मासिक दुर्गा अष्टमी 2024 व्रत कथा व्रत एवं पूजा विधि महत्व | Masik Durga Ashtami Vrat Katha Vrat Vidhi In Hindi हिन्दू धर्म में शक्ति की देवी माने जाने वाली माँ दुर्गा के नौ रूपों की इस दौरान पूजा की जाती हैं.
शारदीय नवरात्र के आठवें दिन शुक्ल अष्टमी तिथि को दुर्गा अष्टमी का व्रत पड़ता हैं. मनुष्य अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए इस दिन व्रत रखकर माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं.
नवरात्र में आने वाली अष्टमी तिथि माता के भक्तों के लिए सबसे बड़ा दिन होता है जिस दिन दुर्गा पूजा का त्यौहार मनाया जाता हैं.
मासिक दुर्गा अष्टमी 2024 व्रत कथा व्रत एवं पूजा विधि महत्व
श्री दुर्गा की कथा-एक समय भारतवर्ष मे दुर्गम नामक राक्षस हुआ करता था। उसके डर से प्रथ्वी ही नही स्वर्ग और पाताल लोक मे निवास करने वाले लोंग भी भयभीत रहते थे।
ऐसी विपत्ति के समय भगवान की शक्ति ने दुर्गा या दुर्गसेनी के नाम से अवतार लिया और दुर्गम राक्षस को मार कर ब्राह्मणों और हरि भक्तों की रक्षा की। दुर्गम राक्षस को मारने के कारण ही तीनों लोक मे इनका नाम दुर्गा देवी प्रसिद्ध हो गया।
देवी का नाम: – माँ दुर्गा, शक्ति (দুর্গা) |
वाहन: – बाघ |
पति: – शिव |
अस्त्र-शस्त्र: – गदा, धनुष, शंख, तलवार |
मंत्र: – ॐ दुर्गा देव्यैः नमः ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैः विच्चे |
विशेष पूजा समय: – नवरात्र (चैत्र व आश्विन) |
यह त्यौहार आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को आता हैं. इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती हैं. भगवती दुर्गा को उबाले हुए चने, हलवा, पुड़ी, खीर, पुआ आदि का भोग लगाया जाता हैं.
कई लोग इस दिन महाशक्ति को प्रसन्न करने के लिए हवन आदि भी करते हैं. जहाँ शक्ति को अधिक मान्यता दी जाती हैं वहां बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता हैं. इस दिन कन्या लांगुरा जिमावें, देवी जी की जोत करे.
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री ये दुर्गा देवी के नौ रूप हैं. नवरात्रि के नौ दिनों तक इन सभी रूपों की पूजा की जाती हैं.
दुर्गा अष्टमी के दिन विशेष रूप से माँ दुर्गा के महागौरी रूप का पूजन किया जाता हैं. यह देवी का सबसे छोटा रूप है एक नन्ही बालिका के रूप में इन्हें दर्शाया जाता हैं. महागौरी की मूर्ति में उन्हें एक बैल पर सफेद रंग की साडी में दिखाया जाता हैं.
दुर्गा अष्टमी की पूजा सामग्री में लाल फूल, लाल चन्दन, दीया, धूप को शामिल किया जाता हैं. क्षत्रिय लोगों द्वारा इस दिन अपने अस्त्र शस्त्रों की पूजा कर उनका प्रदर्शन किया जाता हैं.
मासिक दुर्गा अष्टमी का व्रत रखने वालों को इस दिन जल्दी उठकर माँ की पूजा कर उन्हे गूलाब का फुल, केला, नारियल, पान के पत्ते, लोंग, इलायची, सूखे मेवे, मिठाई में से कोई एक चीज प्रसाद स्वरूप चढाई जाती हैं.
“सर्व मंगलाय मांगल्ये, शिवे सर्वथा साधिके
सरन्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते”
इस मंत्र के उच्चारण के साथ ही तैयार पंचामृत को वेदिका पर चढ़ाकर ज्योति जलाई जाती हैं. गुलाब के फूल तथा चावल के दाने चढ़ाकर माँ दुर्गा की आरती व भजन किए जाते हैं. नवरात्रि की घट स्थापना के साथ ही कही कही स्थानों पर मिट्टी के बर्तन में बीज उगाने की प्रथा हैं.
दुर्गा अष्टमी तक वो बीज काफी बड़े हो जाती हैं माँ को प्रसाद स्वरूप इन्हें चढ़ाकर सभी परिवार के सदस्यों के बिच इन्हें वितरित कर दिया जाता हैं.
माना जाता हैं कि इन बीजों को अगले साल दुर्गाअष्टमी तक अपने पास रखने से सुख सम्रद्धि एवं समस्त क्लेशों का नाश होता हैं.
मासिक दुर्गा अष्टमी का व्रत स्त्री पुरुष दोनों के करने का विधान हैं. इस दिन के व्रत में माँ के भक्त बेहद सादगीपूर्ण जीवन बिताते हैं, दूध या फलाहार के अतिरिक्त कुछ न सेवन करना, मॉस से बने किसी व्यजंन को न खाना और न ही इस दिन घर में लाना चाहिए.
ऐसा करने से देवी रुष्ट हो सकती हैं. वर्ष के १२ महीनों की अष्टमी तिथि को ही यह व्रत रखा जाता हैं इसलिए इसे मासिक दुर्गा अष्टमी कहा जाता हैं.
मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत कथा और इतिहास (Masik Durga Ashtami Vrat Katha & History In Hindi)
हिन्दुओं के प्राचीन शास्त्रों के अनुसार देवी नौ रूपों में प्रकट हुई हैं. उन सब रूपों की पृथक पृथक कथा इस प्रकार हैं.
मार्कण्डेय पुराण के मुताबिक़ बहुत समय पूर्व की बात हैं, जब देवताओं तथा दानवों के मध्य युद्ध चल रहा था. दुर्गम नामक दैत्य बड़ा ही क्रूर एवं शक्तिशाली था. जिसने अपनी चतुराई एवं पराक्रम के बल पर देवताओं को पृथ्वी और पाताल लोक दोनों स्थानों पर बुरी तरह पराजित कर दिया.
देवताओं के पास भागने के सिवाय कोई विकल्प नही था. क्रूर दैत्य से भयभीत देवगण त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु महेश) से मिलने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुचे. देवताओं ने आपबीती उन्हें सुनाई.
दुर्गम का वध करने के लिए देवों ने एक तरकीब सोची तथा सभी की संयुक्त शक्ति से आश्विन शुक्ल अष्टमी (दुर्गा अष्टमी के दिन) पृथ्वी लोक पर एक देवी का अवतरण किया, जिन्हें माँ दुर्गा के रूप में जाना जाता हैं. दे
वों की स्तुति पर महा दुर्गा ने दुर्गम राक्षस का वध कर देवों को अपना राज्य वापिस दिलाया तथा मनुष्यों के कष्टों के हरण किया. दुर्गम राक्षस के वध के कारण ही इन्हें दुर्गा कहा जाने लगा.
माँ दुर्गा और शेर से जुड़ी पौराणिक कथा (durga maa story)
पार्वती (सती) ने शिवजी को अपने पति रूप मे वरन करने के लिए कठोर तपस्या की, सैकड़ों वर्षों की तपस्या के चलते उनके शरीर का रंग सांवला हो गया था। भोलेनाथ ने एक दिन भूलवंश उन्हे काली कह दिया।
ये शब्द पार्वती को इतने चुभे कि वह तपस्या के लिए घर से निकाल गयी। उन्होने मन ही मन प्रण किया कि जब तक उसका शरीर गौरा नहीं हो जाएगा। वह तपस्या को छोड़ेगी नहीं।
इस तरह उन्हे तपस्या मे कई साल बीतने लगे एक दिन जंगल मे भूखे सिंह को पार्वती दिखाई दी। शेर उन्हे खाने के उद्देश्य से नजदीक आया मगर ध्यान मे मग्न पार्वती के पास आते ही उसका मन बदल गया तथा वह भी पार्वती के पास भूखा प्यासा बैठा रहा।
पार्वती की कठोर तपस्या से शिव प्रसन्न हुए उन्हें गौरी बनने का वरदान दे दिया। पार्वती ने तब गंगा स्नान करने का निश्चय किया। जब वह स्नान कर बाहर निकली तों गौरे रंग की देवी के रूप मे गौरी कहलाई।
प्राणियों को जीवित खा जाने वाला शेर तब भी पार्वती की राह देख रहा था। पार्वती उस शेर का अपने प्रति लगाव देखकर आश्चर्यचकित थी। उन्होने शेर को आशीर्वाद देकर अपना वाहन बना दिया।
मासिक दुर्गा अष्टमी का महत्व (masik durga ashtami vrat ka mahatva & Importance in hindi)
दुर्गा, काली, भवानी, जगदम्बा, जगतजननी, नव दुर्गा इन सभी नामों से भक्त माँ दुर्गा को बुलाते हैं. मासिक दुर्गा अष्टमी तिथि के एक दिन पूर्व व्रत का संकल्प कर व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर माँ की पूजा की जाती हैं. विधि पूर्वक दुर्गा का व्रत करने से माँ सभी संकटों को हरती हैं तथा भक्तों के जीवन को मंगलमय बनाती हैं.
इस दिन माँ अपने भक्तों से विशेष रूप से प्रसन्न रहती हैं. पूजा पाठ, भजन संध्या, आरती तथा दिन में दो वक्त की पूजा से हमारे जीवन में दिव्य प्रकाश, सुख समृधि, कारोबार में लाभ, विकास, सफलता और शांति की प्राप्ति होती है. तथा काया के समस्त कष्ट व बीमारियों का नाश हो जाता हैं.
माँ को खुश करने के लिए उनके स्वरूप 6 से 12 वर्ष की कन्याओं को इस दिन अच्छे वस्त्र पहनाकर पूजा कर अच्छे पकवान खिलाकर दान आदि देकर विदा करने से मासिक दुर्गा अष्टमी की पूजा सम्पूर्ण मानी जाती हैं.
दुर्गा अष्टमी के दिन का महत्व (Masik Durga Ashtami Importance)
मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत करने के पीछे कई तथ्य छुपे हुए हैं. इसका धार्मिक महत्व यह हैं कि इस दिन व्रत कर दुर्गा की पूजा करने से देवी का आशीर्वाद सदा बना रहता हैं तथा किसी तरह की कमी नही होती हैं. इसी दिन देवी ने किसी से पराजित न होने वाले महिषासुर नामक दानव का नाश किया था.
रावण वध से पूर्व भगवान श्रीराम जी ने भी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा के नवरात्र कर उनका पूजन किया था. अच्छे भाग्य की प्राप्ति तथा रोग मुक्त देह की प्राप्ति के लिए मासिक दुर्गा अष्टमी का व्रत किया जाता हैं.
बाघ पर सवारी करने वाली माँ दुर्गा हिंदुओं की मुख्य देवी हैं। शाक्त संप्रदाय की कुलदेवी के रूप मे इनकी पूजा की जाती हैं। इन्हे शक्ति अथवा देवी के नाम से भी भक्त पुकारते हैं। निर्भया स्त्री के रूप में इन्हें शक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व प्रदान करने वाली मानी गयी हैं।
धार्मिक ग्रन्थों में भी देवी दुर्गा के बारे में प्रयाप्त उल्लेख मिलता हैं, पुराण इन्हें आदि शक्ति का स्वरूप बताते हैं। वही उपनिषद में हिमालय की बेटी बताया गया हैं। दुर्गा को सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती तीनों का संयुक्त रूप बताया जाता हैं, जिनहोने ब्रह्मा विष्णु तथा महादेव तीनों से विवाह किया था।
ब्राह्मणी, महेश्वरी, भीमादेवी, आदिशक्ति, शाकम्भरी, रक्तदन्तिका, वैष्णवी, ऐन्द्री, शिवदूती, कौमारी, भ्रामरी, वाराही, नरसिंही ये सभी देवी दुर्गा के ही रूप माने गए हैं। जिनमें से काली अवतार दुर्गा का सबसे विभित्स रूप हैं, जों साक्षात काल (म्रत्यु की देवी) के रूप मे जानी जाती हैं।
जों भक्त ॐ दुर्गा देव्यैः नमः ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैः विच्चे दुर्गा मंत्र का नित्य जाप कर आरती कथा व भजन का श्रवण करते हैं, माँ उनके सभी दुखों का हरण कर जीवन को मंगलमय बनाती हैं।
माँ दुर्गा की आरती (Maa durga Aarti In Hindi)
सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी तेरा पार न पाया ॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरी भेट चढ़ाया ॥
सूवा चोली तेरे अंग विराजे केशर तिलक लगाया ॥
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे शंकर ध्यान लगाया ॥
नगे नंगे पग तेरे अकबर आया सोने का छत्र चढ़ाया ॥
ऊंचे ऊंचे पर्वत बनयों दिवाला नीचे शहर बसाया ॥
कलियुग द्वापर त्रेता मध्ये कलियुग राज बसाया ॥
धूप दीप नैवेध आरती मोह न भोग लगाया ॥
ध्यानू भक्त तेरा गुण गावे मन वांछित फल पाया ॥
जय अम्बे गौरी मैया जल मंगल मूर्ति मैया जय आनंद करनी ॥
तमूकों निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवजी ॥
मांग सिंदूर विराजत टीको म्रग मद को ॥
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्र वंदन नीको ॥
कनक समान कलेवर रक्ताबर राजै रक्त पुष्प गल क्ंठन पर साजे ॥
केहरि वाहन राजत खड़ग खप्पर धारी ॥
सूर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी॥
कानन कुंडल शोभित नाशाग्र मोती ॥
कोटिक चंद्र दिवाकर सम राजत ज्योति ॥
शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर घाती ॥
धूम्र विलोचन नैना निशि दिन मदमाती ॥
चौठ्स योगिन गावत न्रत्य करत भैरु ॥
बाजत ताल म्रदंग अरु बाजत डमरू ॥
भुजा चार अति शोभित खड़ग खप्पर धारी ॥
मन वांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर की बाती॥
श्री मालकेतु मे राजत कोटि रतन ज्योति ॥
या अम्बे की आरती जो कोई नर गावे ॥
भजत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे ॥
2024 में होने वाली मासिक दुर्गा अष्टमी की तारीख और तिथि (Masik Durga Ashtami 2024 date and time)
हर साल बारह महीनों की शुक्ल अष्टमी की तिथि के दिन मासिक दुर्गा अष्टमी का व्रत रखा जाता हैं. इस दिन भक्त माँ दुर्गा देवी का व्रत रखकर उनकी उपासना करते हैं,
यहाँ हम साल 2024 में शुक्ल अष्टमी की तिथि कब कब हैं इनके बारे में जानकारी दे रहे हैं.
त्यौहार के नाम | दिन | त्यौहार के तारीख |
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मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | गुरूवार | 18 जनवरी 2024 |
मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | शनिवार | 17 फरवरी 2024 |
मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | रविवार | 17 मार्च 2024 |
मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | मंगलवार | 16 अप्रैल 2024 |
मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | बुधवार | 15 मई 2024 |
मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | शुक्रवार | 14 जून 2024 |
मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | रविवार | 14 जुलाई 2024 |
मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | मंगलवार | 13 अगस्त 2024 |
मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | बुधवार | 11 सितंबर 2024 |
मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | शुक्रवार | 11 अक्टूबर 2024 |
मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | शनिवार | 9 नवंबर 2024 |
मासिक दुर्गाष्टमी पूजा | रविवार | 8 दिसंबर 2024 |