राज्यपाल पर निबंध Essay On Governor In Hindi

राज्यपाल पर निबंध Essay On Governor In Hindi : राज्यपाल को राज्य का संवैधानिक प्रमुख माना गया हैं, भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य का एक गर्वनर होगा, जिसे राज्य का प्रथम नागरिक भी कहा जाता हैं.

केंद्र में जो पद राष्ट्रपति का होता हैं ठीक वहीँ पद राज्य में गवर्नर का हैं. Governor Essay, Essay On Governor में हम जानेगे कि राज्यपाल क्या होता हैं पद का अर्थ शक्तियाँ हिंदी में जानकारी आदि के बारें में यहाँ जानकारी दी गई हैं.

Essay On Governor In Hindi: गवर्नर एस्से इन हिंदी

राज्यपाल पर निबंध Essay On Governor In Hindi

Governors of states of India Governor of India in Hindi rajyapal of India in Hindi: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राजस्थान में राजप्रमुख का पद सृजित किया गया था.

राजस्थान के पहले व एकमात्र राजप्रमुख ३० मार्च 1949 को जयपुर के भूतपूर्व महाराजा सवाई मानसिंह बनाए गये, जिन्होंने 1 नवम्बर 1956 तक कार्य किया.

राजस्थान में 1 नवम्बर 1956 को राज्य के पुनर्गठन के बाद राजप्रमुख के स्थान पर राज्यपाल का पद सृजित हुआ, राज्य के प्रथम राज्यपाल सरदार गुरुमुख निहालसिंह बने.

राज्यपाल की भूमिका पर निबंध | Essay on Governor’s Role in Hindi

राज्य का संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल होता है. राज्य की कार्यपालिका व विधायी शक्तियाँ राज्यपाल में निहित होती हैं. वह राज्य का प्रथम नागरिक होता हैं. संविधान के अनुच्छेद 153 के अंतर्गत प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल की व्यवस्था की गई.

नियुक्ति व कार्यकाल

संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं.

अनुच्छेद 156 के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपने पद पर बना रह सकता हैं. राष्ट्रपति कभी भी राज्यपाल को पदमुक्त कर सकता हैं उसे समय से पूर्व वापस बुला सकता हैं. सामान्यतया राज्यपाल का कार्यकाल पांच वर्ष का होता हैं.

राज्यपाल की योग्यताएं

  • वह भारत का नागरिक हो एवं कम से कम 35 वर्ष का हो.
  • वह केंद्र या राज्य विधायिका का सदस्य न हो, यदि वह सदस्य है जो राज्यपाल का पद ग्रहण करते ही उसका पद रिक्त माना जाएगा.
  • वह सरकार में किसी लाभ के पद पर नियुक्त न हो.

शपथ: राज्यपाल को सम्बन्धित राज्य उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अथवा उसकी अनुपस्थिति की दशा में वरिष्ठतम न्यायधीश पद की शपथ दिलाता हैं.

त्यागपत्र: राज्यपाल राष्ट्रपति को सम्बोधित अपना लिखित व हस्ताक्षरित त्यागपत्र प्रेषित कर कभी भी पदमुक्त हो सकता हैं.

राज्यपाल की शक्तियाँ: अनुच्छेद 163 राज्यपाल की शक्तियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता हैं.

  • वे शक्तियाँ जिनका प्रयोग वह मुख्यमंत्री की सलाह से करता हैं.
  • वे शक्तियाँ जिनका प्रयोग वह स्वविवेक के आधार पर करता हैं.

राज्यपाल की कार्यपालिका शक्तियाँ: संविधान के अनुच्छेद 154 के अनुसार राज्य की समस्त कार्यकारी शक्तियाँ राज्यपाल में निहित हैं. वह राज्य सरकार की कार्यपालिका प्रधान हैं.

राज्य सरकार  का सारा कार्य राज्यपाल के  नाम पर चलाया जाता हैं. राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियाँ उन सभी विषयों पर लागू  होती हैं.

जिन पर राज्य के विधानमंडल को विधि कानून निर्माण का अधिकार प्राप्त हैं. राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियाँ प्रमुख रूप से निम्न हैं.

  • राज्यपाल मुख्यमंत्री व उसकी सलाह से मंत्रिपरिषद के सदस्यों की नियुक्ति करता है तथा उनके मध्य कार्य का विभाजन करता हैं. राज्यपाल सामान्यतः बहुमत दल के नेता को ही मुख्यमंत्री नियुक्त करता हैं. किसी भी दल को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त न होने पर राज्यपाल स्वविवेक से उस दल के नेता को मुख्यमंत्री पद के लिए आमंत्रित करता हैं जो विधानसभा में बहुमत सदस्यों का विश्वास प्राप्त कर लेगा.
  • राज्यपाल राज्य के महाधिवक्ता एवं लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता हैं. महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद पर बना रहता हैं.
  • राज्यपाल राज्य के सभी विश्वविद्यालयों का पदेन कुलाधिपति होता हैं तथा विश्वविद्यालयों के कुलपति को नियुक्त करता हैं.
  • राज्यपाल मुख्यमंत्री व मंत्रिपरिषद को पद व उसकी गोपनीयता की शपथ दिलाता हैं आवश्यकता पड़ने पर उन्हें पदच्युत करता है एवं उनके त्याग पत्र स्वीकार करता हैं.

राज्यपाल की अन्य कार्यकारी शक्तियाँ

  • राज्यपाल राज्यीय मामलों के प्रशासन व विधायन के प्रस्ताव से सम्बन्धित कोई भी सूचना मुख्यमंत्री से मांग सकता हैं.
  • वह राज्य के मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करता हैं.
  • विधानसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय के सदस्यों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हैं तो राज्यपाल उस समुदाय के एक सदस्य को मनोनीत करता हैं.
  • यदि राज्य में विधान परिषद भी विद्यमान है तो राज्यपाल को विधानपरिषद के कुल सदस्यों के 1/6 भाग हेतु ऐसे व्यक्ति को मनोनीत करने का अधिकार हैं जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आन्दोलन एवं समाजसेवा आदि विषयों के संबंध में व्यवहारिक ज्ञान व विशेष अनुभव हो.
  • राज्य की सिविल सेवाओं के सदस्य राज्यपाल के नाम पर नियुक्त किये जाते हैं और वे राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करते हैं.
  • राज्यपाल राज्य के लोकायुक्त की नियुक्ति करता हैं.
  • राज्यपाल राज्य में संवैधानिक संकट उपस्थित होने अथवा राजनितिक अस्थिरता या अन्य किसी कारण से सांविधानिक तंत्र की असफलता की स्थिति उत्पन्न होने पर राज्य की स्थिति के संबंध में राष्ट्रपति को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करता हैं. उसके प्रतिवेदन के आधार पर अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता हैं. इस स्थिति में राज्यपाल संघ सरकार के अभिकर्ता के रूप में कार्य करता हैं. इसे राज्यपाल की आपातकालीन शक्तियाँ भी कहा जा सकता हैं.

राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ

  • राज्यपाल व्यवस्थापिका का प्रमुख होता हैं.
  • उसे राज्य विधानसभा का  अधिवेशन बुलाने  उसका सत्रावसान  करने तथा  किसी भी समय  विधानसभा को  भंग करने का अधिकार प्राप्त हैं.
  • साधारणतया आम चुनाव के बाद नई विधानसभा बनने पर वह उद्घाटन भाषण देता हैं. राज्यपाल हर वर्ष सदन के पहले सत्र को संबोधित करता है अर्थात अभिभाषण देता हैं.
  • विधानमंडल द्वारा पारित कोई विधेयक तब तक कानून का रूप धारण  नहीं  करता,  जब तक राज्यपाल उस पर अपनी स्वीकृति नहीं देता. वह चाहे तो विधेयक पर हस्ताक्षर कर सकता हैं. या सदन के पास पुनर्विचार के लिए वापिस भेज सकता हैं. या वह विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचारार्थ प्रेषित कर सकता हैं. ऐसे विधेयक को यदि विधानसभा द्वारा संशोधन सहित या संशोधन रहित दुबारा राज्यपाल के पास भेजा जाता हैं तो राज्यपाल को हस्ताक्षर करना आवश्यक होता हैं.
  • वित्त विधेयक को राज्यपाल पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता.
  • राज्यपाल को राष्ट्रपति के समान ही अध्यादेश जारी कर कानून निर्माण का अधिकार हैं. राष्ट्रपति या राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह पर विधानसभा के सत्र में न होने पर किसी आपातकालीन निर्णय की आवश्यकता पूर्ण करने हेतु अनुच्छेद 213 (1) के तहत राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता हैं. यह अध्यादेश विधानमंडल द्वारा पारित कानून की भांति प्रभावी होता हैं. ये अध्यादेश विधानसभा के सत्र पर आने के छः सप्ताह तक जारी रहते हैं. इन 6 सप्ताहों के अंदर भी यदि विधानमंडल उन्हें स्वीकृत नहीं करता तो वे स्वतः समाप्त हो जाते हैं. राज्यपाल इन अध्यादेशों को पहले भी वापस ले सकता हैं.

राज्यपाल की वित्तीय शक्तियाँ

  • राज्यपाल वित्तीय वर्ष प्रारम्भ होने से पूर्व वार्षिक वित्तीय विवरण एवं बजट विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करवाता हैं.
  • वित्तीय विधेयक राज्यपाल की पूर्वानुमति के बाद ही राज्य विधान मंडल में प्रस्तुत किये जाते हैं.
  • पंचायतों व नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थितियों की समीक्षा के लिए वह प्रत्येक पांच वर्ष पर एक वित्त आयोग का गठन करता हैं.

राज्यपाल की न्यायिक शक्तियाँ

राज्यपाल राज्य सूची में दिए गये विषयों के सम्बन्ध में न्यायालय द्वारा दंडित किये गये व्यक्ति को क्षमा कर सकता हैं. तथा दंड को निलम्बित या स्थगित कर सकता हैं. परन्तु मृत्यु दंड के सम्बन्ध में यह शक्ति केवल राष्ट्रपति के पास हैं.

राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ

संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार राज्यपाल को कतिपय विवेकाधीन शक्ति दी गई हैं. इस बात का निर्धारण करना स्वयं राज्यपाल का क्षेत्राधिकार हैं. कि कौन सा कार्य उनके विवेकाधिकार के अंतर्गत आता हैं. राज्यपाल के इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती.

विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग  राज्यपाल  अपने विवेक या व्यक्तिगत निर्णय ले सकता हैं.  उसे  इस सम्बन्ध में मंत्रिपरिषद परामर्श लेने की आवश्यकता नहीं हैं राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ निम्न हैं.

संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियाँ : राज्य विधानमंडल द्वारा प्रस्तुत किसी विधेयक को अनु. 200 के अंतर्गत राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करने की शक्ति राज्यपाल के स्वविवेक के अधीन हैं. विधेयक निम्न स्थितियों में राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखा जा सकता हैं.

  • विधेयक असंवैधानिक प्रतीत हो
  • देश के व्यापक हित के विरुद्ध हो या राष्ट्रीय महत्व का हो
  • नीति निर्देशक तत्वों के परोक्ष हो
  • उच्च न्यायालय की स्थिति को खतरे में डालता हो
  • विधेयक अनु. 31 (3) के तहत सम्पति के अनिवार्य अधिग्रहण से सम्बन्धित हो

परिस्थितियाँजन्य विवेकाधीन शक्तियाँ-निम्न परिस्थतियो में राज्यपाल को स्वविवेक से निर्णय लेने का अवसर प्राप्त होता हैं.

  • राज्य विधानसभा में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो या सरकार को बहुमत का विश्वास न रहा हो.
  • विभिन्न दलों की संयुक्त सरकार का गठन हो और उसमें आपसी विचार वैभिन्यता के कारण शासन का संचालन सुचारू रूप से चलना असम्भव हो रहा हो.
  • राज्यपाल में सांविधानिक तंत्र विफल हो गया या उसकी आंशका हो.

राज्यपाल गवर्नर पर निबंध

प्रत्येक भारतीय राज्य में एक राज्यपाल की नियुक्ति का प्रावधान है. परन्तु एक ही व्यक्ति दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल घोषित किया जा सकता है. राज्यपाल राज्य का सवैधानिक मुखिया होता है.

राज्य की समस्त कार्यपालिका व विधायी शक्तियाँ राज्यपाल में निहित होती है. वह राज्य का प्रथम नागरिक होता है.

राज्य सरकार के सभी कार्य राज्यपाल के नाम पर किये जाते है. केंद्र सरकार में जो भूमिका राष्ट्रपति की होती है, राज्यों में वही पद व शक्तियाँ राज्यपाल के पद में निहित होती है.

राज्यपाल की नियुक्ति (appointment of governer)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद १५५ के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति केन्द्रीय मंत्रीपरिषद की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. इस हेतु राष्ट्रपति द्वारा सम्बन्धित राज्य के मुख्यमंत्री से सलाह लेने की परम्परा भी है.

राज्यपाल की योग्यताएं (Governor’s eligibility, qualifications)

  • पहली शर्त है कि वह भारत का नागरिक हो.
  • राज्यपाल बनने के लिए उसकी न्यूनतम आयु 35 वर्ष या इससे अधिक हो.
  • वह केंद्र या राज्य विधायिका का सदस्य न हो.
  • यदि वह किसी विधायिका का सदस्य है तो राज्यपाल की शपथ लेने के साथ ही उसका वह पद खाली समझा जाएगा.
  • वह राज्य अथवा केंद्र सरकार में किसी लाभ के पद पर न हो.

राज्यपाल की शपथ (Governor’s oath)

राज्यपाल को सम्बन्धित राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश अथवा उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायधीश शपथ दिलाता है.

राज्यपाल का कार्यकाल व त्यागपत्र (Governor’s tenure and resignation)

संविधान के अनुच्छेद 156 के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपना पद धारण करता है, लेकिन सामान्यतः कार्यकाल पांच वर्ष का ही होता है.

राज्यपाल राष्ट्रपति को संबोधित अपना लिखित व हस्ताक्षरित त्याग पत्र प्रेषित कर कभी भी पदमुक्त हो सकता है. राज्यपाल को वर्तमान में एक लाख दस हजार रूपये मासिक वेतन व अन्य भत्ते मिलते है.

राज्य की मंत्रिपरिषद व राज्यपाल (State council and governor)

प्रत्येक राज्य के राज्यपाल को उसके कार्यों में सहायता व परामर्श के लिए मंत्रिपरिषद होती है. जिसका अध्यक्ष राज्य का मुख्यमंत्री होता है. मुख्यमंत्री के रूप में उस व्यक्ति की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है. जिसे विधानसभा के सदस्यों का बहुमत प्राप्त होता है.

मंत्रीपरिषद के अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री के परामर्श पर की जाती है. मंत्रियों के तीन वर्ग होते है.

  1. केबिनेट मंत्री
  2. राज्य मंत्री
  3. उपमंत्री

मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है. अर्थात किसी एक मंत्री के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव व्यक्त किया जाए तो यह समूची मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास माना जाएगा. ऐसी स्थति में मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियों को अपने पद से त्याग पत्र देना पड़ सकता है.

मुख्यमंत्री व मंत्रीपरिषद ही राज्य की कार्यपालिका शक्ति के वास्तविक केंद्र होते है. मुख्यमंत्री कार्यपालिका का वास्तविक मुखिया होता है.

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