आज हम Folk Drama Of Rajasthan In Hindi राजस्थानी लोक नाट्य के बारें में जानेगे. लोक नाट्य का अर्थ परिभाषा राजस्थान के मुख्य नाट्य कौन कौनसे हैं.
होली के अवसर पर रम्मत, नागौर क्षेत्र के ख्याल, भगवान् कृष्ण की रासलीला, गवरी राई सहित राज्य के दर्जनों मूल लोक नाट्य हैं जिसकें बारे में जानकारी बताएगें.
Folk Drama Of Rajasthan In Hindi
![राजस्थानी लोक नाट्य Folk Drama Of Rajasthan In Hindi](https://hihindi.com/wp-content/uploads/2022/10/राजस्थानी-लोक-नाट्य-Folk-Drama-Of-Rajasthan-In-Hindi.jpg)
राजस्थानी लोक नाट्य- Folk Drama Of Rajasthan
संगीत, नृत्य, वाद्य के अलावा और महत्वपूर्ण विद्या हैं जिन्हें नाट्य कहा जाता हैं तथा जिसे अभिनय द्वारा प्रदर्शित किया जाता हैं. अभिनय द्वारा किसी तथ्य, बात, कथा, घटना, कहानी, संदेश को प्रदर्शित करना ही नाट्य कहलाता हैं.
लोक नाट्य के अंतर्गत वे कथा प्रस्तुत आती हैं जो परम्परागत रूप से ग्रामीण, धार्मिक, पौराणिक गाथाओं, सामाजिक एवं ऐतिहासिक घटना पर आधारित होती हैं. इनकी अनेक शैलियाँ होती हैं. प्रत्येक में नृत्य, संगीत व पात्रों की संख्या पृथक पृथक होती हैं.
राजस्थान के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में अनेक लोक नाट्य प्रचलित रहे हैं. जैसे पश्चिमी राजस्थान में ख्याल, मेवाड़ में गवरी, भीलवाड़ा शाहपुरा में पाबूजी की पड़, बीकानेर में कच्छी घोड़ी, झालावाड में माच आदि.
ख्याल
ख्याल राजस्थान की प्राचीन एवं प्रसिद्ध नाट्य शैली हैं. हाडौती शेखावटी मारवाड़ में इसे ख्याल अलवर में कई स्थानों में ख्याल एवं रम्मत, फलौदी पोकरण में तमाशे भरतपुर में नौटंकी कहते हैं.
इसमें नगाड़ों की प्रधानता रहती हैं. अमरसिंह राठौड़ का खयाल, पृथ्वीराज का ख्याल, नरसी रो माहेरो, तेजाजी का ख्याल आदि धार्मिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, मनोरंजक कथाओं पर आधारित ख्याल राजस्थान के अलग अलग क्षेत्रों में खेले जाते हैं.
ये ख्याल खुले रंगमंच, मंदिर, चौपालों व चौराहों में देर रात से प्रातःकाल तक खेले जाते हैं. इसमें संवादों के साथ दोहे, चौपाई, कविता आदि गाई जाती हैं.
गवरी
यह राजस्थान में मेवाड़ क्षेत्र के भीलों का धार्मिक नृत्य नाट्य है जो शिव पार्वती की स्मृति की स्मृति में प्रतिवर्ष अलग अलग गाँवों में खेला जाता हैं. भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकम से सवा माह यानि चालीस दिन के लिए गवरी उत्सव मनाया जाता हैं.
गवरी का प्रारम्भ गाँव के देवी मंदिर में मुख्य पात्रों को भोपे के हाथों से नयें वस्त्र पहनाकर किया जाता हैं. प्रथम दो दिन अपने गाँव में प्रदर्शन कर तीसरे दिन से अन्य आमंत्रित करने वाले गाँवों में गवरी नर्तक दल अपना प्रदर्शन करते हुए अंतः में पुनः उसी गाँव में गवरी की प्रतिमा का विसर्जन कर नाट्य समाप्त करते हैं.
यह नाट्य सूर्योदय से सूर्यास्त तक किया जाता हैं. इसे खुले प्रांगण में खेला जाता हैं. गवरी में स्त्रीपात्र का अभिनय भी पुरुषों द्वारा ही किया जाता हैं.
गोलाकर्मी में किये जाने वाले इस नृत्य के केंद्र में त्रिशूल स्थापित किया जाता हैं. गायक उसके आस पास खड़े हो जाते हैं तथा ढोल, थाली, मांदल आदि प्रमुख वाद्यों को बजाते हुए गाते हैं.
गवरी नाट्य में चार तरह के पात्र होते हैं. देवपात्र, मानव पात्र, दानव पात्र, पशु पात्र, शिव पार्वती, कूटकड़िया, मोर तथा भोपा मुख्य पात्र होते हैं. भोपा संचालक होता हैं.
कुटकड़िया सूत्रधार होता हैं. जो कथानक समझाता हैं. इसमें भस्मासुर और शिव की पौराणिक घटना को बताया जाता हैं. बुढ़िया मुख्य अभिनेता होता हैं जो शिव का प्रतीक होता हैं.
इसमें दो राइयां बनती हैं. एक पार्वती का तथा दूसरी विष्णु भगवान् का मोहिनी रूप. नृत्य का आरम्भ गणपति आराधना से होता हैं. यह नृत्य नाट्य धार्मिक और सामाजिक दोनों प्रकार के कथानकों पर आधारित हैं.
कच्छी घोड़ी
यह राजस्थान के रेगिस्तानी भागों में प्रचलित व्यवसायिक लोक नृत्य हैं. विवाह के अवसर पर घोड़ियों को नचाते हैं. ये घोड़ियाँ बॉस और कागज की बनाई जाती हैं. जिन्हें रंग बिरंगे कपड़ों से सजाया जाता हैं.
नृतक इसे पहन कर गोलाकृति में नृत्य करते हैं. नृतकों की संख्या सात से चौदह होती हैं. वेशभूषा मध्यकाल के मुगलों एवं राजपूतों की होती हैं.
रम्मत
यह एक खेल नाटक है जिसका उद्भव 140 साल पहले राजस्थान के बीकानेर इलाके में सावन और होली के मौके पर होने वाली लोक काव्य प्रतियोगिता से हुआ था। इसे जिस व्यक्ति के द्वारा खेला जाता है उसे खेलार कहते हैं।
रम्मत शुरू होने से पहले मुख्य कलाकार मंच पर आकर के विराजमान हो जाते हैं। इसके संवाद स्पेशल गायकों के द्वारा गाए जाते हैं जो कि मंच पर बैठे हुए होते हैं और मुख्य कलाकार भी नृत्य करते हुए तथा अभिनय करते हुए उन्हीं गायकों के द्वारा गाए जाने वाले संवाद को अपने मुंह से बोलते हैं।
इसमें मुख्य तौर पर नगाड़ा और ढोलक जैसे वाद्य यंत्र का इस्तेमाल होता है। कार्यक्रम शुरू होने से पहले रामदेव जी के भजन का गायन होता है साथ में गणपति वंदना और वर्षा ऋतु का वर्णन भी होता है। राजस्थान में बीकानेर और जैसलमेर जैसे इलाके में रम्मत ज्यादा होती है।
तमाशा
तमाशा लोक नाटक सबसे पहली बार महाराजा उदय सिंह के शासनकाल के दरमियान जयपुर राज्य में प्रारंभ हुआ था। जयपुर के भट्ट परिवार के द्वारा तमाशा थिएटर के तौर पर जयपुरी ख्याल और ध्रुपद गायकी को भी शामिल किया गया।
तमाशा शुरू करने का श्रेय हीर रांझा और गोपीचंद को दिया जाता है। इसके जो संवाद होते हैं वह कवितामय कहते हैं। इसमें मुख्य तौर पर गायन, नृत्य और संगीत को प्रधानता दी जाती है। यह खुले मंच पर ही होता है जिसे कि अखाड़े के नाम से जानते हैं।
स्वाँग
यह राजस्थान के लोक नाटक की सबसे प्रमुख विद्या में से एक है। स्वांग लोक नाटक के तहत किसी व्यक्ति को देवी देवता के कपड़े पहनाए जाते हैं और फिर मेकअप करवा करके उनसे उन्ही देवी देवताओं की नकल करवाई जाती है।
जो व्यक्ति स्वांग रचाता है उसे बहरूपिया के नाम से जानते हैं। मारवाड़ इलाके में रहने वाले रावल जाति के द्वारा जोगी जोगन, मियां बीवी, बीकाजी इत्यादि के स्वांग रचाए जाते हैं। इसके सबसे प्रसिद्ध कलाकार राजस्थान में रहने वाले जानकीलाल हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय लेवल पर ख्याति अर्जित की हुई है।
फङ
तकरीबन 30 फीट अथवा 24 फीट लंबा तथा 5 फीट चौड़े कपड़े पर प्रिंटेड किसी लोक देवता या लोक नायक के जीवन चरित्र को ही फड कहा जाता है।
जब भोपा के द्वारा फड़ को पढ़ा जाता है तब जंतर या फिर रावण हत्था वाघ बजाया जाता है। राजस्थान के भीलवाड़ा इलाके में रहने वाले श्री लाल जोशी जी के द्वारा मेघराज मुकुल की कविता “सेनानी” पर फड बनाया गया है।
नौटंकी
राजस्थान में बड़े पैमाने पर अलवर, धौलपुर करौली और भरतपुर तथा गंगा नगर जैसे इलाकों में नौटंकी के खेल का आयोजन शादी समारोह में, किसी शुभ प्रसंग पर, मेले या फिर सामाजिक उत्सव में करवाया जाता है।
इसमें मुख्य तौर पर नक्कारे का इस्तेमाल होता है साथ ही नौटंकी में शहनाई, ढोल बजाया जाता है। राजस्थान के धौलपुर और भरतपुर जैसे जिले में नथाराम की मंडली द्वारा प्रसिद्ध नौटंकी का खेल दिखाया जाता है।
नौटंकी का खेल किसी ना किसी कहानी के ऊपर आधारित होता है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में भी नौटंकी का काफी चलन है।