लाला हरदयाल का जीवन परिचय Lala Hardayal Biography In Hindi: लाला हर दयाल का नाम भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में गिना जाता हैं.
विदेशों में रहकर भारत की आजादी के लिए आवाज बुलंद करने वालों में हरदयाल जी प्रमुख थे, जिन्होंने अमेरिका में रहकर गदर पार्टी की स्थापना की तथा प्रवासी भारतीयों को वतन की आजादी के संघर्ष के लिए प्रेरणा देने वाले व्यक्तित्व रहे.
फस्ट वर्ल्ड वॉर में ब्रिटिश साम्राज्य का इन्होने जमकर विरोध किया. दो बार उन्हें भारत लाने का प्रयास भी हुआ. आज हम उनकी जीवनी इतिहास को जानेगे.
लाला हरदयाल का जीवन परिचय Lala Hardayal Biography In Hindi
नाम | लाला हरदयाल |
पूरा नाम | लाला हर दयाल सिंह माथुर |
जन्म | 14 अक्टूबर, 1884 |
जन्म स्थान | दिल्ली, भारत |
पिता का नाम | गौरीदयाल माथुर |
माता का नाम | भोली रामी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 4 मार्च, 1939 |
मृत्यु स्थान | फिलाडेलफिया, अमेरिका |
Lala Hardayal Biography
लाला हरदयाल का जन्म 14 अक्टूबर 1884 को दिल्ली में हुआ था. तथा वे उन कुछ प्रसिद्ध राष्ट्रवादियों में थे जिन्होंने विदेश में रहकर भारतीय स्वाधीनता संग्राम के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करने का विचार किया. लाला हर दयाल का विश्वविधालयी रिकॉर्ड असाधारण था.
वह स्कूल स्तर तक सदैव प्रथम श्रेणी में आते रहे तथा यही स्तर इंटरमिडियट की परीक्षा तथा सेंट स्टीफन कॉलेज से स्नातक की डिग्री तक रखा.
उन्होंने ऑक्सफोर्ड के सेंटजॉन कॉलेज में अध्ययन के लिए स्कालरशिप भी प्राप्त की. उन्होंने डाक्टरेट की डिग्री लंदन विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी.
भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा इंग्लैंड में किये जा रहे संघर्षों से प्रेरित होकर लाला हरदयाल भी भारत को स्वतंत्र कराने के लिए स्वाधीनता संघर्ष में कूद पड़े. लाला लाजपत राय के सम्पर्क में आने व इस विश्वास में आने कि स्वाधीनता सिर्फ सकारात्मक विरोध के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती हैं.
सेन फ्रांसिस्कों में 1913 में स्थापित गदर पार्टी के वह पहले अध्यक्ष नियुक्त किये गये. अमेरिका में उनके कार्यकलापों का विरोध में ब्रिटिश सरकार के आग्रह पर अमेरिकी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. वहां से जमानत पर रिहा होने के बाद लाला हरदयाल ने जेनेवा से अपनी क्रन्तिकारी गतिविधियाँ जारी रखी.
जर्मनी में उनके पांच वर्ष के प्रवास के दौरान भारतीय स्वाधीनता समिति की स्थापना की गई तथा एक ओरियंटल ब्यूरों की भी स्थापना की गई ताकि स्वाधीनता सम्बन्धी समस्याओं का लिखित अनुवाद ठीक से हो सके.
डॉ लाल हर दयाल ने अपना कुछ समय स्टोकहोम तथा स्वीडन में भी बिताया ताकि भारतीयों की होमरूल के सम्बन्ध में एक केंद्रीय भूमिका को निभाया जा सके.
उन्होंने अमेरिका विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर रहते हुए अपने जीवन के 5 वर्ष वहां बिताएं. उनका देहांत 4 मार्च 1939 को पेन्सिल्वेनिया में हुआ. लाला हरदयाल का विश्वास था कि मात्र राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा ही नवयुवकों के मन मस्तिष्क को प्रज्वलित किया जा सकता हैं.
उनके अनुसार भारतीय जनसमूह के पिछड़ने का कारण हैं संकीर्णतावाद व जातिवाद. उन्होंने बहुत सी पुस्तकों की रचना की जिनमें वेल्थ ऑफ़ नेशन तथा हिंट्स फॉर सेल्फ कल्चर.
लाला हरदयाल का व्यक्तिगत परिचय
अपने बाल्यकाल से ही लाला हरदयाल के मन में देश प्रेम की भावना जागने लगी थी और बड़े होकर के इन्होंने भारत माता की सेवा करने के लिए काफी बड़े बड़े काम किए। इन्होंने गदर नाम के पत्र की स्थापना भी की थी, साथ ही यह गदर पार्टी के मेंबर भी थे।
अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा इंडिया के लोगों पर किए जा रहे जुल्म के खिलाफ दुनिया को बताने के लिए और दुनियाभर में इंडिया का पक्ष रखने के लिए लाला हर दयाल ने कई देशों की यात्रा भी की थी और जब यात्रा करने के दरमियान यह जर्मनी पहुंचे.
तब वहां पर इन्हें नजरबंद कर लिया गया था। नजरबंदी से छूटने के बाद यह स्वीडन चले गए, जहां पर उन्होंने तकरीबन 15 साल व्यतीत किए।
लाला हरदयाल का प्रारंभिक जीवन
साल 1884 में 14 अक्टूबर को भारत देश के दिल्ली राज्य में लाला हरदयाल का जन्म हुआ था।उनका पूरा नाम लाला हरदयाल सिंह माथुर था।
लाला हर दयाल के पिताजी कोर्ट में रीडर का काम करते थे, जिनका नाम गौरी दयाल माथुर था और इनकी माता जी का नाम भोली रानी था,जो कि एक गृहणी थी।
लाला हरदयाल की शिक्षा
अपनी प्रारंभिक एजुकेशन को लाला हरदयाल ने कैंब्रिज मिशन स्कूल से कंप्लीट किया था और इसके बाद उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री संस्कृत के सब्जेक्ट में नई दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से प्राप्त की थी.
उन्होंने संस्कृत के सब्जेक्ट में अपनी मास्टर डिग्री को प्राप्त करने के लिए पंजाब यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया और वहां से संस्कृत के सब्जेक्ट में अपनी मास्टर डिग्री को हासिल किया।
लाला ने साल 1905 में संस्कृत में हायर स्टडी के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की स्कॉलरशिप प्राप्त की। जब लाला हरदयाल छोटे थे तभी इनके अंदर देशभक्ति की भावना हिलोरें मारने लगी थी।
हरदयाल ने कुछ लड़को जैसे कि अमीरचंद, बालमुकुंद के साथ मिलकर के दिल्ली में एक ग्रुप भी बनाया था। लाला हरदयाल के दल में लाला लाजपत राय जैसे लोग भी शामिल थे।
हरदयाल को मास्टर ऑफ आर्टि की पढ़ाई में अच्छे अंक लाने के कारण पंजाब गवर्नमेंट के तरफ से स्कॉलरशिप दी गई थी और जिसके बाद वह स्कॉलरशिप प्राप्त करने के बाद स्टडी के लिए लंदन चले गए।
पोलिटिकल मिशनरी
लंदन शहर में एजुकेशन प्राप्त करने के उद्देश्य से जाने के बाद वहां पर लाला लाजपत राय की मुलाकात परमानंद,श्याम कृष्ण वर्मा जैसे लोगों से हुई जिसके बाद लाला लाजपत राय ने श्याम कृष्ण वर्मा के साथ मिलकर के “पॉलिटिकल मिशनरी” नाम के एक इंस्टिट्यूट को बनाया.
इस इंस्टिट्यूट के जरिए वह इंडियन स्टूडेंट को भारत देश की मुख्यधारा में लाने की कोशिश करने लगे। तकरीबन 2 साल तक लंदन के सेंट जॉन्स कॉलेज में स्टडी करने के बाद वापस लाला लाजपत राय इंडिया चले आए।
सम्पादक
लाला हरदयाल ने “पंजाब” नाम के एक अंग्रेजी पेपर के संपादक के तौर पर भी काम किया और जब संपादक के तौर पर उनका इफेक्ट बढ़ने लगा तो अंग्रेजी गवर्नमेंट के लोगों के बीच लाला हरदयाल को अरेस्ट करने की चर्चा उठने लगी,
जिसके बाद लाला लाजपत राय ने हरदयाल से पेरिस जाने के लिए कहा और लाला हरदयाल लाला लाजपत राय की बात को मानते हुए पेरिस जाने के लिए निकल पड़े।
जब लाला हरदयाल पेरिस पहुंचे तो वहां पर उनकी मुलाकात श्याम कृष्ण वर्मा और भीकाजी कामा से हुई। पेरिस में ही “वंदे मातरम” और “तलवार” नाम के पत्रों का संपादन लाला हरदयाल ने किया।
इसके बाद साल 1910 में अमेरिका के सन फ्रांसिस्को में लाला हरदयाल पहुंचे और वहां पर पहुंच कर उन्होंने इंडिया से गए हुए वर्कर को इकट्ठा किया और “ग़दर” नाम की पत्रिका निकाली।
लाला हरदयाल की रचनाएं
- Thoughts on Education
- युगान्तर सरकुलर
- राजद्रोही प्रतिबन्धित •साहित्य (गदर,ऐलाने-जंग, जंग-दा-हांका)
- Social Conquest of Hindu Race
- Writings of Hardayal
- Forty Four Months in Germany & Turkey
- स्वाधीन विचार
- अमृत में विष
- Hints For Self Culture
- Twelve Religions & Modern Life
- Glimpses of World Religions
- Bodhisatva Doctrines
ग़दर पार्टी
गदर पार्टी को अमेरिका देश के सन फ्रांसिस्को शहर में अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से हटाने के उद्देश्य से साल 1913 में 25 जून को स्थापित किया गया था।
गदर पार्टी के संस्थापक के तौर पर सोहन सिंह थे। इसके अलावा इसके उपाध्यक्ष केसर सिंह, महामंत्री हरदयाल, संयुक्त सचिव लाला ठाकुरदास और कोषाध्यक्ष पंडित काशीराम थे
गदर पार्टी का नाम गदर पत्र के बेस पर ही रखा गया था। गदर पार्टी की स्थापना होने के बाद इस पार्टी की ब्रांच को जापान, चाइना और कनाडा जैसे देश में भी खोला गया था।
लाला हरदयाल और शस्त्र क्रांति
लाला हरदयाल ने इंडिया में शस्त्र क्रांति को प्रोत्साहित करने का कदम जब पहला विश्व युद्ध चालू हुआ तब उठाया था।
अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा भारत पर किए जा रहे अत्याचारों को बताने के लिए और दुनिया में इंडिया का पक्ष रखने के लिए हरदयाल ने तुर्की और स्विट्जरलैंड जैसे देश की यात्रा की और वह जर्मनी भी गए।
जहां पर उन्हें कुछ समय तक गिरफ्तार करके नजरबंद करके रखा गया था।नजरबंदी से छूटने के बाद वह स्वीडन गए जहां पर उन्होंने तकरीबन 15 साल गुजारे।
पुरस्कार
इंडियन गवर्नमेंट के द्वारा साल 1987 में लाला हरदयाल के नाम पर एक डाक टिकट जारी किया गया था
मृत्यु
साल 1940 में अमेरिका देश के फिलाडेल्फिया शहर में चार मार्च को लाला हरदयाल की मृत्यु हुई थी।