तक्षशिला विश्वविद्यालय पर निबंध – Essay On Taxila University In Hindi: आज हम प्राचीन भारत के महान शिक्षा केंद्र तक्षशिला विश्वविद्यालय (takshashila, takshila university history) के विषय में जानेगे.
आज के समय में जो प्रतिष्ठा केम्ब्रिज ओहोयो ऑक्स्फ़र्ड जैसे युनिवर्सिटी की पहचान हैं ठीक वैसी ही तक्षशिला हुआ करती थी.
Essay On Taxila University In Hindi
Here Is short Information details history about Essay On Taxila University In Hindi language blow.
Taxila University In Hindi
तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना– प्राचीनकाल में तक्षशिला ज्ञान और विद्या के क्षेत्र में बहुत अधिक प्रसिद्ध था. शिक्षा केंद्र के रूप में इसकी प्रसिद्धि थी. इसका स्थापना भरत ने की थीं और इसका प्रशासन तक्ष को सौंपा गया था.
महाभारत से ज्ञात होता हैं कि जनमेजय ने अपना नागयज्ञ तक्षशिला विश्वविद्यालय में ही सम्पन्न किया था. इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि उत्तर वैदिक काल में ही तक्षशिला एक प्रसिद्ध नगर के रूप में विकसित हो चुका था. जातकों से ज्ञात होता है कि देश के विभिन्न स्थानों से छात्र वहां जाकर आचार्यों से शिक्षा प्राप्त करते थे.
शिक्षा की व्यवस्था– तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षा प्रारम्भ करने की आयु 16 वर्ष की थी. विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने 16 वर्ष की आयु में तक्षशिला आया करते थे. यहाँ राजा तथा अन्य धनी लोग अपने पुत्रों को शिक्षा के लिए भेजना उपयोगी समझते थे.
शिक्षा प्राप्त करने तथा शिक्षा देने में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता था. यहाँ ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य सभी समान रूप से शिक्षा प्राप्त करते थे. धनी तथा निर्धन दोनों प्रकार के छात्र यहाँ शिक्षा प्राप्त कर सकते थे. यहाँ शिक्षा निशुल्क नहीं थी.
तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने का शुल्क एक हजार कार्षापण था. धनी छात्र 1000 कार्षापण गुरु को शुल्क के रूप में देते थे तथा गुरु के घर में पुत्र की भांति आराम के साथ रहते थे. शुल्क अदा करके शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी आचारिय भाग्दायक कहलाते थे.
निर्धन छात्र भी यहाँ शिक्षा प्राप्त कर सकते थे. ऐसे छात्र दिन में श्रम किया करते थे तथा रात्रि में पढ़ते थे. ऐसे विद्यार्थी धम्मन्तेवासिक कहलाते थे.
जो विद्यार्थी न तो शुल्क देते थे और न दिन में श्रम करते थे, वे भी पढ़ाई कर सकते थे. उन्हें यह प्रतिज्ञा करनी पड़ती थी कि पढ़ाई समाप्त होने पर वे आवश्यक शुल्क चुका देंगे.
पाठ्यक्रम– तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेदत्रयी, 18 शिल्प, धनुर्विद्या, हस्त विद्या, मंत्र विद्या, चिकित्साशास्त्र, व्याकरण, दर्शन आदि विभिन्न विषय पढ़ाए जाते थे. 18 शिल्पों में युद्ध कला, व्याकरण, दर्शन, ज्योतिष, भविष्य कथन, मुनीमी, व्यापार, कृषि, रथ चालन, इन्द्र जाल, संगीत, नृत्य, चित्रकला आदि विषय सम्मिलित थे.
विद्यार्थी अपने आचार्य के निरीक्षण में रहते थे. आचार्य अपने विद्यार्थियों के जीवन को सुधारने पर अत्यधिक जोर देते थे. अनुशासन पर विशेष ध्यान दिया जाता था. तथा अनुशासन भंग करने वाले विद्यार्थी को दंड दिया जाता था.
देश के कौने कौने से आनेवाले विद्यार्थी– देश के कोने कोने से विद्यार्थी यहाँ आकर शिक्षा ग्रहण करते थे. इनमें वाराणसी, पाटलीपुत्र, राजगृह, मिथिला, उज्जयिनी आदि नगरों के भी विद्यार्थी होते थे जो यहाँ की ज्ञान गरिमा से परिचित होने के लिए आते थे.
आयुर्वेद के महान विद्वान जीवक ने तक्षशिला में ही रहकर अध्ययन किया था. अनेक सम्राटों तथा प्रसिद्ध विद्वानों ने भी तक्षशिला विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी.
कौशल नरेश प्रसेनजित, चन्द्रगुप्त मौर्य, महान अर्थशास्त्री कौटिल्य, वैयाकरण पाणिनि तथा पतंजलि यहाँ से शिक्षा ग्रहण करके अपने अपने क्षेत्र में विख्यात हुए थे.
महाभारत से ज्ञात होता है कि उपमन्यु, आरुषि तथा वेद ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में ही शिक्षा ग्रहण की थी. एक जातक से पता चलता हैं कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में एक आचार्य के पास 101 राजकुमार शिक्षा प्राप्त कर रहे थे.
एक अन्य जातक में लिखा हैं कि भारत भर से ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्णों के लड़के तक्षशिला में पढ़ने जाया करते थे. योग्य और मेधावी छात्रों को राजकीय सहायता प्राप्त करने के लिए तक्षशिला विश्वविद्यालय भेजा जाता था.
विश्व प्रसिद्ध आचार्यों द्वारा शिक्षा देने का कार्य– तक्षशिला विश्वविद्यालय में अनेक विश्व प्रसिद्ध आचार्य शिक्षा देने का कार्य करते थे.
यहाँ के एक आचार्य के निर्देशन में पांच पांच सौ छात्र शिक्षा प्राप्त करते थे. सम्भवतः तक्षशिला में अनेक कॉलेज थे, जिनमें प्रत्येक में 500 के लगभग छात्र शिक्षा प्राप्त करते थे.
और इन कॉलेजों के प्रधान अध्यापक को आचार्य कहा जाता था. जातक युग में यहाँ नैष्ठिक ब्रह्मचारियों की संख्या बहुत अधिक थी. जो वेद और शिल्प में पारंगत होकर एकांत में रहते थे. तथा जिनके साथ उनके शिष्य भी रहा करते थे.
यहाँ पाठ्यक्रम निर्धारित होता था. छात्र अपनी इच्छानुसार विषय पढ़ते थे. तक्षशिला विश्वविद्यालय का महत्व चौथी सदी ई तक ही था. क्योंकि पाँचवी शताब्दी में जब फाहियान भारत आया था तो उस समय शिक्षा केंद्र के रूप में तक्षशिला का दीपक बुझ चुका था.
तक्षशिला विश्वविद्यालय का इतिहास
तक्षशिला को विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय माना जाता हैं जहाँ से चाणक्य और पाणिनि जैसे विद्वानों से शिक्षा प्राप्त की थी गांधार नरेश के संरक्षण में इसका संचालन कई वर्षों तक चलता रहा. इसकी स्थापना 6 वीं से सातवीं सफी ईसा पूर्व मानी जाती हैं. 400 ई. पूर्व में यहां के एक विद्वान कात्यायन ने वार्तिक की रचना की थी.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार भरत के पुत्र तक्ष ने इसकी स्थापना की थी आज के ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के क्षेत्र में उनका राज्य था. 1863 ई. में जनरल कनिंघम ने यहाँ के अवशेषों की गहन जांच पड़ताल की तथा इस प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष निकालने की शुरुआत की बाद में 1912 से 1929 तक सर जॉन मार्शल ने भी इस प्रोजेक्ट पर काम किया.
माना जाता हैं कि 6 वीं शताब्दी के अंत में अरब और तुर्क आक्रान्ताओं ने इस यूनिवसिर्टी का विध्वंस कर दिया. अफगानिस्तान के कांधार गांधार क्षेत्र तक जब तक बौद्ध धर्म था.
तब तक यह धरोहर बची रही मगर अरबों के आक्रमण के साथ साथ ज्यो ज्यो बौद्ध धर्म की सीमाएं कम होती गई वहां खड़ी इस तरह की धरोहरे भी जमींदोज होने लगी जिसमें एक तक्षशिला विश्वविद्यालय भी था.