ज्योति रेड्डी का जीवन परिचय व सफलता की कहानी Jyothi Reddy Success Story & Inspiring Biography in Hindi

ज्योति रेड्डी का जीवन परिचय व सफलता की कहानी Jyothi Reddy Success Story & Inspiring Biography in Hindi : कोई महिला, पुरुष या बालक जब आगे बढ़ने का संकल्प ले लेता हैं, तो दुनिया की कोई ताकत उन्हें नहीं रोक सकती.

वारंगल (आंध्रप्रदेश) की श्रीमती ज्योति रेड्डी का जीवन इसी का उदहारण हैं. अत्यंत गरीब परिवार में जन्मी ज्योति रेड्डी आज फेनिक्स (अमेरिका) में एक बड़ी (CEO, Key Software Solutions) कम्पनी में मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं.

ज्योति रेड्डी का जीवन परिचय Jyothi Reddy Biography in Hindi

ज्योति रेड्डी का जीवन परिचय व सफलता की कहानी Jyothi Reddy Success Story & Inspiring Biography in Hindi

आपने कभी नेपोलियन हिल का यह कथन अवश्य सुना होगा कि जब आपकी आपका निश्चय दृढ हो तो उसे आपको दिलाने में पूरी कायनात जुट जाती हैं.

ज्योति की कहानी इसी कहावत को चरितार्थ करने वाली हैं. दो वक्त के भोजन से जीवन में संघर्ष करने वाली भारतीय महिला आज सफल सेल्फमेड वुमेन हैं.

ज्योति रेड्डी का जन्म वारंगल जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था. वे तीन भाई और दो बहिने थी, पिता ने दोनों बेटियों ज्योति और लक्ष्मी को अनाथालय में भेज दिया. छोटी लक्ष्मी तो वहां से भागकर घर आ गईं, किन्तु ज्योति ने पांच साल उस नर्क में बिताए.

सारे अत्याचार सहन करते हुए उसने 1985 में प्रथम श्रेणी से दसवीं पास की. पांच साल बाद जब वह घर लौटी तो पिता ने एक किसान से ज्योति का विवाह कर दिया. तब वह 15 साल की थी.

बेटियों को पढ़ाने के लिए ज्योति के पास नहीं थे पैसे

गरीब परिवार में जन्मी ज्योति रेड्डी का विवाह भी साधारण आर्थिक स्थिति वाले परिवार में हुआ. परिवार की आर्थिक स्थिति इस कद्र खराब थी कि कभी भी दाल का डिब्बा और चावल की बोरी साथ देखने को नसीब नहीं होती थी.

16 वर्ष की उम्र में ज्योति की शादी होने के बाद 18 की होते होते उन्होंने दो बेटियों को जन्म दिया. अब चार लोगों के पेट का सवाल पैदा हो गया.

भले ही हालात बेहद विकट थे मगर ज्योति मन ही मन ठान चुकी थी वह हर सम्भावना को अवसर में बदलेगी और जो जीवन उसे जीना पड़ रहा है वो अपनी संतान को देखने नहीं देगी.

दो बेटियों को अच्छे कपड़े, खिलौने यहाँ तक कि बीमार पड़ने पर उनकी दवा दारु के लिए पैसे का प्रबंध नहीं हो पाता था. जब बच्चियां बड़ी हुई तो उन्हें विद्यालय में दाखिला दिलाना था.

उस समय प्राइवेट स्कूलों की फीस 50 रु महीने और तेलगू मीडियम की फीस 25 रु थी. ज्योति मेहनत मजदूरी से उतना ही कमा पाती थी जिससे बेटियों की सरकारी स्कूल की फीस को भर सके.

संघर्ष का जीवन

पांच साल तक उसने अभाव और भुखमरी में निकाले. आखिर 1990 में अपनी दो बेटियों सहित ज्योति घर छोड़कर वारंगल आ गईं. उस समय उसके पास मात्र 110 रूपये थे, और झोले में कुछ बर्तन और कपड़े थे. एक किराए का मकान ले ज्योति रेड्डी ने कपड़े सिलने का काम शुरू किया.

घर की गाड़ी कुछ चलने लगी. तीन साल में प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में उसने स्नातक की परीक्षा उतीर्ण कर ली. परिणामस्वरूप एक निजी स्कूल में इसे अध्यापिका की नौकरी मिल गईं.

लेकिन नौकरी के लिए दो घंटे रेलगाड़ी का सफर तय करना पड़ता था. ज्योति ने फिर हिम्मत से काम लिया. आस-पास के दुकानदारों से उधार में साड़ियाँ ली और रेल यात्रा के दौरान उसकी बिक्री करने लगी.

कुछ दिनों बाद पड़कल कस्बे में सरकारी स्कूल में ज्योति को नौकरी मिल गईं. अब ज्योति को हर महीने 2400 रूपये तनख्वाह के रूप में मिलने लगे.

आज से बीस वर्ष पूर्व यह तीन लोगो के गुजर बसर के लिए काफी थी. लेकिन ज्योति रेड्डी को इससे संतोष नही हुआ.

उस सरकार स्कूल की हालत बड़ी दयनीय थी. चार साल में उसने स्कूल को ऐसा चमका दिया कि उसमें तीन सौ छात्र छात्राएं पढ़ने लगे.

इस कार्य से प्रसन्न होकर आंध्रप्रदेश सरकार ने ज्योति रेड्डी को पदोन्नत कर बाल विकास अधिकारी बना दिया. इसी समय के दौरान इन्होने समाज विज्ञान में एम.ए की डिग्री प्राप्त कर ली. श्रीमती ज्योति रेड्डी तो अपने जीवट से नई ऊँचाइयाँ प्राप्त करना चाहती थी. इसलिए उन्होंने कंप्यूटर में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया और पासपोर्ट बनवा लिया.

अमेरिका की यात्रा

इसी के साथ उन्होंने अमेरिका की यात्रा का वीजा भी बनवा लिया. अपनी 13 और 14 साल की बेटियों को एक छात्रावास में भर्ती करा वे एक वर्ष 2000 के शुरू में सान फ्रांसिस्को पहुच गईं.

गांठ में थे मात्र एक हजार डॉलर जो उन्होंने पाई पाई बचा कर जमा किये थे. ज्योति अमेरिका गईं, उस समय उनकी आयु 30 साल थी.

अम्रीका में फिर संघर्ष शुरू हुआ. पहले तो रहने की समस्या आ गईं. फिर अंग्रेजी में कुशल होना आड़े आया. वहां उनका जीवट और संकल्प काम आया. न्यू जर्सी में पांच हजार डॉलर प्रति घनता के वेतन में उन्होंने नौकरी की.

फर्राटेदार अंग्रेजी सीखने के बाद उन्होंने आईटी कम्पनी में हजार डोलर प्रतिमाह की नौकरी की. ज्योति रेड्डी की क्षमता देखकर वर्जिनिया की एक नामी सोफ्ट्वेयर कंपनी ने उन्हें 5000 डॉलर की नौकरी दे दी. नौकरी के साथ साथ उन्होंने कंप्यूटर का एक कोर्स अमेरिका में ही पास कर लिया.

खुद की कम्पनी खोलना

अब ज्योति रेड्डी ने जीवन में एक और बड़ा निर्णय लिया है. तीन लाख रूपये की बढ़िया नौकरी छोड़ कर उन्होंने फोनिक्स शहर में अपनी एक कंपनी बना ली हैं. नाम रखा की सॉफ्टवेयर सोल्यूशन और तीन सहयोगी जुटा लिए.

26 अक्टूबर 2001 को यह कंपनी बनी. आज इस कम्पनी में 163 कर्मचारी हैं और हर साल सौ करोड़ रुपयों (1 करोड़ 60लाख डॉलर) का कारोबार यह कम्पनी करती हैं.

वर्ष 2003 में उन्होंने अपने किसान पति और दोनों बेटियों को भी अमेरिका बुला दिया. दोनों बेटियां सूचना तकनीकी में इंजीनियर हैं और अब अपनी माँ की कम्पनी में ही काम कर रही हैं.

ज्योति रेड्डी अपने अभाव के दिनों को अभी भी नही भूली हैं. इसलिए हर साल वारंगल के विशेष योग्यता से दसवीं पास करने वाले छात्रों को छात्रवृति देती हैं. इसी के साथ निर्धन छात्राओं को पुस्तकें, स्कूल की ड्रेस आदि भी वितरित कराती हैं.

श्रीमती ज्योति रेड्डी के अनुसार उनकी सफलता का ध्येय वाक्य था- यदि तुम में शक्ति हैं तो कोई शक्ति तुम्हें नही रोक सकती.

ज्योति ने अपनी आत्मकथा भी लिखी हैं जिसका नाम हैं हाँ मैंने हार नहीं मानी (Yes i Am Not Defeated) हैं

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