भारत में नगरीय स्वशासन नगर प्रशासन Urban Administration In India In Hindi भारतीय संविधान में त्रिस्तरीय शासन व्यवस्था को स्वीकार किये जाने के पश्चात देश में सत्ता के विकेन्द्रीकरण किया गया हैं.
सबसे निचले स्तर पर ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला प्रशासन के तहत प्रशासकीय व्यवस्था कायम की गई.
नगरीय स्वशासन का अर्थ तीन शासन इकाइयों नगर पालिका, नगर निगम और नगर परिषद् से हैं, इस लेख में हम इनके इतिहास और मौजूदा व्यवस्था के बारे में जानेगे.
नगरीय स्वशासन नगर प्रशासन Urban Administration In India In Hindi
भारतीय संविधान में 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के तहत शहरी निकायों को संवैधानिक मान्यता दी गई.
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि हमारे मूल संविधान में शहरी शासन के कोई विषय में कोई प्रावधान नहीं थे.
भारतीय में शहरी स्वशासन का इतिहास
अगर भारत में नगरीय शासन व्यवस्था की जड़े खोजे तो प्राचीन काल से ही भारत में गाँवों और नगरों के शासन की पृथक व्यवस्था देखने को मिलती हैं.
आधुनिक भारत के इतिहास में औपनिवेशिक काल के दौरान सबसे पहले 1687 में ब्रिटिश सरकार ने इसे विधिक स्वरूप देने का प्रयास किया गया.
ब्रिटिश सरकार ने पहले नगर निगम के रूप में मद्रास शहर में स्थापना की, वर्ष 1793 के चार्टर अधिनियम के तहत तीन बड़े शहरों बम्बई, कलकत्ता और मद्रास में नगर निगम की स्थापन की गई.
बंगाल अधिनियम 1842 को पारित करने के बाद तत्कालीन वायसराय लार्ड रिपन ने इस व्यवस्था में कई सुधार और प्रयोग किये, यही वजह है कि रिपन को भारतीय स्थानीय स्वशासन का जनक कहा जाता हैं.
सत्ता के विकेन्द्रीकरण के अगले प्रयासों में 1909 में शाही कमिशन का गठन बनाया गया, कमीशन रिपोर्ट के आधार पर 1919 के भारत सरकार अधिनियम में शहरी प्रशासन के लिए स्पष्ट प्रावधान बनाये गये.
संवैधानिक प्रावधान
स्वतंत्र भारत में करीब आजादी के 50 वर्ष बाद 1992 में नगर निकायों के लिए शासन के स्वरूप को नगरीय स्वशासन अधिनियम के जरिये वैध बनाया गया,
इस एक्ट के तहत संविधान के निम्न अनुच्छेदों में प्रावधान जोड़कर एक शासन व्यवस्था बनाने का प्रयास किया गया.
अनुच्छेद | विवरण |
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अनुच्छेद 243 त | परिभाषा |
अनुच्छेद 243 थ | नगर पालिकाओं का गठन |
अनुच्छेद 243 द | नगर पालिकाओं की संरचना |
अनुच्छेद 243 ध | वार्ड समितियों आदि का गठन और संरचना |
अनुच्छेद 243 न | स्थानों का आरक्षण |
अनुच्छेद 243 प | नगर पालिकाओं की अवधि आदि |
अनुच्छेद 243 फ | सदस्यता के लिए निरर्हताएँ |
अनुच्छेद 243 ब | नगरपालिकाओं आदि की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तदायित्व |
अनुच्छेद 243 भ | नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियाँ |
अनुच्छेद 243 म | वित्त आयोग |
अनुच्छेद 243 य | नगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा |
अनुच्छेद 243 य क | नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन |
अनुच्छेद 243 य ख | संघ राज्य क्षेत्रों को लागू होना |
अनुच्छेद 243 य ग | इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना |
अनुच्छेद 243 य घ | ज़िला योजना के लिए समिति |
अनुच्छेद 243 य ङ | महानगर योजना के लिए समिति |
अनुच्छेद 243 य च | विद्यमान विधियों पर नगर पालिकाओं का बना रहना |
अनुच्छेद 243 य छ | निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन |
नगरपालिका,नगर निगम,नगर परिषद क्या है और कैसे कार्य करती है.
जो कार्य ग्रामीण क्षेत्र में ग्राम पंचायत द्वारा किये जाते है, शहरों में इस प्रकार के कार्य नगरपालिका और नगर निगम या नगर परिषद के द्वारा किये जाते है.
शहरों में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं का स्वरूप वहां की जनसंख्या के अनुसार किया जाता है. 20,000 से अधिक एवं एक लाख से कम जनसंख्या वाले नगर नगरपालिका, एक लाख से अधिक किन्तु पांच लाख से कम जनसंख्या वाले नगर में नगर परिषद तथा पांच लाख या इससे अधिक जनसंख्या वाले नगर में नगर निगम होता है.
उदहारण के लिए जनसंख्या के आधार पर नाथद्वारा में नगरपालिका, भरतपुर में नगर परिषद तथा अजमेर में नगर निगम कार्यरत है. नगरपालिका, नगर परिषद या नगर निगम के गठन के लिए उनके क्षेत्र को वार्डो में बाट दिया जाता है.
प्रत्येक वार्ड के मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करते है जो कि पार्षद कहलाता है. ये पार्षद इन संस्थाओं के सदस्य होते है. इनके साथ उन क्षेत्र के लोकसभा व विधानसभा के सदस्य तथा कुछ मनोनीत लोग भी इसके सदस्य होते है.
निर्वाचित पार्षद अपने में से ही किसी एक पार्षद को अपना मुखिया और एक को उप मुखिया चुनते है. नगरपालिका का मुखिया अध्यक्ष, नगरपालिका का मुखिया सभापति और नगर निगम का मुखिया मेयर या महापौर के नाम से जाना जाता है,
इनका कार्यकाल पांच वर्ष का होता है. समय समय पर होने वाली बैठकों में ये पार्षद अपने शहर की विकास योजनाओं, समस्याओं आदि पर चर्चा करके निर्णय लेते है. ये अपने क्षेत्राधिकार के विषयों पर नियम उपनियम भी बनाते है.
नगरपालिका,नगर निगम,नगर परिषद के कार्य
शहरी संस्थाओं के कार्य दो तरह के होते है, कुछ कार्य अनिवार्य होते है, जैसे शहर के लिए शुद्ध पानी की व्यवस्था करना, सड़को पर रोशनी और सफाई की व्यवस्था करना, जन्म मृत्यु का पंजीयन करना, दमकल की व्यवस्था आदि कार्य नगर पालिका, नगर निगम और नगर परिषद को अनिवार्य रूप से करने ही पड़ते है.
कुछ कार्य ऐसे भी है, जिन्हें करना इन संस्थाओं की इच्छा पर निर्भर है, जैसे सार्वजनिक बाग़, स्टेडियम, वाचनालय, पुस्तकालय का निर्माण करना, वृक्षारोपण, आवारा पशुओं को पकड़ना, मेले प्रदर्शनियों का आयोजन, रेन बसेरों की व्यवस्था आदि.
इन संस्थाओं को अपने कार्य में मदद के लिए अधिशाषी अधिकारी या मुख्य कार्यकारी अधिकारी या आयुक्त, इंजिनियर, स्वास्थ्य अधिकारी, राजस्व अधिकारी, सफाई निरीक्षक आदि होते है.
इन संस्थाओं को तीन स्रोतों से धन प्राप्त होता है. इन्हें केंद्र या राज्य सरकारों से अनुदान और ऋण के रूप में धन मिलता है.
दूसरा इन्हें विभिन्न शुल्को एवं जुर्माने के रूप में धन मिलता है. तीसरा, ये अपने शहरवासियों पर विभिन्न कर लगाकर धन प्राप्त कर सकती है.
ये स्थानीय संस्थाएं हमारी अपनी संस्थाएं है. अपनी समस्याओं के समाधान और विकास के लिए हमे योग्य, कर्तव्यनिष्ठ और सेवाभावी प्रतिनिधि को ही निर्वाचित करना चाहिए.
हमारी जिम्मेदारी यह भी है कि हम इन संस्थाओं और जन प्रतिनिधियों का सहयोग करे, तब ही ये संस्थाएं सार्वजनिक हित में अच्छे से अच्छा कार्य कर सकेगी.