सिख धर्म पर निबंध Essay on Sikhism in Hindi

सिख धर्म पर निबंध Essay on Sikhism in Hindi: नमस्कार दोस्तों आपका हार्दिक स्वागत हैं| आज हम नवीनतम धर्म सिख धर्म के बारे में आपकों इस निबंध में जानकारी दे रहे हैं.

सिख धर्म के निबंध में हम इसके संस्थापक, शिक्षाओं, सिद्धांतों तथा प्रतीक पर बात करेंगे.

सिख धर्म पर निबंध Essay on Sikhism in Hindi

सिख धर्म पर निबंध Essay on Sikhism in Hindi

सिख धर्म तुलनात्मक रूप से एक नया धर्म हैं. इसके संस्थापक गुरु नानक देव हैं. हिन्दू धर्म के कर्मकांडी स्वरूप के बढ़ जाने तथा उसके आडम्बरों, जादू टोना, मंत्र, तंत्र आदि क्रियाओं के विरोध में 15 वीं शताब्दी में अनेक समाज सुधार आंदोलनों ने जन्म लिया.

उनमें से एक आंदोलन सिख आंदोलन भी था. जिसके संस्थापक गुरु नानक देव थे. नानक ने अंधविश्वास व कर्मकांड से पीड़ित मानव जाति को मुक्ति का जो नया रास्ता दिखाया उसे ही सिख धर्म के नाम से जाना जाता हैं.

सिख धर्म के इतिहास पर निबंध (Essay on history of sikhism In Hindi)

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक थे. इन्हें सिख धर्म का प्रथम गुरु माना जाता हैं. वे सम्पूर्ण भारत, लंका, मक्का मदीना, बगदाद तथा बर्मा तक घूम घूम कर चालीस वर्षों तक धर्मोपदेश देते रहे और अंतिम समय में पंजाब के करतारपुर नामक स्थान पर उनकी मृत्यु हुई.

गुरु नानक ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने प्रिय शिष्य लहना जिन्हें बाद में गुरु अंगद के नाम से जाना गया, को अपना उतराधि कारी बनाया. गुरु अंगद ने करतारपुर में लंगर भोजन की व्यवस्था की.

गुरु अंगद के पश्चात सिख धर्म के आठ गुरु हुए. इनमें से पांचवे गुरु अर्जुन देव ने अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर का निर्माण कराया जो कि सिखों का पवित्र तीर्थ स्थल हैं.

इसके साथ ही गुरु अर्जुन देव ने विभिन्न धार्मिक पदों को एकत्र कर उन्हें गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में संकलित किया. यह सिख धर्म का पवित्र प्रमाणिक और मौलिक धर्म ग्रंथ हैं.

इस पर सिख अगाध श्रद्धा व विश्वास करते हैं. सन 1606 में बादशाह जहाँगीर के उत्पीड़न का शिकार होने के कारण शहीद हो गये.

सिखों के अंतिम और दसवें गुरु थे गुरु गोविंद सिंह. अप्रैल 1699 में उन्होंने खालसा संघ की स्थापना की. खालसा का अर्थ हैं विशुद्ध. उन्होंने संतों सहित आम सिखों का सैन्यीकरण किया.

उन्होंने सर्वप्रथम अपने पांच अनुयायियों को खालसा पंथ की दीक्षा दी और इसमें उन्होंने उन्हें पांच चीजे धारण करने के आदेश दिए.

ये चीजे थे केश, कंघा, कच्छा और कृपाण. जाति एवं वंश भेद को समाप्त करते हुए उन्होंने उन सभी को सिंह का उपनाम दिया. उन्होंने उन्हें सच्चाई तथा अत्याचार के विरुद्ध लड़ने का उपदेश दिया.

धूम्रपान व नशीली वस्तुओं के सेवन का निषेध किया, उनके चार पुत्र थे जो धर्म रक्षार्थ युद्ध में शहीद हो गये तथा गुरु गोविंद सिंह की भी नांदेड हैदराबाद में एक धर्मांध व्यक्ति द्वारा 1708 में हत्या कर दी गई.

उन्होंने मृत्यु से पूर्व यह घोषणा की थी कि आगे से सिखों का कोई जीवित गुरु नहीं होगा. गुरु ग्रंथ साहिब ही सिखों का आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त करेगा और खालसा ही दस गुरुओं का जीवित प्रतिनिधि होगा.

सिख धर्म का भारतीय समाज पर प्रभाव महत्व (Sikhism’s Impact on Indian Society)

भारतीय समाज पर सिख धर्म के प्रभाव को निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत स्पष्ट किया गया हैं.

कर्मकांडवाद तथा अंधविश्वास में कमी– सिख धर्म के प्रभाव के कारण भारत में रूढ़ियों और अंधविश्वासों में कमी आई तथा कर्मकांडवाद घटा. हिन्दू धर्मावलम्बियों ने भी हिन्दू धर्म की इन विकृतियों को दूर करने का प्रयास किया.

एकेश्वरवाद की धारणा को बल– सिख धर्म ने भारत में एकेश्वरवाद की धारणा को बल प्रदान किया. जिससे भारत में अपने अपने देवताओं को लेकर जो संघर्ष चल रहे थे, उनमें कमी आई.

असमानता पर प्रहार– सिख धर्म ने हिन्दू धर्म में प्रचलित ऊँच नीच की असमानता पर समानता का प्रहार किया. जाति प्रथा की आलोचना की जिससे विचलित होकर हिन्दू धर्म में भी इस कुरीतियों को दूर करने के लिए सुधारवादी आंदोलन प्रारम्भ हुए और भारतीय में असमानता को दूर करने के गम्भीर प्रयास हुए.

व्यापकता– सिख धर्म एक व्यवहारवादी धर्म हैं. इसे आसानी से व्यवहार में अपनाया जा सकता हैं. इसलिए भारतीय समाज पर इसका व्यापक प्रभाव हुआ और इसे व्यापक रूप में लोगों ने अपनाया.

हिन्दू धर्म की इस्लाम से रक्षा– सिख धर्म हिन्दू धर्म का ही एक भाग हैं. हिन्दू धर्मावलम्बियों ने या सिख गुरुओं ने मुसलमानों से हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए सिख धर्म ग्रहण किया और उसकी रक्षा कर हिंदुत्व को अमरता प्रदान की.

अन्य प्रभाव– सिख धर्म ने भारत में अन्य धर्मावलम्बियों विशेषकर हिन्दू धर्मावलम्बियों को त्याग और बलिदान का पाठ पठाया और धर्म की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने की प्रेरणा दी.

सिख धर्म की शिक्षाएं उपदेश (Teachings of sikhism)

सिख धर्म की प्रमुख शिक्षाएं उपदेश इस प्रकार हैं.

सिख आंदोलन कर्मकांडों का विरोधी– सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक ने हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों और कर्मकांडों का विरोध किया, उन्ही के शब्दों में मेरा दीप तो ईश्वर का नाम हैं जिसमें लोगों के दुखों का तेल डाला हुआ हैं.

इस दीप ने मेरे मृत्युभय रुपी अन्धकार को दूर भगा दिया हैं. मरे हुए को पिंड या पतल क्या देना. वास्तविक कर्मकांड तो ईश्वर का सत्य नाम हैं जो सर्वज्ञ मेरा उद्धारक हैं.

जब गुरु नानक देव ने लोगों को प्रातःकाल पितरों को जल द्वारा तर्पण करते देखा तब गुरु नानक भी पश्चिम में जल उछालने लगे.

इससे लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ और इस सम्बन्ध में नानक देव से प्रश्न किया जिसका उत्तर गुरु गुरु नानक देव ने यह दिया कि यदि आपके द्वारा उछाला गया जल पितरों तक पहुँच सकता है तो मेरे द्वारा उछाला गया यह जल खेतों में पहुंच सकता हैं. आगे लोग गुरुनानक से इतने प्रभावित हुए कि उनके उपदेश सुनकर लोग आश्चर्यचकित रह गये.

एक ही ईश्वर में आस्था– सिख धर्म के अनुसार संसार का एक ही ईश्वर है और वहीँ सर्वत्र व्याप्त हैं. वह काशी में भी है तो वही काबा में भी हैं. वे मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करते थे.

गुरु नानक देव का यह दृढ विश्वास था कि प्रत्येक व्यक्ति अपने ही धर्म में रहता हुआ एक सर्वशक्तिमान व अलौकिक शक्ति में आस्था रखकर ब्रह्मा या सत्य की प्राप्ति कर सकता है.

समानता पर जोर– सिख धर्म में ऊँच नीच का कोई भेद नहीं हैं. जन्म से परमात्मा ने सभी को समान बनाया हैं. यदि कोई व्यक्ति समाज में छोटा या बड़ा बनता हैं तो वह अपने कर्मों से.

सिख गुरुओं ने तो स्त्री और पुरुष के अधिकारों तक में समानता की बात कहीं हैं. वे दोनों को एक ही श्रेणी का मानव समझते थे. इससे स्पष्ट है कि सिख धर्म में समानता पर विशेष जोर दिया गया हैं.

वैयक्तिक अहंकार को महत्व नहीं– सिख धर्म में वैयक्तिक अहंकार को कोई स्थान नहीं दिया गया हैं. गुरु नानक के ही शब्दों में जब तक मन को मारकर वश में न कर लिया जाए, तब तक कोई कार्य सिद्ध नहीं हो सकता.

इसमें अपने वश में कर लेना तभी सम्भव हैं जब इसे निर्गुण राम के गुणों की उलझन में डाल दिया जाए. तब कहीं जाकर मन उस एकाकार में ठहर सकेगा.

उनका मानना था कि हठ और निग्रह करने मात्र से शरीर नष्ट होता है और मन को केवल राम नाम की सहायता से ही वश में किया जा सकता हैं.

गुरु के प्रति गहन निष्ठा– सिख धर्म में ईश्वर की प्राप्ति के लिए सच्चे गुरु के प्रति गहरी आस्था प्रकट की गई हैं. गुरु नानक ने कहा हैं कि हमें अपने आध्यात्मिक जीवन के अंत तथा प्रारम्भ का अनुभव गुरु के मिलने से ही होता हैं. गुरु के मिलने से गर्व दूर हो जाता हैं और मुक्तावस्था प्राप्त होती हैं.

जिससे प्रभु की शरण में हमें स्थान मिल जाता हैं. उनके अनुसार संसार में चाहे जितने ही मित्र व सखा क्यों न हो, परन्तु गुरु के बिना परमेश्वर के अस्तित्व का बोध नहीं हो सकता.

गुरु के शब्द हमें मानव के भीतर ही हीरे, रत्नों को पहचानने की शक्ति प्रदान करते हैं. दस सिख गुरुओं के उपदेशों को ही साक्षात गुरु की तरह वे मानते हैं गुरु ग्रंथ साहिब उनका सच्चा गुरु हैं. इस प्रकार स्पष्ट है कि सिख धर्म में ईश्वर की प्राप्ति के लिए सच्चे गुरु का होना आवश्यक माना गया हैं.

खालसा संघ गुरुओं का जीवित प्रतिनिधि– गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की. इसकी दीक्षा में पांच चीजों को अपनाने पर महत्व दिया. केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण.

  • केश– इसलिए आवश्यक समझे गये ताकि एक सिख अपने साथ को आसानी से पहचान सके.
  • कंघा– बढ़े हुए बालों को व्यवस्थित रूप देने के लिए आवश्यक था.
  • कृपाण– विरोधी समूह से रक्षा के लिए आवश्यक समझा गया.
  • कछे का प्रयोग नग्नता से बचने के लिए आवश्यक समझा गया.
  • कड़े का प्रयोग मुसलमान सैनिकों द्वारा अपवित्र की गई वस्तुओं को शुद्ध करने के लिए किया गया.

खालसा पंथ में उन्होंने धूम्रपान और नशीली वस्तुओं के सेवन का निषेध किया.

कर्म को महत्व– गुरु नानक एक अच्छे सिख को जीवन में कभी भिक्षा या दूसरों की कमाई पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. उसे अपनी जीविका ईमानदारी तथा परिश्रम से निभानी चाहिए.

बिना तीर्थ किये एक साधारण गृहस्थ कुछ समय ईश्वर का स्मरण कर अच्छा सिख बन सकता हैं. लेकिन उसका मानना था कि परिश्रम और सच्चाई का रास्ता ही सच्चा रास्ता हैं.

वह इस सिद्धांत में विश्वास करता है कि जैसा कर्म करेगा उसको वैसा ही फल मिलेगा. अच्छे कर्म ही उसे सत्य की ओर ले जाते हैं और बुरे कर्म उसे नरक का रास्ता दिखाते हैं.

गुरुग्रंथ साहिब की महत्ता- सिख धर्म में सभी को समानता का अधिकार हैं. सिखों में पुरोताही की कोई व्यवस्था नहीं हैं. सिखों के मन्दिर गुरुद्वारों के नाम से जाना जाता हैं यह सिख धर्म का पूजा स्थल हैं.

सामान्यतः प्रत्येक गुरूद्वारे में एक ग्रंथी की नियुक्ति की जाती हैं. ग्रंथी का कार्य होता हैं. गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ, गुरूद्वारे में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों को सम्पन्न करवाना और गुरूद्वारे की देख रेख करना.

सिख गुरु ग्रंथ साहिब का अत्यधिक आदर करते हैं. जब कभी आवश्यकता पड़ने पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना पड़े तो वे गुरु ग्रंथ साहिब को सिर पर रखकर ले जाते हैं.

गुरुद्वारों का महत्व– सिखों के धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में गुरूद्वारे की अत्यधिक भूमिका हैं. गुरूद्वारे में लंगर के समय सभी सिख बिना किसी भेदभाव के साथ साथ बैठकर खाना खाते हैं.

निष्कर्ष– उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हैं कि सिख धर्म लगभग 500 वर्ष पुराना है और इसका उदय भारत की भूमि पर ही हुआ हैं. जैसा कि जैन और बौद्ध धर्म का उदय हुआ,

सिख धर्म भी हिन्दू धर्म की असमानतापरक तथा अंधविश्वासों और कर्मकांडी कुरीतियों के विरोध में पैदा हुआ तथा हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए खालसा पंथ का विकास हुआ. यह धर्म निर्गुणवादी विचारधारा को लेकर चला है और सगुणवादी विचारधारा का विरोधी हैं.

सिख धर्म के दस गुरु और उनका इतिहास

गुरु संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है शिक्षक, मार्गदर्शक अथवा विशेषज्ञ, गुरु ग्रन्थ साहिब के शब्दकोश में गुरु शब्द को दो वर्णों से मिलकर बताया है. गु जिसका अर्थ है अन्धकार तथा रु जिसका अर्थ है प्रकाश यानी गुरु वह है जो अन्धकार से उजाले की ओर लाता हैं.

1469 में गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी, वर्ष 1708 तक इनके नौ उत्तराधिकारी गुरु हुए, अतः इस तरह सिख धर्म में कुल दस गुरु हुए, अंतिम गुरु गोविंद सिंह ने गुरु ग्रन्थ साहिब को अंतिम जीवित गुरु मानकर गुरु परम्परा का समापन किया था.

गुरु का नामगुरु बनने की तिथि
गुरु नानक देव20 अगस्त 1507
गुरु अंगद देव7 सितम्बर 1539
गुरु अमर दास26 मार्च 1552
गुरु राम दास1 सितम्बर 1574
गुरु अर्जुन देव1 सितम्बर 1581
गुरु हरगोबिन्द25 मई 1606
गुरु हर राय3 मार्च 1644
गुरु हर किशन6 अक्टूबर 1661
गुरु तेग बहादुर20 मार्च 1665
गुरु गोबिंद सिंह7 अक्टूबर 1708

सिख धर्म को अंतिम रूप

भारतीय पंजाब से पन्द्रहवीं सदी में सिख धर्म की शुरुआत हुई. दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह जी ने 30 मार्च 1699 को इसे अंतिम रूप दिया था. विभिन्न जातियों के सिख जातियों के लोगों को गुरु दीक्षा करवाकर खालसा पंथ की नीव रखी. गुरु ने पांच प्यारों को अमृत देकर खालसे में सम्मिलित किया.

इस तरह 17 वीं सदी आते आते मुजलिमों की रक्षा के लिए सिख धर्म का उद्भव हुआ. भारत में मुगलों के इस्लामीकरण और गैर मुसलमान लोगों पर हो रहे अत्याचारों का सिख गुरुओं ने प्रतिकार किया.

गुरुओं ने मुगलों के हाथों अपना बलिदान देकर भारत में एक नयें मत को जन्म दिया, पुनः 1947 में भारत पाकिस्तान विभाजन के समय सिखों और हिन्दुओं का पश्चिमी पंजाब में नरसंहार हुआ,

आज पंजाब जो कि सिखों की जन्मभूमि एवं कर्मभूमि रही है उसका बड़ा भाग पाकिस्तान में है जहाँ सिखों को मारकर भगा दिया अथवा उनका धर्म परिवर्तित कर दिया.

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