फनीश्वरनाथ रेणु का जीवन परिचय | Biography Of Phanishwar Nath Renu In Hindi

Biography Of Phanishwar Nath Renu In Hindi: नमस्कार दोस्तों आज हम फनीश्वरनाथ रेणु का जीवन परिचय पढ़ेगे, रेणु प्रेमचंद युग के उपन्यासकार एवं स्वतंत्रता सेनानी थे. इन्होने कई आंदोलनों में भाग लिया और जेल गये.

मैला आँचल रेणु का पहला उपन्यास था जो बेहद लोकप्रिय हुआ, इस पर तीसरी कसम नाम से फिल्म भी बनी हैं. पद्म श्री सम्मानित फनीश्वरनाथ रेणु की जीवनी, इतिहास, रचनाएं, व्यक्तित्व आदि इस बायोग्राफी में पढेगे.

Biography Of Phanishwar Nath Renu In Hindi

फनीश्वरनाथ रेणु का जीवन परिचय Biography Of Phanishwar Nath Renu In Hindi
जीवन परिचय बिंदुरेणु जीवन परिचय
पूरा नामफनीश्वरनाथ रेणु
जन्म4 मार्च 1921
जन्म स्थानऔराही हिंगना, फारबिसगंज
पहचानलेखक, उपन्यासकार, स्वतंत्रता सेनानी
अवधि/कालआँचलिक कथा साहित्य
यादगार कृतियाँमैला आँचल

रेणु का जीवन परिचय, जीवनी, बायोग्राफी

फनीश्वरनाथ रेणु हिंदी कथा साहित्य के विलक्षण रचनाकार हैं. आपका जन्म 1921 में बिहार के एक गाँव जिला पूर्णिया में हुआ. आपका बचपन ग्रामीण परिवेश में व्यतीत हुआ.

उच्च शिक्षा पटना से ग्रहण कर स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े. हिंदी की आंचलिक कथा साहित्य की ताज़ी धारा ने आपके साथ पूरे वेग से प्रवेश किया. रेणु इस नई धारा के पुरोधा बने.

स्थानीय रंगों, छवियों और आकांक्षाओं के साथ साथ रेणु की कहानियों में व्यापक मानवीय घात प्रतिघात मिलते हैं. इन्होने जमीदारी प्रथा, साहूकारों का शोषण, अंग्रेजों के जुल्म व अत्याचारों को देखा ही नहीं, सहा भी था.

किसानों व मजदूरों की दयनीय दशा देखकर आपका ह्रदय द्रवीभूत हो उठा था. उनसे सहानुभूति रखते हुए रेणुजी ने न केवल उनके अधिकारों की रक्षा हेतु अपने रचना संसार में आवाज उठाई, अपितु अन्याय के खिलाफ संघर्ष भी किया.

उन दिनों नील की खेती होती थी. नीले साहब किसानों को पांवों तले रौद रहे थे. रेणु ने अपनी आवाज बुलंद कर किसानों को संगठित किया और कुछ हद तक उनकी रक्षा की.

रेणु मिलनसार, मृदुभाषी और स्पष्टवक्ता थे. स्वतंत्रता के बाद भारत में नेताओं की स्वार्थपरता व सत्ता लोलुपता देखकर उन्हें कोसा और जनहितों की रक्षा के लिए सड़क पर उतरे थे. 

1977 की इमरजेंसी में जेपी के आंदोलन से जुड़े. जब लेखकों और पत्रकारों कि आवाज को दबाया जाने लगा तो अभिव्यक्ति की आजादी के लिए ऐसे लेखकों पत्रकारों का नेतृत्व करते हुए मुंह पर पट्टी बांधकर अपना क्षोभ प्रकट किया.

इंदिरा सरकार की आलोचना की. ओजस्वी व्यक्तित्व के धनी रेणु जी विशुद्ध ग्रामीण मिट्टी की खाद थे. संघर्षशील रहते हुए इनका 1977 में देहांत हो गया.

फणीश्वर नाथ रेणु की शिक्षा

फणीश्वर नाथ रेणु ने अपनी कुछ शिक्षा भारत से ग्रहण की थी और कुछ शिक्षा नेपाल में स्थित शिक्षण संस्थान से ग्रहण की थी। जब यह थोड़े समझदार हुए.

तब इनके माता-पिता के द्वारा इनका एडमिशन प्रारंभिक एजुकेशन दिलाने के उद्देश्य से फारबिसगंज में करवाया गया। यहां पर थोड़ी पढ़ाई करने के पश्चात इनका एडमिशन अररिया में करवाया गया। वहां से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा को ग्रहण किया।

इसके पश्चात फणीश्वरनाथ ने अपनी दसवीं क्लास की पढ़ाई नेपाल देश के विराट नगर में मौजूद विराट नगर आदर्श विश्वविद्यालय से पूरी की।

इसके पश्चात 12वीं की पढ़ाई करने के लिए यह बनारस चले आएं और इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया और साल 1942 में 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।

फणीश्वर नाथ रेणु का लेखन कार्य

इन्होंने लिखने का काम साल 1936 के आसपास में प्रारंभ कर दिया गया था और इनके द्वारा लिखी गई कुछ कहानियां प्रकाशित भी हुई थी परंतु वह सभी अपरिपक्व कहानियां थी।

साल 1942 में आंदोलन के दरमियान इन्हें अंग्रेजी सेना के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था और इन्हें तकरीबन 2 सालों के लिए जेल में रखा गया।

साल 1944 में इन्हें जेल से छोड़ा गया। इसके पश्चात यह घर लौट आए और फिर इन्होंने “बट बाबा” नाम की पहली परिपक्व कहानी लिखकर के तैयार की। यह कहानी साप्ताहिक विश्वमित्र के 27 अगस्त 1944 के अंक में छपी हुई थी।

इसके पश्चात फणीश्वर नाथ की दूसरी कहानी “पहलवान की ढोलक” साल 1944 के 11 दिसंबर को साप्ताहिक विश्वमित्र में छपी हुई थी।

इसके बाद आगे बढ़ते हुए फणीश्वर नाथ ने साल 1972 में अपनी आखिरी कहानी “भित्ति चित्र की मयूरी” लिखा था और इस प्रकार से उनके द्वारा लिखी गई कहानियों की संख्या 63 हो चुकी थी।

इन्होंने जितने भी उपन्यास लिखे थे उनके द्वारा इन्हें प्रसिद्धि तो हासिल हुई ही साथ ही इनके द्वारा लिखी गई कहानियों को भी लोगों ने खूब पसंद किया और इनकी कहानियों ने भी इन्हें काफी अधिक प्रसिद्ध बनाया।

फणीश्वर नाथ के आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरी की धूप, अच्छे आदमी, संपूर्ण कहानियां, अग्नि खोर, ठुमरी बहुत ही प्रसिद्ध कहानी के संग्रह है।

फणीश्वर नाथ द्वारा रचित कहानी पर बनी फिल्म

फणीश्वर नाथ के द्वारा “मारे गए गुलाम” नाम की एक कहानी लिखी गई थी और इसी कहानी से प्रेरित होकर के एक हिंदी फिल्म बनी थी जिसका नाम “तीसरी कसम” रखा गया था।

इस फिल्म के अंदर राजकुमार के साथ वहीदा रहमान जी ने मुख्य भूमिका निभाई थी और इस फिल्म को डायरेक्ट करने का काम निर्देशक बासु भट्टाचार्य के द्वारा किया गया था।

वही फिल्म को प्रोड्यूस करने का काम प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र के द्वारा किया गया था। जब यह फिल्म सिनेमा हॉल में रिलीज हुई तो इस फिल्म को लोगों ने काफी अधिक पसंद किया और यह फिल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर साबित हुई।

फणीश्वर नाथ रेणु का विवाह

फणीश्वर नाथ रेणु की पहली शादी रेखा नाम की महिला से हुई थी। इस प्रकार इनसे शादी हो जाने के बाद रेखा ने रेनू सरनेम लगाना चालू कर दिया।

इनकी पहली पत्नी बिहार राज्य के कटिहार जिले के बलूवा गांव की रहने वाली थी और फणीश्वर नाथ को रेखा के द्वारा एक बेटी पैदा हुई थी जिसका नाम कविता राय रखा गया था। 

पहली पत्नी की मौत होने के बाद फणीश्वरनाथ ने दूसरी शादी पद्मा रेणु नाम की महिला से की जो बिहार के कटिहार जिले के ही महमदिया गांव की रहने वाली थी।

पद्मा रेणु ने टोटल तीन बेटे और तीन बेटी को जन्म दिया। इसके पश्चात फणीश्वर का तीसरा विवाह लतिका के साथ हुआ। इनके साथ फणीश्वर की मुलाकात साल 1942 में क्रांति करने के दरमियान हुई थी।

फणीश्वर नाथ की भाषा शैली

फणीश्वर नाथ की भाषा शैली ग्रामीण इलाके की खड़ी बोली थी और यह इनके द्वारा रचित कहानियां और काव्यो में साफ तौर पर दिखाई देता है।

यह अपने द्वारा रचना की जाने वाली कहानियां और काव्य में उसी भाषा का इस्तेमाल करते थे, जो भाषा यह सामान्य बोलचाल में इस्तेमाल करते थे। इन्होंने अपने उपन्यासों में कहानियों में आंचलिक भाषा को मुख्य तौर पर प्रमुखता दी है।

फनीश्वरनाथ रेणु की रचनाएं

फनीश्वरनाथ रेणु हिंदी कहानी व उपन्यास साहित्य के क्षेत्र में एक नई धारा के जनक है जिसे आँचलिक कथा साहित्य कहते हैं. इनके पूर्व भी ग्राम्यांचल से सम्बद्ध कहानी उपन्यास लिखे गये थे जैसे शिवपूजन सहाय, प्रेमचंद व रामवृक्ष बेनीपुरी का कथा साहित्य किन्तु उसमें आँचलिकता पुर्णतः नहीं आई.

रेणु जी ने सशक्त रचनाएँ प्रस्तुत कर एक अंचल विशेष को ही नायकत्व प्रदान कर दिया और सारी घटनाएँ परिस्थतियाँ उसी के इर्द गिर्द चक्कर लगाती हुई प्रतीत होती हैं. अस्तु, रेणु की प्रमुख कृतियों का उल्लेख इस प्रकार हैं.

  • उपन्यास- मैला आँचल, परती: परिकथा जुलूस
  • कहानी संग्रह – ठुमरी, रस प्रिया, पंचलेट, तीसरी कसम
  • निबंध पत्र आदि.

मैला आँचल रेणु जी का प्रथम उपन्यास था, जिसनें उन्हें रातोरात बड़े ग्राम्य कथाकार के रूप में स्थापित कर दिया. इसे प्रेमचंद के गोदान के बाद हिंदी के सबसे दूसरे सर्वश्रेष्ठ उपन्यास के रूप में माना जाता हैं.

हालांकि आलोचकों ने इसकी कथावस्तु को सतीनाथ भादुरी के बंगला उपन्यास धोधाई चरित मानस की कॉपी बताया, मगर बाद में ये निराधार साबित हुए. फनीश्वरनाथ रेणु जी को आजादी के बाद का प्रेमचंद भी कहा जाता हैं.

रेणु का समग्र लेखन ग्राम्य परिवेश पर आश्रित हैं. उनके पात्र संवेदनशील व भावुक हैं. उनकी कहानियों में एक चित्रकार की भांति चित्रफलक को सजाया गया हैं, जिससे घटना का पूर्ण बिम्ब पाठक के समक्ष उपस्थित हो जाता हैं.

उनकी कहानियों में मनुष्य, प्रकृति , जीवन के घात प्रतिघात मानवीय भावनाओं व मनुष्य जीवन के विविध पक्षों को आँचलिक भाषा में प्रयोग हुआ हैं.

जैसे तबे एकता चला रे कहानी में किसन महाराज (भैंस का पाडा) की कथा कहकर यह सिद्ध कर दिया हैं कि इंसान आज जानवर से भी बदतर हो गया हैं.

जमीदारों, पुलिस व अफसरों के कुकृत्यों का पर्दाफाश कर किसन महाराज के प्रति ममता जागृत की हैं, रसप्रिया में एक गायक कलाकार के संघर्ष का मार्मिक चित्रण हैं.

रेणु की कहानी कला

पांचवे दशक के लोकप्रिय आँचलिक कथाकार फनीश्वरनाथ रेणु उच्च कोटि के चिंतक, स्वाधीनता प्रेमी एवं न्याय के लिए संघर्ष शील व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं. वर्ष 1977 की इमरजेंसी में इंदिरा सरकार ने इन्हें शासन विरोधी घोषित कर जेल में ठूस दिया था.

रेणु जी बिहार के पूर्णिया व दरभंगा जिलों से सम्बन्ध रहे. पटना इनका प्रमुख कार्यस्थल था. इन्होने भारत के विविध अंचलों और धरती पुत्रों की व्यथा कथा अपनी कहानियों और उपन्यासों में चित्रित की हैं.

रेणु ने स्वतंत्रता के पश्चात भारत के ग्राम जीवन को नजदीक से देखा परखा और यहाँ होने वाले परिवर्तनों को संजीवता व ईमानदारी से चित्रण किया हैं.

गाँवों में नदियों पर बननें वाले बाँध, सड़कें, पंचायत भवन, स्कूल भवन व और आर्थिक सामाजिक, धार्मिक स्थितियों का चित्रण तथा गाँवों की जातिगत गुटबाजी राजनीति का नग्न चित्रण कर दिया हैं.

उनकी कहानियाँ दूसरी शीर्षक कृति में संग्रहित हैं. रेणु एक कुशल फोटोग्राफर की तरह जीवंत चित्रण करते हैं. जिससे स्थान विशेष का वातावरण हमारी आँखों के आगे सजीव हो उठता हैं.

आंचलिकता इनके कथा साहित्य में सर्वत्र ही व्यंजित हुई हैं. एक आलोचक के शब्दों में दूसरे कहानीकार आंचलिक कथाकार होने का दभ भरते है किन्तु उनकी कहानियों में कथा होती है पात्र होते है पर अंचल तिरोहित हो जाता हैं.

रेणु इस बात का दावा नहीं करते है कि उनकी कहानियों में अंचल होता है पर उसका अंकन सफलतापूर्वक हुआ हैं. ग्रामों की धड़कनों को रेणुजी ने बहुत निकट से सुना हैं और पहचाना हैं, जिसे कलागत ईमानदारी के साथ चित्रित किया है,

जिन्होंने जिस अंचल को कहानियों में उतारा है, वहीँ की सामाजिक संस्कृतिक, परम्पराओं, धार्मिक विश्वास और नैतिक मूल्यों का समग्र चित्रण किया हैं.

तीसरी कसम व पंचलेट कहानियाँ ऐसी ही हैं. इनमें गाँव के भोलेभाले जन समुदाय के आचार व्यवहार, खान पान, रहन सहन और प्रत्येक क्षेत्र की सोच को उभारा गया हैं.

तीसरी कसम का हीरामन गाड़ीवान के चरित्र द्वारा लेखक ने अंचल की आत्मा को ही उजागर कर दिया हैं. जैसे हीरामन के लिए जब नचनियां हीराबाई अपने हाथों से पतल बिछाकर, पानी छींटकर चिवड़ा निकाल दिया तो हीरामन कहने लगा.

इस्स, धन्य धन्य हैं. हिरामन ने देखा भगवती मैया भोग लगा रही हैं. लाल होठों पर गोरस का पारस, पहाड़ी तोते को दूध भात खाते देखा हैं. इन पंक्तियों में हीरामन की मासूमियत और भोलापन व्यक्त हुआ हैं.

लालपान की बेगम कहानी में भी प्रमुख स्त्रीपात्र का नौटंकी देखने जाने की तैयारी का चित्रण ग्राम्य जीवन की मार्मिक झांकी प्रस्तुत कर देती हैं. चरित्र चित्रण के लिए रिपोर्ताज शैली का प्रयोग किया हैं.

वे छोटे छोटे स्नेप शॉट्स उतारते चलते हैं और व्यक्तियों, स्थानों उनके मनोभावों, प्रवृत्तियों आदि के बारीक से बारीक रेशे उभारकर भावप्रवणता से प्रस्तुत कर देते हैं, कथा नक का ताना बाना यदपि कुछ बिखरा हुआ मिलता हैं, कसावट का अभाव है किन्तु यह तो आंचलिक कहानियों की ख़ास प्रवृति हैं.

वातावरण चित्रण में रेणु जी सफल रहे हैं. ग्रामीणों की जीवन शैली, उनकी सामाजिक धार्मिक मान्यताएं, तीज त्यौहार, मेले खेले, नौटंकी आदि सभी का चित्रण किया हैं.

कहानियों की भाषा विशुद्ध आंचलिकता लिए हुए हैं, अतः कही कही वह दुरूह हो गई हैं रेणुजी का मैला आँचल उपन्यास भाषा की दृष्टि से इसलिए आलोचना का केंद्र रहा हैं. कहानी के पात्रों के नाम भी आंचलिकता का बोध कराते हैं.

यथा धुनीराम, पलटदास, लालमोहर, चलित्तर, कर्मकार, मुनियाँ आदि. उनका चरित्रांकन भी ग्राम्य बोध कराता हैं. सभी कहानियाँ उद्देश्यनिष्ठ हैं, पात्रों के अन्तर्द्वन्द को मनोवैज्ञानिक धरातल पर अभिव्यजित किया हैं.

ग्राम्य जीवन की समस्याओं नेताओं की चालों आपसी रंजिश इर्ष्या द्वेष आदि का चित्रण कर दिया हैं कहानियों के शीर्षक रोचक व घटनाक्रम को बिम्बित करते हैं.

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