Henry Louis Vivian Derozio History Biography Jivani In Hindi: हेनरी लुई विवियन डिरोजिओ एक प्रसिद्ध एग्लो इन्डियन कवि होने के साथ साथ यूरोपीय देशों की मुद्रा को भारतीय लोकजीवन के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
इनका जन्म 18 अप्रैल 1809 को कलकता में हुआ था. एक साहित्यकार और कवि के रूप में इन्होने कई महत्वपूर्ण कार्य किये मात्र 22 वर्ष की आयु में 26 दिसम्बर 1831 को कलकता में ही डिरोजिओ का निधन हो गया था.
Henry Louis Vivian Derozio In Hindi (हेनरी लुई विवियन डिरोजिओ का जीवन परिचय)
Henry Louis Vivian Derozio Biography/ information/Poems In Hindi: डिरोजिओ स्वभाव से उग्र और लोगों को जल्दी अपनी ओर आकर्षित करने की कला में माहिर थे. बेहद कम उम्र में इन्होने अपना प्रभाव बिखेरा 17-18 वर्ष की आयु में ही अंग्रेजी के व्याख्याता पद पर नियुक्त हो गये.
हेनरी विलियम राष्टवादी कवियों में से एक थे. हेनरी ये वही व्यक्ति जो जिन्होंने युवा बंगाल आन्दोलन की स्थापना की थी. ये आन्दोलन इनके नेतृत्व में 1928 को किया गया था. ये हिन्दू कोलेज में शिक्षक की भूमिका अदा कर चुके थे. फिर इन्होने साहित्यिक जीवन को अपनाया और कई रचनाए कर डाली.
इन्होने सामज में हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए अनेक आन्दोलन किये. हेनरी विलयन सभी की स्वतंत्रता चाहते थे. हेनरी फ़्रांसी की क्रांति से प्रभावित हुए. और इसे अपने देश में भी अपनाया था.
हेनरी ने सभी को स्वतन्त्र तथा समानता से जीने के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर दिया था. इन्होने अपने जीवन से सभी को सत्यनिष्ठा का अध्ययन कराया. और सभी के लिए प्रेरणा का साधान बन गए.
विलियम हेनरी एक महान समाज सुधारक थे. इन्होने समाज सुधार के लिए ‘एकेडेमिक एसोसिएशन’ एवं ‘सोसायटी फ़ॉर द एक्वीजीशन ऑफ़ जनरल नॉलेज’ की स्थापना कर शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाया.
इन्होने ‘एंग्लो-इंडियन हिन्दू एसोसिएशन’, ‘बंगहित सभा’ व ‘डिबेटिंग क्लब’ सभाओ की स्थापना कर समाज चेतना जाग्रत की. इन्होने एक दैनिक पत्रिका का सम्पादन भी किया जो ईस्ट इंडिया नाम से प्रसिद्ध हुई.
उनकी स्वतंत्रता, समानता और स्वतंत्रता की भावना की सोच के चलते इनके अनुयायियों की संख्या निरंतर बढ़ती गई. देश की परतन्त्रता में महती भूमिका निभाने वाले इनके अनुयायियो के समूह को डेरोजियन कहा जाता था. डिरोजिओ की देश भक्ति कविताओं में भारत के लिए – मेरा देशी भूमि प्रमुख थी.
तीव्र परिवर्तन की विचारधारा के व्यक्तित्व के कारण इन्हें आधुनिक भारत का पहला राष्ट्रीय कवि होने का श्रेय भी प्राप्त है. इनकी याद में भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में डाक टिकट जारी किया गया था.
डिरोजिओ ने फ़्रांसिसी विचारों से प्रभावित होकर अपने अनुयायियों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे पूरी बौद्धिकता तथा स्वतंत्रता के साथ चिन्तन को स्वीकार करे. तथा हिन्दू समाज में व्याप्त रुढ़िवादी सोच एवं अंधविश्वासों का खुलकर विरोध करे.
इन्होने कुछ वर्षो तक पत्रकारिता में भी कार्य किया, बंगाल से प्रकाशित होने वाले पत्र समाचार पत्र हेसपेरस, और द कलकता गजट में भी काम किया. तथा पत्रकारिता के माध्यम से डिरोजिओ ने बालिका शिक्षा और स्त्रियों को अपने अधिकारों के प्रति जाग्रत करने का भी कार्य किया.
डिरोजिओ के अनुयायियों में ऋषिकृष्ण मलिक, ताराचन्द्र चक्रव्रती, और राममोहन बनर्जी मुख्य थे. इसके सगठन ने बंगाल विभाजन का विरोध भी किया, मगर आशानुरूप सफलता हाथ नही लगी. 1920 में बंगाल में शुरू हुए जनजागरण का श्रेय डिरोजिओ को ही जाता है.
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हेनरी लुई विवियन डिरोजिओ का जीवन परिचय इतिहास योगदान जीवनी: बंगाल युवा आंदोलन का आरंभ विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति हेनरी सुई विवियन डेरोजियो (1809-1831 ई) द्वारा किया गया. डेरोजियो अंग्रेजी साहित्य तथा इतिहास के शिक्षक के रूप में हिन्दू कॉलेज में सन 1826 ई में कलकत्ता आए.
विलक्षण प्रतिभा के धनी डेरोजियो ने अध्यापन कार्य के अतिरिक्त समय में सम्पादन का कार्य भी किया, उन्होंने कलकत्ता साहित्यिक गजट तथा हैस्पेरस का सम्पादन किया. वह इंडिया गजट से भी सम्बद्ध रहे. हिन्दू कॉलेज के विद्यार्थी उनके व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित रहते थे.
कक्षा के भीतर तथा बाहर उनके अनुसार आचरण करने और हर तरह की बुराई से बचने के साथ साथ ही सत्य के लिए जीने और मरने की प्रेरणा अपने विद्यार्थियों को दी. उन्होंने नैतिक, धार्मिक तथा सामाजिक सभी विषयों पर स्वतंत्र चिंतन करने पर बल दिया.
सुकरात के समान ही डेरोजियो ने सत्य का अनुसरण किया तथा उन सभी युवकों को गुमराह करने का दोष लगाया गया. कलकत्ता के प्रभावशाली लोगों ने उन्हें नौकरी से निकलवा दिया. इसके कुछ समय बाद ही Henry Louis Vivian Derozio की मृत्यु हो गई.
डेरोजियो उन गिने चुने अध्यापकों में थे जिनके ज्ञान, सत्य निष्ठा और बुराई की घ्रणा की प्रवृत्ति का उनके सम्पर्क में आने वाले युवकों पर गहरा प्रभाव पड़ा.
डेरिजियो ने फ्रांसीसी क्रांति से प्रेरणा ग्रहण की तथा अपने जमाने के अत्यंत क्रांतिकारी विचारों को अपनाया. उन्होंने अपने शिष्यों को सभी आधारों की प्रमाणिकता की जांच करने, मुक्ति, समानता और स्वतंत्रता से प्रेम करने तथा सत्य की पूजा करने के लिए प्रेरित किया.
डेरोजियो और उसके प्रसिद्ध अनुयायी जिन्हें डेरोजियन और यंग बंगाल कहा जाता था, उत्कृष्ट देशभक्त थे. डेरोजियो को आधुनिक भारत का प्रथम राष्ट्रकवि माना जा सकता हैं. उदाहरण के लिए उन्होंने 1827 में एक कविता लिखी.
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“My Country! In the days of Glory Past
A beauteous halo circled round thy brow
And worshiped as deity thou wast,
Where is that Glory, where is that reverence now?
Thy eagle pinion is chained down at last,
And grovelling in the lowly dust art thou,
Thy minstrel hath no wreath to weave for thee,
save the sad story of thy misery”
(मेरे देश बीती हुई गरिमा के दिनों से
तुम्हारे मस्तक के चारों ओर एक सुंदर
आभामंडल व्याप्त था एक पूजा एक देवता
के समान होती थी, यह गरिमा कहीं हैं
अब वह श्रद्धा कहीं है आखिरकार गरुड़ के
समान तुम्हारे पंखों को जंजीर से जकड़
दिया गया हैं और तुम नीचे धुल में औंधे
पड़े हो, तुम्हारे चरण को तुम्हारी विपिन्नता
की दुखद कहानी के सिवाय गूंथने के लिए
कोई माला नहीं हैं.)
प्रभाव
उनके विचारों का उस सामाजिक आंदोलन पर गहरा प्रभाव पड़ा जिसे 19 वीं शताब्दी के आरंभ में बंगाल पुनर्जागरण के रूप में जाना जाता था। इसका प्रमुख कारण आन्दोलन ही थे.
और अलेक्जेंडर डफ और अन्य (बड़े पैमाने पर इंजील) ईसाई मिशनरियों द्वारा एक इकोनोक्लास्ट के कुछ के रूप में देखे जाने के बावजूद; बाद में डफ की विधानसभा की संस्था में, तर्कसंगत भावना की स्वीकृति पर फिरोजियो के विचारों को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया गया, क्योंकि वे ईसाई धर्म के मूल सिद्धांतों के साथ संघर्ष में नहीं थे, और जब तक वे कट्टरपंथी हिंदू धर्म की आलोचना नहीं करते थे।
Derozio एक नास्तिक था, लेकिन उनके विचारों को आमतौर पर कृष्ण मोहन बनर्जी और लाल बिहारी डे जैसे ईसाई जाति के ऊपरी जाति के हिंदुओं के धर्मांतरण के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
हालाँकि, समीरन रॉय कहते हैं कि उनके छात्रों के पहले समूह के बीच केवल तीन हिंदू शिष्य ईसाई बन गए, और यह दावा करते हैं कि उनके विश्वास को बदलने के लिए फिरोजियो की कोई भूमिका नहीं थी।
वह बताते हैं कि फिरोजियो को बर्खास्त करने की मांग रामकमल सेन जैसे हिंदू और एच। एच। विल्सन जैसे ईसाई दोनों ने की थी। ताराचंद चक्रवर्ती जैसे कई अन्य छात्र ब्रह्म समाज में नेता बने।
उस पर एक स्मारक डाक टिकट 15-दिसंबर -2009 को जारी किया गया था।
हेनरी लुई विवियन डिरोजिओ नारी अधिकारों के पक्के हिमायती थे लेकिन वे किसी को जन्म देने में सफल नहीं हुए. वस्तुतः डेरोजियो की क्रांतिकारिता किताबी थी, तत्कालीन भारतीय समाज में ऐसा कोई वर्ग या समूह नहीं था जो उनके प्रगतिशील विचारों का समर्थन करता.
वे आम जनता के साथ अपना सम्पर्क भी नहीं बना सके. इन सबके बावजूद डेरोजियो के अनुयायियों ने जनता को आर्थिक, राजनैतिक एवं सामाजिक प्रश्नों पर समाचार पत्रों, पुस्तिकाओं और सार्वजनिक संस्थाओं के माध्यम से शिक्षित करने की राममोहन राय की परम्परा को गतिमान किये रखा.
राष्ट्रीय आंदोलन के प्रसिद्ध नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने डेरोजियो के अनुयायियों को बंगाल में आधुनिक सभ्यता के अग्रदूत हमारी जाति के पिता कहा. इस प्रकार बंगाल युवा आंदोलन ने भारतीयों के सामाजिक राजनैतिक एवं धार्मिक प्रश्नों पर सार्वजनिक आन्दोलन चलाए.