राजस्थान में अकाल पर निबंध | Essay on Famine in Rajasthan In Hindi

Essay on Famine in Rajasthan In Hindi प्रिय विद्यार्थियों आज हम राजस्थान में अकाल पर निबंध आपके साथ साझा कर रहे हैं.

कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के स्टूडेंट्स के लिए Essay on Famine in Rajasthan In Hindi का यह लेख आप 100, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों के छोटे बड़े निबंध के रूप में पढ़ सकते हैं.

राजस्थान में अकाल पर निबंध | Essay on Famine in Rajasthan In Hindi

राजस्थान में अकाल पर निबंध | Essay on Famine in Rajasthan In Hindi

प्रस्तावना- भारत एक ऐसा कृषि प्रधान देश है. जहाँ मानसून और मौसम की कृपा पर रहना पड़ता हैं. यहाँ पर कई ऐसे इलाके हैं. जहाँ वर्षा ऋतु में एक बूंद भी नहीं पड़ती. और कड़कड़ाती सर्दी के दिनों में खूब बरसात होती हैं. बिहार, असम, बंगाल आदि ऐसे प्रदेश हैं.

जहाँ अत्यधिक वर्षा होने से प्रतिवर्ष बाढ़ की समस्या बनी रहती है परन्तु राजस्थान का अधिकतर पश्चिमोत्तर इलाका मौसम पर वर्षा न होने से पानी के लिए तरसता रहता हैं. अवर्षण के कारण यहाँ अकाल या सूखा पड़ जाता हैं और अन्न चारा, घास आदि की कमी हो जाती हैं.

राजस्थान में अकाल की समस्या- राजस्थान का अधिकतर भू भाग शुष्क मरुस्थलीय हैं. इसके पश्चिमोत्तर भाग में मानसून की वर्षा प्रायः कम होती हैं.

और यहाँ पेयजल एवं सिंचाई सुविधाओं का नितांत अभाव हैं. अवर्षण के कारण यहाँ पर अकाल की काली छाया हर साल मंडराती रहती हैं और हजारों गाँव प्रतिवर्ष अकाल से ग्रस्त रहते हैं.

वर्तमान स्थिति

मरुभूमि में निरंतर जल स्तर में कमी आने वाले किसी बड़े संकट का संकेत दे रही हैं. प्रदेश के अधिकतर बांधों की स्थिति चिंताजनक दिखाई दे रही हैं. सदा उफान पर बहने वाली नदियों की शान्ति लोगों के सामने आने वाले भयावह संकट के संकेत दे रही हैं.

राजस्थान के बांधों में महज 34 प्रतिशत जलराशि बची हुई हैं, पिछले साल के मुकाबले इसमें 6 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई हैं. वहीँ राजस्थान में औसत वर्षा का स्तर भी साल दर साल गिर रहा हैं. ये सारी निशानियाँ हमें बूंद बूंद जल बचाने के लिए मानो कह रह रही है है.

१८६९ में राज्य में अब तक का सबसे भयानक अकाल पड़ा था, इसे ग्रेट राजपूताना अकाल भी कहा जाता हैं. राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब का जनजीवन इस अकाल में बुरी तरह प्रभावित हुआ था.

१८६९ के इस साल अगस्त माह में थोड़ी सी बारिश हुई थी. पूरा साल बारिश की आस में गुजर गया मगर जल की एक बूंद भी नहीं गिरी थी. लोगों के खाने और पशुओं के चारे की बेहद कमी हो गई.

कुँए तक सूख गये हजारों की संख्या में लोग इस साल भूख और प्यास के चलते मारे गये. ऐसी ही एक अनावृष्टि वर्ष 1899 की है जिस साल 1956 का विक्रमी संवत चल रहा था इस कारण यह छ्पनियाँ अकाल कहलाया.

इस साल भर एक जल की बूंद न गिरी भुखमरी के हालातों के बीच जीवन का गुजारा मुश्किल हो गया था. जो लोग संघर्ष के साथ जीना सीख गये वे बच गये थे तथा जो रोटी जल की इस लड़ाई को जारी नहीं रख पाए उन्हें इस आपदा से हारकर जीवन गंवाना पड़ा था.

अकाल के दुष्परिणाम- राजस्थान में निरंतर अकाल पड़ने से आने दुष्परिणाम देखने सुनने को आते हैं. अकालग्रस्त क्षेत्रों के लोगों अपने घरों का सारा सामान बेचकर या छोड़कर पलायन कर जाते हैं. जो लोग वहां रह जाते हैं, उन्हें कई बार भूखा ही सोना पड़ता हैं.

जो लोग काम धंधे की खोज में दूसरे शहरों में चले जाते हैं उन्हें वहां उचित काम नहीं मिलता हैं. और वे सदा के लिए आर्थिक संकट में घिरे रहते हैं. अकाल ग्रस्त क्षेत्रों में पेयजल के अभाव से लोग अपने मवेशियों को लेकर अन्यत्र चले जाते हैं और घुम्मकड जातियों की तरह इधर उधर भटकते रहते हैं.

अकाल के कारण राजस्थान सरकार को राहत कार्यों पर प्रतिवर्ष अत्यंत धन व्यय करना पड़ता हैं. इससे राज्य के विकास कार्यों की गति धीमी पड़ जाती हैं.

अकालग्रस्त क्षेत्रों में आर्थिक शोषण का चक्र भी चलता हैं. पेट की खातिर सामान्य जनता बड़ा से बड़ा अपराध भी सह लेते हैं. फिर भी अकाल से मुक्ति नहीं मिलती हैं.

अकाल रोकने के उपाय– राजस्थान में सरकारी स्तर पर अकालग्रस्त लोगों को राहत पहुचाने के लिए समय समय पर अनेक उपाय किये गये, परन्तु अकाल की विभीषिका का स्थायी समाधान नहीं हो पाया. सरकार समय समय पर अनेक जिलों को अकालग्रस्त घोषित कर सहायता कार्यक्रम चलाती रहती हैं.

इसके लिए राज्य सरकार समय समय पर केंद्र सरकार से सहायता लेकर तथा मनरेगा योजना के अंतर्गत अकाल राहत के उपाय करती रहती हैं. परन्तु इतना सब कुछ करने पर भी राजस्थान में अकाल की समस्या का कारगर समाधान नहीं हो पाता हैं.

उपसंहार- राजस्थान की जनता को निरंतर कई वर्षों से अकाल का सामना करना पड़ रहा हैं. हर बार राज्य सरकार केन्द्रीय सरकार से आर्थिक सहायता की याचना करती हैं.

अकालग्रस्त लोगों की सहायता के लिए दानी मानी लोगों और स्वयंसेवी संगठनों का सहयोग अपेक्षित हैं. इस तरह सभी के समन्वित प्रयासों से ही राजस्थान को अकाल की विभीषिका से बचाया जा सकता हैं.

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