साइकिल दुर्घटना पर निबंध | Essay on Bicycle Accident in Hindi

साइकिल दुर्घटना पर निबंध Essay on Bicycle Accident in Hindi

साइकिल दुर्घटना पर निबंध Essay on Bicycle Accident in Hindi

जब जब हमारी सावधानी हटती हैं, हम दुर्घटना का शिकार हो जाते है. दुपहिया वाहनों पर सवारी कई बार दुर्घटना को दावत देने जैसा हो जाता हैं.

साइकिल और मोटरसाइकिल पर आए दिन कई दुर्घटनाएं होती हैं. आज के निबंध में मेरे साथ घटित साइकिल दुर्घटना के बारे में बता रहा हूँ.

प्रस्तावना: रविवार का दिन था, लगातार छ दिनों के बाद स्कूल के आवागमन के बाद कुछ रिलेक्स होने का दिन उदय होते ही मेरे दोस्त ने अपने घर पर खाने के लिए बुलाया.

मेरा मन भी हो चला आज दोस्तों के संग सन्डे को स्पेशल बनाएगे. मैं सुबह नहा धोकर अपनी प्यारी सी साइकिल पर उतावला सा सवार होकर दोस्त के घर की ओर चल पड़ा.

मैं अपने दोस्त रोहित को लेकर साहिल के घर जाने की योजना के बीच तेजी से पैंडल मारते हुए घर से निकल पड़ा. घर के पास ही होस्पीटल के पास से मोड़ लेकर जल्दी जल्दी में रोहित को लेने के विचार से तेज गति से साइकिल चला रहा था, काफी आम सा सडक पर ट्रेफिक था, मगर सड़क तेजी से ढलान ले रही थी.

दुर्घटना कैसे हुई ?

तेज गति से चलते हुए मुझे जरा भी आभास नहीं था कि मेरी साइकिल के ब्रेक ठीक से काम नहीं कर रहे हैं. मेरी साइकिल मानो हवा से बाते कर रही थी. तभी सामने से एक बड़ा ट्रक भी तेज गति से मेरी ओर आ रहा था.

मैंने साइकिल को धीमे करने के लिए ब्रेक लगाने का प्रयास किया, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. ब्रेक्स ने काम करना बंद कर दिया था और मेरी जान हलक में थी.

आनन फानन में कुछ भी नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाए, इतने में ट्रक से ओवरटेक करती हुई एक बाइक तेजी से मेरी तरफ बढ़ रही थी, मैं कुछ समझ पाता इससे पहले मेरी साइकिल का एक्सीडेंट उस मोटरसाइकिल से हो चूका था,

मैं सड़क के एक तरफ गिर गया. मेरी साईकिल सड़क पर ही उस ट्रक के तले दबकर चूर चूर हो चुकी थी. ईश्वर ने मुझे तो बचा लिया, मगर मेरा एक हाथ टूट गया और शरीर चोटों से दर्द दे रहा था.

आस पास खड़े कुछ सज्जनों ने एम्बुलेंस बुलाकर मुझे अस्पताल पहुंचाया और कुछ समय बाद मेरे परिवार वाले और दोस्तों को भी समाचार मिल गये थे, अतः वे भी अस्पताल चले आए.

सभी ने मुझे बहुत हिम्मत दी और जान बचाने के लिए ईश्वर को धन्यवाद कहा. कुछ दिन तक अस्पताल में रहने के बाद मुझे डिस्चार्ज कर दिया.

हालांकि कुछ दिनों में चोटों की रिकवरी हो गई परन्तु जीवन से मृत्यु तक का सफर करवाने वाली यह साइकिल दुर्घटना सदैव मुझे अविस्मरणीय रहेगी.

लोगों का आना जाना

मेरे जीवन में इस दुर्घटना ने बहुत सबक दिए. वैसे हम जब किसी राह से गुजरते है तो सभी लोग अपरिचित लगते हैं. परन्तु जब मेरा एक्सीडेंट हुआ तो मानों सारे मेरे दोस्त और परिचित हैं.

आस पास खड़े लोगो से लेकर उस मोटर साइकिल चालक ने भी मुझे अस्पताल पहुचाने और हिम्मत दिलाने में बहुत मदद की. घरवालों का एहसान तो मैं पूरी उम्र नहीं भूल सकता अस्पताल और बाद में घर पर महीने भर तक उन्होंने मेरा भरपूर ख्याल रखा और प्यार दिया.

कहते हैं न मुश्किल के समय ही दोस्त और दुश्मन की पहचान होती हैं. मेरे दोस्त भी रोजाना मेरे घर हालचाल पूछने आते मेरे दोनों प्रिय दोस्तों ने मुझे साहस दिया और जल्द ठीक करने के लिए हर सम्भव कोशिश की. आज भी उन पलों को याद करता हूँ तो स्वयं को ऋणी मानता हूँ. क्या पता मैं अपने साथियों के ऋण को कभी अदा कर पाउगा या नहीं भी.

उपसंहार:

इस साइकिल दुर्घटना की जिम्मेदारी मेरी स्वयं की थी. यदि मैं अपनी साइकिल के ब्रेक देखकर ही घर से धीरे धीरे निकलता तो शायद यह दुर्घटना मेरे साथ नहीं होती. मोटर साइकिल वाले सज्जन ने विनम्रता पूर्वक मुझसे और मेरे परिवार वालों से माफ़ी मांगी. वाकई उनका दिल बड़ा था इस दुर्घटना में उनका कोई कसूर नहीं था.

मैं एक बार पुनः ईश्वर को धन्यवाद करता हूँ उन्होंने मेरी गलती की सजा दी और जीवन बचाया. भविष्य मैं सदैव सावधानी के साथ सड़क पर वाहन चलाने का संकल्प लेता हूँ.

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