Guru Tegh Bahadur History In Hindi गुरु तेग बहादुर का इतिहास: विभिन्न मतों के विश्व इतिहास को देखा जाए तो यह प्रतीत होगा, कि सिख पंथ के गुरुओं ने अपने धर्म, मानवता की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिए है.
खासतौर पर मुगलों के काल में गुरु अर्जुन सिंह ने जहांगीर का तो गुरु तेग बहादुर जी ने औरंगजेब के आदमखोर के धर्म विरोधी कार्यों तथा इस्लाम में जबरदस्ती धर्मांतरण के खिलाफ विरोध किया तो उन्हें व उनके भाइयों तथा शिष्यों को अमानवीय यातनाओं के जरियें शहीद किया गया.
कश्मीरी हिन्दू पंडितों के धर्म की रक्षार्थ अपना बलिदान देने वाले तेगबहादुर जी को हमारा शत शत नमन. आज के इस (Guru Tegh Bahadur History) में उनके जीवन इतिहास, जीवनी, जयंती, शहीदी, बाणी, कोट्स आदि को जानेगे.
गुरु तेग बहादुर का इतिहास Guru Tegh Bahadur History In Hindi
- पूरा नाम- गुरु तेग़ बहादुर सिंह
- जन्म- 18 अप्रैल, 1621
- जन्म भूमि- अमृतसर, पंजाब
- मृत्यु- 24 नवम्बर, 1675
- मृत्यु स्थान- चांदनी चौक, नई दिल्ली
- अभिभावक- गुरु हरगोविंद सिंह और माता नानकी
- पति/पत्नी- माता गुजरी
- संतान- गुरु गोविन्द सिंह
सिख सम्प्रदाय के नौवे गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 18 अप्रैल, 1621 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था. इनके पिताजी का नाम गुरु हरगोविन्द जी और माता का नाम नानकी था. बालपन में ही उनकी बहादुरी तथा त्याग को देखकर हर गोविन्द जी ने इनका नाम त्याग मल रखा था.
हिन्दुओं तथा सिक्खों के पूज्य बहादुर जी को 20 मार्च, 1664 के दिन औपचारिक रूप से सिक्ख गुरु की उपाधि मिली तथा 1675 को ये गुरुपद पर आसीन हुए. हरिकृष्ण राय जी के अचानक देहांत हो जाने के बाद इन्हें गुरु के पद पर आसीन किया गया.
इन्होने आनंदपुर साहिब बसाया तथा यहीं निवास करने लगे, मुगलों के प्रति उनमें बचपन से ही आक्रोश था मात्र 14 वर्ष की आयु में ही इन्होने अपने पिताजी के साथ मुगलों के खिलाफ जंग लड़ी.
गुरु तेग बहादुर जी का जीवन इतिहास (Guru Tegh Bahadur Life History In Hindi)
मुगलों के साथ युद्ध में खून खराबे को देखकर उनका मन आध्यात्म चिंतन की ओर प्रेरित हुआ. और बाबा बकाला नामक स्थान पर जाकर तेग बहादुर जी ने 20 वर्षों तक तपस्या की.
हिंद दी चादर कहे जाने वाले गुरु ने धर्म प्रचार के लिए कई स्थानों की यात्रा भी की. इस क्रम में वे आनंदपुर साहब से कीरतपुर, रोपण, सैफाबाद होते हुए वे खिआला में उपदेश देते हुए कुरुक्षेत्र से होते हुए कड़ामानकपुर पहुचे तथा यहाँ उनके गुरु भाई मलूकदास जी मिले.
तेग बहादुर जी ने मानव कल्याण तथा परोपकार के कई कार्य किये जैसे कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएँ बनवाना आदि. साथ ही इन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.
वे जहाँ भी जाते लोगों को धर्म की सच्ची बात बताते तथा रूढ़ियों, अंधविश्वासों से परे रहने की सीख देते. धर्म प्रचार करते ये 1666 में पटना पहुचे, यही माता गुजरी ने गुरु गोविंद सिंह जी को जन्म दिया जो इनके बाद सिक्खों के दसवें गुरु बने.
भारत भूमि पर अपने धर्म की रक्षा के लिए बलिदान करने वाले वीरों की सूची में हजारों नाम हैं, जिनमें गुरु तेग बहादुर जी का प्रथम स्थान हैं.
मुगलियाँ सल्तनत का दौर था उस समय दिल्ली की सत्ता पर औरंगजेब काबिज था वह कट्टर मुसलमान था तथा वह अपने साम्राज्य के सभी लोगों को इस्लाम में लाने के लिए हरसंभव कोशिश करता था.
दसवें गुरु तेगबहादुर जी द्वारा कश्मीरी पंडितों की रक्षा (ten sikh gurus history in hindi)
उसने सभी भारतीयों धर्मो के एक एक ज्ञाता को अपने दरबार में रखा गया तथा रोजाना वह उनके धर्म ग्रंथों को उनसे पढ़वाकर व्याख्या करवाता था. उस समय के धर्म के जानकार औरंगजेब की इच्छा के अनुसार अपने धर्म की बाते बताते थे.
इसी क्रम में उसके दरबार में हिन्दू धर्म की नुमाईश एक कश्मीरी पंडित करते थे वे नित्य दरबार में हाजिर होकर गीत के कुछ श्लोक पढ़ते तथा उनका अर्थ बताते थे. साधारण तौर पर वे वही श्लोक पढ़ते जिसमें धर्म की कोई ख़ास बात नहीं हुआ करती थी.
एक दिन पंडित अस्वस्थता के चलते दरबार न जा सका तथा उसने अपने बेटे को मुगल सम्राट की सेवा में भेजा. मगर वो उन्हें चयनित श्लोक सुनाने की हिदायत देना भूल गया, जिसके चलते गलती से उस कश्मीरी पंडित ने गीता का समस्त सार उसे कह सुनाया,
जब औरंगजेब ने हिन्दू धर्म की बातों को जाना तो लगा कि यह तो दुनियां का सबसे महान दीन हैं कट्टरता की सोच के चलते वह इस्लाम से अच्छा किसी मत को देखना नहीं चाहता था.
अतः उसने अपने राज्य के समस्त काफिरों को यह आदेश दिया कि वे या तो इस्लाम अपना ले अथवा अपनी दर्दनाक मौत का इंतजार करे.
जब सम्राट का यह संदेश पंडित के पास पहुचा तो अपने धर्म की रक्षार्थ उसे गुरु तेग बहादुर जी के पास आना पड़ा, उन्होंने गुरुजी को अपनी समस्या बताई, तभी नौ वर्षीय बालक गोविन्द सिंह वहां आ गये.
उन्होंने पूछा गुरूजी क्या बात हैं. तब तेग बहादुर जी ने सारी कहानी उन्हें बताई. गोविन्द सिंह जी बोले- इसके लिए क्या करना होगा. तब गुरु बोले पुत्र इसके लिए बलिदान देना होगा.
तब बाला प्रीतम अर्थात गोविन्द सिंह कहने लगे आपसे महान और कोई पुरुष नहीं हैं जो इस संकट की घड़ी में धर्म की रक्षा करे, ऐसा सुनकर लोगों ने कहा आपके पिताजी बलिदान देगे तो आपकी माताजी विधवा हो जाएगी तथा आप यतीम.
तब प्रीतम बोले, यदि लाखों बच्चे यतीम हो और हजारों माताओं का सुहाग मिट जाए इससे बेहतर मुझे यतीम होना स्वीकार हैं.
यह सुनकर तेग बहादुर जी ने पंडित जी से कहा कि सम्राट को यह संदेश पहुचाओं कि आप तेग बहादुर को इस्लाम स्वीकार करवा दो हम सब स्वीकार कर लेगे.
औरंगजेब ने गुरूजी की इस शर्त को स्वीकार कर लिया, तथा उन्हें दिल्ली दरबार में बुलाया गया. यहाँ उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए लालच दिए गये दवाब डाला गया.
मगर यह बात तेग बहादुर जी के अकेले की नहीं वरन हजारों लाखों हिन्दुओं के धर्म रक्षा का सवाल था, अतः उन्होंने स्पष्ट तौर पर मना कर दिया कि वे किसी भी सूरत में इस्लाम स्वीकार नहीं करेगे.
तेगबहादुर जी का शहीदी दिवस (guru teg bahadur ji martyrdom day)
तुम्हारा इस्लाम धर्म भी इस बात की इजाजत नहीं देता कि आप जोर जबरदस्ती से लोगों को इस्लाम में शामिल करे, यह बात औरंगजेब को बिलकुल भी रास नहीं आई और उसने तेग बहादुर जी का सिर कलम करने का आदेश दे दिया.
गुरु ने हसते हसते 24 नवम्बर 1675 के दिन दिल्ली के चांदनी चौक में धर्म के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया, जहाँ आज उनका शहीदी स्थल गुरुद्वारा ‘शीश गंज साहिब बना हुआ हैं जो सिखों व हिन्दुओ के लिए पवित्र धाम हैं.
ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕਾ ਖਾਲਸਾ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕੀ ਫਤਹਿ ਆਪ ਨੇ ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਮਾਸਟਰ ਲਿਖਾ ਹੈ ਜੋ ਸਰਾ ਸਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਤੋਹੀਨ ਹੈ ਇਸ ਠੀਕ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ