यदि बरसात नहीं होती पर निबंध If There Were No Rain Essay In Hindi Language

यदि बरसात नहीं होती पर निबंध If There Were No Rain Essay In Hindi Language: दोस्तों जल ही जीवन हैं जिसकें बिना एक दिन भी जीवित रहना सम्भव नहीं हैं.

हमारे जल का मुख्य स्रोत वर्षाजल ही हैं. ऐसे में यदि बरसात न हो तो क्या होगा, इसी विषय पर शोर्ट निबंध, भाषण स्पीच अनुच्छेद यहाँ दिया गया.

बरसात नहीं होती पर निबंध If There Were No Rain Essay In Hindi

यदि बरसात नहीं होती पर निबंध If There Were No Rain Essay In Hindi Language

मनुष्य एक विचारशील प्राणी हैं. वह तरह तरह की कल्पनाएँ करता हैं. अगर ऐसा होता तो, काश ऐसा हो जाता. इस तरह यदि वर्षा न हो तो क्या होगा.

बेहद भयावह कल्पना है जिसके बारे में सुनकर ही भावशून्य हो जाते हैं. क्योंकि हम जिसकें न होने की बात सोच रहे है वही तो हमारे जीवन का आधार हैं. इसके बाद पृथ्वी और अन्य ग्रहों में कोई अंतर नहीं रह जाएगा.

यदि कुछ साल तक बरसात न हो तो क्या होगा, यह हम सब देख चुके हैं. राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे राज्य जहाँ जल संकट एक भयावह समस्या उन दिनों में भी सामने आती हैं.

जब अच्छी वर्षा हो चुकी होती है तथा सुकाल का वर्ष होता हैं. यदि बरसात हो ही नहीं तो हम मानव, पेड़, पौधे जीव, जंतु कोई जीवित नहीं बच पाएगे.

हमारे सभी के जीवन का मूल आधार बरसात ही हैं. इसके बिना न तो हमें पीने का जल मिलेगा न ही अन्न सब्जियाँ उगा पाएगे. जल की कमी से न केवल प्यासे रहने का संकट उत्पन्न हो जाएगा बल्कि हमारी कृषि भी तबाह हो जाएगा.

यदि पेड़ पौधे ही नहीं उगेगे तो मानव ही क्या जीव, जंतु पक्षी सभी के जीवन का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा. आज हम जिस हरी भरी दुनिया में बसते है यदि बरसात न हो तो यह उजड़कर मरुस्थल में तब्दील हो जाएगी.

हमारी पृथ्वी को नीला ग्रह कहा जाता हैं, जानते हो क्यों. क्योंकि समस्त ग्रहों में यह एकमात्र स्थल है जहाँ जल विद्यमान है. यदि बरसात न हो तो यहाँ से भी जल विलुप्त हो जाएगा.

इसका असर पूरी प्रकृति पर पड़ेगा. रची बसी दुनियां उजड़ जाएगी सभी जीव जल के अभाव में लुप्त हो जाएगे. इसलिए जीवन की मूलभूत आवश्यकता जल की है जो हमें बरसात से ही प्राप्त होता हैं.

हमारे भूमिगत जल का आधार बरसात ही हैं. सूखाग्रस्त देश के कई इलाकों में जहाँ साल दर साल सूखा पड़ रहा हैं. वहां वर्षा के न होने से जमीन के भीतरी जल में वृद्धि नहीं हो पाती हैं. वह सीमित मात्रा में उपलब्ध पानी निरंतर अंधाधुंध उपयोग से खत्म होता जा रहा हैं.

प्रकृति का पारिस्थितिकी तंत्र एक दूसरे प्रक्रमों पर आधारित हैं. यदि बरसात न हो तो धरती पर पेड़ पौधे नहीं उपज पाएगे. पेड़ पौधों के सूख जाने या नष्ट होने की स्थिति में वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाएगी.

जिसके बिना हमारा जीवन एक मिनट भी नहीं चल सकता. यदि जल नहीं होगा तो खेतों के फसलें नहीं उग पाएगी. ऐसी हालत में मानव व जीव जंतु बिना जल, वायु और भोजन के अधिक दिन तक जीवित नहीं रह पाएगे.

भारत एवं दुनियां के भागों में आज जल संकट की जो विषम परिस्थतियाँ देखने को मिल रही हैं. इसका मूल कारण मानव का स्वार्थ ही हैं.

वह निरंतर जल के विदोहन एवं प्रदूषित करने से बाज नहीं आ रहा हैं जिसके चलते दूषित जल पीने योग्य नहीं रह जाता है तथा बहकर सागरों में चला जाता हैं तथा अपेय बन जाता हैं.

दूसरी तरफ निरंतर हो रही वनों की कटाई भी प्रत्यक्ष रूप से बरसात को प्रभावित करती हैं. अक्सर देखा गया है जहाँ अधिक मात्रा में वन होते हैं वहां अधिक मात्रा में बरसात होती हैं तथा जहाँ वनों को उजाड़ कर समतल मैदान अथवा शहर बसा लिए हैं

वहां वर्षा का स्तर वर्ष दर वर्ष गिरता ही जा रहा हैं. ये दो कारण बरसात की कमी व जल संकट के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं.

पर्यावरण प्रदूषण न केवल इस ग्रह के लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा हैं. बल्कि प्रकृति के तंत्र को बुरी तरह प्रभावित कर रहा हैं. बरसात की कमी से होनी वाली समस्याओं से हम भली भांति परिचित हैं.

अतः हम अपने भविष्य के अस्तित्व को बचाने के लिए प्रकृति से खिलवाड़ न करे तथा वृक्षारोपण करते रहे जिससे काश बरसात न होती तो क्या होता इसे जीवन में प्रत्यक्ष रूप से भुगतना न पड़े.

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