गोपाल कृष्ण गोखले का जीवन परिचय Gopal Krishna Gokhale Biography In Hindi: हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमें स्वतंत्र भारत में जन्म मिला, आज हम चाहे जो करने व बोलने के लिए स्वतंत्र हैं. भारत दो सदी तक अंग्रेजों का गुलाम रहा तथा 1947 आते आते न जाने कितनों वीरों ने अपने जीवन को अर्पित कर दिया. किसी ने जेल में यातनाएं सही तो किसी ने जनता को आंदोलित किया तो हजारों में आजादी की दीवानगी में फांसी के फंदे को कबूल किया. गोपाल कृष्ण गोखले भी ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानी थे. आज हम गोपाल कृष्ण गोखले की जीवनी इतिहास जानेगे.
Gopal Krishna Gokhale Biography In Hindi
गोपाल कृष्ण गोखले का जीवन परिचय
नाम | गोपाल कृष्ण गोखले |
जन्म | 9 मई, सन 1866 |
जन्म स्थान | कोथलुक, |
मृत्यु | 19 फरवरी 1915 |
पिता का नाम | कृष्णाराव गोखले |
माता का नाम | वालुबाई गोखले |
विवाह | 2 विवाह |
संतान | 2 बेटियाँ |
Gopal Krishna Gokhale In Hindi
Gopal Krishna Gokhale Biography: वह व्यक्ति जिसे महात्मा गांधी ने अपने राजनैतिक गुरु के रूप में स्वीकार किया वह गोपाल कृष्ण गोखले थे. उन्होंने गांधी को भावनात्मक रूप से बहुत प्रभावित किया था. गोखले 1866 में महाराष्ट्र प्रान्त के रत्नागिरी जिले में पैदा हुआ थे.
गोखले 1884 में बम्बई के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की तथा पूना के न्यू इंग्लिश स्कूल में अध्यापक की नौकरी की. उनके जीवन में सबसे अधिक यादगार घटना उस समय घटित हुई, जब वह फरगुसन कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर रहते हुए पढ़ाने के कार्य में व्यस्त थे.
वह न्यायधीश महादेव गोविन्द रानाडे के साथ सम्पर्क में आए, जिन्होंने गोखले को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्वयं समर्पित कर देने के लिए प्रेरित किया.1890 में गोखले सार्वजनिक सभा के सचिव नियुक्त किये गये यह संस्था उनकर गुरु रानाडे द्वारा द्वारा स्थापित की गई थी.
जिनके प्रतिनिधित्व से लोग प्रेरणा प्राप्त प्राप्त करते थे. 6 वर्ष बाद उन लोगों ने दक्कन सभा की स्थापना की जिसका उद्देश्य कल्याणकारी कार्यों को बढ़ावा देना था. जैसे अकाल और प्लेग की महामारी के दौरान लोगों को राहत देना तथा भूमि सुधार के कार्य व स्थानीय स्वायत्त सरकार की स्थापना आदि को महत्व देना आदि. गोखले दक्कन सभा के प्रथम सचिव नियुक्त किये गये.
गोखले और दूसरे बहुत से प्रतिष्ठित कार्य कलापों में भाग लेने लगे. उन्होंने इंग्लैंड में रॉयल कमिशन के सामने 186 पृष्ट का एक गवाह पत्र रखा जिसमें उन्होंने वर्णन करते हुए लिखा था कि कैसे हमारा देश ब्रिटिश सरकार के हाथों दुर्व्यवस्था स्वरूप वित्तीय व प्रशासनिक समस्याओं के साथ कष्टपूर्ण जीवन जी रहा हैं.
1899 में बम्बई प्रेसिडेंसी के केंद्रीय विभाग में नगर निगम का प्रतिनिधि बनने के बाद उन्होंने एक राहत कार्य की योजना बनाई ताकि अकाल पीड़ित किसानों की सुरक्षा के साथ साथ उनकी मदद भी की जा सके. भूमि हस्तांतरण विधेयक पर प्रचंडता पूर्वक आक्रमण करते हुए प्रशासन को आज्ञा दी कि जिन लोगों ने भूमिकर या किसी तरह के बकाया को वापिस नहीं किया हैं, उसकी जमीन का कब्जा कर लो.
गोखले ने इसका विरोध करते हुए परामर्श दिया कि भूमि पर कब्जा करने की बजाय उसके विकल्प के रूप में सहकारी क्रेडिट बैंक व बैंकों की स्थापना की जाए जिससे किसानों की भूमि को बंधक या गिरवी रखकर उन्हें ब्याज के पैसे दे सके. वे इस बात के सख्त विरोधी थे कि नगर निगम या नगर पालिकाओं में जातीय आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाए.
ब्रिटिश विधान परिषद के सदस्य बनने पर 1901 में गोखले ने इस बात पर प्रबल जोर दिया कि ग्रामीण गरीबी उन्मूलन, शिक्षा कर, सुरक्षा व्यय तथा नमक पर कर आदि सम्बन्धी निर्णय को उचित रूप से प्रभावित किया जाय. गोखले ने 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रवेश किया. 1905 में इन्हें इंग्लैंड भेजा गया ताकि इंग्लैंड में रह रहे अंग्रेजों को सार्वजनिक रूप से सूचित कर सके.
कि भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा बहुत ही क्रूरता व निर्दयतापूर्वक व्यवहार किया जा रहा हैं. उन्होंने 1905 में वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की तथा उसी वर्ष सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडियन सोसायटी की स्थापना कि ताकि कार्यकर्ताओं व जन साधारण को प्रोत्साहित किया जा सके.
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