन्द्रान्वेषण के बिना विवाद हो ही नहीं सकता.
Quotes:-Be silent while arguing, because of the fact that ghastly forgets the mistake of forgiveness and the reality of mischief.
In Hindi:-बहस करते समय शांत रहो, क्युकि घमासनता भूल को दोष तथा सच्चाई को दुर्विन्नता का रूप दे देती है.
Quotes:-We can only convince others by our own arguments, but by their arguments, they can make them friendly.
In Hindi:-हम अपने तर्कों द्वारा दुसरे को केवल कायल कर सकते है, परन्तु उनके तर्कों द्वारा ही उन्हें अपने अनुकूल बना सकते है.
Quotes:-There is no work by reasoning against inefficiently.
In Hindi:-अवश्यम्भावी के प्रति तर्क करने से कोई काम नही होता है.
बहस पर सुविचार
बहस करना कभी किसी बात का सही समाधान नहीं देता है बल्कि बहस अपने वास्तविक संदर्भ से भटका देती है।
किसी विषय पर बहस करने से अच्छा है समझ स्वरूप बात करना क्योंकि बहस लड़ाई को जन्म देती है जबकि वार्तालाप परिणाम की ओर ले जाती है।
बहस अगर अपनी सीमा लाँघ जाती है तो हाथापाई की ओर उन्मुख हो जाती है जिससे एक दूसरे को चोट ही मिलती है।
मनुष्य द्वारा बहस करना समझदारी का सूचक नहीं होता है बल्कि अपने विषय से भ्रमित कर देता है।
किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए बात की जाती है न कि बहस क्योंकि बहस से बात बिगड़ने की नौबत आ जाती है।
बहस मनुष्य की वह प्रतिक्रिया है जो एक स्वस्थ मस्तिष्क का आभास नहीं कराती है।
बिना मतलब की बहस समय की बर्बादी है जिसका कोई अर्थ नहीं होता है बस शब्दों से एक दूसरे को आहत किया जाता है।
बहस में मनुष्य अपनी ही बात को महत्वपूर्ण समझता है, एक दूसरे की बात को महत्व नहीं देता है जिस वजह से स्वार्थी विकार को सहयोग मिलता है सिर्फ स्वयं की ही पराकाष्ठा होती है ऐसी जगह सही निर्णय नहीं हो पाता है।
मनुष्य के बीच बहस कभी इतनी बढ़ जाती है कि अपराध बोध का सूचक बन जाती है।
बहस से कभी मनुष्य की बात का सही स्वरूप प्रस्तुत नहीं होता है।
मनुष्य को बहस से दूर रहना चाहिए तभी सार्थक जीवन का मार्ग प्रशस्त होता है।
बहस अगर बेमतलब हो तो बेहतर है मौन अपना लेना क्योंकि बेमतलब की बहस का कोई सही परिणाम नहीं निकलता है।
बहस विपरीत विचारों की द्वंद है। जिसका निर्णय सकारात्मक हो ज़रूरी नहीं है क्योंकि बहस में मन की बात कह के तर्क वितर्क बस बात की विस्तृतता प्रदर्शित करता है।
पारिवारिक रिश्तों में बहस कभी रिश्तों में शांति नहीं बना सकती और न ही खुशी दे सकती है।
अगर मनुष्य समझ स्वरूप बात करे तो बहस की नौबत ही नहीं आती है।
बहस में कभी लोगों के विचार नहीं मिलते हैं सब अपने विचारों को प्राथमिकता देते हैं कोई अच्छे से किसी की बात को न सुनता है न समझता है न कोई सही परिणाम निकलता है न कोई मंतव्य पूरा होता है।
मनुष्य को बहस से बचना चाहिए क्योंकि बहस का कोई अंत नहीं होता है अगर क्रोध स्वरूप बहस होती है तो वो झगड़े के रूप में बदल जाती है।
तर्क वितर्क अगर शांतिपूर्वक हो तो सही बातों को समक्ष रखा जा सकता है अनेक जानकारियाँ पता चलती हैं।
बहस में एक दूसरे को नीचा दिखाया जाता है और स्वयं के तर्क को सही बताया जाता है व अन्य की बात की कोई कद्र नहीं हो पाती है।
बहस से रिश्तों में प्रेम भावना नहीं पनपती है बल्कि एक दूसरे पर आरोपण ज्यादा होते हैं और रिश्तों के मध्य अपनापन नहीं रहता है।
मनुष्य पर निर्भर करता है कि बहस को लड़ाई का मुद्दा बनाये और अशांति का वातावरण बनाकर परेशानी का सबब बने या शांतिपूर्वक बहस को बात के रूप में मुद्दा समझाकर सुलझा दिया जाए।
मनुष्य अगर एक दूसरे से बहस करेगा तो सकारात्मक संदर्भ नहीं उभरेगें बल्कि अनेक प्रश्न समक्ष आ जायेगें।
मनुष्य स्वयं से बहस करे तो सवालों के उत्तर मिल जाते हैं और मनुष्य अपने सवालों से एक हद तक मुक्त हो जाता है।
मनुष्य को धर्म व जाति पर बहस नहीं करनी चाहिए जिसका कोई वजूद नहीं होता है क्योंकि धर्म जाति बहस का मुद्दा नहीं बल्कि समझ का मुद्दा होते हैं।
मनुष्य को अपने जीवन में परिश्रम करके ही अपने लक्ष्य की प्राप्ति होती है न कि अनचाहे सवालों का जवाब जानने के लिए बहस की ज़रूरत होती है।
मनुष्य के मध्य बहस मनुष्य की पहचान करा देती है कि मनुष्य की समझ या विषय ज्ञान कितना है।
बिना मतलब के जो लोग बहस करते हैं उनसे बहस करना अपने ही समय की बर्बादी करने जैसा है व अपना ही सम्मान खोने जैसा है।
अज्ञानता वश मनुष्य गलत पर भी बेवजह बहस करता है जिसका कोई वजूद नहीं होता है।
जिंदगी में बहस कभी सही अर्थ को समक्ष नहीं लाती है क्योंकि बहस का मुद्दा होता है ‘सही कौन है’ लेकिन बहस में वास्तविक तथ्य तो रह जाता है कि ‘सही क्या है’ जो सिर्फ समझदारी पूर्वक बातों से समझा जाता है।
बहस अगर क्रोध को उत्पन्न करती है जो अशांति व एक दूसरे के प्रति विरोध भावना को तूल देती है जिससे जीवन कभी शांतिपूर्वक नहीं जिया जा सकता है।
मनुष्य जीवन में बहस कुछ सीख नहीं देती है बल्कि झगड़े को सहयोग देती है।
मनुष्य जीवन में बहस रिश्ते को मज़बूत नहीं करती है बल्कि कमज़ोर ही करती है।
स्वस्थ मन मस्तिष्क अक्सर बहस को नज़र अंदाज़ करने की कोशिश करते हैं।
मनुष्य आपसी बातचीत करे तो परेशानी का हल मिलता है बहस से कभी परेशानी का सही हल नहीं मिलता है।
बहस अगर मनुष्य के सही ज्ञान को शांतिपूर्वक नए आयाम के रूप में प्रस्तुत करे तो नुकसान नहीं पहुँचाती है।
बहस में शांति बनाए रखने पर बात की स्थायित्वता रहती है वरना छोटी सी भूल बातों की सच्चाई से दूर ले जाती है और बहस का दुष्परिणाम समक्ष आता है।
जीवन को अनुकूलता प्रदान करने के लिए बहस को समझ स्वरूप अपनाना पड़ता है।
बहस करनी है तो बुराई को दूर करने के संदर्भ पर सही तर्क को प्रस्तुत करना चाहिए न कि बिन मतलब से बुराई को उत्पन्न करना चाहिए।
बहस अगर क्रोध में की जाए तो आपसी झगड़े से एक दूसरे को नुकसान ही पहुँचता है लेकिन मुस्कुराते हुए बहस की जाए तो जल्द समाप्त हो जाती है।
बहस से छोटी से छोटी बात भी विकराल रूप धारण कर लेती है।
मनुष्य अगर समय को मोल देता है और समय को सम्मान देता है तो बहस से अक्सर दूरी बनाकर रखनी चाहिए क्योंकि बहस से समय का सदुपयोग नहीं होता है बल्कि समय निरर्थक रूप से व्यर्थ हो जाता है।
बहस का सार्थक रूप तभी प्रस्तुत होता है जब आवाज़ से ज्यादा बात को ऊँचा उठाया जाता है।
मनुष्य का जीवन इतना खूबसूरत है इसे बहस करने में बर्बाद नहीं करना चाहिए।
बेमतलब की बात का क्या फायेदा अगर मनुष्य का जीवन खुशियों से दूर हो जाता है।
आपसी बेतुकी बहस से ज्यादा अच्छा है मौन को अपना लेना।
मनुष्य जीवन में बहस जहाँ क्रोध और अहंकार को बढ़ावा देता है वहीं शांति व मौन भ्रम पैदा करते हैं लेकिन वार्तालाप से मुद्दों को सुलझाया जा सकता है।
बेवजह की बहस से बेहतर है कि अपने जीवन में स्वयं से खुश रहना चाहिए। अपनी कद्र कर खुशी को अपने जीवन अपनाना चाहिए।
बहस मनुष्य में कभी एकत्व भावना का प्रसार नहीं करती है बल्कि हर किसी को एक दूसरे से अलग कर देती है।
बहस करते हुए मनुष्य एक दूसरे का अपमान करते हैं जो दोष है जिससे रिश्तों में प्यार की भावना प्रवाहित नहीं हो पाती है।
बिना बात के बहस करने से मनुष्य को कभी किसी भी बात में जीत की प्राप्ति नहीं होती है।
मनुष्य को अपने जीवन में सही बातों को महत्वपूर्ण मान कर उन बातों पर विचार करना चाहिए न कि बहस कर समय व्यर्थ करना चाहिए।
बहस द्वारा मनुष्य एक दूसरे की नज़रों में नीचा दिखाता है। बहस एक पल में मुद्दों को बड़ा बना देती है और रिश्तों में जुदाई का दुख दे देती है।