महाराणा प्रताप पर निबंध | Maharana Pratap Essay in Hindi

महाराणा प्रताप पर निबंध | Maharana Pratap Essay in Hindi : राजस्थान वीर शूरमाओं की धरती रही हैं. यहाँ के कण कण में वीरता समाई हुई हैं. महाराणा प्रताप जैसे वीरों को इस भूमि ने जन्म दिया.

आजीवन विदेशी शक्तियों के सामने सिर झुकाने की बजाय उनसे संघर्ष का रास्ता चुना. आज जन जन महाराणा प्रताप की कहानी उनके इतिहास जीवनी को एक आदर भाव से देखता हैं. आज हम स्टूडेंट्स के लिए राणा प्रताप निबंध  बता रहे हैं.

महाराणा प्रताप पर निबंध | Best Maharana Pratap Essay in Hindi

महाराणा प्रताप पर निबंध | Best Maharana Pratap Essay in Hindi

महाराणा प्रताप व चेतक का इतिहासव जयंती | Maharana Pratap and Chetak History, Jayanti In Hindi. महाराणा प्रताप: 9 मई 1540 को जन्मे प्रताप, 1572 ई में मेवाड़ के शासक बने. महाराणा उदयसिंह ने जगमाल को अपना उत्तराधिकारी बनाया था. मगर सरदारों ने उसे स्वीकार नहीं किया गया और प्रताप को गद्दी पर बिठा दिया. मेवाड़ के पहाड़ी प्रदेशों में कीका के नाम से विख्यात प्रताप ने अपने पिता के साथ जंगलों, घाटियों, एवं पहाड़ों में रहकर कठोर जीवन बिताया.

मुगल आक्रमण के कारण राज्य की व्यवस्था संतोषप्रद नहीं थी. मेवाड़ की आर्थिक स्थिति भी नहीं थी. चित्तौड़, बदनौर, शाहपुरा, रायला आदि मेवाड़ के सीमांत भाग मुगलों के हाथ में चले गये थे. जिससे राज्य की आय और प्रतिष्ठा घट चुकी हैं. इन समस्याओं को हल करने के लिए प्रताप के सामने दो मार्ग खुले थे.

या तो वह अकबर की अधीनता स्वीकार कर सुविधापूर्ण जीवन बिताए या अपना स्वतंत्र अस्तित्व और अपने देश के गौरव की प्रतिष्ठा बनाए रखे. दूसरे विकल्प के लिए उन्हें अनेक कष्ट उठाने थे. फिर भी प्रताप ने दूसरे विकल्प अर्थात संघर्ष को चुना. उन्होंने कुम्भलगढ़ को अपना केंद्र बनाया.

अकबर किसी भी तरह मेवाड़ को अपने अधीन करना चाहता था. अतः उसने समझौते के प्रयास किये. 1572 ई से 1576 ई के मध्य उसने चार शिष्ट मंडल क्रमशः जलाल खां, मानसिंह, भगवानदास और टोडरमल के नेतृत्व में भेजे.

मगर महाराणा प्रताप ने संधि करने में किसी प्रकार की रूचि नहीं दिखाई. अतः मेवाड़ को मुगल आक्रमण का सामना करना पड़ा. 1576 ई के प्रारम्भ में अकबर मेवाड़ अभियान की तैयारी हेतु अजमेर पहुचा और वहीँ उसने मानसिंह को मेवाड़ अभियान का नेतृत्व सौपा. मानसिंह ने ससैन्य अजमेर से रवाना होकर मोलेला नामक स्थान पर पड़ाव डाला.

प्रताप भी अपनी सेना लेकर लोसिंग में आ डटा. 18 जून 1576 को खमनोर के पास मुगल सेना का प्रताप से युद्ध हुआ, जो हल्दीघाटी के युद्ध के नाम से प्रसिद्ध हैं.

प्रताप की सेना में हरावल का नेतृत्व हकीम खां सूरी कर रहा था. जबकि बदायूँनी स्वयं मुगल सेना की पर से लड़ रहा था. जिसने बाद में अपने ग्रंथ मुन्तख उत तवारीख में इस युद्ध का वर्णन किया.

युद्ध में प्रताप के जीवन को संकट में देखकर झाला बीदा ने प्रताप का मुकुट धारण कर युद्ध किया. एवं प्रताप को युद्धभूमि से दूर भेज दिया. हल्दीघाटी के युद्ध का परिणाम नहीं निकल सका.

अकबर का उद्देश्य पूरा नहीं हो सका. वह महाराणा को जीवित या मृत अपने कब्जे में नहीं ले सका. हल्दी घाटी के युद्ध के बाद प्रताप पहाड़ों में चले गये. और वहीँ से मुगलों को परेशान करने के लिए धावे मारना शुरू कर दिया.

1576 ई से 1585 ई तक अकबर मेवाड़ पर अभियान भेजता रहा. शाहबाज खां, अब्दुर्रहमान खानखाना के नेतृत्व में सेनाएं भेजी गई, मगर उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली. 1585 ई के बाद अकबर मेवाड़ की तरफ कोई अभियान नहीं भेज सका. 1585 से 1597 ई के बीच प्रताप ने चित्तौड़ एवं मांडलगढ़ को छोड़कर शेष राज्य पर पुनः अधिकार कर लिया.

उन्होंने चावंड को अपनी राजधानी बनाया और राज्य में सुव्यवस्था स्थापित की. 19 जनवरी 1597 को प्रताप की मृत्यु हो गई. चावंड के पास बांडोली नामक गाँव में प्रताप का अग्नि संस्कार किया गया. महाराणा प्रताप का नाम राजपूताने के इतिहास में सबसे अधिक सम्मानीय और गौरवान्वित हैं.

वह स्वदेशाभिमानी, स्वतंत्रता का पुजारी, रणकुशल, स्वार्थत्यागी, सच्चा वीर और उदार क्षत्रिय थे. इन्ही गुणों के कारण वे अकबर को जो उस समय संसार का सबसे अधिक शक्तिशाली एवं ऐश्वर्य सम्पन्न सम्राट था, अपने छोटे से राज्य के बल पर वर्षों तक परेशान करता रहा और अधीनता नहीं मानी.

प्रताप के सम्बन्ध में कर्नल टॉड लिखते है कि आल्प्स पर्वत के समान अरावली में कोई भी ऐसी घाटी नहीं, जो प्रताप के किसी न किसी वीर कार्य, उज्ज्वल विजय या उससे अधिक किर्तियुक्त पराजय से पवित्र न हुई हो. हल्दीघाटी मेवाड़ की धर्मोपल्ली और दिवेर मेवाड़ का मेराथन हैं.

महाराणा प्रताप का भाला: राणा प्रताप शरीर से बेहद विशालकाय एवं शक्तिशाली थे. उनकी कद काठी का अंदाजा हम इसी बात से लगा सकते हैं, जब वे रण भूमि में उतरते थे तब इनके भाले का वजन 81 किलोग्राम था, उनका कवच 72 किलों का था इनके तलवार भाले और कवच का कुल वजन 208 किलो हुआ करता था. इनके शरीर का वजन 110 किलो तथा ऊंचाई साढ़े सात फीट थी.

बहुत से लोग इसे महज मनगढ़त कहेगे, मगर यदि वे आज भी प्रताप के इन साजो सामान को देखना चाहते हैं तो वह संग्रह आलय में सुरक्षित हैं. प्रताप से युद्ध में दुश्मन आने से भी कतराते थे क्योंकि कहते हैं कि प्रताप इतना भयंकर वार करते थे कि दुश्मन को घोड़े समेत दो भागों में चीर डालते थे.

महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई: स्वाभिमान के धनी और स्वाधीनता के पुजारी राणा प्रताप ने आजीवन मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की थी. अपना राज्य छीन जाने के बावजूद वे अभावों में जीवन गुजारने से संतुष्ट थे. मगर उन्होंने कभी भी अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया था.

बताया जाता हैं कि 19 जनवरी 1597 को चावंड में धनुष की डोर खीचते वक्त आंत में गम्भीर चोट लगने के कारण इनका देहांत हो गया था.

जब प्रताप की मृत्यु का समाचार अकबर को मिला तो बताया जाता हैं कि वह फूट फूट कर रोया.स्वाभाविक हैं प्रताप जैसे वीर दुश्मन हर किसी के भाग्य में कहाँ हैं. साथ ही अकबर द्वारा प्रताप को अपने अधीन करने के सपने भी टूटने के कारण उसे बड़ी हताशा हुई.

महाराणा प्रताप पुण्यतिथि: इंटरनेट पर उपलब्ध स्रोतों में प्रताप की पूण्यतिथि पर दो तिथियाँ मुख्य रूप से सामने आती हैं, पहली 19 जनवरी तथा दूसरी 29 जनवरी. मगर आज 19 जनवरी हैं और पूरा भारत प्रताप का स्मरण कर रहा हैं.

आज का दिन माटी के सपूत महाराणा के कृत्यों और उनकी स्वाभिमान को जन जन तक पहुंचाने का हैं. हम अपने बच्चों को प्रताप के जीवन के बारें में बताए. वो पराक्रमी जिसने अकबर द्वारा भेजे गये 6 ऑफर को ठुकरा कर अपनी मातृभूमि के लिए जंगलों में रहना स्वीकार किया था.

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