Hindi Ka Vikas | हिंदी का विकास | History of Hindi Language: सभी हिंदी प्रेमियों को हिंदी दिवस 2023 की शुभकामनाएं. 14 सितम्बर को हर साल राष्ट्रीय हिंदी भाषा दिवस मनाया जाता हैं.
एक हजार साल पुरानी हिंदी का इतिहास उतार चढ़ाव भरा रहा हैं. हिंदी के विकास का कालक्रम कई खंडों में विभाजित रहा हैं.
पूर्व में खड़ी बोली हिंदी के स्थान पर ब्रज एवं अवधि में साहित्य (hindi sahitya ka itihas) की रचना हुआ करती थी.
Hindi Ka Vikas | हिंदी का विकास
हिंदी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा हैं. किन्तु व्यवहारिक रूप से इसे यह सम्मान अभी तक प्राप्त नही हो पाया हैं. हिंदी भाषा को उसका वास्तविक सम्मान नही दिए जाने का मुख्य कारण भाषावाद हैं.
भारत में अनेक भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं. भारत के संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त हैं. इन सभी भाषाओं में हिंदी भारत की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हैं. भाषा की बहुलता का ही नतीजा हैं कि देश में भाषावाद सी स्थिति उभरी हैं. जिससे हिंदी को नुकसान उठाना पड़ रहा हैं.
कुछ स्वार्थी राजनीतिज्ञ नही चाहते कि हिंदी को राजभाषा का वास्तविक सम्मान मिले. वे इसका विरोध करते रहते हैं. हालाँकि स्वतंत्रता आन्दोलन के समय राजनेताओं ने यह महसूस किया था. कि हिंदी ही एक भारतीय भाषा हैं, जो दक्षिण के कुछ भागों को छोडकर सम्पूर्ण देश की सम्पर्क भाषा हैं.
देश के विभिन्न भाषाभाषी आपस में विचार विनिमय करने के लिए हिंदी का सहारा लेते हैं. हिंदी की इसी सार्वभौमिकता के कारण राजनेताओं ने हिंदी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया था.
हिंदी भाषा के विकास पर निबंध
बहरहाल हिंदी राष्ट्र के बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली और समझी जाती हैं. इसकी लिपि देवनागरी हैं, जो अत्यंत सरल है एवं इसमें आवश्यकतानुसार देशी विदेशी भाषाओं के शब्दों को सरलता से आत्मसात करने की शक्ति हैं. यह भारत की एक राष्ट्र भाषा हैं. जिसमें पूरे देश में भावात्मक एकता स्थापित करने की पूर्ण क्षमता हैं.
हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता हैं?
इन्ही कारणों से हिंदी ही भारत की एकमात्र ऐसी राष्ट्रभाषा हैं जो देश की राजभाषा बनाए जाने के योग्य हैं.14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से हिंदी को भारत की राज भाषा बनाए जाने का निर्णय किया था. इसलिए 14 सितम्बर को प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता हैं.
हिंदी दिवस मनाए जाने का उद्देश्य इसका व्यापक प्रचार-प्रसार एवं राजकीय प्रयोजनों में इसके इसके उपयोग को बढ़ावा देना था. हर वर्ष सरकारी प्रतिष्ठानों एवं कार्यालयों में धूमधाम के साथ हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता हैं, लोग हिंदी में कार्य करने की शपथ लेते हैं.
लेकिन विडम्बना यह हैं कि हिंदी के प्रति उनका यह प्रेम केवल एक दिन के लिए दीखता हैं. उसकें बाद ये फिर से अंग्रेजी में कार्य करना प्रारम्भ कर देते हैं. हिंदी को उसका वास्तविक स्थान न मिलने का एक कारण यह भी हैं कि अशिक्षित लोग अंग्रेजी में बाते करना और इसी भाषा में कार्य करना अपनी शान समझते हैं.
विडम्बना यह भी हैं कि एक हिंदी भाषी परिवार भी अपने बच्चों को किसी अंग्रेजी माध्यम की स्कूल में ही भेजने की इच्छा रखता हैं. उसकी हिंदी के प्रति उपेक्षा हिंदी के विकास में बाधक कही जा सकती हैं.
वर्तमान में हिंदी की स्थिति
यदि हम हिंदी की संवैधानिक स्थिति की बात करे तो आजादी से पहले जो छोटे बड़े नेता राष्ट्रभाषा या राजभाषा के रूप में हिंदी को अपनाने के मुद्दे पर सहमत थे. उनमें से अधिकांश गैर हिंदी भाषी नेता आजादी मिलने के वक्त हिंदी के नाम से दूर भागने लगे.
और फिर स्थिति यह बनी कि संविधान सभा में हिंदी पर विचार ही नही किया, इसमें हिंदी, अंग्रेजी सहित संस्कृत एवं हिंदुस्थानी पर भी विचार किया गया. किन्तु संघर्ष की स्थिति सिर्फ हिंदी एवं अंग्रेजी समर्थकों के मध्य देखने को मिली.
हालाँकि आजाद भारत में एक विदेशी भाषा, जिसे देश की बहुत थोड़ी जनसंख्या पढ़ लिख समझ सकती थी, देश की राजभाषा नही बन सकती थी. लेकिन अंग्रेजी को यूँ ही छोड़ा नही जा सकता था. ऐसे में हिंदी पर विचार किया गया. वैसे यह ६० प्रतिशत से अधिक जनता की भाषा थी.
इन सब बातों पर गौर करते हुए संविधान निर्माताओं ने यह फैसला लिया कि हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा नही बल्कि राजभाषा हैं.
भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को बनाने के प्रयास
हालाँकि सरकार द्वारा समय समय पर राजभाषा हिंदी के सन्दर्भ में जारी आदेशों की पालना के लिए गृह मंत्रालय के अधीन राज भाषा विभाग का गठन जून 1975 में किया गया था.
राजभाषा हिंदी के प्रचार प्रसार एवं प्रयोग से जुड़ी राजभाषायी गतिविधियों तथा कार्यक्रमों के माध्यम से केंद्र सरकार के कार्यालयों में सरकारी कामकाज में अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देना इस विभाग के लक्ष्य हैं.
इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस विभाग के अंतर्गत केन्द्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान, केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरों तथा देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित आठ क्षेत्रीय राज-भाषा क्रियान्वयन कार्यालय कार्यरत हैं.
राजभाषा के रूप में हिंदी को उचित स्थान पर विराजमान करने के उद्देश्य से समय समय पर कई समितियों का भी गठन किया गया.
संसदीय राज भाषा समिति, केन्द्रीय हिंदी समिति, हिंदी सलाहकार समिति, केन्द्रीय राज भाषा कार्यान्वयन समिति, नगर राज भाषा कार्यान्वयन समितियां इत्यादि कुछ ऐसी समितियां हैं.
हिंदी भाषा का महत्व
हिंदी आज भारत की एक प्रमुख सम्पर्क भाषा हैं. कुछ लोग अंग्रेजी को भारत की सम्पर्क की भाषा कहते हैं. किन्तु ऐसा कहते हुए वे यह भूल जाते हैं कि अंग्रेजी देश के आम जन की भाषा न कभी थी. और ना ही कभी हो पाएगी.
हिंदी भारत की एक ऐसी भाषा हैं. जिसके माध्यम से भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न भाषाभाषी आपस में विचार विनिमय करते हैं. पश्चिम बंगाल का एक बांग्लाभाषी व्यक्ति दिल्ली के हिंदी भाषी व्यक्ति से बात करता नजर आता हैं.
पंजाब के पंजाबी बोलने वाले व्यक्ति को उत्तरप्रदेश व बिहार के लोगों से बात करने के लिए हिंदी का सहारा लेना पड़ता हैं. इतना ही नही गुजराती बोलने वाला व्यक्ति यदि पश्चिम बंगाल जाता हैं, उसे सम्पर्क भाषा के रूप में हिंदी का ही सहारा लेना पड़ता हैं.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भी अपने उत्पादों का प्रचार-प्रसार हिंदी में ही करना पड़ता हैं. अंग्रेजी एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय भाषा हैं जो अच्छी कम्पनियों एवं विदेशों में अच्छे रोजगार प्राप्त करने का माध्यम बन चुकी हैं. लेकिन इस कारण से हिंदी के अपमान एवं इसकी अवहेलना को तर्कसंगत नही ठहराया जा सकता हैं.
हिंदी भाषा देश को भावात्मक एकता के सूत्र में बाँधने में सक्षम भारत की एकमात्र भाषा हैं. इसलिए इसे राजभाषा का वास्तविक सम्मान दिए जाने की आवश्यकता हैं.