बाल विवाह कविता Child Marriage Kavita Poem In Hindi आज के भारतीय समाज में कई रूढ़ियाँ व्याप्त है जिनमें से एक है बाल विवाह.
अर्थात कम उम्रः में विवाह कर देना ही चाइल्ड मैरिज कहलाता है. इन बच्चों के सुनहरे सपनों व बचपन को रौदकर इन्हें एक ऐसे बंधन में बाँध दिया जाता, है जिनके बारे में वे तनिक भी नही जानते है.
अच्छे अच्छे व्यक्ति भी जिम्मेदारियों के बोझ तले दब जाते है. फिर 13-14 साल के बच्चें बच्चियां कैसे इन्हें संभाल सकेगे.
समाज को अब जागना होगा तथा इन भावी कर्ण धारों को समय से पूर्व शादी के बंधन में बाँधने से रोकना होगा.
बाल विवाह पर कविता (Child Marriage Kavita Poem In Hindi)
बनी ये मानव श्रृंखला कर रही पुकार है जागो बहना, जागो भाई बाल विवाह, दहेज अत्याचार है। भीड़ से तो लगता है सभी को इसने डसा है जहर बन समाज में लगता रचा बसा है बनी ये मानव ....
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सड़क पर पटे श्रृंखला मुहर तो लगा दी है हमारी कुहेलिका को मानो अब जगा दी है बुराइयाँ कितनी बड़ी हो उसको हम मिटा देंगें दहेज रूपी दानव को जड़ से हम भगा देंगें। बनी ये मानव ...... बाल विवाह भी एक कोढ़ है इसको भी हम मिटा देंगें
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अगर आपका साथ हो तो सोये को जगा देंगें बाहर निकल संदेश दिया दहेज, बाल विवाह को मिटायेंगे। कृतसंकल्प बनकर आप इस वादा को निभायेंगे बनी ये मानव .... मगर रहे ध्यान आपको भूलो न जो प्रण किया वर्ना समाज की एकता आपसे हीं धुमिल होगा आप भी इसके अंश हैं आपको भी डसा है ये इसे जड़ से मिटाने की कसम को निभा देंगें। बनी ये मानव
बाल विवाह अभिशाप पर कविता
Child Marriage Par Kavita In Hindi
बाल विवाह को दूर करें हम इस जीवन में आगे बढ़े हम हर बच्चे का जीवन सँवारे हम जीवन को अलग ढंग से जिए हम बच्चों पर अत्याचार ना करें हम विवाह करके उनका जीवन बर्बाद ना करें हम बाल विवाह के खिलाफ खड़े हो जाएं हम हर मुश्किल से लड़ जाए हम गांव से शहर तक लोगों को जागरूक करते चलें बाल विवाह के विरोध में आवाज उठाते चलें बच्चों के जीवन को बचाते चले हर संभव कोशिश हम करते चलें बाल विवाह होगा तो देश बर्बाद होगा कम उम्र में ही बच्चों का जीवन बर्बाद होगा देश की समस्या को दूर करते चलें हर संभव प्रयत्न हम करते चलें
बाल विवाह पर छोटी कविता पोएम (Child Marriage Kavita Poem)
शादी की क्या जल्दी है, इन्हें निखरने तो दो,
इतनी क्या जल्दी थोड़ा पढ़ लिखने दो.
प्रेम और ममता की मूर्ति ने दो।।
पढ़ने लिखने है दिन दिन इसके
कहा पूरा हुआ है बालपन इनका
बगिया की कच्ची कली है अभी ये
यौवन अभी अधूरा है।।
अभी बृद्धि की ओर बेल है, थोड़ी-सी बढ़ जाने दो।
शादी की क्या जल्दी है, इन्हें निखरने तो दो,
इतनी क्या जल्दी थोड़ा पढ़ लिखने दो.
वन बगिया में तितली का,
सैर-सपट्टा होने दो।
कच्ची गागरिया के तन को,
कुछ तो पक्का होने दो।।
अभी-अभी तो हुआ सबेरा, धूप तनिक चढ़ जाने दो।
शादी की क्या जल्दी है, इन्हें निखरने तो दो,
इतनी क्या जल्दी थोड़ा पढ़ लिखने दो.
करके पीले हाथ उऋण हैं,
समझो यह नादानी है।
तुमने लिख दी एक कली की,
फिर से दुःखद कहानी है।।
चन्द्रकला की छटा धरा पर, थोड़ी-सी इठलाने दो।
शादी की क्या जल्दी है, इन्हें निखरने तो दो,
इतनी क्या जल्दी थोड़ा पढ़ लिखने दो.
तनिक भूल से जीवन भर तक,
दिल का दर्द बहा करता।
अगर न सुदृढ़ नींव होइ तो
सुन्दर महल ढहा करता।।
चिड़िया के सँग-सँग बच्चों को, थोड़ा-सा उड़ जाने दो।
शादी की क्या जल्दी है, इन्हें निखरने तो दो,
इतनी क्या जल्दी थोड़ा पढ़ लिखने दो.
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बाहर आँगन में सीताफल का पेड़ था
कच्चे फल थे, झूल रहे थे
मत झंझोड़ो मत तोड़ो इन्हें |
बड़े बुजुर्ग कहते हैं..
यदि कच्चे सीताफल को भूसे में दबा दो
तो कुछ समय में वो पक जाता है,
मुनिया पंद्रह साल की हुई
तो उसका गौना हो जाता है |
इस नन्ही सी उम्रः में
दिन भर माथे पे शर्म का पल्लू
क्या सरल काम है ?
चूल्हे में फूँकनी से अंगारे सुलगाती मुनिया
और बुझे हुए अंगारों के साथ उड़ती
सपनों की कालिख ..
यह नज़ारे गावों में आज भी आम हैं |
नयी बहू आई है ..
सुहागलें हो रही थीं
सामने थाल में बाताशे रखे थे
मुनिया के मन में विचारों के भंवर चल रहे थे |
बताशे..
आह्!बापू यह मेरे लिए लाते थे
मुनिया..देख क्या लाया हूँ ,
इनके लिए मुझे कितना सताते थे !
अचानक उसने कुछ सोचा
फिर हाथ बढ़ाया
बड़ी सफ़ाई से एक बताशा उठाया
और घूँघट में छिपा लिया !
जो बीत जाता है..वो वापस क्यों नही आता ?
ज़िंदगी का हर सुख ..
इस बताशे-सा क्यों नहीं हो जाता!
होली आ रही है
सास ने कहा आँगन छाबना है
मुनिया छाब रही है ..
और सोच रही है
काश मेरी ज़िंदगी भी इस आँगन-सी होती !
उसे नहीं पता
नवजात शिशुओं को
जलाया नहीं गाड़ा जाता है
तभी तो..
वो अपने अरमानों को
गोबर के साथ मिलाती है
बड़े प्यार से,जतन से
उनके कंडे बनाती है,
इन कंडों को चूल्हे में जलाती है!
नवजात शिशुओं से सपने ..
इन शिशुओं की चिता पर
वह रोज़ रोटी पकाती है ,
अपनी सास, ससुर और पति को
बड़े प्यार से खिलाती है !
उसका जी मचल रहा था
उलटी का मन कर रहा था
उस आँगन में
सीताफल के पेड़ के नीचे
आज गोद भराई का उत्सव हो रहा था |
आठ महीने बाद..
नाला पूर था,
शहर दूर था ,
गाँव में एक दाई थी
मुनिया ने एक लड़की जायी थी !
लड़की तो आई पर मुनिया चली गयी
मर गयी..
लड़की को जनमा था ,
ताने तो सुनने से बच गयी
पर इस बाल-विवाह की वेदी पर.
एक और बकरी,
कटने छोड़ गयी !