सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 2024 | Essay On Subhash Chandra Bose In Hindi

नमस्कार आज का निबंध, सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 2024 | Essay On Subhash Chandra Bose In Hindi पर दिया गया हैं, हम नेताजी सुभाष बाबू के जीवन के बारे में इस निबंध में जानेगे.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाले नेताजी के बारे में स्टूडेंट्स के लिए आसान निबंध यहाँ दिया गया हैं.

सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 2024 | Essay On Subhash Chandra Bose In Hindi

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सुभाषचंद्र बोस पर छोटा निबंध 2024 | Short Essay On Subhash Chandra Bose In Hindi

महान स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिन्द फौज के सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म २३ जनवरी १८९७ को उड़ीसा के कटक के एक बंगाली परिवार में जन्मे थे.

इनके पिता जानकीनाथ बोस जी एक वकील थे इनकी माताजी का नाम प्रभावती देवी था. इंग्लैंड से ICA की परीक्षा उतीर्ण करने वाले सुभाष बाबू ने अपने प्रारम्भिक शिक्षा कटक तथा बाद में उच्च शिक्षा कलकत्ता से प्राप्त की.

सिविल सर्विस की परीक्षा पास करने के बाद नेताजी ने ब्रिटिश सरकार के उच्च पदों पर काम करने की बजाय भारत की आजादी के लिए घर से निकल गये. उन्होंने अपने इस अभियान के लिए कांग्रेस की सदस्यता ली.

गरमपन्थ की विचारधारा वाले नेताजी गांधीजी से व्यक्तिगत रूप से बड़ा प्रभावित थे मगर आजादी आंदोलन के लिए अहिंसक आंदोलन और याचना की गांधी नीति का विरोध करने वालों में सुभाष बोस अग्रणी थे.

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारतीय राष्ट्रीय संग्राम के लिए सबसे अधिक प्रेरणा के बिंदु रहे. उन्होंने आजाद हिन्द फौज और भारतीयों को संबोधित करते हुए दो नारे दिए- तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा और दिल्ली चलो.

इन्ही भाव को जगाकर उन्होंने सम्पूर्ण भारत के लोगों को एकजुट किया. एक बार नेताजी जब इंग्लैंड में कक्षा में बैठे थे अंग्रेजी के प्राध्यापक भारत के बारे में गलत बता रहे थे तो उन्होंने इसका विरोध किया,

जिसके बदले उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया जिसके बाद इन्होने स्कोटिश चर्च कॉलेज में आशुतोष मुखर्जी के सहायता से प्रवेश लिया.

देशबंधु चितरंजनदास के साथ इन्होंने कई बार जेल की यातनाएं भी भोगी. जेल में कई बार उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ा मगर वे अपने लक्ष्य से नहीं भटके. दूसरे विश्व युद्ध के समय नेताजी भारत छोड़कर जर्मनी चले गये वहां से सिंगापूर गये तथा उन्होंने वही से आजाद हिन्द फौज का गठन किया.

तकरीबन एक लाख सैनिकों के साथ नेताजी ने दक्षिण एशिया के देशों से यात्रा के बाद पूर्वी भारत में अपने कदम रखे. जल्द ही नेताजी अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह नागालैण्ड और मणिपुर में भारतीय ध्वज फहराने में सफल रहे.

भारत की आजादी में सभी नेताओं और संगठनों से बढकर नेताजी और उनकी फौज का सबसे महत्वपूर्ण योगदान था. 18 अगस्त, 1945 को उनकी मृत्यु एक विमान दुर्घटना में उनकी म्रत्यु बताई जाती हैं. नेताजी की मृत्यु को लेकर बार बार सरकार पर दवाब भी डाला गया.

125वीं जयंती

23 जनवरी 2022 को देश अपने बोस की 125 जयंती मनाने जा रहा हैं इस मौके पर भारत सरकार ने इंडिया गेट स्थित कैनोपी में नेताजी की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया गया.

1968 तक इस स्थल पर जार्ज पंचम का स्टेच्यु हुआ करता था, भारतीय स्वतंत्रता और स्वाभिमान के प्रतीक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भव्य प्रतिमा बनने तक यहाँ होलोग्राम स्टेच्यू शान से खड़ा रहेगा.

सुभाष चंद्र बोस पर निबंध

सुभाषचंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के उन थोड़े से नायकों में से थे जिन्होंने राष्ट्र की स्वतंत्रता का बीड़ा देश और विदेश दोनों में अपने कंधों पर उठाया.

बोस एक महान यथार्थवादी राजनीतिक नेता थे. वे पक्के देशभक्त, कुशल प्रशासक, दृढ़ निश्चयी एवं प्रभावशाली वक्ता थे.

सुभाषचंद्र बोस जिन्हें प्रायः नेताजी कहा जाता है, का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक नामक स्थान पर एक प्रतिष्ठित मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता श्री जानकीदास थे. कहा जाता है कि उनकी मृत्यु 8 अगस्त 1945 को फरमोसा में हवाई दुर्घटना में हुई.

उन्होंने 1919 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1920 में वह भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा में ऊतीर्ण हुए तथा योग्य पद पर कार्य करने लगे.

सुभाषचंद्र बोस का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की भूमिका तथा सक्रिय सहभागिता का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता हैं.

पद त्याग और असहयोग आंदोलन में शामिल होना– यदपि सुभाषचंद्र बोस ics परीक्षा में सफल होकर कार्य करने लगे थे, परन्तु उनमें देशभक्ति और राष्ट्रीय सेवा की भावनाएं इतना उबाल ले रही थीं कि उन्होंने 1921 ई में पद त्याग कर दिया.

राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भागीदारी– बोस ने राजनीति में अपना जीवन एक असहयोगी के रूप में शुरू किया. देशबंधु चितरंजन दास के प्रभाव में आकर वह शीघ्र ही उनके सर्वाधिक विश्वस्त प्रतिनिधि दाहिना हाथ और स्वराजिस्ट बन गये. 1923 में उन्होंने स्वराज्य दल के गठन और कार्यक्रम का समर्थन किया. कुछ समय नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल रहे.

अक्टूबर 1924 में बंगाल सरकार ने उनकी राजनीतिक गतिविधियों के लिए बंदी बनाकर बर्मा के नगर मांडले में तीन वर्ष के लिए निर्वासित कर दिया. उन्होंने 1930-34 में होने वाले सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और कभी जेल के बाहर तथा कभी जेल के अंदर होते थे.”

कांग्रेस का त्याग– सुभाष ने गांधी इरविन समझौते का कठोर विरोध किया. करांची अधिवेशन के अवसर पर उन्होंने महात्मा गांधी की नीति की तीव्र आलोचना की. गांधीजी के गोलमेज सम्मेलन से खाली हाथ लौटने पर पुनः सत्याग्रह प्रारम्भ होने पर सुभाष बाबू गिरफ्तार कर लिए गये.

बोस फरवरी 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के अध्यक्ष तथा पुनः जनवरी 1938 में त्रिपुरा कांग्रेस के अधिवेशन में महात्मा गांधी के स्पष्ट विरोध करने पर भी अध्यक्ष चुन लिए गये.

गांधी और दक्षिणपंथी सुभाषचंद्र बोस को अध्यक्ष पद से हटाने के लिए योजना बनाने लगे. परन्तु बोस ने स्वयं ही अध्यक्ष पद से अप्रैल 1939 में त्याग पत्र दे दिया तथा मई 1939 में कांग्रेस के अंदर ही फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की.

1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया. इस अवसर पर सुभाषचंद्र बोस ने विदेशियों की सहायता से स्वतंत्रता प्राप्त करने का निश्चय किया. परन्तु ब्रिटिश सरकार ने 2 जुलाई 1940 को सुभाष को गिरफ्तार कर लिया और उनके घर में नजरबंद कर दिया.

26 जनवरी 1941 को सुभाष अपने निवास स्थान से भाग निकले और मास्को होते हुए बर्लिन पहुच गये. सितम्बर 1942 में आजाद हिन्द फौज का गठन किया गया.

आजाद हिन्द फौज का संगठन– जापान से 2 जुलाई 1943 को सुभाष सिंगापुर पहुंचे और रास बिहारी बोस द्वारा बनाई गयी भारतीय स्वतंत्रता लीग के अध्यक्ष बने.

उन्होंने आजाद हिन्द फौज का संगठन किया. सुभाष बोस ने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाने और आजाद हिन्द फौज को लेकर भारत जाने की घोषणा की. आजाद हिंद फौज के पुननिर्माण की घोषणा सारे विश्व में रेडियो से की गयी. घोषणा इस प्रकार थी.

प्रसंग

एक बार सुभाष और उनके मित्र इस बात पर चर्चा कर रहे थें कि आखिर सफलता प्राप्त करने के लिए किन बातों पर ध्यान दिया जाए ? ऐसी कोनसी महत्वपूर्ण बाते है जिनके माध्यम से हम अपने देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं.

एक मित्र बोला- देश के लिए अच्छी योजनाएं हमारे दिमाग में आए, इसकें लिए हमें महान लेखकों की पुस्तकों को पढ़ना चाहिए. दूसरा मित्र बोला- हमें आध्यात्म एवं योग पर बल देना चाहिए.

योग और आध्यात्म से व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से बलशाली बन सकता हैं. सभी ने हाँ में हाँ मिलाई, सुभाष सभी मित्रों की बात ध्यान से सुन रहे थे.

तीसरा मित्र बोला- सुभाष बाबू तुम हम सब में प्रतिभाशाली हो और आज चुपचाप बैठे हो. देखों, सभी अपने सुंदर विचार एक दुसरे को बता रहे हैं. आख़िर तुम भी अपनी राय दो न कि कैसे हम देश की आजादी के लिए योगदान दे ?

सुभाष बोले- तुम सब अपने अपने विचार एक दुसरे को बता रहे थे तो गंभीरता से मैं तुम्हारी बातों को ही सुन रहा था. अब तुम मुझे ईमानदारी से बताओं कि तुममें से कितने लोग आज से योग व आध्यात्म पर ध्यान देगे?

यह सुनकर सभी चुप हो गये. उनकों देखकर सुभाष बोले ”और कितने लोग ऐसे है, जो आज से ही प्रसिद्ध लेखकों की पुस्तकों को पढ़ना शुरू करेंगे?

अब तो सबकी बोलती बंद हो गई. सुभाष बोले, मै यह सब इसलिए नही कह रहा हु कि तुम्हे लगे कि मैं सही और तुम गलत हो, बल्कि मैं यह सब इसलिए कह रहा हूँ क्योकि हमें देश की स्वतंत्रता के लिए केवल विचार भर नही करना हैं, बल्कि कार्य भी करना हैं.

इसके लिए बड़े बड़े विचारकों, आध्यात्मिक ग्रंथों या लेखकों को पढ़ने की आवश्यकता नही है, वरन अपने जीवन की छोटी छोटी बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता हैं. अक्सर हम छोटी छोटी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं. हम उन्हें महत्वहीन या मामूली समझते हैं.

किन्तु कई बार छोटी छोटी बातें बड़े आविष्कारों, कार्यों व कामयाबी का ऐसा नया इतिहास रचती है, जिनकी हम कल्पना भी नही कर सकते हैं. परमाणु अत्यंत छोटा होता है,

लेकिन जब यही परमाणु बम बन जाता है तो पूरी स्रष्टि को नष्ट करने की ताकत रखता हैं. उसी तरह नन्ही चींटी का अस्तित्व नजर नही आता हैं, लेकिन ये चींटी विशालकाय हाथी की मौत का कारण बन जाती हैं.

अनेक आविष्कार भी छोटी छोटी बातो पर ध्यान देकर ही निकले हैं. सुभाष की छोटी छोटी बातों के गुण सुनकर तो सभी मित्र आवाक् रह गये. वे एक साथ बोले ”सुभाष, तभी तो तुम हमारे नेता हो और सर्वाधिक प्रतिभाशाली हो. हम जहाँ तक सोच भी नही पाते है वहां तक तुम कार्य कर आते हो.

इस पर सुभाष बोले- इसका अर्थ यह बिलकुल नही हैं कि तुम पुस्तकों योग और आध्यात्म का महत्व ही छोड़ दो. यदि हम यह भी कर पाते है ,

तो बहुत अच्छी बात है किन्तु इनके साथ साथ हमें जीवन की छोटी छोटी बातों पर ध्यान केन्द्रित कर आगे बढ़ना हैं. सभी मित्र बोले हाँ सुभाष, हम आज से ही यह कोशिश करेगे कि छोटी छोटी बातों का महत्व समझे.

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