Bijoliya Kisan Andolan History In Hindi राजस्थान का बिजौलिया किसान आंदोलन: बिजौलिया भीलवाड़ा राजस्थान का वह स्थान हैं जहाँ से 1897 से 1941 तक निरंतर किसान आंदोलन Farmer Movement चलता रहा.
इस किसान आंदोलन को पहला भारतीय अहिंसक किसान आंदोलन भी कहा जाता हैं. साधुराम दास ने इसकी शुरुआत की जिसके बाद विजयसिंह पथिक, माणिक्यलाल वर्मा, जमनालाल बजाज जैसे बड़े नेता भी इससे जुड़े. आज हम बिजौलिया किसान आंदोलन के बारे में विस्तार से जानेगे.
बिजौलिया किसान आंदोलन | Bijoliya Kisan Andolan History In Hindi
Bijoliya Kisan Movement In Hindi: राजस्थान का सर्वप्रथम संगठित किसान आंदोलन जो भीलवाड़ा के बिजौलिया स्थान के घाकड़ जाति के किसानों ने 1879 इ में प्रारम्भ किया. इस समय बिजौलिया के ठिकानेदार राव कृष्ण सिंह थे.
कारण- भू राजस्व निर्धारण व संग्रह की पद्धति लाटा कुंता व विभिन्न लाग बागें व जबरन बैठ बेगार, जागीरदारों के अत्याचार एवं शोषण इस आंदोलन के प्रमुख कारण थे. 1906 में किसानों ने साधु सीताराम दास एवं ब्रह्मा देव के नेतृत्व में भूमि को पड़त रखा व भूमि कर नहीं दिया.
1916 में श्री विजयसिंह पथिक ने इस आंदोलन का नेतृत्व संभाला. पथिक जी ने 1917 में उपरमाल पंच बोर्ड नाम से एक संगठन स्थापित कर क्रांति का बिगुल बजाया. श्री मन्ना पटेल को इसका सरपंच बनाया गया.
पथिक जी के आव्हान पर मन्नाजी पटेल के नेतृत्व में किसानों ने किसी प्रकार की बेगार चंदा व ऋण चुकाने का निर्णय किया. इस कारण ठिकाने के कर्मचारियों ने गोविन्द निवास गाँव के नारायण पटेल को गिरफ्तार कर लिया. किसानों ने नारा दिया, नारायण पटेल को छोड़ो अन्यथा हमें भी जेल दो. कुछ समय पश्चात सीतारामदास व प्रेमचन्द को भी बंद कर दिया गया.
अप्रैल १९१९ में किसानों की मांगों के औचित्य की जांच हेतु न्यायमूर्ति बिंदुलाल भट्टाचार्य जांच आयोग गठित किया गया. ए जी जी रोबर्ट हौलेंड स्वयं ४ फरवरी १९२२ को बिजौलिये आये. उन्ही के प्रयासों से ११ जून १९२२ को किसानों व ठिकाने के मध्य संधि / समझौता हुआ.
एवं अधिकांश कर एवं लाग बागों को समाप्त कर गिरफ्तार लोगों को मुक्त कर दिया गया. अतः किसानों की अभूतपूर्व विजय हुई. १९२२ से १९२७ तक बिजोलिया बिलकुल शांत रहा.
ठिकाने द्वारा कुछ समय बाद पुनः लगान की दरें व कर बढाने के कारण आंदोलन पुनः प्रारम्भ हो गया. १९२७ में पथिक जी इस आंदोलन से पृथक हो गये तथा इसका नेतृत्व माणिक्यलाल वर्मा, सेठ जमनालाल बजाज एवं हरिभाऊ उपाध्याय के हाथों में आ गया. उपाध्याय जी ने महात्मा गाँधी को भी बिजोलिया में हो रहे दमन से अवगत करवाया.
महात्मा गांधी की सलाह पर मालवीय जी ने मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर सुखदेव प्रसाद को इस सम्बन्ध में एक पत्र लिखा. २० जुलाई १९३१ को सेठ जमनालाल बजाज ने उदयपुर महाराणा एवं उनके प्रधानमंत्री सर सुखदेव प्रसाद से मुलाक़ात कर एक समझौता किया, जिसके अनुसार किसानों की मांगे स्वीकार की गयी.
इस समझौते के फलस्वरूप सत्यग्राही जेल से रिहा कर दिए गये, पर जमीनों की वापसी के सम्बन्ध में कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई. इस पर वर्माजी किसानों का प्रतिनिधि मंडल लेकर सर सुखदेव से मिलने उदयपुर गये.
सर सुखदेव ने वही वर्माजी को गिरफ्तार करवा दिया और कुम्भलगढ़ जेल में नजरबंद करवा दिया. मेवाड़ सरकार ने डेढ़ वर्ष बाद नवम्बर 1933 में वर्माजी को रिहा कर दिया गया, पर साथ ही उन्हें मेवाड़ से निर्वाचित भी कर दिया गया.
बिजोलिया किसान आंदोलन का पटाक्षेप 1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी विजय राघवाचार्य, राजस्व मंत्री मोहनसिंह मेहता तथा माणिक्यलाल वर्मा के प्रयासों से हुआ, जब किसानों की मांगे मानकर उनकी जमीने वापिस दिलवा दी.
श्री माणिक्यलाल वर्मा की यह प्रथम सफलता थी. यह आंदोलन भारत वर्ष का प्रथम व्यापक और शक्तिशाली किसान आंदोलन थाश्रीमती अंजना देवी चौधरी ने बिजौलिया किसान सत्याग्रह में प्रमुख रूप से भाग लिया.
बिजोलिया किसान आंदोलन का प्रथम चरण
इस किसान आंदोलन का प्रथम चरण साल 1897 से लेकर के साल 1916 तक चला था। गांव गिरधरपुर में साधु सीताराम दास की कमेटी में यह डिसीजन लिया गया था कि रामकृष्ण सिंह, जो कि वर्तमान में ठिकानेदार है,
उनकी शिकायत मेवाड़ के महाराणा से की जाएगी और ऐसा करने के लिए नानजी पटेल और ठाकरी पटेल को तैयार किया गया। शिकायत पहुंचने पर मेवाड़ महाराणा ने जांच के लिए हामिद हुसैन को नियुक्त किया परंतु जांच के बाद भी कोई भी एक्शन नहीं लिया गया।
जांच के बाद भी कार्यवाही ना होने पर रामकृष्ण सिंह ने ठाकरी पटेल और नानजी पटेल को मेवाड़ से बाहर करा दिया और साल 1903 में चवरी नाम का एक नया टैक्स चालू किया। इस टैक्स के अंतर्गत कन्या के विवाह हेतु ₹5 का नगद टैक्स का प्रावधान था।
जब साल 1906 में रामकृष्ण सिंह की मौत हो गई, तब राव पृथ्वी सिंह उनके उत्तराधिकारी बने और उसने उत्तराधिकारी बनते ही तलवार बंधाई टैक्स लागू कर दिया, जिसका किसानों ने काफी पुरजोर तरीके से विरोध किया।
बिजोलिया किसान आंदोलन का दूसरा चरण
इस किसान आंदोलन का दूसरा चरण साल 1916 से लेकर के साल 1923 तक चला था जिसका नेतृत्व विजय सिंह पथिक ने किया था। विजय सिंह पथिक साधु सीताराम दास के आग्रह पर ही इस आंदोलन के साथ जुड़े हुए थे।
यह उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के निवासी थे और इन्होंने साल 1917 में उपरामल पंच बोर्ड का गठन किया था जिसमें 13 मेंबर थे और इस पंच बोर्ड के सरपंच के पद पर मन्ना पटेल को बैठाया गया था।
विजय सिंह की मुलाकात साल 1918 में गांधीजी से मुंबई में हुई और उन्होंने इस आंदोलन के बारे में गांधीजी को बताया जिसके बाद गांधी जी विजय सिंह से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने अपने महासचिव महादेव देसाई को आंदोलन की जांच करने के लिए भेजा।
बिजोलिया किसान आंदोलन का तीसरा चरण
इस आंदोलन का तीसरा चरण साल 1927 से लेकर 1941 तक चला था जिसके नेतृत्वकर्ता माणिक्य लाल वर्मा थे। इस आंदोलन में इनका साथ जमुना लाल बजाज और हरीभाऊ उपाध्याय नाम के लोगों ने भी दिया था।
साल 1941 में मणिकलाल वर्मा और मेवाड़ के प्रधानमंत्री के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते के अंतर्गत किसानों की जो भी डिमांड थी,
उसे मान लिया गया था और इस प्रकार 44 साल से चल रहे आंदोलन को खत्म करने का डिसीजन लिया गया था। बता दें कि इस किसान आंदोलन को अपने अहिंसक रूप के लिए जाना जाता है।
मलिकलाल वर्मा का “पंछीड़ा” गीत भी किसान आंदोलन में किसानों के अंदर जोश भरने के लिए काफी सही साबित हुआ था। पुरुषों के अलावा इस किसान आंदोलन में महिलाओं ने भी अपना पूरा समर्थन दिया था।
अंजना देवी चौधरी, नारायण देवी वर्मा और रमा देवी किसान आंदोलन से जुड़ी हुई प्रमुख महिला थी।