भारत की संसद पर निबंध | Essay on the Parliament in Hindi

भारत की संसद पर निबंध Essay on the Parliament in Hindi: किसी भी लोकतांत्रिक शासन में सरकार के तीन अंग होते हैं.

व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका. व्यवस्थापिका में प्रत्येक देश में इसे पार्लियामेंट, संयुक्त राज्य अमेरिका में कांग्रेस जापान में डायट, जर्मनी में बुन्देस्टांग, अफगानिस्तान में सूरा, ईराक में मुजलिस कहते हैं.

भारत की संसद पर निबंध | Essay on the Parliament in Hindi

भारत की संसद पर निबंध | Essay on the Parliament in Hindi

नमस्कार दोस्तों यहाँ हम इंडियन पार्लियामेंट (भारतीय संसद) पर 4 शोर्ट लॉन्ग निबंध एस्से बता रहे है, उम्मीद करते हैं. ये आपको बहुत पसंद आएगा.

इंडियन पार्लियामेंट एस्से 250 शब्द

हमारे देश में आम सहमति से निर्णय की लम्बी परम्परा रही हैं, जहाँ एक गाँव की पंचायत बैठकर निर्णय किया करते थे. आधुनिक स्वरूप में यह संसद कहलाती हैं. जहाँ कानून निर्माण का कार्य किया जाता हैं, लोकतंत्र में संसद को मन्दिर की संज्ञा दी जाती हैं.

जिस तरह राजव्यवस्था में सारे कामकाज राज दरबार में सम्पन्न हुआ करते थे अब ये काम संसद करती हैं. भारत की संसद के दो सदन लोक सभा, राज्य सभा तथा राष्ट्रपति से बनती हैं. वर्तमान में नई पार्लियामेंट बिल्डिंग का उद्घाटन हुआ हैं, अंग्रेजी दौर में बनी ईमारत उपयोग में नहीं रहेगी.

साल 2005 में भारतीय संसद भवन पर आतंकी हमला भी हुआ था, संसद को भारतीय भूभाग के लिए कानून बनाने और उन्हें विधि सम्मत रद्द करने की शक्तियाँ प्राप्त हैं. संसद के तीनों सत्रों की कार्यवाही का लाइव प्रसारण लोकसभा टीवी राज्यसभा टीवी द्वारा किया जाता हैं.

भारतीय संसद पर निबंध 900 शब्द

भारत की व्यवस्थापिका को संसद (parliament of india) कहा जाता हैं. जिसका गठन संविधान के अनुच्छेद 79 में किया गया हैं. जिसके अनुसार भारतीय संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दोनों सदनों से मिलकर बनेगी, जिनके नाम राज्यसभा और लोकसभा होंगे.

इस प्रकार राष्ट्रपति भारतीय संघ की कार्यापालिका का संवैधानिक प्रमुख होने के साथ ही संघ की व्यवस्थापिका अर्थात संसद का भी अभिन्न अंग होता हैं. यह व्यवस्था नितांत संसदीय शासन प्रणाली के अनुरूप हैं.

अनेक लोगों का यह मत है कि भारत में लोकतंत्र एवं संसद के रूप में प्रतिनिधि संस्थाओं की स्थापना ब्रिटिश शासन की देन हैं. यदपि यह सत्य नहीं हैं. प्रतिनिधि निकाय तथा लोकतांत्रिक स्वशासी संस्थाएं भारत में प्राचीन काल से ही विद्यमान रही हैं.

ऋग्वेद में सभा और समिति नामक दो संस्थाओं का उल्लेख आता हैं. वहीँ से आधुनिक संसद की शुरुआत मानी जा सकती हैं. समिति आधुनिक लोकसभा के सद्रश्य मानी जा सकती हैं. जबकि सभा विशिष्ट लोगों का संगठन हुआ करती थी. जिसका स्वरूप आजकल की राज्यसभा से मिलता जुलता हैं.

ऐसा ज्ञात होता है कि आधुनिक संसदीय लोकतंत्र के कुछ महत्वपूर्ण तत्व ऐसे स्वतंत्र चर्चा एवं बहुमत द्वारा निर्णय तब भी विद्यमान थे.

ऐतरेय ब्राह्मण, पाणिनि की अष्टाध्यायी, कौटिल्य की अर्थशास्त्र, अशोक के शिलालेखों एवं समकालीन इतिहासकारों में इस तथ्य के पर्याप्त ऐतिहासिक प्रमाण मिलते है कि उस काल में अनेक गणराज्य भी थे. जहाँ आधुनिकतम स्वरूप के विधि एवं संवैधानिक सिद्धांत प्रचलित थे.

इसके अतिरिक्त राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्थाओं में भी कुछ लोकतंत्रात्मक संस्थाएं एवं परम्पराएं सदैव बनी रही हैं. स्वाभाविक है पुरातन परम्पराओं को नई परिस्थितियों एवं नयें वातावरण के अनुसार बदलकर उनका अनुसरण किया गया हैं.

पृष्ठभूमि (Background)

ब्रिटिश शासन के दौरान विभिन्न अधिनियमों द्वारा भारत में संसदीय परम्पराओं को सिमित एवं मुख्यतः अनुत्तरदायी रूप से लागू करने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई.

1833 के चार्टर अधिनियम से 1935 के भारत शासन अधिनियम तक में संसदीय तत्वों के विकास को देखा जा सकता हैं. 1892 के अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की विधान परिषद में अधिकतम सदस्यों की संख्या सोलह निर्धारित कर उनमें से चार सदस्यों को अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित करने की प्रक्रिया को शामिल किया गया.

1909 ई के अधिनियम द्वारा अधिकतम सदस्य संख्या को 60 कर दिया गया तथा उनके अधिकारों में भी वृद्धि की गई, लेकिन दूसरी ओर इनके निर्वाचन के साम्प्रदायिक प्रणाली को प्रारम्भ कर भारतीय एकता को खंडित करने के प्रयास भी किये गये.

भारत सरकार अधिनियम 1919 द्वारा केन्द्रीय स्तर पर एक सदनीय विधान परिषद के स्थान पर द्विसदनीय विधान मंडल बनाया गया. जिसमें एक था राज्य परिषद और दूसरा था विधान सभा और प्रत्येक सदन में अधिकाँश सदस्य निर्वाचित होते थे.

इसी तरह 1935 के अधिनियम द्वारा भी इन दोनों सदनों को बनाए रखा गया हालांकि इनकी सदस्य संख्या और अधिकारों में पर्याप्त बढ़ोतरी की गई फिर भी उत्तरदायी शासन का रूप अब भी खंडित ही था. मतदाताओं की संख्या सम्पति के आधार पर बहुत ही सिमित थी. केवल पन्द्रह प्रतिशत लोगों को ही वोट देने का अधिकार था.

मतदाता साम्प्रदायिक और व्यवसायिक आधार पर ही विभिन्न वर्गों में बंटे हुए थे. स्वभाविक रूप से भारतीय संविधान द्वारा गठित होने वाली संसद में इन सभी अलोकतांत्रिक तत्वों को हटाया गया तथा इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप बनाया गया.

संसद का गठन (Composition oF Parliament)

जैसा पूर्व में उल्लेखित हैं संसद का गठन संविधान के अनुच्छेद 79 के द्वारा हुआ हैं. जिसके अनुसार राष्ट्रपति के अलावा संसद के दो सदन होंगे राज्यसभा और लोकसभा.

राष्ट्रपति के व्यवस्थापिका को अंग होने के नाते क्या क्या कार्य होंगे, उसका उल्लेख राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों के अंतर्गत किया जा चुका हैं. अतः अब हम संसद की प्रक्रिया एवं दोनों सदनों के गठन एवं कार्यों व शक्तियों का अध्ययन करेगे.

संसद सदस्य होने की योग्यताएं एवं निर्योग्यताएं (Qualifications & Disqualifications Of Parliament Member)

संविधान ने संसद का सदस्य होने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं निर्धारित की हैं. उसे भारत का नागरिक होना चाहिए, लम्बे समय से देश में यह मांग की जाती रही है कि देश के सर्वोच्च पदों पर जन्मजात भारतीय ही आसीन होना चाहिए.

कई देशों में ऐसा प्रावधान भी हैं यदपि भारतीय संविधान में ऐसा कोई उल्लेख अभी तक नहीं हैं. , उसे राज्यसभा के लिए न्यूनतम 30 वर्ष की आयु का एवं लोकसभा के स्थान के लिए 25 वर्ष की आयु का होना चाहिए, उसके पास अन्य ऐसी योग्यताएं होनी चाहिए जो संसद निर्धारित करे.

इसके अतिरिक्त कोई विकृत चित्त व्यक्ति अथवा अनुन्मोचित दिवालिया व्यक्ति भारत की संसद का सदस्य नहीं हो सकता. कोई व्यक्ति एक समय में संसद के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो सकता.

कोई भी व्यक्ति अधिकतम दो स्थानों से लोकसभा चुनाव लड़ सकता हैं. यदि वह दोनों स्थानों से निर्वाचित होता है तब वह एक माह के भीतर उसे एक स्थान रिक्त करना होता हैं.

संविधान की दसवीं अनुसूची के अनुसार किसी संसद सदस्य को दल बदल का दोषी पाये जाने पर सदस्यता से बर्खास्त किया जा सकता हैं. इसके अलावा सदस्य के चुनावी अपराध अथवा चुनाव में भ्रष्ट आचरण का दोष सिद्ध होने पर सदस्यता से बर्खास्त किया जा सकता हैं.

संसद सदस्यों की योग्यताओं और निर्योग्यताओं के सम्बन्ध में यह भी उल्लेखनीय है कि किसी शैक्षणिक योग्यता को आवश्यक नहीं समझा गया हैं जबकि राजस्थान सहित अनेक राज्यों में स्थानीय स्वशासन में चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता को आवश्यक माना गया हैं.

शपथ (Oath)

संसद के सभी सदस्य जिन्हें हम बोलचाल में सांसद अथवा एम पी कहकर संबोधित करते हैं. वे अपना स्थान ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा इस कार्य के लिए नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ लेता हैं और उस पर अपने हस्ताक्षर करता हैं.

संसद के सत्र (Sessions Of Parliament)

संविधान के अनुच्छेद 85 के अनुसार राष्ट्रपति समय समय पर संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर जो वह ठीक समझे अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किन्तु संसद के एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छः माह का अंतर नहीं होगा.

वास्तव में भारतीय संसद के प्रतिवर्ष तीन सत्र अथवा अधिवेशन होते हैं. बजट सत्र, मानसून सत्र तथा शीतकालीन सत्र. संसद की कार्यवाही के दौरान सदनों को स्थगित करने का अधिकार पीठासीन अधिकारी (लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष तथा राज्यसभा में सभापति) का होता है. लेकिन सत्रावसान करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त होता हैं.

गणपूर्ति / कोरम (Quorum)

गणपूर्ति अथवा कोरम सदस्यों की वह न्यूनतम संख्या है जिसकी उपस्थिति से सदनों की कार्यवाही को वैधानिकता प्राप्त होती हैं. यह प्रत्येक सदन में पीठासीन अधिकारी सहित सदन की कुल संख्या का दसवां भाग होता हैं.

इसका अर्थ यह हुआ कि लोकसभा की कार्यवाही का संचालन करने हेतु सदन में कम से कम 55 सदस्य एवं राज्यसभा की कार्यवाही करने हेतु सदन में कम से कम 25 सदस्य अवश्य होने चाहिए.

संसद में भाषा (Language Of Parliament)

संविधान के अनुसार संसद के कार्य संचालन की भाषा हिंदी व अंग्रेजी हैं. किन्तु पीठासीन अधिकारी किसी ऐसी सदस्य को जो हिंदी या अंग्रेजी में अपनी बात को अभिव्यक्त नहीं कर सकता हो मातृभाषा में बोलने की अनुमति दे सकता हैं.

मंत्रियों एवं महान्यायवादी के संसद में अधिकार (Powers Of Ministers And Advocate General)

संविधान के अनुच्छेद 88 में उल्लेखित हैं कि प्रत्येक मंत्री एवं भारत के महान्यायवादी को यह अधिकार होगा कि वह संसद के किसी भी सदन में बोलने एवं कार्यवाही में भाग लेने का अधिकारी होगा.

महान्यायवादी को संसद में मतदान का अधिकार नहीं होगा तथा मंत्री मतदान केवल उसी सदन में कर सकेगा जिस सदन का वह सदस्य हैं.

1400 शब्द भारतीय संसद निबंध Indian Parliament In Hindi

संविधान के अनुसार भारत एक संघ राज्य है. जिनमें विधायी कामकाज संसद (parliament) द्वारा सम्पन्न किये जाएगे. भारत में संसद ही सर्वोच्च विधायिका है. तथा देश की लोकतान्त्रिक प्रणाली में इसकी केन्द्रीय भूमिका है.

भारतीय संसद के दो सदन है. लोकसभा व राज्यसभा. संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार भारत की एक संसद होगी, जिसका गठन राष्ट्रपति व दोनों सदनों से मिलकर होगा. राज्यों की परिषद् को राज्यसभा यानि council of states और जनता का सदन (house of people) लोकसभा होगा.

राज्यसभा (council of states in hindi)

राज्यसभा देश के विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाला सदन है. इसमें दो तरह के सदस्य होते है. एक निर्वाचित व दूसरे मनोनीत. संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार राज्यसभा के अधिकतम सदस्यों की संख्या 250 हो सकती है, वर्तमान में भारत की राज्यसभा में 245 सदस्य है.

जिनमे से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते है. ये ऐसे व्यक्ति होते है जिन्हें कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा और सहकारिता के क्षेत्र में विशेष ज्ञान व अनुभव प्राप्त हो.

शेष सदस्य जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित किये जाते है. इन सदस्यों का निर्वाचन विभिन्न राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों की विधान सभा सदस्यों द्वारा किया जाता है. वर्तमान में 233 सदस्य विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों (दिल्ली एवं पांडिचेरी) के विधानमंडलों द्वारा निर्वाचित होते है.

राज्यसभा के सदस्यों के लिए सीटों का आवंटन भारतीय संविधान की चौथी अनुसूची में दिया गया है. वर्तमान राजसभा में सबसे अधिक सदस्य उत्तरप्रदेश से 31 महाराष्ट्र से 19 व तमिलनाडु से 18 सदस्य चुने जाते है.

संविधान के अनुसार राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जिसे कभी भंग नही किया जा सकेगा. तथा इसके 1/3 सदस्य हर दो साल बाद अवकाश ग्रहण करते है. और इनके स्थान पर नए पार्लियामेंट मेम्बर का चुनाव करवाया जाता है.

कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व किसी मेंबर का स्थान रिक्त हो जाने की स्थति में उसके स्थान पर निर्वाचित सदस्य ही शेष अवधि के लिए सदस्य रहता है. इस प्रकार भारतीय राज्यसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है.

भारतीय संविधान के फेडरल स्ट्रक्चर (संघीय ढांचे) का प्रतिनिधित्व राज्यसभा द्वारा ही किया जाता है. इसे उच्च सदन भी कहा जाता है. भारत का राष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है. तथा राज्यसभा अपने में से किसी एक सदस्य का उपसभापति के रूप में निर्वाचन करती है.

राज्यसभा का उपसभापति लोकसभा का सदस्य हो यह कोई जरुरी नही है. council of states के सत्र की कार्यवाही व स्थगन का कार्य सभापति ही सम्पन्न करवाता है. सभापति की अनुउपस्थिति में उपसभापति ही सभापति के सभी कर्तव्यों का निर्वहन करता है.

उपसभापति को राज्यसभा के सदस्यों द्वारा अपने कुल बहुमत से प्रस्ताव कर पदमुक्त किया जा सकता है.

राज्यसभा (rajya sabha) सदस्य की योग्यताएं (Rajya Sabha member’s qualifications)

  • वह भारत का नागरिक हो, तथा उसकी उम्रः कम से कम 30 वर्ष होनी चाहिए.
  • सरकार में किसी लाभ पर न हो.
  • विकृत मस्तिष्क या दिवालिया घोषित किया हुआ न हो.
  • ऐसी अन्य योग्यताएं रखता हो, जो संसद के किसी कानून द्वारा निश्चित की जावे.

राज्यसभा के मुख्य कार्य (function of rajya sabha in india)

  1. इसके पास संविधान संशोधन की शक्ति होती है.
  2. राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते है.
  3. राज्यसभा के सदस्य लोकसभा के सदस्यों के साथ मिलकर उपराष्ट्रपति का चुनाव भी करते है.
  4. संसद का उच्च सदन (राज्यसभा) लोकसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य
  5. पदाधिकारियों पर महाभियोग प्रस्ताव ला सकती है.
  6. लोकसभा व राज्यसभा मिलकर उपराष्ट्रपति को हटा सकती है.
  7. यदि एक माह से अधिक समय तक आपातकाल लागू करना हो तो उस प्रस्ताव का अनुमोदन लोकसभा के साथ साथ राज्यसभा में भी पारित किया जाना आवश्यक है.

राज्यसभा की विशिष्ट शक्तियां (Specific Powers of the Rajya Sabha)

राज्यसूची में वर्णित किसी विषय पर संसद द्वारा कानून बनाने का संकल्प पारित करना, ऐसा केवल राज्यसभा में उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से पारित कर सकती है. अखिल भारतीय सेवाओं का स्रजन जैसे IAS, IPS, IFS आदि.

लोकसभा (what is lok sabha and rajya sabha in hindi)

यह भारत की संसद का निम्न सदन अथवा लोकप्रिय सदन है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 81 के तहत इसका गठन किया जाता है. लोकसभा में अधिकतम सदस्यों की संख्या 552 हो सकती है.

इसके सदस्यों का चुनाव देश के विभिन्न लोकसभा क्षेत्र की जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा निर्वाचित किया जाता है. जिस दल के पास कुल सीट के आधे से 1 सदस्य होगा. राष्ट्रपति उन्हें सरकार बनाने का न्यौता देता है.

वर्तमान भारतीय लोकसभा में सदस्यों की संख्या 545 है. जिनमें 530 सदस्य देश के विभिन्न राज्यों से, 20 सदस्य केन्द्रशासित प्रदेशों से तथा राष्ट्रपति द्वारा आवश्यकता महसूस करने पर 2 एग्लों इंडियन समुदाय के सदस्यों का मनोनयन भी किया जाता है.

मगर अब 530 सदस्य राज्यों से 13 केंद्र शासित प्रदेशों से एवं 2 एग्लों इंडियन सहित 545 सदस्य सदन के लिए चुने गये है. (अब दो एंग्लो इंडियन समुदाय के मनोनयन को समाप्त कर दिया हैं, 1952 से 2020 तक यह प्रक्रिया चलन में थी)

लोकसभा का कार्यकाल (tenure of lok sabha member)

निम्न सदन का कार्यकाल सामान्यतया प्रथम बैठक से 5 वर्ष तक निर्धारित है. मगर यह आवश्यक नही है. अविश्वास प्रस्ताव के कारण व आपातकाल की स्थति में इस सदन को भंग भी किया जा सकता है. लोकसभा को भंग करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है.

संयुक्त अधिवेशन राष्ट्रपति द्वारा ही बुलाए एवं स्थगित किये जाते है. मगर उनकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है. जिनका निर्वाचन बहुमत प्राप्त दल द्वारा मुख्यतया किया जाता है. उपाध्यक्ष चुनने की यही प्रक्रिया है.

सदस्यों से प्राप्त अधिकतम वोट के आधार पर इनका निर्वाचन किया जाता है. लोकसभा की बैठक के सम्बन्ध में संविधान में यह स्पष्ट उल्लेख है, कि दो बैठकों के मध्य 6 माह से अधिक समयांतर नही होना चाहिए.

लोकसभा उम्मीदवार की योग्यताएं (Lok Sabha candidate’s qualifications)

  • पहली शर्त है कि वह भारतीय नागरिक हो.
  • उसकी आयु 25 वर्ष अथवा इससे अधिक होनी चाहिए.
  • भारत सरकार या अन्य किसी राज्य सरकार के किसी लाभ के पद पर कार्यरत न हो.
  • किसी न्यायालय द्वारा दिवालिया या पागल न ठहराया गया हो. अथवा संसद के किसी कानून के अनुसार वह इस पद का अयोग्य न हो.
  • संसद के द्वारा निर्धारित अन्य योग्यताएं रखता हो.
  • वह भारत के किसी निर्वाचन क्षेत्र का पंजीकृत मतदाता हो.

मतदाता की योग्यताएं (Voter qualifications)

  • लोकसभा के चुनाव में उन सभी व्यक्तियों को मतदान का अधिकार होगा, जो भारत के नागरिक है.
  • जिनकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक है.
  • जो पागल या दिवालिया नही है.
  • जिन्हें कानून के द्वारा किसी अपराध, भ्रष्टाचार या गैर कानूनी व्यवहार के कारण मतदान से वंचित नही कर दिया गया है.

लोकसभा अध्यक्ष (speaker of lok sabha in hindi)

लोकसभा सदस्यों में से ही अध्यक्ष का निर्वाचन किया जाता है. उसे सदस्यों द्वारा बहुमत से अध्यक्ष के पद से हटाया भी जा सकता है. लोकसभा भंग हो जाने की स्थति में अगली लोकसभा की पहली बैठक के ठीक पूर्व तक यह अपने पद पर बना रहता है.

बशर्ते कि लोकसभा ने उसे अपने पद से महाभियोग लगाकर न हटाया गया हो. लोकसभा का अध्यक्ष इस सदन का मुख्य पीठासीन अधिकारी होता है. तथा यह इसी सदन का भी इस सदस्य होता है.

लोकसभा उपाध्यक्ष (Vice president of Lok Sabha)

लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव भी ये सदस्य अपने में से ही करते है. उपाध्यक्ष, अध्यक्ष की अनुउपस्थिति म कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में बैठकों की अध्यक्षता करता है. अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष लोकसभा सदस्य के तौर पर ही शपथ लेते है. इन्हें इस पद के लिए अलग से कोई शपथ नही दिलाई जाती है.

प्रोटेम स्पीकर (what is protem speaker in hindi)

लोकसभा के आम चुनाव के बाद गठित लोकसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा इन सदस्यों को शपथ दिलाने के लिए अस्थायी तौर पर लोकसभा अध्यक्ष चुना जाता है. इन्हें ही प्रोटेम स्पीकर कहा जाता है.

इसका कार्य सभी लोकसभा सदस्यों को अपने पद की शपथ दिलाना है. यह तब तक इस पद पर कार्य करता है. अध्यक्ष का निर्वाचन न हो जाए. लोकसभा अध्यक्ष चुन लिए जाने के साथ ही इसका पद स्वतः ही समाप्त हो जाता है.

लोकसभा की विशेष शक्तियाँ (Special powers of the Lok Sabha)

  • धन विधेयक को लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है, राज्यसभा में आवश्यक नही.
  • धन विधेयक के लोकसभा में पारित हो जाने के बाद राज्यसभा उन पर अपने सुझाव दे सकती है. जिन्हें लोकसभा स्वीकार करे अथवा अस्वीकार यह उन पर निर्भर करता है. साथ ही यह प्रावधान किया गया है, यदि राज्यसभा धन विधेयक को 14 दिन के भीतर पारित कर सदन को नहीं लौटाती है तो इस समय अवधि के बाद वह पारित ही माना जाता है.
  • केन्द्रीय मंत्रिपरिषद व सताधीन विधायक केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होते है, न कि राज्यसभा. उनके विरुद्ध
  • अविश्वास प्रस्ताव केवल निम्नसदन में ही प्रस्तुत किया जा सकता है.

(1600 शब्द) भारत की संसद के कार्य एवं शक्तियों पर निबंध Essay On Functions of Parliament In Hindi

देश की संसद का निर्माण लोकसभा राज्यसभा दोनों सदनों के साथ राष्ट्रपति के मिलने से पूर्ण हो जाती हैं. दो सदन की भारतीय संसद देश की सर्वोच्च विधायी निकाय हैं. भारत के संसद भवन की ईमारत नई दिल्ली में हैं. वर्तमान में लोकसभा के 545 तथा राज्यसभा के 245 सदस्य चुनकर आते हैं. आज हम भारतीय संसद के कार्य जानेगे.

किसी भी देश की व्यवस्थापिका या संसद का पहला कार्य विधि निर्माण यानि कानून बनाने का कार्य होता है. इसके अतिरिक्त धन विधेयक पारित करना और संविधान संशोधन तथा कार्यपालिका पर नियंत्रण का कार्य भारत की संसद मुख्य रूप से करती हैं.

विधि निर्माण– सरकारके व्यवस्थापिका अंग का सबसे प्रमुख कार्य विधि निर्माण होता हैं. संसद भारत की व्यवस्थापिका हैं. अतः उसका मुख्य कार्य विधि निर्माण का हैं. भारत में संघात्मक व्यवस्था की स्थापना की गई हैं, जिसका अभिप्रायः यह है कि संघ एवं प्रान्तों में विधायी शक्तियों का विभाजन किया गया हैं.

संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ सूची राज्य सूची एवं समवर्ती सूची के माध्यम से संघ एव प्रान्तों में शक्ति विभाजन किया गया हैं. इसके अनुसार संघ सूची एवं समवर्ती सूची में अंतर्विष्ट विषयों में से किसी भी विषय पर संसद विधान बना सकती हैं.

अवशिष्ट शक्तियों पर भी विधान निर्माण की शक्ति संसद को ही प्राप्त हैं. राज्यों को सौपें गये राज्य सूची के विषयों के संबध में भी कुछ परिस्थितियों में संसद विधान बना सकती हैं.

कानून बनाने के प्रस्ताव को साधारण विधेयक कहते हैं. यह विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता हैं. यदि विधेयक मंत्री परिषद के किसी सदस्य द्वारा सदन में रखा गया हैं.

तब उसे सरकारी विधेयक कहते हैं. जबकि साधारण सदस्यों द्वारा रखा गया विधेयक को गैर सरकारी विधेयक कहलाता हैं. विधेयक को पारित होने के लिए संसद में अनेक प्रक्रियाओं में गुजरना होता हैं. विधेयक के प्रत्येक सदन के तीन वाचन होते हैं.

नियत समय पर सदन में सम्बन्धित सदस्य खड़े होकर प्रस्ताव करता हैं. कि विधेयक को पेश करने की अनुमति दी जाए. आमतौर पर अनुमति दे दी जाती हैं. इस प्रकार सदन में विधेयक को प्रस्तुत करने की अनुमति ही उसका प्रथम वाचन कहलाता हैं.

द्वितीय वाचन किसी भी विधेयक की सबसे महत्वपूर्ण एवं निर्णायक अवस्था होती हैं. सामान्यतः इस अवस्था में विधेयक पर प्रवर समिति का गठन किया जाता हैं. जो विधेयक पर बारीकी से विचार करती है. प्रत्येक धारा पर चर्चा करती है. निर्धारित अवधि में समिति अपना प्रतिवेदन सदन को प्रस्तुत करती हैं.

इस प्रतिवेदन पर सदन में बहस एवं विचार विमर्श होता हैं. उसकी प्रत्येक धारा पर मतदान होता हैं. यह पूरी प्रक्रिया विधेयक का द्वितीय वाचन कहलाता हैं. इसके पश्चात विधेयक में आवश्यक शाब्दिक एवं औपचारिक संशोधन किये जाते है एवं अंतिम रूप से पारित करने के लिए सदन में प्रस्तुत किया जाता हैं.

चूँकि द्वितीय वाचन में विस्तार से विधेयक पर चर्चा हो चुकी होती हैं. अतः तृतीय वाचन में सामान्य चर्चा के उपरान्त मतदान होता हैं. यदि उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों को साधारण बहुमत विधेयक के पक्ष में हो तब वह उस सदन में पारित समझा जाएगा.

विधेयक दूसरे सदन में

जिस सदन में विधेयक पेश किया गया हो, वहां से पारित किये जाने के पश्चात उसे पारित करने के लिए दूसरे सदन में भेजा जाता हैं. वहां पर भी विधेयक के तीन वाचन होते हैं.

यदि दूसरा सदन विधेयक को पारित कर ले तब दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता हैं. एवं राष्ट्रपति के समक्ष हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किया जाता हैं.

लेकिन दूसरा सदन विधेयक को अस्वीकार कर दे अथवा ऐसे संशोधन करें, जिससे पहला सदन सहमत नहीं हो अथवा सदन विधेयक पर छः मास तक चर्चा ही नहीं करे तब इसका अर्थ यह होता है कि उस साधारण विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद उत्पन्न हो गया हैं.

दोनों सदनों की संयुक्त बैठक

दोनों सदनों में साधरण विधेयक पर असहमति से उत्पन्न गतिरोध का समाधान संयुक्त बैठक में होता हैं. अनुच्छेद 108 के तहत राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह विधेयक पर फैसला करने हेतु संयुक्त बैठक आमंत्रित करे. इस संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती हैं.

संयुक्त बैठक में निर्णय दोनों सदनों के उपस्थित और मतदान करने वाले कुल सदस्यों के बहुमत द्वारा किया जाता हैं. अब तक केवल तीन विधेयक ही संयुक्त बैठक में पास किये गये हैं.

विधेयक पर राष्ट्रपति की अनुमति

दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हेतु प्रस्तुत किया जाता हैं. क्योंकि वह कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख होने के साथ ही भारत की संसद का भी अभिन्न अंग होता हैं. अनुच्छेद 111 के अनुसार राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने पर ही कोई विधेयक अधिनियम अर्थात कानून बनाता हैं.

राष्ट्रपति विधेयक को पुनर्विचार के लिए एक बार संसद को भेज सकता हैं. लेकिन यदि संसद संसोधनों सहित बिना किसी संशोधन के पुनः पारित पर विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष भेजे तब राष्ट्रपति के लिए उस पर हस्ताक्षर करना आवश्यक होता हैं.

इस प्रकार विधि निर्माण की यह जटिल प्रक्रिया राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ समाप्त होती हैं लेकिन संसद का यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य माना जाता हैं.

उसके द्वारा संसद लोगों के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करने एवं देश की सामाजिक, आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने का कार्य करती हैं. लेकिन क्या संसद देश के सभी नागरिकों के लिए विधि निर्माण का अधिकार रखती हैं.

यह आश्चर्य की बात हैं. कि देश के मुसलमानों एवं ईसाईयों के लिए सामाजिक, धार्मिक जीवन के लिए कानून निर्माण का अधिकार संसद को प्राप्त नहीं हैं.

उन्हें यह विशेषाधिकार प्राप्त है कि उनके लिए अपने पर्सनल लॉ बोर्ड होंगे, जो उनके सामाजिक जीवन के नियमों का निर्धारण करेगे. यदपि यह संविधान प्रदत्त विधि के समक्ष समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हैं.

यही नहीं नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 44 के तहत राज्य का यह कर्तव्य घोषित हैं कि वह यथाशीघ्र समान नागरिक संहिता की स्थापना करेगा. भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी अनेक बार समान नागरिक संहिता की स्थापना करने का निर्णय दे चुका हैं लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं हैं.

धन विधेयक पारित करना

संसद का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य धन विधेयक को पारित करना हैं. अनुच्छेद 109 में धन विधेयक की प्रक्रिया का वर्णन है तथा अनुच्छेद 110 में इसे परिभाषित किया गया हैं. धन विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता. वह राष्ट्रपति की सिफारिश पर केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता हैं.

लोकसभा द्वारा पास किये जाने पश्चात राज्य सभा की सिफारिशों के लिए उनके पास भेजा जाता हैं. राज्यसभा के लिए विधेयक की उसे प्राप्ति की तिथि से 14 दिन के भीतर लोकसभा को लौटाना अनिवार्य हैं.

यदि 14 दिन में लौटाया नहीं जाता तब भी वह दोनों सदनों के पास किया गया जाना जाएगा. यह भी उल्लेखनीय है कि धन विधेयक अनिवार्य रूप से सरकारी विधेयक ही होता है, गैर सरकारी विधेयक नहीं.

संविधान संशोधन का कार्य

संविधान देश की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक आवश्यकताओं की पूर्ति का उपकरण होता हैं. आवश्यकताओं में परिवर्तन के अनुरूप संविधान में बदलाव भी आवश्यक होता हैं. अतः प्रत्येक देश के संविधान में संशोधन की व्यवस्था होती हैं.

संशोधन प्रक्रिया के आधार पर संविधान लचीला एव कठोर दो प्रकार का होता हैं. ब्रिटिश संविधान जहाँ सबसे लचीला संविधान का उदाहरण हैं वहीँ अमेरिका का संविधान कठोर संविधान का उदहारण माना जाता हैं.

भारतीय संविधान में संशोधन करने की शक्ति संसद को प्राप्त हैं. संविधान संशोधन प्रक्रिया का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 368 में हैं. इसके अनुसार संविधान संशोधन दो प्रकार से हो सकता हैं.

संविधान की अधिकांश धाराओं में परिवर्तन प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों से कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव से होता हैं.

परन्तु ऐसा कोई संशोधन जो संघ एवं राज्यों की कार्यपालिका शक्ति में परिवर्तन, राज्यों के विधायी सम्बन्धों से परिवर्तन, संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व तथा स्वयं अनुच्छेद 368 में संशोधन आदि से सम्बन्धित हो तो ऐसे संशोधन वाले विधेयक के लिए संसद के विशेष बहुमत के साथ साथ कम से कम आधे राज्यों के विधान मंडलों द्वारा उसे अनुसमर्थन प्राप्त होना आवश्यक होता हैं.

संविधान संशोधन विधेयक किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है एवं दोनों सदनों द्वारा अलग अलग पारित करना आवश्यक हैं अर्थात इसमें संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान नहीं होता हैं.

दोनों सदनों द्वारा पारित संविधान संशोधन विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से पारित समझा जाता हैं. राष्ट्रपति इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार नहीं कर सकते हैं.

इस प्रकार विधेयक तीन प्रकार के होते है साधारण, धन एवं संविधान संशोधन विधेयक. साधारण एवं धन विधेयक पर जहाँ लोकसभा को राज्यसभा पर प्रभुत्व प्राप्त होता हैं.

वही संविधान संशोधन विधेयक पर दोनों सदनों को समान शक्ति प्राप्त होती हैं. क्योंकि एक सदन इसे पारित करे और दूसरा सदन पारित नहीं करे तब संविधान विधेयक समाप्त माना जाता हैं.

कार्यपालिका पर नियंत्रण का कार्य

लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती हैं. एवं जनता मताधिकार के माध्यम से उसे नियंत्रित करती हैं. लेकिन कार्यपालिका को नित प्रतिदिन कार्यों में नियंत्रित करने का कार्य जनता की प्रतिनिधि संस्था अर्थात संसद को प्राप्त हैं.

भारतीय संसद विभिन्न तरीको से कार्यपालिका को नियंत्रित करती हैं जैसे प्रश्नकाल, शून्यकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव आदि के द्वारा.

लेकिन कार्यपालिका अर्थात मंत्री परिषद पर नियंत्रण की सबसे बड़ी शक्ति लोकसभा को प्राप्त हैं. वह है विश्वास प्रस्ताव एवं अविश्वास प्रस्ताव पारित करना. विश्वास का मत प्रधानमंत्री सदन में प्रस्तुत करते हैं.

और सदस्यों से इसके पक्ष में मत देकर पारित करने का आग्रह करते हैं. अविश्वास प्रस्ताव मंत्री परिषद को अपने पद से हटाने के लिए विपक्ष द्वारा लाया जाता हैं.

विश्वास मत के पारित न होने और अविश्वास मत के पारित होने पर इन दोनों का ही परिणाम मंत्री परिषद का अपने पद से हटना पड़ता हैं. इसके साथ ही संसद देश में विचार विमर्श का सबसे बड़ा मंच हैं.

विकास एवं कल्याण की विभिन्न योजनाओं पर विस्तार से संसद में चर्चा होती हैं. संसद राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति आदि के निर्वाचन एवं उनको पद से हटाने का कार्य भी करती हैं.

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