भूषण अग्रगण्य का जीवन परिचय | Bhushan Agraganya Biography In Hindi : महाकवि भूषण का जन्म १६१३ में हुआ, इनकी गिनती हिंदी साहित्य के रीतिकाल से जुड़ाव हैं. इन्हें इस कालखंड के तीन प्रमुख कवियों केशव, बिहारी के बाद कवि भूषण का नाम लिया जाता हैं.
रीतिकाल के श्रृंगार को वीर रस की ओर प्रवृत करने वाले कवि भूषण ही हैं. इन्हें भूषण की उपाधि चित्रकूट के राजा रूद्र साह के पुत्र ह्रदय राम द्वारा प्रदान की गई.
मोरंग, कुमायूँ, श्रीनगर, जयपुर, जोधपुर, रीवाँ, छत्रपती शिवाजी महाराज और छत्रसाल इतने अधिक राजाओं के राज्याश्रय रहे. शिवाजी और बुंदेला इनके पसंदीदा नरेश थे.
भूषण अग्रगण्य का जीवन परिचय Bhushan Agraganya Biography Hindi
पूरा नाम | भूषण अग्रगण्य |
मूल नाम | – |
जन्म | 1613 |
मृत्यु | 1715 |
राज्याश्रय | शिवाजी और बुंदेला |
रचना | शिवराज भूषण, शिवबावनी और छत्रसाल दशक |
काव्यधारा | रीतिकाल |
रीतिकाल के जिन रचनाकारों ने श्रृंगार के अतिरिक्त अन्य रसों एवं प्रवृतियों को काव्य स्रजन का आधार बनाया. उनमे से एक थे.
महाकवि भूषण अग्रगण्य. उन्होंने भारतीय संस्क्रति के महान रक्षक शिवाजी और छत्रसाल की वीरता की ओजस्वी वीरता का वर्णन करके हिंदी कविता में श्री वृधि की.
भूषण कानपुर जिले के तिकवाँपुर के निवासी रत्नाकर त्रिपाठी के पूत्र थे. उनका जन्म सन 1613 इश्वी में हुआ था. प्रसिद्ध हिंदी कवि चिंतामणी और मतिराम भूषण अग्रगण्य जी के भाई कहे जाते हैं.
आचार्य विश्वनाथ मिश्र के अनुसार इनका नाम घनश्याम था. इनको भूषण की उपाधि चित्रकूट के राजा रूद्र सोलंकी से मिली थी. परन्तु अब इनका नाम भूषण ही काव्य जगत में प्रसिद्ध हैं.
अग्रगण्य अनेक राजाओ के आश्रय में रहे किन्तु इन्हें दो वीरो के आश्रय में रहने का सम्मान मिला हैं. वे थे महाराज शिवाजी और महाराज छत्रसाल. इन्होने मुंगल शासक औरंगजेब की नीतियों का विरोध कर अनेक युद्ध भी लड़े.
ऐसे महावीरो को चरित्रनायक बनाकर भूषण अग्रगण्य ने हिंदी कविता को सार्थक किया हैं. कहते हैं, महाराज छत्रसाल ने इन्हे सम्मान देने के लिए इनकी पालकी में कंधा लगाया था.
तभी भूषण अग्रगण्य ने कहा था- ” सिवा कौ बखानों के बखाने छत्रसाल कौ ” इनका निधन वर्ष 1715 के आस-पास माना जाता हैं.
भूषण अग्रगण्य का काव्य परिचय
भूषण के तीन काव्य ग्रन्थ प्राप्त हैं, शिवराज भूषण, शिवबावनी और छत्रसाल दशक. भूषण की कविता ब्रजभाषा में हैं. शिवाजी और छत्रसाल का शौर्य वर्णन उनके काव्य का मुख्य विषय हैं.
शिवाजी की युद्ध वीरता, दानशीलता, धर्मवीरता आदि का संजीव वर्णन ओजस्वी वाणी में इन्होंने किया हैं.
इसी कारण भूषण अग्रगण्य वीररस के प्रथम कोटि के कवि माने जाते हैं. अपनी कविता में भूषण ने एतिहासिक घटनाओं को बराबर ध्यान में रखा हैं. जिससे वर्णनों की प्रमाणिकता असंदिग्ध हैं.
उन्होंने अरबी, फारसी शब्दों का बहुतायत प्रयोग किया हैं. शब्दों को तुक मिलाने या प्रभाव पैदा करने के लिए तोड़ा-मरोड़ा भी खूब हैं. अनेक स्थानों पर व्याकरण के नियमों की भी चिंता नही की हैं.
फिर भी भूषण अग्रगण्य ने वीर भावनाओं को उद्बुद्द करने की उनमे अद्भुत क्षमता हैं. भूषण का काव्य वीररस का पर्याय बन गया हैं.