सहिष्णुता पर निबंध Essay On Tolerance In Hindi: नमस्कार दोस्तों हम आपका स्वागत करते है धार्मिक सहिष्णुता पर भाषण धार्मिक सहनशीलता पर यहाँ सरल भाषा में निबंध, अनुच्छेद, स्पीच पैराग्राफ दिया गया हैं.
बच्चों को सहिष्णुता इसका जीवन में महत्व, अर्थ आदि के बारे में पूछा जाता है आप इस निबंध की मदद से टॉलरेंस को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं.
Essay On Tolerance In Hindi
सहिष्णुता पर निबंध (200 शब्द)
सहन करना और सहिष्णुता दोनों आपस में पर्यायवाची हैं। सहिष्णुता की व्याख्या की जाए तो किसी भी चीज को सहन करना ही असहिष्णुता कही जाती है। आज के समय में कोई भी किसी से दबना नहीं चाहता है।
ऐसे में अगर आपके अंदर थोड़ी सी भी सहनशीलता रहेगी तो आप आसानी से लोगों के बीच अपने आप को एडजेस्ट कर पाएंगे क्योंकि यह बात तो आप जानते ही हैं कि आप किसी व्यक्ति से अपना काम प्यार से ही करवा सकते हैं ना कि उसके साथ जोर जबरदस्ती करके।
दुनिया में हर व्यक्ति का विचार अलग-अलग होता है। ऐसे में हर व्यक्ति का विचार आपसे मिले यह आवश्यक नहीं है, इसीलिए अगर आपके अंदर सहन करने की क्षमता होगी तो आप आसानी से लोगों के बीच अपनी बात को रख सकेंगे और दूसरे लोगों की बात को सुन भी सकेंगे।
सहनशीलता हर किसी व्यक्ति के अंदर नहीं होती है। यह कुछ गिने-चुने व्यक्तियों के अंदर ही होती है। समाज में शांति बनाए रखने के लिए और आपसी भाईचारे को मजबूत बनाने के लिए सहिष्णुता होनी जरूरी है।
सांप्रदायिकता, जाति भेद, लिंगभेद, धार्मिक कट्टरता का समाधान निकालने के लिए सहिष्णुता ही एकमात्र ऐसा रास्ता है, जो असरदार साबित हो सकता है।
सहिष्णुता पर निबंध Essay On Tolerance In Hindi (600 शब्द)
मानव सभ्यताएं दीर्घकालीन इसलिए होती है क्योंकि इनमें सहिष्णुता का गुण होता है इसके मायने यह है कि वे अधिक से अधिक सहन करने में समर्थ अर्थात सहनशील होती हैं.
इस सदी के लोगों में यह धारणा है कि वे अपने पूर्वजों से अधिक सहिष्णु है. मगर आधुनिक समाज एवं धर्म की सच्चाई यह है कि उनमें सहिष्णुता की कमी है तथा इसकी प्रचुर मात्रा बनाएं रखने की नितांत आवश्यकता हैं.
केवल एक वर्ग जाति, धर्म या विचारधारा के लोग कभी सहिष्णु नहीं हो सकते. सहिष्णुता के लिए विविधताओं का होना भी जरुरी है, तभी एक व्यक्ति में दुसरे के विचारों, भावनाओं, आस्था, विश्वास, संस्कृति को स्वीकारने की सहनशक्ति उत्पन्न होती हैं.
आज ऐसी घटनाओं अक्सर सुनने में आती हैं जब किसी छोटी सी बात पर लोग झगड़े पर उतारू हो जाते है कभी कभी यह किसी की जान भी ले लेते हैं. एक व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र के स्तर पर सहिष्णुता के स्तर में वृद्धि किये जाने की जरुरत हैं.
धर्म की अवधारणा के पीछे यही तथ्य रहा कि लोग उदार बने, दूसरों के विचारों एवं विश्वास को स्वीकार करे. मगर आज तो मजहब ही असहिष्णुता के केंद्र बनकर रह गये हैं. इस्लाम के नाम पर संसार में जो नरसंहार हो रहा है यह निंदनीय है.
कश्मीर और इजरायल फिलिस्तीन के संघर्ष का मूल तो मजहब की विचारधारा ही हैं. हमें चाहिए कि एक संकीर्ण सोच का त्याग कर विश्व बन्धुत्व की भावना को ह्रदय में धारण करे तभी विश्व शांति एवं परस्पर सहिष्णुता की स्थापना के प्रयास सफल होंगे.
सहनशीलता या सहिष्णुता एक अच्छा गुण है, इस गुण से सपन्न व्यक्ति को हर कोई पसंद करता हैं. सहिष्णु बनना आसान नहीं है मगर असम्भव भी नहीं हैं. यह जीवन के वास्तविक विकास में सहायक होता हैं.
अक्सर लोग जीवन के थोड़े से दुःख और समस्याओं से घबरा जाते है और असहिष्णु होकर व्यवहार करते हैं. सहिष्णुता को एक व्यक्ति के जीवन उदाहरण से समझना है तो हम महात्मा गाँधी, संत कबीर या भगवान पुरुषोत्तम राम का चरित्र ले सकते हैं.
राम अयोध्या के राजा थे मगर उनका जीवन एक साधारण व्यक्ति की तरह कठिनाइयों से भरा था.
पिता के वचन की पालना में उन्होंने 14 वर्षों तक वन में अकेले ही जीवन व्यतीत किया, पत्नी का हरण, राज्य से बिछोह, भाई का घायल होना, रावण जैसी शक्ति का सामना करना, अयोध्या लौटने पर लोगों के विचारों को सुनना, सीता का त्याग, लव कुश से युद्ध भूमि में सामना न जाने कितने ही प्रसंग रहे हो मगर कभी भी लड़ाई, झगड़ा गाली गलौच या मारपीट उनका स्वभाव नहीं था.
वे तमाम संकट झेलते गये और सहनशीलता की मिसाल बन गये. उनके सहिष्णुता के गुण ने उन्हें मानव से महामानव एवं पुरुषोत्तम बना दिया.
संसार में भारत एवं हिन्दू धर्म की छवि एक सहिष्णु के रूप में रही हैं. बहुत से देश इसे भारत की कमजोरी समझते है जबकि यह गलतफहमी से अधिक कुछ नहीं हैं. क्योंकि सहनशीलता युक्त चरित्र सर्वाधिक गुणसम्पन्न एवं शक्तिशाली होता हैं.
प्रत्येक पल ईट का जवाब पत्थर से देने वाले लोग तनिक सी बात को बड़ा बनाकर खामखाह का तनाव उत्पन्न कर देते हैं.
सहिष्णुता का गुण हमें चंदन एवं सज्जन व्यक्ति से सिखना चाहिए. चंदन के पेड़ पर जब कुल्हाड़ी भी वार करती है तो वह उन्हें भी सुगन्धित कर देता हैं. इस तरह सज्जन व्यक्ति भी दुष्ट लोगों के कष्टों से अपनी सज्जनता का त्याग नहीं करते हैं.
भारतीय महिलाओं को सहिष्णुता की देवी माना जाता हैं. उनका त्याग, सेवा, दया और परिवार के प्रति समर्पण का भाव अन्यत्र दुर्लभ हैं. विभिन्न तरह की परिस्थतियों में वह अपने परिवार को संकट से दूर रहने का यत्न करती हैं.
यदि हम एक सहिष्णु समाज एवं देश का निर्माण करना चाहते है तो इसकी शुरुआत हमें अपने बच्चों से करनी होगी, उन्हें यह बताना होगा कि सहिष्णुता एक कमजोरी नहीं बल्कि ताकत हैं.
बालपन से ही इस तरह के विचारों का आरोहण से उनके मन में दया और सहिष्णुता के भावों का उदय होना आरम्भ हो सकता हैं.