पीरू सिंह शेखावत की जीवनी – Biography Of Piru Singh Shekhawat In Hindi : रणबाकुरों की धरती शेखावाटी का झुंझुनू जिला आज केवल राजस्थान में ही नही अपितु पूरे देश में एक विशिष्ट स्थान रखता हैं.
यहाँ के पीरू सिंह शेखावत ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर देश की रक्षा की थी. ऐसे महान परमवीर चक्र विजेता पीरू सिंह भारतीय सेना के जाबाज सिपाही की जीवनी आपकों बता रहे हैं. इस तरह की शौर्य गाथाएं बड़े अर्चे के बाद ही देखने को मिलती हैं.
पीरू सिंह शेखावत की जीवनी बायोग्राफी
Mejar Piru Singh Shekhawat In Hindi: राजस्थान के सपूत पीरू सिंह को बचपन से ही यह धुन सवार थी कि बड़ा होकर सैनिक बनना हैं. और मातृभूमि की सेवा करनी हैं. पीरू सिंह का जन्म मई 1918 में हुआ था. वे अपने भाई बहिनों में सबसे छोटे थे.
20 मई 1936 को उनका सपना साकार हुआ और वे सेना में भर्ती होकर पंजाब के झेलम में तैनात हुए. प्रारम्भ में पीरू सिंह को पढ़ना लिखना अरुचिकर लगता था. लेकिन सेना में भर्ती होने के बाद वे भारतीय सेना के प्रथम श्रेणी के प्रमाण पत्र की तैयारी में जुट गये.
उन्होंने प्रमाण पत्र की परीक्षा के अलावा अन्य परीक्षाएं भी पास कर ली और 7 अगस्त 1940 को उन्हें लांसनायक के पद पर पदोन्नत कर दिया गया. वे एक अच्छे खिलाड़ी भी थे. उन्होंने अपनी रेजिमेंट का हॉकी, बास्केटबाल, लम्बी दोड़ आदि में प्रतिनिधित्व भी किया था.
मई 1945 में वे राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन की डी कम्पनी के हवलदार मेजर के पद पर नियुक्त हो गये. पीरू सिंह ने 1946 में दूसरें विश्वयुद्ध के दौरान राष्ट्र्मंडल सेना में अपनी सेवाएं दी. सितम्बर 1947 में जब वे भारत लौटे तो भारत का बंटवारा हो चुका था.
भारत-पाक विभाजन के बाद कश्मीर पर कबाइलियों ने हमला कर भारत की भूमि का कुछ हिस्सा दबा लिया तो कश्मीर नरेश ने अपनी रियासत के भारत में विलय की घोषणा कर दी.
भारत सरकार ने अपनी भूमि की रक्षा के लिए वहां फौजे भेजी. इसी सिलसिले में राजपूताना राइफिल्स की छठी बटालियन की डी कम्पनी को भी टीथवाल के दक्षिण में तैनात कर दिया था.
1948 के दूसरे सप्ताह में जब शत्रु का दवाब टिथ्वाल क्षेत्र में बढने लगा तो राजपूताना राइफिल्स को दारापारी भेजा गया. कमांडिग अधिकारी ने यहाँ हमलें के आदेश दिए. दारापारी जाने का रास्ता तंग था. इस पर कब्जे के आक्रमण के लिए 17-18 जुलाई रात का समय तय किया गया.
कम्पनी हवलदार मेजर पीरू सिंह की टुकड़ी सबसे आगे थी. जैसे ही यह टुकड़ी दुश्मन के पास पहुची, दुश्मन ने गोलियों की बौछार कर दी. प्लाटून के कमांडर को गोली लगते देख मेजर पीरू सिंह ने स्वयं कमान सम्भाल ली और जानलेवा गोलियों की बौछार के बिच अपने सैनिकों के साथ आगे बढ़ने लगे.
दुश्मन ऊँचाई से गोलियों की बौछार कर रहा था, हर ओर से गोलियों ही गोलियां आ रही थी. पीरू सिंह के अधिकांश साथी या तो जख्मी हो गये या मारे जा चुके थे. लेकिन वे अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मनों के बंकर की ओर बढ़ते रहे.
पीरू सिंह ने अपने साहस से बंकर में कूदकर दुश्मन के सैनिकों को मार डाला. जब वे तीसरे बंकर में जाने लगे तो दुश्मन ने उनके सिर पर गोली मार दी.
अंतिम साँस लेते लेते भी पीरू सिंह ने अपना आखिरी ग्रेनेड वहां फेंक दिया और वे चिरनिद्रा में लीन हो गये. उनके अदम्य साहस और बलिदान के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.