दया पर सुविचार अनमोल वचन | Kindness Quotes In Hindi

दया पर सुविचार अनमोल वचन | Kindness Quotes In Hindi: दया प्राणी का पहला धर्म हैं. निर्दयी मनुष्य हिंसक जानवर के समान होता है, अपने ह्रदय में दया करुना नम्रता जैसे ईश्वरीय गुणों को बसाए रखे, तभी मानव धर्म और सुंदर बन सकता हैं.

दया के सम्बन्ध में तुलसीदास का यह दोहा दया का अर्थ व महत्व स्पष्ट कर देता है- दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान..तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण.

यानि दया ही धर्म का मूल है अभिमान पाप की जड़ जब तक शरीर में प्राण बसे रहे दया को कभी नही छोड़ना चाहिए. आज हम दया पर सुविचार (Kindness Quotes Hindi) पढ़ेगे, और दयालुता के सम्बन्ध में दार्शनिकों के थोट्स जानेगे.

दया पर सुविचार अनमोल वचन | Kindness Quotes In Hindi

युद्ध में रक्त का सागर बहाने की अपेक्षा एक दुखी के अश्रुशमन में अधिक यश हैं.


आओ तनिक दया तो कर ले, अपने पड़ोसियों के दोषों के प्रति, क्षण भर को अंधे ही बन ले.


दया को विकसित करना जीवन व्यापार की एक महत्वपूर्ण कला हैं.


जो लोगों के प्रति दयालु हो सकता है, वह किसी बात की चिंता नही करता हैं.


एक दयालु ह्रदय प्रसन्नता का फव्वारा होता है वह अपने आस-पास की प्रत्येक वस्तु को मुस्कराहटों द्वारा नवीनता प्रदान कर देता हैं.


दयालुता प्रतिशोध से सदैव श्रेष्ठ होती हैं.


दयालुता समाज को बाँधने वाली स्वर्णिम श्रंखला हैं.


दया के शब्द कभी नही मरते- न वे परचून की सामग्री ही खरीदते हैं.


दया मनुष्य में स्वाभाविक रूप से पाई जाती है तथा इससे बढ़कर कोई धर्म नही हैं.


जिस मानव के ह्रदय में दया का भाव नही है वो इन्सान के भेष में जानवर हैं.


दया की भाषा में शब्दों का महत्व नही होता हैं.


दया एक महान व्यक्तित्व की निशानी हैं, हमेशा जीवों के प्रति दयाभाव रखे.


दूसरों के प्रति दया का भाव रखने से आपके दुःख भी समाप्त हो जाते हैं.


न्याय ईश्वर के वश में है मगर दया करना मनुष्य का काम हैं. 


पर करुणा पर जिन्दगी और चिता पर पाँव,
फिर भी मूर्ख रे मनुज चले दांव पर दांव.


चले दांव पर दाव, पाँव में पड़ते छाले
धन दौलत है खूब पुन्य के फिर भी लाले
कह पुष्कर कविराय, बनाये बड़े बड़े घर
ऊँचे हुए मकान, ह्रदय में जगह नही पर.


हे ईश्वर सब पर दया करना, पर शुरुआत मुझसे करना.


मिल सकता है तो प्यार ही चाहिए,
नफरत कर लेना सेह लेंगे लेकिन
किसी की सहानुभूति या दया नहीं
बिलकुल चाहिए.


हम सभी ईश्वर से दया की प्रार्थना करते हैं और वही प्रार्थना हमें दया करना भी सिखाती है


जिसमे दया नहीं उसमे कोई सद्गुण नहीं


दया का गुण चरित्र को सुंदर बना देता हैं.

दया पर सुविचार

मनुष्य का बड़प्पन तभी दिखता है जब उसके दिल में दूसरों के प्रति दया भावना हो।


किसी पर सच्चे दिल से दया कर उसकी सहायता करना ईश्वर का आशीर्वाद पाने के समान है। दया शब्द भले छोटा होता है लेकिन हकीकत में बड़े अर्थ की पहचान रखता है।


दया सभ्य मनुष्य की पहचान है जिनमें दया का गुण विद्यमान रहता है।


दया वो मार्ग है जिस पर चलकर मनुष्य श्रेष्ठता को प्राप्त होता है। मनुष्य का हृदय पवित्र होता है।


दया के माध्यम से दुखियों के दुख-दर्द मिटाए जा सकते हैं जो श्रेष्ठ कार्य की सूची में आते हैं।


इंसान होने का यह अर्थ नहीं की हर किसी के लिए निष्ठुर बनो बल्कि दया भावना अपनाकर इंसानियत का दायित्व निभाओ और ईश्वर कृपा प्राप्त करो।


मनुष्य द्वारा सबसे बड़ी दया वो होती है जो दूसरों के दुखों को दूर कर देती है जिससे मनुष्य सम्मान का हकदार बन जाता है।


मनुष्य में दया प्राकृतिक रूप से ग्रहण होती है, जबरदस्ती नहीं लाई जा सकती। दया दिल से की जाए बिना एहसान दिलाए तो फलित होती है अन्यथा वह मात्र दिखावा है। अच्छे बनना दया के सच्चे रूप को अपनाना है ना कि सिर्फ लोगों की नजरों में अच्छा बनना है।


मनुष्य को दया करने के लिए किसी शब्द की ज़रूरत नहीं पड़ती है बल्कि अपने कार्य व व्यवहार स्वरूप दया कर सकता है।


मनुष्य के व्यक्तित्व में कुछ गुण स्वत: ही आते हैं जिन्हें लाया नहीं जा सकता, दया भी ऐसी ही भावना है जो मनुष्य के अंदर स्वभाविक रूप से जन्म लेती है। 


दया आंतरिक अनुभूति है जिसका अहसास मनुष्य स्वयं करता है और कार्यान्वित करता है।


हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई इन सब से परे एक महान धर्म है दया जो सभी धर्मों को एक रूप में जोड़ती है। ईश्वर का संदेश दया के द्वारा ही मिलता है।


मनुष्य किसी के दिल में दया के माध्यम से अपने लिए जगह बना सकता है क्योंकि बातें याद रहे न रहे बुरे वक्त में दया करने वाले याद रहते हैं।


महापुरुष कहे जाने वालों को महान उनके गुण बनाते हैं जिनमें दया का गुण विद्यमान होता है। दया के द्वारा ही वह ईश्वरीय कृपा प्राप्त कर लेते हैं।अपने दयावान व्यक्तित्व से सर्वश्रेष्ठ की संज्ञा प्राप्त करते हैं।


कितने महान लोगों ने दया स्वरूप विश्व में ख्याति पाई और अमर हो गए।


ईश्वर ने मनुष्य को इस काबिल बनाया है कि वह अच्छे गुण अपनाकर अपना व्यक्तित्व निखार सके। जिनमें दया अहम भूमिका निभाती है एवं चरित्र निर्माण में सहायक सिद्ध होती है।


धर्म का बसेरा वहीं होता है जहाँ दया का वास होता है अन्यथा क्रूर मनुष्य सिर्फ अत्याचार करता है और पाप का भोगी बन खुद  विनाश के रास्ते में चल पड़ता है जिसका अंत निश्चित होता है।


मनुष्य की इंसानियत जीव-जंतुओं पर दया कर एक महान कार्य करती है अतः दया के लिए मनुष्य में इंसानियत होना ज़रूरी है।


मनुष्य की कथनी और करनी में समानता कम दिखती है उसी प्रकार दया में सच्ची भावना कम दिखती है अतः दया दूसरों को नीचा दिखाने के लिए नहीं बल्कि उनका सम्मान बनाए रखने में की जाती है।


दया का फल दोनों को प्राप्त होता है जो दया करता है और जो दया पाता है। सही रूप से की जाने वाली दया और दया की पात्रता मनुष्य के जीवन को सुख रूपी फल प्रदान करती है।


मनुष्य धर्म का मूल तत्व दया में निहित है अतः धर्म की उपस्थिति में दया की भी उपस्थिति दिखती है।


मनुष्य का जीवन चक्र ऐसा है कि जो करता है वह भुगतता भी है असहाय मनुष्यों पर दया नहीं करने वाला भी अत्याचार सहता है।


दया एक सीख है जो ज़रूरत मंदों की सहायता करने के लिए प्रेरित करती है।


दयावान मनुष्य बुद्धिमान भी कहलाता है जिसके मन में प्रेम का वास होता है। 


जिसका हृदय प्रेम से भरता नहीं, दया का भाव आता नहीं वो श्रेष्ठ कैसे हो सकता है। ईश्वर कृपा प्राप्ति के लिए दया का भाव होना ज़रूरी है।


एक दयावान मनुष्य अपने दया कर्मों से दूसरों में भी दया का संचार करता है।


मनुष्य का सुंदर चेहरा उसके अच्छे होने का प्रमाण नहीं देता लेकिन एक दयालु मनुष्य सुंदर ज़रूर होता है।


मनुष्य में दयाभाव का गुण विद्यमान होने पर अपने दयालु भरे कर्मों से ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त कर महान बन जाता है, ईश्वर के समान पूजा भी जाता है।


दया मनुष्य का वो आंतरिक गुण है जो अपनी अमिट छाप छोड़ देता है। किसी भूखे को अन्न खिलाना दया है। सच्चे दिल से किसी ज़रूरत मंद की सहायता करना दया है। मुश्किल में पड़े जीव जन्तु की सहायता करना दया है। किसी मनुष्य के दुख दर्द दूर करना दया है जो ईश्वर का साथ हमेशा दिलाती है बस मन सच्चा होना चाहिए।


दया इंसानियत का सबसे बड़ा गुण है जिसे अहसान की तुच्छ संज्ञा नहीं दी जानी चाहिए। वास्तविक दया दिल से महसूस की जाती है, दिखावे से इसका ताल्लुक नहीं होता है।


दया करके जब मनुष्य सुकून और खुशी का अहसास करता है तभी दया का असली भाव महसूस होता है।


दया जीवन पथ पर जीवन को सुकून देने का मार्ग है। दया भावना मनुष्य की पहचान है वरना पशुओं में दया भावना नहीं होती है।


दया मनुष्य को अपने मार्ग को सुलभ बनाने की प्रेरणा देती है। 


दया भावना मनुष्य को आंतरिक शांति प्रदान करती है जिससे मन अच्छे विचारों से भरता है और अच्छे विचार अच्छी  सोच कायम करते हैं एवम् अच्छी सोच मनुष्य को सही गलत की राह दिखाती है जिससे  जीवन सुखमय बन सकता है।


दया भावना से दुश्मन भी  कई बार मित्र बन जाते हैं और इसके अभाव में कई दुश्मन बन जाते हैं।


जीवन ईश्वर का दिया तोहफा है इसे दया रूपी गुण प्राप्त कर निखारा जा सकता है।


दयावान मनुष्य में आंतरिक शक्ति विद्यमान होती है जो उसके जीवन में लाभकारी होती है।


दयाभाव से पूर्ण व्यक्ति कभी किसी का अहित नहीं कर सकता है।


किसी पर दया करना वो पुण्य है जो मनुष्य के कर्मों के रूप में गिना जाता है।


दया रहित मनुष्य निर्दयी बन जाता है फिर उसकी गिनती मनुष्य की श्रेणी में नहीं की जा सकती है।


किसी मनुष्य से लड़ाई करने से बेहतर है किसी के दुख में अपनी आँखे नम करना जो ईश्वर के करीब ले जाता है।


अपनी कमियों पर गौर करें तो बेहतर है दूसरों के दोषों पर कड़वी बातें दया के मार्ग में बाधक होती है।


मनुष्य को अपने जीवन में दया के भाव का प्रसार करना चाहिए जिससे जीवन में विकास के रास्ते खुल जाते हैं।


दयावान मनुष्य खुद भी हँसमुख होता है और अपनी दया से दूसरों के चेहरे में भी मुस्कुराहट लाता है और अपने जीवन को नया रूप प्रदान करता है।


मनुष्य किसी से दुश्मनी निभाए उससे बेहतर है मनुष्य दया से किसी से मित्रता निभाए।


दया का गुण अपने आप में श्रेष्ठ है जो मनुष्य को दयालुता से श्रेष्ठ बनाता है।


समाज में मनुष्य एक दूसरे से दया भाव के कारण सकारात्मक रूप से जुड़ जाता है जो समाज को सुनहरा माहौल देता है।


दया मनुष्य का वह गुण है जो अपने शब्दों से किसी के भी दिल में जगह बना सकता है। दया भरे शब्द कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होते बल्कि जवां रहते हैं और मनुष्य द्वारा पालन करने पर मनुष्य को खूबसूरत और श्रेष्ठता का रूप प्रदान करते हैं।


दया में भाव महत्वपूर्ण होते हैं जो स्वाभिमान का रूप मनुष्य में विकसित करते हैं।

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