आचार्य चाणक्य का इतिहास जीवनी Chanakya History In Hindi: कौटिल्य भारतीय राजनीतिक विचारकों में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं.
कौटिल्य की रचना अर्थशास्त्र को राजनीतिशास्त्र की महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक माना जाता है.
चाणक्य के सम्बन्ध में अध्ययन राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए बहुत आवश्यक हैं. यह अध्ययन सुविधा की दृष्टि से आज हम चाणक्य के इतिहास और जीवन उसके राजनीतिक विचारों का अध्ययन करने वाले हैं.
चाणक्य का इतिहास बायोग्राफी Chanakya History In Hindi
जीवन परिचय– प्राचीन भारतीय राजशास्त्रियों में चाणक्य का महत्वपूर्ण स्थान हैं. किन्तु हमारा समाज जिस आचार्य को कौटिल्य के नाम से जानता है उसका वास्तविक नाम विष्णुगुप्त शर्मा हैं.
और भारतीय जनमानस उसे ही चाणक्य के नाम से जानता हैं. यदपि चाणक्य नाम उसके पिता का हैं. किन्तु जनमानस ने स्वयं कौटिल्य को चाणक्य के नाम से याद करता हैं.
गणपति शास्त्री के अनुसार कौटिल्य नाम एक त्रुटी का परिणाम हैं. जो लेखकों और पाठकों द्वारा की गई हैं. उनके अनुसार कौटिल्य एक ऋषि का नाम है. जिसनें कौटल गोत्र की स्थापना की थी. कौटल गोत्र में जन्म लेने के कारण विष्णुगुप्त को कौटल्य खा गया, कौटिल्य नही.
कौटिल्य कपट एवं झूठ के अर्थों में प्रयोग किया जाने वाला नाम हैं. अर्थशास्त्र में राज्य की सुरक्षा के उपायों की विवेचना के क्रम में चाणक्य ने ऐसे अनेक उपायों का चित्रण किया हैं. जिन्हें मौलिक नहीं माना जा सकता हैं. संभवतः इसी कारण कुटिलता या धूर्तता के अर्थ में भी कौटिल्य शब्द का उल्लेख किया जाने लगा.
चाणक्य के काल के विषय में विद्वानों में मतैक्य नहीं हैं. द कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इंडिया में अर्थशास्त्र की रचना का समय 300 वर्ष ईसा पूर्व माना गया. बी ए सोलेटोर ने चाणक्य के काल और अर्थशास्त्र के रचना काल को 400 से 300 ई पू माना हैं.
चाणक्य के जन्म स्थान के सम्बन्ध में भी विद्वान एक मत नहीं हैं. वैसे बौद्ध ग्रंथ में कौटिल्य का जन्म स्थान तक्षशिला माना हैं. जबकि जैन ग्रथों में कौटिल्य का जन्म स्थान अवणवेई मैसूर राज्य का गोल प्रदेश माना जाता है. कुछ ने नेपाल के तराई इलाके को चाणक्य का जन्म स्थान माना हैं.
कौटिल्य ने एक शिक्षक के रूप में तथा शस्त्र एवं शास्त्र के ज्ञाता के रूप में अच्छी ख्याति अर्जित की. कहा जाता है कि उस समय कोई ऐसा शासक नहीं जो इनकी नीति से प्रभावित न हुआ हो.
कौटिल्य को एक दृढ निश्चयी तथा अद्भुत इच्छा शक्ति के विद्वान् के रूप में जाना जाता हैं. उनकी इस ख्याति के साथ एक घटना जुड़ी हुई है. कहते है मगध के महाराजा नन्द थे.
अपने मंत्री शकटार को श्राद्ध के लिए ब्राह्मणों को एकत्र करने के लिए कहा. शकटार राजा द्वारा पूर्व में किये गये किसी अपमान से पीड़ित था अतः वह एक ऐसे क्रोधी ब्राह्मण की तलाश में था
जो श्राद्ध में उपस्थित होकर राजा को अपने ब्रह्मा तेज से भस्म कर दे. खोज करते हुए उसने एक कुरूप कृष्णकाय ब्राह्मण को देखा जो किसी जंगल में कांटेदार झाड़ियों को काट रहा था.
और उनकी जड़ों में खट्टा दही डाल रहा था. शकटार द्वारा कारण पूछे जाने पर ब्राह्मण ने कहा इन झाड़ियों के काँटो के चुभने से मेरे पापा का देहांत हुआ. अतः मैं इन्हें पूरी तरह खत्म कर रहा हूँ.
इस क्रोधी ब्राह्मण को शकटार ने अपने कार्य के योग्य ब्राह्मण माना. और उससे महाराजा नन्द द्वारा आयोजित ब्रह्मा भोज में उपस्थित होने का निमन्त्रण दिया.
उस ब्राह्मण ने मंत्रीजी के इस निम्नत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया. अगले दिन जब वह ब्राह्मण राजा नन्द के उस ब्रह्मा भोज में पहुचा तो मंत्री ने उसका आदर सत्कार किया तथा इसे आसन पर बिठाया.
अब बारी थी महाराज घनानन्द की जो भोज में आमंत्रित सभी ब्राह्मणों के दर्शन करने आए तो उनकी नजर सबसे पहले उस काले कुरूप ब्राह्मण पर जाते ही घनानन्द तिलमिला उठे तथा तेज गर्जना के साथ कहने लगे. इस काले चंडाल को यहाँ क्यों बुलाया गया हैं.
वो ब्राह्मण कोई और नहीं बल्कि स्वयं चाणक्य ही था. ऐसा सुनते ही उनका क्रोध सातवें आसमान पर था. क्रोध की ज्वाला में ब्राह्मण ने भोजन के थाल को ठुकराकर अपनी शिखा को खोला और प्रतिज्ञा करने लगे कि जब तक मैं नन्द वंश का पूर्णतया नाश नहीं कर दूंगा मैं इस शिखा को धारण नहीं करुगा.
इतिहास गवाह है चाणक्य ने आगे जाकर चन्द्रगुप्त जैसे शासक को तैयार किया तथा नन्द वंश का खात्मा कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की.
चाणक्य की जीवनी Acharya Chanakya Biography In Hindi
आचार्य चाणक्य (विष्णुगुप्त) तक्षशिला विश्वविद्यालय के शिक्षक थे. उस समय मगध पर घनानंद नामक राजा का शासन था, प्रजा उसके राज्य से त्रस्त थी. एक बार राजा घनानंद ने अपने दरबार में आचार्य चाणक्य का अपमान कर दिया.
उन्होंने तब ही इस अत्याचारी राजा के कुशासन को समाप्त करने की प्रतिज्ञा की. आचार्य चाणक्य ने एक साधारण बालक चन्द्रगुप्त को शिक्षा देकर मगध का शासक बना दिया, स्वयं उनके प्रधानमंत्री बनकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की.
आचार्य चाणक्य अर्थशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र के विद्वान थे, चाणक्य ने अर्थशास्त्र नामक पुस्तक लिखी. अर्थशास्त्र में मौर्यकालीन सम्राज्य की राज व्यवस्था एवं शासन प्रणाली की जानकारी मिलती है.
प्राचीन भारत के इतिहास में मौर्यकाल का महत्वपूर्ण स्थान है. मौर्यकाल चतुर्थ शताब्दी ई.पू. से द्वितीय शताब्दी ई.पू. तक रहा. इस काल में चन्द्रगुप्त बिंदुसार एवं अशोक जैसे महान एवं शक्तिशाली शासक हुए है.
मौर्य सम्राज्य की स्थापना में आचार्य चाणक्य (विष्णुगुप्त) का महत्वपूर्ण योगदान था, मौर्य सम्राज्य की स्थापना से पूर्व मगध पर नंद वंश के शासक घनानंद का शासन था.
घनानंद से मगध की जनता नाराज थी,उन्होंने जनता पर बहुत अधिक अत्याचार किये. नंद वंश के शासनकाल में भारत वर्ष के पश्चिमी भाग में छोटे छोटे राज्य थे.
सिकन्दर ने जब भारतवर्ष के पश्चिमी भाग पर आक्रमण किया, तब इन छोटे छोटे राज्यो से कुछ ने उसका सहयोग किया था. आचार्य चाणक्य सम्पूर्ण भारत वर्ष को एक सूत्र में बांधना चाहते थे.
आचार्य चाणक्य का जन्म ईसा.पूर्व. 375 – ईसा.पूर्व. 225 के आसपास माना जाता है. इनको कई अन्य नाम कौटिल्य, विष्णुगुप्त नाम से भी जाना जाता है.
भारत का मेकियावली कहे जाने वाले चाणक्य ने प्राचीन भारत के मुख्य शिक्षा केंद्र रहे तक्षशिला में अध्ययन किया एवं इसी विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र, राजनीती और अर्थशास्त्र की शिक्षा देने का कार्य भी किया.
भारत ने एक शासक का राज्य स्थापित करने का स्वप्न पाले चाणक्य ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए चन्द्रगुप्त मौर्य को तैयार किया, और नंद वंश का नाश कर भारत में मौर्य वंश की नीव डाली.
आज भी एक सच्चे गुरु के रूप में आचार्य चाणक्य को याद किया जाता है, एक विव्दान, दूरदर्शी तथा दृढसंकल्पी किस तरह एक साधारण व्यक्ति को तैयार कर भारत वर्ष का शासक बना सकता है,
साथ ही गुरु का अपमान एक शक्तिशाली राजा को धूमिल भी कर सकता है. भारत के इतिहास में चाणक्य का महत्वपूर्ण स्थान है इन्होने मुद्राराक्षस नाटक की रचना भी की.
प्रसिद्ध विद्वान चाणक्य अपनी माँ से अत्यंत प्रेम करते थे. बचपन में एक दिन चाणक्य की अनुपस्थिति में एक ज्योतिष उनके घर आया. उनकी माँ ने चाणक्य की कुंडली दिखाई.
ज्योतिषी बोले- माँ तेरा पुत्र अत्यंत भाग्यवान हैं. एक दिन वह चक्रवर्ती सम्राट बनेगा. मुझ पर भरोसा न हो तो उनके आगे का दांत देखना, उस पर नाग का निशाँ होगा.
चाणक्य के लौटने पर माँ ने उस निशान की पुष्टि की तो वह चिंतित हो गई, उन्हें लगा कि सम्राट बनने पर चाणक्य कही उन्हें भुला न बैठे. उन्हें चिंतित देख चाणक्य ने कारण पूछा तो पूरी घटना का पता चला.
चाणक्य ने तुरंत अपना दांत पत्थर से तोड़ डाला और माँ के सामने रखते हुए बोले- माँ तुम्हारे सामने एक नही अनेक सम्राट पद न्यौछावर हैं.
आचार्य चाणक्य की मौत कैसे हुई (acharya chanakya death)
भारत के इतिहास के रहस्यों में चाणक्य की मृत्यु का अध्याय भी हैं, जिनके बारे में कई कहानियां सुनने को मिलती हैं. इस सम्बन्ध में सत्य क्या हैं इसका अंदाजा लगाना काफी कठिन हैं.
आचार्य चाणक्य की मौत के बारे में प्रचलित एक कहानी के अनुसार जीवन के अंतिम समय में उन्होंने जब समस्त कार्य पूर्ण कर लिए तो रथ पर सवार होकर उन्होंने मगध राज्य को छोड़ने के लिए निकल गये जिसके बाद वे लौटकर कभी वापिस नही आए.
आचार्य चाणक्य की मौत के पीछे जुडी दूसरी कहानी कुछ और ही बया करती हैं. कहा जाता है कि मगध की महारानी द्वारा उन्हें जहर देकर मार दिया था. जो भी सत्य हो.
इतिहास में मिले विवरण के अनुसार यह बात उस समय की हैं जब मगध के शासक बिन्दुसार हुआ करते थे. उनकी और आचार्य चाणक्य की बेहद करीबी थी, जो सुबंधु नामक मंत्री को खटक रही थी. वह किसी भी तरह से इन दोनों के बिच के इस रिश्ते को तोड़ना चाहता था.
सुबंधु लम्बे समय के प्रयत्न के बाद आखिर अपने मिशन में कामयाब हो गया. उसने बिन्दुसार को यह अहसास करवा दिया कि उनकी माँ की मृत्यु का कारण और कोई नही बल्कि चाणक्य हैं.
इस तरह की बातों से आचार्य एवं बिन्दुसार के मध्य दूरियां बढ़ने लगी. एक दिन चाणक्य ने इस अपमानित जीवन जीने की बजाय राज्य छोड़कर सन्यास लेने का फैसला किया, इसी कालखंड में उनकी मृत्यु हो गई थी.
कहते है जब चाणक्य ने मगध को त्याग दिया उस समय दाई ने आकर राजा बिन्दुसार को उनकी माता की मृत्यु का राज बताया था. उन्होंने कहा कि आचार्य ने उनको जहर देकर नही मारा था.
बल्कि आचार्य तो आपके पिता चन्द्रगुप्त को नित्य भोजन में जहर दिया करते थे ताकि उन कभी भी दुश्मन द्वारा उन्हें जहर दे दिया जाए तो वह उनके शरीर पर असर न करे. भूल से एक दिन राजा का खाना रानी ने खा लिया, जिससे उसकी तबियत बिगड़ गई. उस समय रानी गर्भवती थी.
जब आचार्य चाणक्य को इस घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने मौर्यवंश का कुल बचाने के लिए रानी का पेट चीरकर बिन्दुसार यानि आपकों जन्म दिया था.
यदि आप आज राजा है तो इनकी वजह आचार्य चाणक्य ही हैं. सच्चाई जब बिन्दुसार के सामने आई तो उसका माथा ठिनका तथा अपने गुरुदेव को वापिस मनाने भी गया मगर चाणक्य ने उनकी कोई बात नही मानी.
चाणक्य की पुस्तक अर्थशास्त्र की विषयवस्तु व इतिहास (History Of chanakya book pdf hindi)
अर्थशास्त्र के रचनाकाल के बारे में विद्वान एकमत नहीं हैं. ए बी कीथ जैसे विद्वानों ने अर्थशास्त्र को ईसा की मृत्यु के बाद तीसरी शताब्दी की रचना मानी है.
वही शाम शास्त्री, डॉ के पी जायसवाल, बी ए स्मिथ एवं आर के मुखर्जी जैसे विद्वान् इसे पहली सदी की रचना मानते हैं. चाणक्य की अर्थशास्त्र, अंग्रेजी के शब्द इकोनोमिक्स का पर्यायवाची नहीं हैं.
वास्तव में यह शासन, कला एवं राजनीति पर लिखा गया महान ग्रंथ है. मथ है कुल 15 अधिकरण है. प्रथम अधिकरण में राज्य के प्रशासनिक विभागों, संगठनों एवं पदाधिकारियों से सम्बन्धित हैं. तीसरे और चौथे अधिकरण क्रमश राज्य की दीवानी और फौजदारी न्यायिक से सम्बन्धित हैं.
अर्थशास्त्र का पांचवा अध्याय में अधिकारियों के कर्तव्य उनके अधिकारों और अनुशासन का वर्णन हैं. छठे अध्याय में राज्य के सात प्रकारों के बारे में बताया गया हैं. आठवा अध्याय सेना युद्ध में विजय तथा पराजय से सम्बन्धित हैं.
अर्थशास्त्र के नौवे अध्याय में चाणक्य द्वारा युद्ध में विजय के तरीकों के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये गये हैं. इसका दसवां अध्याय राज्य की युद्ध नीति तथा ग्याहरवाँ अध्याय संकट काल से जुड़ा हुआ हैं. इस अध्याय में शत्रु को पराजित कर उन पर विषय प्राप्त करने के सम्बन्ध में चाणक्य के विचार हैं.
अगले दो अध्यायों में राजा द्वारा विभिन्न परिस्थतियों में किये जाने वाले सुरक्षा के उपायो के बारे में जानकारी दी गई हैं. 14 वें अध्याय में चाणक्य ने शत्रु के नाश के लिए विषैली औषधियों तथा मन्त्रों के बारे में जानकारी दी गई हैं.
इस पुस्तक के पन्द्रहवें अध्याय में इकोनोमिक्स के अर्थ यानि धन के बारे में चर्चा की गई हैं. इस तरह कौटिल्य/ चाणक्य की रचना अर्थशास्त्र में राज्य की समस्त आवश्यकताओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता हैं.
चाणक्य के बारे में जानकारी व उनके विचार – Information About Chanakya History Hindi Main
भारतीय राजनीतिक चिंतन में कौटिल्य का योगदान अद्वितीय हैं. चाणक्य के विचारों के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है. कि चाणक्य ने राज्य से जुड़े सैद्धांतिक, संस्थागत व व्यवहारिक प्रश्नों का गम्भीरता के साथ विवेचन किया हैं. चाणक्य ने राजतंत्रात्मक व्यवस्था का समर्थन करते हुए भी शासक की निरंकुशता के विचार का पूरी तरह निषेध किया हैं.
कौटिल्य ने राज्य के लोक कल्याणकारी स्वरूप की धारणा को स्वीकार किया है और इस हेतु प्रशासनिक व्यवस्था स्वरूप भी प्रस्तुत किया हैं. राज्य की सुरक्षा की आवश्यकता को चाणक्य ने सर्वोपरि माना हैं.
इस उद्देश्य से चाणक्य ने अंतर्राज्य सम्बन्धों के विवेक सम्मत संचालन पर बल दिया हैं. इसके साथ ही दंड, न्याय व न्यायपालिका पर कौटिल्य का दृष्टिकोण अत्यंत विवेक सम्मत हैं.
इस प्रकार चाणक्य के विचार एक पूर्ण राजनीतिक दर्शन को करते हैं. उनकी गणना भारत के ही नहीं अपितु विश्व के विश्व के महानतम राजनीतिक दार्शनिकों में की जाती हैं.
राज्य के सिद्धान्तिक एवं व्यवहारिक पक्षों का जितना सम्रद्ध एवं सटीक विवेचन कौटिल्य के चिंतन में मिलता हैं. वैसा अन्यत्र दुर्लभ हैं.
चाणक्य के राजनीतिक विचार (chanakya on politics hindi)
प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन में कौटिल्य का योगदान हैं. चाणक्य को भारतीय राजदर्शन का जनक कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. कौटिल्य ने राज्य से सम्बन्धित सभी पक्षों का राजनीतिक सार चाणक्य की अर्थशास्त्र हैं.
कौटिल्य ने राजनीतिक विचारों का वैज्ञानिक ढंग से विवेचन किया हैं. भारतीय विचारों पर कौटिल्य का प्रभाव इतना अधिक है कि कामन्दक अपने को इसका शिष्य मानते हैं. भारतीय राजनीतिक चिंतन को कौटिल्य के योगदान को निम्न प्रकार से समझा जा सकता हैं.
- कौटिल्य ने राज्य का समझौतावादी सिद्धांत प्रस्तुत करके राज्य को साधन और प्रजा हित को साध्य माना हैं. साथ ही नागरिकों को शासन सत्ता का अंतिम स्रोत मानते हुए शासक को अपदस्थ करने का अधिकार देकर आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं जैसी व्यवस्था प्रस्तुत की हैं.
- वास्तव में कौटिल्य एक यथार्थवादी विचारक था. जैसा कि उन्होंने शासन व्यवस्था, सेना, युद्ध व्यवस्था, राजस्व प्रणाली आदि विषयों की विस्तृत विवेचना की है. उससे यह स्वतः सिद्ध होता है कि वह यथार्थवादी चिंतक था. उन्होंने प्रशासनिक व्यवस्था का व्यवस्थित रूप प्रस्तुत किया हैं.
- ज्ञान की विभिन्न शाखाओं की व्यवस्था द्वारा कौटिल्य ने राज्य के अस्तित्व के सैद्धांतिक आधार तथा राज्य के लोक कल्याणकारी स्वरूप को भली भांति स्पष्ट किया है. साथ ही यह भी उल्लेख किया है कि वितरणात्मक न्याय को सुनिश्चित करना राज्य का प्रमुख कर्तव्य हैं.
- कौटिल्य को राज्य के हितकारी कार्यों की व्यवस्था करने के लोक कल्याणकारी राज्य व्यवस्था का प्रणेता माना जाता है. उन्होंने राज्य में नैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक सभी क्षेत्रों से प्रजा के कल्याण के लिए शासक को समर्पण भाव से कार्य करने की बात की हैं.
- राजतंत्रात्मक व्यवस्था का समर्थन करते हुए भी चाणक्य ने शासक की निरंकुशता के विचार का समर्थन नहीं किया है. चाणक्य ने शासन के सदैव अनुसार आचरण करने एवं दंड शक्ति के समुचित रीती से प्रयोग किये जाने की अपेक्षा की है. तथा ऐसा न करने पर स्वयं शासक को भी दंड का पात्र माना गया है. इसके अतिरिक्त शासक पर सदैव परामर्शदात्री संस्था के रूप में मंत्रीपरिषद् के नियंत्रक को भी कौटिल्य ने किया हैं. साथ ही जनता को यह अधिकार दिया है कि वह शासक द्वारा उसके दायित्वों का उल्लघंन किये जाने पर उसे अपदस्थ कर सके.
- कौटिल्य ने राज्य की सुरक्षा को सर्वोपरि माना है इस दृष्टि से उन्होंने पर राष्ट्रों सम्बन्धों के विवेकपूर्ण संचालन पर जोर दिया है. चाणक्य का मानना है कि राजा को अनावश्यक युद्धों से बचना चाहिए तथा अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपने मित्रों की संख्या में निरंतर वृद्धि करनी चाहिए.