हर्यक वंश का इतिहास | Haryak Empire History In Hindi यहाँ हम हर्यक वंश इतिहास में वंश के संस्थापक, अंतिम शासक राजा, बिम्बिसार राजा नन्द वंश के बारे में संक्षिप्त रूप में इस राजवंश के इतिहास का अध्ययन करेगे.
544 ई. पू. से 412 ई. पू. तक हर्यक वंश भारत की राजनीति में रहा. इसकी स्थापना बिम्बसार राजा ने की बिहार से इस वंश के सत्ता की शुरुआत की.
मगध साम्राज्य का इसे वास्तविक संस्थापक भी माना जाता हैं. नागदशक हर्यक वंश का अंतिम शासक था जिसका प्रशासन बेहद कमजोर था जिसका फायदा उठाकर एक शासक ने शिशुनाग वंश की स्थापना कर इस वंश का अंत कर दिया.
हर्यक वंश का इतिहास | Haryak Empire History In Hindi
राजवंश नाम | हर्यक |
संस्थापक | बिम्बिसार |
राजधानी | राजगृह, पाटलिपुत्र |
शासक | बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयन, नागद्श्क |
शासनावधि | 544 ई. पू. से 412 ई. पू. तक |
अंतिम शासक | नागदशक |
परवर्ती | शिशुनाग |
बिम्बिसार हर्यक वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था तथा महात्मा बुद्ध का मित्र व संरक्षक भी था. इसकी राजधानी गिरिव्रज (राजगृह) थी.
बिम्बिसार ने विजय और विस्तार की नीति अपनाते हुए अंग देश पर अधिकार कर लिया. अंग के शासक ब्रह्मदत्त थे.
अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बिम्बिसार ने वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किये. पहला कोश्लराज की पुत्री एवं प्रसेनजीत की बहन कोशल देवी से तथा दूसरा वैशाली की लिच्छवी राजकुमारी चेल्लना से तथा तीसरा पंजाब के मद्र कुल के प्रधान की पुत्री क्षेम से.
बिम्बिसार ने अवन्ति नरेश चंडप्रधोत से युद्ध किया, किन्तु बाद में दोनों मित्र बन गये. जब प्रधोत को पीलिया रोग हुआ तो बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को उज्जैन भेजा था.
उसकी राजधानी पांच पहाड़ियों से घिरी हुई थी. जिसका प्रवेश द्वार चार ओर से पत्थरों की दीवार से घिरा हुआ था. उस वजह से राजगृह लगभग अविजित बन गया था.
शासक बिम्बिसार को श्रेणिक यानि सेना रखने वाला भी कहा जाता हैं, बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु ने उसकी हत्या कर सिंहासन प्राप्त किया उसे कुणिक भी कहा जाता है.
अजातशत्रु बौद्ध धर्म का अनुयायी था एवं उसकी राजधानी में प्रथम बौद्ध संगीति हुई थी. अजातशत्रु ने कौशल एवं लिच्छवी गणराज्य की राजधानी वैशाली को जीतकर मगध साम्राज्य का हिस्सा बना दिया था.
वैशाली के खिलाफ युद्ध में अजातशत्रु ने रथमूसल तथा महाशिलाकंटक जैसे हथियारों का प्रयोग किया था. उदायिन हर्यक वंश का अंतिम महान शासक था.
उदायिन ने भी अपने पिता अजातशत्रु की हत्या कर राजसिंहासन प्राप्त किया था. पाटलिपुत्र की स्थापना का श्रेय उदायिन को ही जाता हैं. उदायिन ने इसे अपनी राजधानी बनाया. यहाँ उसने गंगा व सोन नदी के संगम पर एक किला बनवाया.
हर्यक राजवंश का इतिहास एवं शासकों के नाम: (History of Haryak Empire and Name of Rulers in Hindi)
- बिम्बिसार (544 ई. पू. से 493 ई. पू.)
- अजातशत्रु (493 ई.पू. से 461 ई.पू.)
- उदायिन (461 ई.पू. से 445 ई.पू.)
- अनिरुद्ध
- मंडक
- नागदशक
हर्यक वंश का शासन काल और प्रमुख राजा
544 ई. पू. में बिम्बिसार के द्वारा हर्यक राजवंश की स्थापना की गई थी, यह नागवंश क्षत्रिय वंश की एक शाखा थी, जिनका उदय एक बड़ी राजनैतिक ताकत के रूप में मगध में हुआ था.
बिम्बिसार
हर्यक वंश का इन्हें वास्तविक संस्थापक माना जाता हैं. इन्होने राजगृह को अपनी राजधानी बनाया तथा कई पड़ोसी राज्यों की राजकुमारियो से विवाह सम्बन्ध स्थापित कर मधुर सम्बन्ध भी बनाएं. इनकी शासनावधि 544 ई. पू. से 492 ई. पू. तक मानी जाती हैं.
महावग्ग के विवरण के अनुसार बिम्बिसार के कुल 500 रानियाँ थी. इन्होने करीब 42 साल तक मगध पर शासन किया, जैन व बौद्ध ग्रंथों के अनुसार इन्हें अंतिम वर्षों में अजातशत्रु द्वारा कैद कर लिया तथा 492 ईपू में देहावसान हो गया.
भारत के इतिहास का यह पहला शासक था जिसने स्थायी सेना रखनी शुरू की, यह भगवान बुद्ध का घनिष्ठ मित्र भी था.
इन्होने बड़े पुत्र दर्शक को उत्तराधिकारी घोषित किया तथा अजातशत्रु को अंग राज्य का शासक बनाया, उत्तराधिकारी पद न मिलने तथा बुद्ध के अधिक करीब होने के कारण इनकी हत्या अजातशत्रु ने कर दी.
अजातशत्रु
यह हर्यक वंश का दूसरा शासक और बिम्बिसार का उत्तराधिकारी था, जिन्होंने 492-460 ई. पू तक मगध साम्राज्य पर शासन किया, इनके बचपन का नाम कुणिक था. पिता की हत्या के बाद जब राजगद्दी पर बैठा तो पिता बिम्बिसार के राज्य को चरमोत्कर्ष तक पहुचाया.
इन्होने अपनी सैन्य शक्ति और बुद्धिमानी से सभी प्रतिद्वन्दियों पर विजय प्राप्त की, पिता बिम्बिसार को मारने के बाद रानी कौशल की भी मृत्यु हो गई.
इस घटना से राजकुमार प्रसेनजीत बेहद क्रोधित हुआ और अजातशत्रु के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया, इन्होने एक युद्ध में अजातशत्रु को पराजित भी कर दिया मगर बाद में अपनी बेटी का विवाह कर काशी राज्य दहेज़ में दे दिया.
अपने शासनकाल में अजातशत्रु ने कई राज्यों के साथ संघर्ष किया जिनमें कौशल संघर्ष, वज्जि संघर्ष, मल्ल संघर्ष मुख्य थे.
अपनी शासनावधि के दौरान भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात स्तूप का निर्माण करवाया तथा 483 ई पू में पहली बौद्ध संगीति का आयोजन भी करवाया.
विभिन्न स्रोतों के अनुसार अजातशत्रु ने करीब 32 सालों तक शासन किया. अपने कर्मों का फल इन्हें अपने पुत्र उदयन के हाथों 460 ई पू में मिला,
जब यह उदयन के हाथों मारा गया. इनकी शासनावधि में ही बुद्ध और महावीर स्वामी का स्वर्गलोक गमन हुआ.
उदयन
पिता अजातशत्रु की हत्या के बाद 460 ई. पू. में उदयन मगध का शासक बना, इन्हें बौद्ध ग्रंथों में पितृहन्ता भी कहा गया. यह सम्राट बनने से पहले चम्पा राज्य का उपराजा था.
इनकी माँ का नाम पद्मावती था. उदयन ने पाटलिपुत्र नगर बसाकर राजगृह से इसे राजधानी बनाया. अवन्ती के एक जासूस ने इसकी हत्या कर दी.
नागदशक एंव शिशुनाग
यह हर्यक वंश का अंतिम शासक था, यह उदयन का तीसरा बेटा था. अत्यंत विलासी और दुर्बल शासक के रूप में जाना जाता हैं,
शासन की शिथितला के चलते जनमानस में व्यापक असंतोष फ़ैल गया और राज्य द्रोह कर सेनापति शिशुनाग शासक बना और इस तरह 412 ई पू में हर्यक वंश का अंत और शिशुनाग वंश का उदय हुआ.