गोवत्स द्वादशी (बछ बारस) 2024 व्रत कथा | Govatsa Dwadashi Vrat Katha In Hindi

गोवत्स द्वादशी (बछ बारस) 2024 व्रत कथा | Govatsa Dwadashi Vrat Katha In Hindi: कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तथा भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बछबारस अथवा गोवत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता हैं.

इस दिन विवाहित महिलाएं पुत्र कामना करते हुए गाय और बछड़े का पूजन करती हैं. इस व्रत के दिन गेंहू और गाय के दूध से बनी वस्तुओं का सेवन वर्जित माना गया हैं.

गोवत्स द्वादशी (बछ बारस) 2024 व्रत कथा | Govatsa Dwadashi Vrat Katha In Hindi

बच्छ बारस अर्थात गोवत्स द्वादशी व्रत 2024 में डेट 28 अक्टूबर हैं, जो कार्तिक कृष्ण द्वादशी के दिन किया जाता हैं.

इस दिन गायों और बछड़ों की सेवा की जाती हैं. गोवत्स द्वादशी के दिन प्रातकाल स्नानादि करके गाय के बछड़ों का पूजन करे, फिर उनकों गेहू के बने पदार्थ खिलाएं.

गोवत्स द्वादशी के दिन गाय आदि के दूध का गेहूं की बनी वस्तुओं और कटे फल नही खाना चाहिए. इसके बाद गोवत्स द्वादशी की कहानी सुनकर ब्राह्मणों को फल का दान देवे.

धनतेरस से एक दिन पूर्व मनाया जाने वाले इस अनोखे त्यौहार का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व हैं. इस दिन दिव्य गाय नंदिनी की स्मृति में व्रत रखा जाता हैं. इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानेगे कि गोवत्स व्रत क्या है कैसे मनाया जाता हैं.

गोवत्स द्वादशी (बछ बारस) 2024 व्रत कथा

बहुत समय पूर्व भारत में सुवर्णपुर नामक नगर में देव दानी राजा राज्य करता था. उसके सवत्स एक गाय और एक भैस थी. राजा के दो रानियाँ थी गीता और सीता.

सीता भैस से सहेली के समान तथा गीता बछड़े से सहेली और पुत्र का प्यार करती थी. एक दिन भैस सीता से बोली- हे रानी, गाय का बछड़ा होने से गीता रानी मुझसे इर्ष्या करती है. सीता ने कहा ऐसी बात है तो मैं सब ठीक कर दूंगी.

सीता ने उसी दिन गाय के बछड़े को काटकर गेहू की राशि में गाड़ दिया. इसका किसी को पता न चला. राजा जब भोजन करने बैठा तब माँस की वर्षा होने लगी. चारो और महल में माँस और खून दिखाई देने लगा, जो भोजन की थाली थी. उसका सब भोजन मल मूत्र हो गया.

ऐसा देखकर राज बहुत चिंतित हुआ, उसी समय आकाशवाणी हुई हे राजन, तेरी रानी सीता ने गाय के बछड़े को काटकर गेंहूँ की राशि में दबा दिया हैं, इसी से यह सब हो रहा हैं. कल गोवत्स द्वादशी हैं. इसलिए भैस को राज्य से बाहर करके गाय और बछड़े की पूजा करो.

दूध तथा कटे फल मत खाना, इससे तेरा तप नष्ट हो जाएगा और बछड़ा भी जिन्दा हो जायेगा. सायंकाल जब गाय आई तब राजा पूजा करने लगा,

जैसे ही मन में बछड़े को याद किया वैसे ही बछड़ा गेहूं के ढेर से निकलकर पास आ गया, यह देखकर राजा प्रसन्न हो गया. उसी समय से राजा ने आदेश कर दिया कि सभी गोवत्स द्वादशी का व्रत करे.

बछ बारस 2024

बछबारस का त्यौहार भाद्रपद (भादों) द्वादशी को मनाया जाता हैं. इस दिन व्रत रखने वाले स्त्री पुरुषों को गाय के बछड़े की पूजा करनी चाहिए.

अगर किसी के यहाँ गाय का बछड़ा ना हो तो किसी दूसरे की गाय के बछड़े की पूजा की जाती हैं. किसी भी सूरत में गाय का बछड़ा ना मिले तो बछबारस की पूजा के लिए मिट्टी का गाय का बछड़ा बनाकर भी पूजा की जाती हैं.

बछबारस व्रत पूजा विधि (Bach Baras vrat Pooja Vidhi)

इस दिन की पूजा में उसके ऊपर दही, भीगा हुआ बाजरा, आटा, घी आदि चढ़ावे, फिर बछबारस की कहानी सुने. फिर मोठ, बाजरा पर एक रुपया रखकर वायना काढ़ सासुजी को दे दे.

इस दिन बाजरा की ठंडी रोटी खावे, फिर रोली या हल्दी से तिलक लगाना चाहिए. चावल दूध चढ़ावे. बछबारस के दिन गाय का दूध, दही, गेहूं, चावल नही खाना चाहिए. यह व्रत पुत्र प्राप्त करने के लिए किया जाता हैं.

अपने कुंवारे लड़के की कमीज पर सातियाँ बनाकर पहनावे और कुँए को पूजें. इससे बच्चें के जीवन की रक्षा होती हैं. भूत-प्रेत, नजर और रात के अचानक डर से बचत होती हैं.

जिस साल लड़के के विवाह या लड़का जन्म ले तो यह उजमन किया जाता हैं. इस दिन से एक दिन पहले एक सेर बाजरा दान में देवें.

बछबारस के दिन एक थाली में 13 मोठ बाजरे की ठेरी बनाकर उस पर दो मुट्ठी बाजरे का आटा जिसमे चीनी मिली होवे रख देवे, एक तियल और रूप्या भी इस पर रखे.

इस सामान को हाथ फेरकर अपनी सासुजी के पाय लगकर दे. इसके बाद गाय के बछड़े और पानी के कुँए की पूजा करे. इसके बाद मंगल गीत गाएं और ब्राह्मणों को दान देना चाहिए.

बछबारस की कथा कहानी (Bach Baras Katha Story)

एक बार एक राजा थे, उसके सात बेटे तथा एक पौत्र था. एक दिन राजा को विचार आया कि एक कुआँ खुदवाया जाए.

राजा ने अपनी मजदूरों को कुआँ खोदने का हुक्म दिया. कुछ ही दिन में कुआँ खुदकर तैयार हो गया, मगर उसमें छल्लू भर पानी भी नही निकला.

तभी राजा ने इस रहस्य का पता लगाने के लिए, विद्वान पंडितों को बुलाया, और उनसे पूछा- हे ब्राह्मण देव मैंने कुआँ खुदवाया मगर इसमें पानी नही निकला इसका क्या कारण हैं.

पंडित ने राजा से कहा – महाराज अगर आप अपने नाती को बलि दे तथा यज्ञ करवाएं तो कुँए में पानी आ जाएगा.

राजा पंडित की बात मान गये, बच्चें को बलि देने की तैयारियां शुरू होने लगी. तभी बारिश होने लगी तथा पानी से कुआ भर गया. जब राजा को इस बात का पता चला तो वे पानी के उस कुँए को पूजने निकले.

उस दिन राजा के घर में अचानक साग सब्जी समाप्त हो गया, नौकरानी ने गाय के बछड़े को काटकर बना दिया.

जब राजा रानी कुँए की पूजा करके वापिस महल को आए तो उन्होंने नौकरानी से पूछा, कि बछड़ा कहाँ हैं. तब नौकरानी ने कहा उसे तो मैंने काटकर साग बना दिया.

राजा ने गुस्से में आकर कहा, अरे पापिन तूने यह क्या किया ? राजा ने उस मांस की हांडी को जमीन में गाढ़ दिया और कहने लगा- जब गाय वन से लौटकर आएगी तो मैं उसको किस प्रकार समझाउगा.

शाम को जब गाय वन से चरकर घर आई तो वहां पर बछड़े का मांस गड़ा हुआ था. उस जगह को अपने सींग से खोदने लगी. जब सिंग हाड़ी में जा लगा तो गाय ने उसे बाहर निकाला, उस हाड़ी से गाय का बछड़ा तथा राजा का नाती निकले. उसी दिन से इस दिन का नाम बछबारस पड़ गया और गायों तथा उनके बछड़ों की पूजा होने लगी.

Leave a Comment