Essay on Beggar in Hindi : भिखारी क्या होता है इनसें हम सभी परिचित हैं, आज हम भिखारी पर निबंध लेकर आए हैं, स्टूडेंट्स को कई बार भारतीय भिखारी, आत्मकथा, कहानी पर निबंध, भाषण, स्पीच शोर्ट अनुच्छेद, लेख आदि लिखने को कहा जाता हैं,
ऐसे में आप हमारे द्वारा लिखे भिखारी के निबंध का उपयोग कर सकते हैं. बच्चों के लिए विभिन्न शब्द सीमा में निबंध यहाँ प्रस्तुत हैं.
भिखारी पर निबंध | Essay on Beggar in Hindi
भिखारी पर निबंध (300 शब्द)
भिखारियों का मुख्य काम भीख मांगना होता है। ऐसे लोगों के पास सामान्य तौर पर रहने के लिए घर नहीं होता है और अगर घर होता भी है तो वह घर कहलाने लायक नहीं होता है। भिखारी अक्सर झुग्गी झोपड़ी वाले इलाके में ही रहते हैं।
इसके अलावा बहुत सारे भिखारी रोड पर मौजूद फुटपाथ पर भी रहते हैं। वह दिन भर यहां वहां भीख मांगते हैं और रात में आकर के उसी फुटपाथ पर सो जाते हैं।
दिन के समय में भिखारी पगडंडी पर बैठकर के आने जाने वाले लोगों से भोजन और भीख के तौर पर पैसे मांगते हैं और रात में वह उसी स्थान पर सो जाते हैं।
कुछ भिखारियों के द्वारा रोड के बगल में टेंट भी लगाया जाता है और उसी में रहा जाता है। कुछ भिकारी अकेले ही भीख मांगने का काम करते हैं वहीं कुछ भिखारी अपने परिवार के सहित गली और मोहल्ला में भीख मांगने के लिए जाते हैं।
बरसात और गर्मी के मौसम में भिखारियों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जहां बरसात के मौसम में उन्हें पानी में भीगने के लिए मजबूर होना पड़ता है वहीं गर्मी के मौसम में उन्हें अत्याधिक गर्मी का सामना करना पड़ता है।
वहीं ठंडी के मौसम में ठंड से बचने के लिए पर्याप्त व्यवस्था ना हो पाने के कारण कई बार कुछ भिखारियों की मृत्यु हो जाती है जिसकी चपेट में सबसे ज्यादा ऐसे भिखारी आते हैं जो बुजुर्ग हो चुके होते हैं।
भिखारियों की सहायता के लिए और भिखारियों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए कई सामाजिक संस्थाएं काम कर रही है परंतु इतने प्रयास के बावजूद भिखारियों की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं आ रहा है।
इसलिए सरकार को भी भिखारियों की अवस्था पर विशेष तौर पर ध्यान देना चाहिए और भिखारियों की उन्नति के लिए साथ ही उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए बड़े स्तर पर प्रयास करना चाहिए।
700 words Essay On Beggar
भिक्षा के सहारे अपने जीवन व्यतीत करने वाले को भिखारी कहा जाता हैं. सभी लोग एक जैसी शारीरिक बनावट के साथ उत्पन्न नहीं होते है कई बार द्र्दांत हादसों में अमूल्य अंग भंग हो जाते है जिसके कारण व्यक्ति अपाहिज बन जाता हैं.
इस तरह के लोग कुछ कमाने या कार्य करने में सक्षम नहीं होते है, अतः उन्हें भीख मांगकर भिक्षावृत्ति के सहारे ही जीवन काटना पड़ता हैं.
इन्हें समाज में हेय नजर से देखा जाता हैं, मगर समझदार लोगों के लिए भिखारी दया का पात्र होता हैं. एक विवेकी इन्सान उसके जीवन व हालातों के बारे में आसानी से कयास लगा सकता हैं.
उन्हें पेट की भूख शांत करने के लिए घर घर जाकर झोली फैलानी पड़ती हैं. कही से बांसी भोजन मिलता है तो कहीं डांट फटकार सुनकर ही स्वयं को फिर से अगली चौखट पर जाने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना पड़ता हैं.
लोगों की कृपा दृष्टि एवं भीख पर जीवन निर्वहन करना किसी तरह के सम्मान एवं स्वाभिमान की बात नहीं हैं, मगर लाचार जीवन व्यतीत करने वाले भिखारियों के पास इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं होता हैं.
सार्वजनिक स्थानों पर जहाँ लोगों का अधिक आना जाना होता हैं, भिखारी के लिए यह सुविधा स्थल होता हैं. करुणावान व्यक्ति का दिल उसकी याचना सुनकर अवश्य ही पिघल जाता हैं.
पांच दस रूपये की भीख के लिए वह रोता, गिडगिडाता हैं. भगवान या अल्लाह के नाम की मिन्नते करता हैं आपके लिए हर कार्य शुभ हो इसकी दुआ पढ़ता हैं. तब जाकर उसे किसी तरह दो रोटी नसीब हो पाती हैं. दान लेना और देना सदियों से धर्म का हिस्सा रहा हैं. इसे पुण्य कर्म माना गया हैं.
कुछ लोग दान देकर तो कुछ इसे पाकर स्वयं के मन को संतुष्टि दिलाते हैं. मगर भिखारी के प्रति लोगों का रवैया उस मानसिकता का परिचायक नहीं होता है जो किसी धार्मिक दान पुण्य में होता हैं.
भारत में दुनिया के सर्वाधिक भिखारी रहते हैं. जिनमें अधिकतर संख्या में वो लोग है जो पूरी तरह शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ होने के उपरांत भी अकर्मण्यता के कारण भिक्षाटन के पेशे को सबसे आरामदायक समझते हैं.
कुछ लोग धार्मिक स्वरूप धारण कर हाथों में माला कमंडल एवं भगवा धारणा कर धर्म के प्रतीक बनकर घर घर जाकर भिक्षा लाते हैं. समाज भी ऐसे ढोंगी एवं अकर्मण्य लोगों को धर्म उपदेशक एवं संत मानकर उनकी झोली भरते हैं. उनका विश्वास यही होता है कि हम धर्म के कार्य में सहयोग कर रहे हैं.
जबकि इन तरह के ढोंगियों को दान व भिक्षा देकर हम अकर्मण्यता को प्रोत्साहन देकर धर्म का कार्य न करके अधर्म ही करते हैं. भिक्षा का असली हकदार वहीँ होता है जो अपंग है स्वयं कर्म करने योग्य नहीं हैं. ऐसे लाचार जीवन जीने वाले लोगों को भिक्षा देने से पुण्य भी मिलेगा और उनका आशीष भी.
साधारनतया सभी भिखारियों की वेशभूषा एक सी ही होती हैं. बेहाल, गंदे फटे पुराने वस्त्र, अधनगा शरीर कंधे पर बड़ी चादर ओढ़े रहता मेल एवं गंदगी से भरा रहता हैं. कई दिनों तक स्नान नहीं करता हैं.
असहाय होकर भीख माँगना इतनी बुरी बात नहीं है मगर मलीन रहना पशुत्व का गुण हैं. भिखारी समुदाय के लोग जानबुझकर मलिन व गंदे बने रहते है ताकि वे अपने दीन हीन स्थिति से लोगों के दिल जीत सके, वे जानते है कि यदि अच्छे वस्त्र एवं साफ़ सुथरा रहकर भीख मांगी जाए तो कोई भी एक पैसा भी नही देगा.
भारत में भिक्षावृत्ति का बड़ा व्यापार चलता हैं. इसे बिजनेस मॉडल की तरह लोग आगे बढाते हैं. कई घटनाएं इसका प्रमाण दे चुकी है जब बच्चों का अपहरण कर उन्हें अपंग बनाकर भीख के कारोबार करने वाले लोग इनका उपयोग करते हैं.
उनका जीवन आरामदायक एवं शौक अमीरों जैसे होते हैं. बड़े घर, एशो आराम का जीवन, खाने पाने की उन्नत सुविधाएं महंगे नशे आदि. एक भिखारी की इस दुनियां से हर कोई अपरिचित होता है जिसका उन्हें बड़ा फायदा मिलता हैं.
रूपये चवन्नी को जोड़कर ये लोग बैंकों में धन धरते हैं. समाज की दया भावना का नाजायज लाभ उठाते हैं. वाकई में लोग जिसे दान समझकर पैसा देते है वह अनुचित कार्यों में खर्च होता हैं.
हमारे द्वारा दिए गये 10 रूपये न केवल वे बीडी शराब में उड़ा देते है बल्कि हाथ पैर सलामती वाला स्वस्थ इन्सान मेहनत कमाई को छोड़कर भीख मांगने के लिए प्रोत्साहित होता हैं.
दिन ब दिन हमारे देश में भिखारियों की संख्या में उत्तरोतर वृद्धि हो रही हैं. देवालयों, रेलवे स्टेशन, बस स्टाफ, सड़क किनारे इनके अड्डे बने होते हैं. ये लोग न केवल स्वयं के जीवन को दीन हीन दिखाते हैं बल्कि भारत की छवि को भी खराब करते हैं.
धर्म और दान पुण्य के नाम पर बढ़ती अकर्मण्यता की प्रवृत्ति पर लगाम कसने की आवश्यकता हैं. हरेक जागरूक इन्सान को किसी को भीख देना से पूर्व स्वयं से यह प्रश्न करना चाहिए कि आप उसे यह क्यों दे रहे हैं.
वाकई यदि भिखारी अपाहिज अँधा है तो दिल से दान कीजिए मगर कामचोर लोग जो लाचारी के जीवन में अपना निर्वाह कर कारोबार चला रहे हैं उनके कभी भिक्षा न दे.
हमारे धर्म में कहा गया हैं कि माँगना मरने के समान हैं. मगर जो इन्सान मांगने के बाद भी ना करे वो गया गुजरा हैं. इसलिए यदि कोई दीन दुखी, पीड़ित आपसे कुछ मांगता है तो मना मत करिये.
मगर एक स्वस्थ इन्सान मैल के चिथड़ो में मुंह में बीड़ी की गंध लिए अल्लाह या भगवान के नाम पर कुछ मांगे तो उन्हें अक्ल की दो लात जरुर दीजिए, यही धर्म हैं.