थार के मरुस्थल पर निबंध व जानकारी | Essay On Thar Desert in Hindi

Essay On Thar Desert in Hindi थार के मरुस्थल पर निबंध व जानकारी: भारत के पश्चिमी भाग में गुजरात से सटे मरु भूभाग को थार का मरुस्थल (thar desert) और महान भारतीय मरुस्थल (great indian desert) के नाम से जाना जाता हैं.

राजस्थान का ६० प्रतिशत भूभाग इसके अंतर्गत आता हैंदुनियां के कुल क्षेत्रफल का तीसरा भाग मरुस्थल ही है जहाँ बस रेत और रेत के टीले ही पाए जाते हैं.

थार के मरुस्थल का अधिकतर भाग ८५ प्रतिशत भारत में तथा शेष १५  भाग पाकिस्तान में हैं जो थार पारकर के नाम से जाना जाता हैं. information about thar desert में हम थार के मरुस्थल पर छोटा निबंध बता रहे हैं.

थार के मरुस्थल पर निबंध व जानकारी | Essay On Thar Desert in Hindi

थार के मरुस्थल पर निबंध व जानकारी Essay On Thar Desert in Hindi

मरुस्थल पर निबंध 300 शब्द

धरती के तकरीबन एक तिहाई भाग में मरुस्थल पाया जाता है जिसे अन्य नाम के तहत रेगिस्तान के नाम से भी जानते हैं। हमारे भारत देश में सबसे अधिक मरुस्थल वाला राज्य राजस्थान है, जहां पर अधिकतर रेतीली मिट्टी वाली जमीन पाई जाती है। 

इसके अलावा पंजाब और गुजरात राज्य में भी मरुस्थल पाए जाते हैं। मरुस्थल जिस जगह पर भी होता है वहां पर बहुत ही कम मात्रा में बारिश होती है और सामान्य तौर पर वहां का मौसम गर्म ही होता है और रात के समय में मरुस्थल का मौसम अत्यंत ठंडा हो जाता है।

मरुस्थल की यात्रा करने के लिए लोग ऊंट की सवारी लेते हैं क्योंकि ऊंट ही एक ऐसा जानवर है जो मरुस्थल की प्रकृति के हिसाब से ढला हुआ होता है। ऊंट पर ही सामान लाद कर के एक स्थान से दूसरे स्थान पर व्यक्ति जाते हैं।

मरुस्थल में उपजाऊ मिट्टी ना के बराबर होती है। इसलिए वहां पर बड़े-बड़े पेड़ नहीं पाए जाते हैं। कुछ छोटी-मोटी झाड़ियां ही मरुस्थल में पैदा होने की ताकत रखती है। मरुस्थल में रेत के टापू बनते और बिगड़ते रहते हैं। हमारे भारत देश में जो मरुस्थल पाया जाता है, उसे थार का मरुस्थल कहते हैं।

दुनिया में सबसे ज्यादा बड़ा मरुस्थल अफ्रीका देश में पाया जाता है, जहां का वातावरण बहुत ही गर्म है। मरुस्थल में अक्सर कम ही लोग रहते हैं और जो लोग मरुस्थल में अपना जीवन व्यतीत करते हैं वह काफी संघर्षपूर्ण जीवन गुजारते हैं क्योंकि सामान्य तौर पर मरुस्थल के आस-पास में कोई भी उद्योग नहीं होते हैं।

ऐसे में उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मरुस्थल एक ऐसी जगह होती है जहां पर बरसात कम ही होती है। इसलिए यहां पर पानी के लिए भी काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है.

और रेतीली जगह होने की वजह से यहां पर फसलों की पैदावार भी नहीं हो पाती है तथा पेड़ पौधे ना होने की वजह से यहां पर दूर-दूर तक कोई भी पशु पक्षी भी नहीं दिखाई देते हैं।

500 शब्द निबंध : थार मरुस्थल

राजस्थान में अरावली पर्वत के पश्चिम में थार का मरुस्थल हैं. इसका अधिकांश हिस्सा राजस्थान में स्थित हैं. पश्चिम में इसका विस्तार पाकिस्तान तक हैं. थार मरुस्थल की जलवायु बहुत शुष्क हैं. दिन में तापमान बहुत बढ़ जाता हैं और रात होते होते तापमान कम हो जाता हैं.

मरुस्थल के क्षेत्र में वर्षा बहुत कम तथा वर्षा ऋतु में मानसूनी पवनों द्वारा होती हैं. भूमिगत जल अधिक गहराई पर मिलता हैं जो अधिकांशत खारा होता हैं. वर्षा की कमी के कारण यहाँ वनस्पति अधिकतर छोटे, कंटीले और झाड़ियो के रूप में पाई जाती हैं.

जलाभाव के कारण यहाँ आजीविका के ज्यादा स्रोत नहीं हैं. आजीविका अधिकांशत पशुपालन, कृषि, हस्तशिल्प और मजदूरी हैं. मकानों में बारिश के जल संग्रहण की व्यवस्था की जाती हैं. प्रमुख फसलें ज्वार, बाजरा मोंठ और मुंग हैं. यहाँ भेड़, बकरियाँ, गाय और ऊंट आदि पशु पाए जाते हैं.

यहाँ सूती, ऊनी वस्त्र निर्माण, भेड़ बकरियों व ऊँटों के बालों से कालीन, कम्बल आदि बनाए जाते हैं. इस प्रदेश में जन घनत्व बहुत ही कम हैं. बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, बालोतरा, सिरोही, जोधपुर, पाली, श्रीगंगानगर, चुरू आदि इस क्षेत्र के प्रमुख कस्बे हैं.

थार की मरुस्थलीय वनस्पति– मरुस्थलीय वनस्पति अधिकतर छोटे कंटीले वृक्ष तथा झाड़ियो के रूप में पाई जाती हैं. इनकी पत्तियां मोटी और छोटी होती हैं तथा जड़े लम्बी और वृक्षों के तनों पर कांटे होते हैं. बबूल, खेजड़ी, रोहिड़ा आदि यहाँ के प्रमुख वृक्ष हैं.

थार के मरुस्थल की प्रमुख समस्याएं

  • थार के मरुस्थल की जलवायु बहुत शुष्क हैं और मुख्यतः ग्रीष्म ऋतु में रेत की आंधियां चलती हैं.
  • दिन में तापमान बहुत बढ़ जाता हैं और रात में कम हो जाता हैं.
  • यहाँ वर्षा बहुत कम, अनिश्चित तथा अनियमित होती हैं जिससे कभी कभी भयंकर बाढ़े आ जाती हैं तथा कभी कभी वर्षा तक अकाल भी पड़ता हैं.
  • भूमिगत जल अधिक गहराई पर मिलता हैं, जो अधिकांशत खारा होता हैं.
  • जलाभाव के कारण खेती ज्यादा संभव नहीं हैं.

थार के मरुस्थल की मानवीय व आर्थिक क्रियाएं

थार के मरुस्थलीय क्षेत्र की मानवीय व आर्थिक क्रियाएं इस प्रकार हैं.

  • यहाँ बाड़मेर जिले में खनिज तेल का उत्पादन किया जा रहा हैं तथा यहाँ प्राकृतिक गैस, लिग्नाइट, जिप्सम, नमक, संगमरमर, ईमारती पत्थरों का खनन किया जाता हैं.
  • कृषि केवल कुछ ही महीनों में होती हैं जो पूरी तरह से बारिश पर निर्भर हैं यहाँ ज्वार, बाजरा, मोठ, मूंग प्रमुख फसलें हैं.
  • यहाँ आजीवका का मुख्य साधन पशुपालन हैं यहाँ भेड़ बकरियाँ, गाय तथा ऊंट आदि पशु पाले जाते हैं. जिनसे दूध, दही, मांस, ऊन आदि प्राप्त किया जाता हैं.

थार के मरुस्थलीय काम धंधे

थार के मरुस्थलीय क्षेत्र में सूती, ऊनी वस्त्र निर्माण, भेड़ बकरियों तथा ऊँटों के बालों से कालीन, कम्बल आदि बनाए जाते हैं.

यहाँ हथकरघा, हाथीदांत से वस्तुओं का निर्माण, संगमरमर की मूर्तियाँ आदि बनाई जाती हैं. यहाँ रंगाई, छपाई आदि से सम्बन्धित कई छोटे उद्योग धंधे हैं.

1000 शब्द रेगिस्तान पर निबंध Essay on desert in hindi

बहुत ही कम वर्षा वाले व शुष्क प्रदेश मरुस्थल के नाम से जाने जाते हैं. विश्व के अधिकाँश मरुस्थल 20 डिग्री से 30 डिग्री अंक्षाशों के मध्य पाए जाते हैं.

यहाँ वाष्पीकरण की अधिकता होती हैं. विश्व के अधिकांश मरुस्थल प्रधानतया महाद्वीपों के पश्चिमी और मध्य भागों में पाए जाते हैं.

मरुस्थल के विभिन्न वर्ग (Different sections of the desert)

  • उष्ण कटिबन्धीय मरुस्थल– ये मरुस्थल सन्मार्गी पवनों के कटिबंध में महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में फैले हुए हैं. ये प्रदेश स्थल की ओर से आने वाली शुष्क पवनों के प्रभाव क्षेत्र में रहते हैं. यूएसए का कैलीफोर्निया मरुस्थल, अफ्रीका का सहारा मरुस्थल, अरब पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका में कालाहारी तथा दक्षिण अमेरिका में अटाकामा गर्म मरुस्थलों के उदाहरण हैं.
  • मध्य अक्षांशीय मरुस्थल– विशाल महाद्वीपों के आंतरिक प्रदेशों में भी वर्षा कम होती हैं. क्योंकि ये प्रदेश महासागरों की ओर से आने वाली आद्र प्रभावों से दूर हैं. कुछ प्रदेश जैसे तिब्बत और ईरान ऊँचे पर्वतों से घिरी वृष्टि छाया द्रोणीया हैं. उत्तरी अमेरिका का ग्रेट बेसिन, मंगोलिया का गोबी, तुर्किस्तान आदि के मरुस्थल इसी प्रकार के हैं.
  • ठंडे मरुस्थल– ये ध्रुवीय प्रदेशों में फैले हैं ये प्रदेश उच्च वायुदाब के केंद्र हैं यहाँ से ठंडी तथा शुष्क पवनें सभी दिशाओं में चलती हैं. अंटार्कटिका तथा ग्रीनलैंड ठंडे मरुस्थलों (Cold desert) के उदाहरण हैं.

विश्व के अधिकांश मरुस्थल महाद्वीप के पश्चिम में होने के कारण

ये स्थल खंड व्यापारिक हवाओं के प्रभाव क्षेत्र में फैले हैं. व्यापारिक हवाएँ पूर्व से पश्चिम को चलती हैं जो समुद्र से होकर नमी ग्रहण कर महाद्वीपों के पूर्वी भागों पर ही वर्षा कर पाती हैं. तथा पश्चिम भागों तक जाते जाते पुर्णतः शुष्क हो जाती हैं अतः ये स्थल खंड शुष्क ही रह जाते हैं.

ये मरुस्थल उप कटिबंधीय उच्च दवाब के क्षेत्रों में फैले हैं. जहाँ से हवाएँ कम दवाब के केद्रों की ओर आकृष्ट होती है तथा प्रति व्यापारिक हवाएँ निचे उतरती हैं. अतः ऐसे क्षेत्रों में वाष्प भरी हवाएँ कम आती हैं इसलिए ये शुष्क रहते हैं.

अधिकांश मरुस्थलों के चारों ओर या पाश्र्वों में पर्वत श्रंखलाएं हवाओं के अवरोध स्वरूप खड़ी हैं. जो इन शुष्क क्षेत्रों को और भी वृष्टिछाया प्रदेशों में ला देती हैं. जैसे अटाकामा मरुस्थल एंडीज से तथा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया का मरुस्थल ग्रेट डिवाइडिंग रेंज से तथा राजस्थान का थार का मरुस्थल अरावली से प्रभावित हैं.

निम्न अक्षांशों में महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर ठंडी जलधाराओं के कारण मरुस्थल पाए जाते हैं. क्योंकि ठंडी जलधाराओं के ऊपर बहने वाली पवनें शीत होती हैं. जिस कारण उनमें आद्रता धारण करने की क्षमता कम होती हैं.

और यह पवनें निकट वर्ती स्थल खंडों पर वर्षा करने में असमर्थ होती हैं. ठंडी धाराएँ इन तटों पर शुष्कता को बढ़ावा देती हैं. अफ्रिका के कालाहारी मरुस्थल और दक्षिणी अमेरिका के अटाकामा मरुस्थल का अस्तित्व अंशतः ठंडी बेंगुला तथा पेरुवियन धाराओं के कारण ही हैं.

मरुस्थल क्षेत्रों की विशेषताएं (Characteristics of desert areas In Hindi)

  1. आकाश साधारणतया मेघरहित होते हैं तथा हवा विशेष रूप से शुष्क होती हैं.
  2. ग्रीष्म ऋतु में तापक्रम 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाते हैं और शीतकालीन तापक्रम हिमांक बिंदु से भी नीचे चले जाते हैं अतः तापान्तर काफी रहता हैं दिन व रात्री के तापमान में काफी अंतर पाए जाते हैं.
  3. बालूका स्तूप मरुस्थलों की प्रमुख विशेषता है, जो तेज हवाओं के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होते रहते हैं.
  4. वनस्पति विरल होती हैं जिनके तने व पत्तियाँ कांटेदार व मांसल होती हैं.
  5. मरुस्थल में आँधी, तूफ़ान, लू आदि खूब चलते हैं.
  6. भू पटल प्रमुखतः सपाट पाया जाता हैं. दूर दूर तक रेत के विशाल मैदान नजर आते हैं पानी का अभाव पाया जाता हैं.
  7. जनसंख्या एवं घनत्व विरल एवं पशुधन आधारित होता हैं.
  8. अधिकांश मरुस्थल अस्थायी और गतिमान होते हैं.

मरुस्थलीकरण desertification in hindi

मरुस्थलीकरण एक क्रमबद्ध परिघटना हैं, जिसमें मानव द्वारा भूमि उपयोग पर दवाब के कारण परिवर्तन होने से पारितंत्र का अवनयन होता हैं.

यह एक ऐसा प्रक्रम हैं जिससे उर्वर भूमि शुष्क, अनुर्वर मरुभूमि में बदल जाती हैं. मैंन के अनुसार मरुस्थली करण की परिभाषा व अर्थ – मरुस्थलीकरण जलवायवीय, म्रदीय तथा जैविक कारकों की अंतर्क्रिया से उत्पन्न होता हैं.

मरुस्थलीकरण एक प्राकृतिक परिघटना है जो जलवायवीय परिवर्तनों या दोषपूर्ण भूमि उपयोग के कारण होती हैं वस्तुतः जल वायवीय कारकों की अपेक्षा अनुचित भूमि उपयोग इसके लिए अधिक उत्तरदायी हैं.

वनस्पति आवरण को हटाने से किसी क्षेत्र की स्थानीय जलवायु में परिवर्तन हो जाते हैं. वन विनाश, अति चारण आदि क्रियाओं से मृदा अपरदन के साथ साथ वर्षा, ताप मान, पवन वेग आदि में भी परिवर्तन होते हैं. ये परिवर्तन किसी क्षेत्र में मरुस्थलीकरण के रूप में परिलक्षित होते हैं.

विश्व का लगभग 35 प्रतिशत क्षेत्र मरुस्थलों एवं अर्द्ध मरुस्थलों के अंतर्गत हैं. निरंतर वर्षा की कमी एवं प्रभावी जल व्यवस्था में अभाव में मरुस्थलों का प्रसार निरंतर बढ़ता जा रहा हैं जिससे मरुस्थलों की निकटवर्ती उपजाऊ भूमि भी इसकी चपेट में आ रही हैं.

अर्द्ध मरुस्थलीय क्षेत्रों में जहाँ वर्षा आधारित कृषि होती हैं सिंचाई की सुविधाओं के अभाव में मरुस्थलों के प्रसार का अधिक संकट होता हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार अविवेकपूर्ण मानवीय क्रियाओं ने 1.30 करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में मरुस्थलीय भूमि पैदा कर दी हैं. वैज्ञानिकों के अनुमान में 20 वीं शताब्दी के अंत तक सहारा का विस्तार 20 प्रतिशत बढ़ गया हैं.

इसी प्रकार थार मरुस्थल का विस्तार 20 प्रतिशत बढ़ गया हैं. इसी प्रकार थार मरुस्थल भी प्रतिवर्ष 13 हजार एकड़ भूमि निगल रहा हैं. दजला और फरात नदियों का भाग जो कभी प्राचीन सभ्यता का पालना था अब नमकीन मरुस्थल में परिवर्तित होता जा रहा हैं.

भारत में मरुस्थलीकरण का विस्तार (Expanding desertification in India in Hindi)

भारत में शुष्क प्रदेश का विस्तार मुख्यतः राजस्थान, गुजरात तथा आंध्रप्रदेश व कर्नाटक में हैं. अतिचारण के कारण भूमि पर अधिक दवाब तथा संसाधनों के अतिदोहन के कारण पर्यावरण का अवनयन हो रहा हैं.

मरुस्थलीय क्षेत्र की वृद्धि मरुस्थलीय क्षेत्रों में सिंचित भूमि की लवणता में वृद्धि, रिसाव तथा सेम की समस्या के रूप में प्रकट हो रही हैं.

प्राकृतिक संसाधनों के कुप्रबन्धन के कारण पोषक चक्रों के भंग होने की प्रक्रिया तथा मिटटी का सूक्ष्म जलवायवीय संतुलन भंग होने की प्रक्रिया तीव्र हो गई हैं. जिसका दुष्परिणाम मरुस्थलीकरण के रूप में उभर रहा हैं. भारत में कुमायूं की हरी भरी पहाड़ियाँ अवनयन के मार्ग पर हैं.

वहां पहाड़ी झरने तथा स्रोत सूख रहे हैं, नदियों व जलधाराओं में जल प्रवाह की मात्रा भी कम हो गई हैं. हिमालय में वन विनाश जनसंख्या की विस्फोटक वृद्धि से जुड़ा हैं.

राजस्व बढ़ाने वाली तथा लुगदी व माचिस उद्योग के कच्चे माल के लिए वन विनाश के कारण मृदा का अपरदन बढ़ गया हैं इन सब कारणों से इस क्षेत्र में वर्षा कम हो गई हैं जिससे मानव तथा पशु स्वास्थ्य पर भी असर पड़े हैं.

जल की कमी से अनेक रोगों में वृद्धि हो गई हैं सूखे की समस्या तो अस्थायी है किन्तु मरुस्थलीकरण स्थायी होता हैं.

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