नानक भील का जीवन परिचय | Nanak bhil Biography In Hindi

नानक भील का जीवन परिचय | Nanak bhil Biography In Hindi बूंदी में रियासती अत्याचारों एवं अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में जनजागृति पैदा करने के लिए जाना गया नानक भील,

जो गाँव गाँव झंडा लेकर गीत गाया करता था और किसान आंदोलन की सफलता के लिए लोगों को प्रेरित करता था.

नानक भील का जीवन परिचय | Nanak bhil Biography In Hindi

13 जून 1972 को डाबी गाँव के तालाब की पाल पर एक विशाल जनसभा का आयोजन हो रहा था, सभा में जनसमूह जोशीले नारे लगा रहा था, राष्ट्रीय गीतों की समा बन्धी हुई थी.

यह द्रश्य रियासती पुलिस के प्रमुख एवं जवानों से देखा नहीं जा रहा था. पुलिस अधीक्षक इकराम हुसैन अपनी पुलिस फौज की टुकडियां के साथ मौके की तलाश में था.

अपार जनसमूह क्रांति गीत गाने लगा. जिससे हाकिम इकराम हुसैन क्रोधित हो गया उसने लाठी चार्ज एवं गोलीबारी का आदेश दिया.

पहली ही गोली नानक भील को लगी और वे मंच पर ही शहीद हो गये. देवगढ़ के पास एक नाले के किनारे नानक भील का अंतिम संस्कार किया गया.

नानक भील की व्यक्तिगत जानकारी 

पूरा नामनानक भील
जन्मसाल 1890 
जन्म स्थानधनेश्वर गांव, राजस्थान 
पिताभैरू
माताअज्ञात
बहनअज्ञात
भाईअज्ञात
पत्नीअज्ञात
धर्महिंदू
जातिभील
पढ़ाईज्ञात नहीं
लंबाईज्ञात नहीं
वजनज्ञात नहीं
छातीज्ञात नहीं
कमरज्ञात नहीं
बाजूज्ञात नहीं
आंखों का रंगज्ञात नहीं
बालों का रंगज्ञात नहीं
चेहरे का रंगज्ञात नहीं

प्रारंभिक जीवन 

हिंदू धर्म की भील जाति से संबंध रखने वाले नानक भील साल 1890 में राजस्थान के बराड इलाके के धनेश्वर नाम के गांव में पैदा हुए थे। इनकी माता के बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है। 

बात करें अगर इनके पिता की तो इनके पिता का नाम भैरो था। नानक भील के पिताजी के बारे में ही नेट पर जानकारी है‌।

इनके भाई कौन थे, इनकी बहन कौन थी, इनकी शादी हुई थी या नहीं, इनके बच्चे कौन थे? इसके बारे में कोई भी इंफॉर्मेशन नहीं है।

नानक भील का स्वभाव

नानक के स्वभाव के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह बचपन से ही शिकार किया करते थे और इसीलिए शिकार करते करते इनके अंदर से डर नाम की चीज निकल गई और यह बेखौफ होकर किसी भी व्यक्ति के सामने अपनी बात रख सकते थे। 

आंदोलन में भाग लेना

नानक भील के समय में इंडिया अंग्रेजों का गुलाम था। ऐसे में कई क्रांतिकारी अंग्रेजों से इंडिया को आजाद करवाने के लिए आंदोलन चलाते रहते थे।

मोतीलाल तेजावत और गोविंद गुरु ऐसे व्यक्ति थे जो अंग्रेजो के खिलाफ सक्रिय आंदोलन में भाग लेते थे, इन्हीं लोगों से संपर्क में आने के बाद नानक भी कई आंदोलन में शामिल होने लगे।

नानक भील और झंडा गीत

जब नानक सक्रिय आंदोलन में भाग लेने लगे तो धीरे-धीरे इन्हें अंग्रेजों का विरोध किस प्रकार से करना है इसकी जानकारी प्राप्त होती गई। इसी प्रकार इन्होंने अंग्रेजों का विरोध करने के लिए एक अलग तरीका ढूंढ निकाला। 

अंग्रेजों का विरोध करने के लिए यह कई इलाकों में जाते थे और झंडा गीत गाकर के लोगों को अंग्रेजी व्यवस्था को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए आवाहन करते थे।

नानक के प्रभाव के कारण कई लोग इनके साथ जुड़ने लगे और फिर तो नानक भील ने झंडा गीत के द्वारा कई लोगों को जागरूक किया और उन में देशभक्ति का जोश और जुनून भरा।

मृत्यु 

अंग्रेजी हुकूमत का अपने आखिरी समय तक नानक ने पुरजोर विरोध किया था‌। एक बार नानक भील को एक ऐसी सभा में बुलाया गया जहां पर किसानों का जमावड़ा था। नानक को इस सभा में स्टेज पर चढ़कर के किसानों के सामने भाषण देना था

परंतु जैसे ही नानक ने स्टेज पर चढ़कर के अपना भाषण देना चालू किया वैसे ही अंग्रेजी हुकूमत के कुछ सिपाहियों ने अचानक से ही नानक भील पर गोलियों की बौछार कर दी, जिसके कारण भील जैसे महान आदिवासी क्रांतिकारी को भारत माता ने खो दिया। 

इतिहास के पन्नों में इनकी मृत्यु की तारीख 13 जून साल 1922 दर्ज है। हर साल इस दिन नानक के गांव में इन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।

नानक को सम्मान देने के लिए राजस्थान के कई इलाकों में इनकी मूर्तियां लगाई गई हैं और इनके गांव में वर्तमान के समय में मेले का आयोजन भी इनकी बरसी पर होता है।

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