राजस्थान के वन और वन्य जीव अभयारण्य | Forest and Wildlife Sanctuary In Rajasthan In Hindi

राजस्थान के वन और वन्य जीव अभयारण्य Forest and Wildlife Sanctuary In Rajasthan In Hindi हेलों साथियों आज हम राजस्थान के वन्य जीव एवं अभयारण्य के बारे में विस्तार से जानेगे.

वन्य जीवन उद्यान तथा राष्ट्रीय उद्यान में मूलभूत अंतर यह हैं कि राष्ट्रीय उद्यान केंद्र सरकार भारत द्वारा स्थापित किये जाते हैं तथा ये वन एवं वन्य जीव विभाग के अंतर्गत आते हैं.

राज्य में वर्तमान में 3 राष्ट्रीय उद्यान तथा 26 अभयारण्य हैं. नेशनल पार्क इन राजस्थान इन हिंदी में हम इन्हें पढेगे.

राजस्थान के वन वन्य जीव अभयारण्य Forest Wildlife Sanctuary In Rajasthan In Hindi

National Park and Wildlife sanctuaries in Rajasthan: प्राकृतिक आवास में रहने वाले जीव जन्तुओं को वन्य जीव कहते है. हमारे राज्य में मुख्यत बाघ, बघेरे, चीतल, सांभर, चिंकारा,काला हिरण, भेड़ियाँ, रीछ, लोमड़ी, आदि वन्य जीव मिलते है.

यहाँ का वन्य पशु चिंकारा है, जबकि पशु श्रेणी में राजस्थान का राज्य पशु ऊंट है. राजस्थान में 22 वन्य जीव अभ्यारण्य है.

रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान, सवाई माधोपुर तथा केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर राजस्थान में स्थित राष्ट्रीय उद्यान है.

राजस्थान के वन | Rajasthan Forest In Hindi

राजस्थान के वन एवं वन्य जीव अभ्यारण्य Rajasthan Forest In Hindi : जंगलों को हरा सोना भी कहा जाता हैं. भारत में वन नीति के अनुसार वनों का प्रतिशत तो काफी कम हैं मगर स्थिति इतनी चिंताजनक भी नहीं हैं

देश में सर्वाधिक वन मध्यप्रदेश में तथा सबसे कम हरियाणा राज्य में हैं. राजस्थान का वनों के क्षेत्रफल में नौवा स्थान हैं. राजस्थान में वनों के कई प्रकार हैं जिन्हें आज हम Forest Of Rajasthan In Hindi में यहाँ जानेगे.

राजस्थान में लगभग 34,610 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के वन एवं वनस्पतियाँ मिलती है. यह राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10.12 प्रतिशत है. राजस्थान में सघन वन आवरण क्षेत्र तो 3.83 प्रतिशत ही है.

राजस्थान में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र मात्र 0.03 हैक्टर है. जो भारत के प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र 0.12 हैक्टर से काफी कम है. एक नजर राजस्थान में वनों के प्रकार एवं उनकी स्थति पर.

राजस्थान में वनों के भौगोलिक वितरण में काफी भिन्नता है. राज्य की वनस्पतियाँ यहाँ की जलवायु, मिट्टी, भूमि की स्थति तथा भूगर्भिक इतिहास से प्रभावित है.

यहाँ पर प्राकृतिक वनस्पति तीन प्रकार की पाई जाती है. वन, घास व मरुस्थलीय वनस्पति. राजस्थान के वनों का वर्गीकरण (classification of forest in rajasthan) एवं वितरण इस प्रकार है.

राजस्थान में वनों के प्रकार (types of forests in rajasthan)

धरातलीय स्वरूप , जलवायु व मिट्टियों की भिन्नता के कारण राजस्थान में भौगोलिक दृष्टि से निम्नलिखित प्रकार के वन मिलते है.

  1. उष्णकटिबंधीय कंटीले वन
  2. उष्णकटिबंधीय शुष्क पतझड़ वाले वन
  3. उपोष्ण पर्वतीय वन

उष्णकटिबंधीय कंटीले वन (Tropical barbed forest)

इस प्रकार के वन पश्चिमी मरुस्थलीय शुष्क व अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में पाए जाते है. जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, बीकानेर, चुरू, नागौर, सीकर, झुंझुनू आदि जिलों में इस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है.

इन वनों में पेड़ बहुत छोटे आकार के होते है. व झाड़ियो की अधिकता होती है. इस प्रकार के शुष्क जलवायु वाले वनों में खेजड़ी, रोहिड़ा, बैर, कैर, थोर आदि वृक्ष व झाड़ियाँ उगते है. इन पेड़ो की झाड़ियाँ की जड़े लम्बी होती है तथा पत्तियां कंटीली होती है.

मरुस्थलीय प्रदेश में खेजड़ी की अत्यधिक उपयोगिता के कारण इसे मरुस्थल का कल्पवृक्ष भी कहा जाता है. इन वनों में कई तरह की झाड़ियाँ भी पाई जाती है.

फोग, धोकड़ा, कैर, लाना, अरणा व झड़बेर इस क्षेत्र की प्रमुख झाड़ियाँ है. इनके अतिरिक्त इस क्षेत्र में कई तरह की घास भी पाई जाती है. इन घासों में सेवण व धामण नाम की घास बहुत प्रसिद्ध है.

धामण घास दुधारू पशुओं के लिए बहुत उपयोगी होती है जबकि सेवण घास सभी पशुओं के लिए पोष्टिक होती है.

उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वाले वन (tropical dry deciduous forest in rajasthan)

इन वनों का विस्तार राजस्थान के बहुत बड़े क्षेत्र में है. ये वन राजस्थान के 50 से 100 सेमी वर्षा वाले भागों में पाए जाते है. ये वन राजस्थान के दक्षिणी व दक्षिणी पूर्वी भागों में बहुतायत से पाए जाते है. विभिन्न तरह के वृक्षों की विविधता के कारण इन वनों के कई उपभाग लिए गये है. जो निम्न है.

शुष्क सागवान के वन (Shushk sagwan Van)

  • ये वन 250 से 450 मीटर ककी उंचाई वाले क्षेत्रों में मिलते है. इन वनों में सागवान वृक्ष बहुतायत से पाये जाने पर इन्हें सागवान वन का नाम दिया गया है. राजस्थान में इन वनों का विस्तार उदयपुर, डूंगरपुर, झालावाड़, चित्तौड़गढ़ व बांरा जिलों में है.
  • इन वनों में सांगवान की मात्रा 50 से 75 प्रतिशत के मध्य मिलती है. इनके अतिरिक्त इन वनों में तेंदू, धावड़ा, गुजरन, गेंदल, सिरिस, हल्दू, खैर, सेमल, रीठा, बहेड़ा व ईमली के वृक्ष पाए जाते है.
  • सागवान अधिक सर्दी व पाला सहन नही कर सकता है. अतः इन वृक्षों का विस्तार राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्रों में अधिक है. सागवान की लकड़ी कृषि औजारों व इमारती कार्यों के लिए बहुत उपयोगी है.

सालर वन (salar forest in rajasthan)

  • ये वन 450 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में मिलते है. राजस्थान में इन वनों का विस्तार उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौड़गढ़, सिरोही, पाली, अजमेर, जयपुर, अलवर, सीकर जिलों में मिलता है. इन वनों के प्रमुख वृक्ष सालर, धोक, क्ठीरा व धावड़ है.
  • सालर वृक्ष गोंद का अच्छा स्रोत है. इसकी लकड़ी पैकिंग के डिब्बे बनाने में ली जाती है. सालर वृक्षों की अधिकता के कारण इन वनों को सालर वन का नाम दिया गया है.

बांस के वन (Bamboo forest in rajasthan)

  • बांस की अधिकता के कारण इन्हें बांस वन का नाम दिया गया है. राजस्थान में प्रचुर वर्षा वाले क्षेत्रों में इन वनों का विस्तार है. राजस्थान में बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, बारां, कोटा व सिरोही जिलों में इन वनों का विस्तार है.
  • बाँसवाड़ा का नाम बाँसवाड़ा, बांस के वृक्षों की अधिकता के कारण ही पड़ा. बांस के वृक्षों के साथ इन वनों में धोकड़ा, सागवान, धाकड़ा आदि वृक्ष भी पाए जाते है.

धोकड़ा के वन

  • धोकड़ा के वन राजस्थान के बहुत बड़े क्षेत्र में पाए जाते है. रेगिस्तानी क्षेत्रों को छोड़कर राजस्थान के सभी क्षेत्रों का भौगोलिक पर्यावरण इसके अनुकूल है, अतः राजस्थान में इन वनों का विस्तार सबसे अधिक है. राजस्थान में ये वन 240 से 760 मीटर की ऊँचाई के मध्य अधिक मिलते है.
  • इनका विस्तार कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, जयपुर, अलवर, अजमेर, उदयपुर, राजसमन्द व चित्तौड़गढ़ जिलों में है. राजस्थान में धोकड़ा को धोक के नाम से भी जाना जाता है. ये वन राज्य की प्रमुख वन संपदा में शामिल किये जाते है. इन वनों के धोक के साथ साथ अरुन्ज, खैर, खिरनी, सालर, गोंदल के वृक्ष भी पाएं जाते है.
  • पहाड़ी तलहटी खेत्रों में धोक के साथ पलाश बहुतायत से मिलता है. कही कही झड़बेर व अडूसा भी मिलता है. धोल की लकड़ी बहुत मजबूत होती है. इसे जलाकर इसका कोयला बनाया जा सकता है.

पलाश के वन (Palash forest)

  • ये वन उन क्षेत्रों में फैले है जहाँ धरातल कठोर व पथरीला है. पहाडियों के मध्य जल पठारी धरातल है, वहां ये बहुतायत पाए जाते है. ऐसे मैदानी क्षेत्र जो कंकरीले है व वहां मिट्टी अपेक्षाकृत कम है. वहां भी ये वन मिलते है. इनका फैलाव अलवर, अजमेर, सिरोही, उदयपुर, पाली, राजसमन्द व चित्तौड़गढ़ में है.

खैर के वन (khair ke van)

  • इन वनों का फैलाव राज्सथान के दक्षिणी पठारी भाग में है. इसके अंतर्गत झालावाड़, कोटा, बारां, चित्तौड़गढ़, सवाईमाधोपुर जिलों के क्षेत्र शामिल है. इन वनों में खैर के साथ बेर, धोकड़ा, व अरुंज के वृक्ष भी मिलते है.

बबूल के वन

  • ये वन गंगानगर, बीकानेर, नागौर, जालौर, अलवर, भरतपुर आदि जिलों में मिलते है. जिन क्षेत्रों में धरातल में नमी कम है. वहां इनके वृक्षों की मात्रा कम है. अधिक नमी वाले क्षेत्रों में इनकी सघनता बढ़ जाती है. इन वनों में बबूल के साथ नीम, हिंगोटा, अरुंज, कैर व झड़बेर के वृक्ष भी मिलते है.

मिश्रित पर्णपाती के वन

  • ये वन राजस्थान के दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्र में पाये जाते है. सिरोही, उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौड़गढ़, कोटा व बारां जिलों में इसका विस्तार अधिक है. इन वनों में किसी एक वृक्ष की प्रधानता नही है. इनमे सभी तरह के वृक्ष पाए जाते है, इन वनों में पायें जाने वाले प्रमुख वृक्ष आंवला, शीशम, सालर, तेंदू, अमलताश, रोहन, करंज, गूलर, जामुन, अर्जुन आदि है.

उपोष्ण पर्वतीय वन (Subtropical montane forest in RAJASTHAN)

इस प्रकार के वन केवल आबू पर्वतीय क्षेत्र में पाए जाते है. इन वनों में सदाबहार एवं अर्द्ध सदाबहार वनस्पति होती है. यहाँ वृक्षों के सघनता अधिक है. अतः सालभर हरियाली बनी रहती है.

इन वनों में आम, बांस, नीम, सागवान आदि के वृक्ष पाए जाते है. राजस्थान के कुल वन क्षेत्र के आधे प्रतिशत से भी कम भाग पर इस प्रकार के वन पाए जाते है.

राजस्थान के वन्य जीव अभयारण्य Wildlife Sanctuary In Rajasthan

राष्ट्रीय मरु उद्यान जैसलमेर, सरिस्का अभ्यारण्य अलवर, व मुकन्दरा हिल्स अभ्यारण्य कोटा को राष्ट्रीय उद्यान प्रस्तावित किया गया है. रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान व सरिस्का अभयारण्य बाघ सरक्षण के लिए है. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान विश्व विरासत की सूची में शामिल है.

यह साइबेरियन सारस के लिए प्रसिद्ध है. अब यहाँ पर इनका आना कम हो गया है. राष्ट्रीय मरू उद्यान, जैसलमेर वन्य जीवों के साथ ही जीवाश्म (फासिल्स) के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है. यहाँ पर आकल क्षेत्र के जीवाश्म पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है.

कुरजा राज्य के लोक साहित्य का चर्चित प्रवासी पक्षी है. इनका केंद्र खींचन जोधपुर है. राज्य में 33 आखेट निषिद्ध क्षेत्र है. राज्य का जैविक उद्यान नाहरगढ़ (जयपुर) में है. राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण है. जो कि इसके प्राकृतिक वास स्थान पश्चिम राजस्थान में भी दुर्लभ है.

घड़ियालों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य है. राज्य के प्रमुख अभ्यारण्य तालछापर (चुरू) रामगढ़ विषधारी (बूंदी) कुम्भलगढ़, सज्जनगढ़ (उदयपुर), माउंट आबू (सिरोही), कैलादेवी (करौली), सीतामाता व भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़), बंध बारेठा (भरतपुर) टाडागढ़ रावली (अजमेर), जमवारामगढ़ (जयपुर), रामसागर (धौलपुर) आदि है.

राजस्थान में राष्ट्रीय उद्यान National Park In Rajasthan In Hindi

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान- यह राज्य का पहला राष्ट्रीय उद्यान हैं. सवाईमाधोपुर जिले में स्थित इस अभयारण्य को 1 नवंबर,1980 के दिन मान्यता दी गई थी.

वर्ष 1974 में इसे एक बाघ परियोजना के तहत टाइगर रिजर्व सेंचुरी बनाया गया, वर्तमान में यह भारत का सबसे कम भूभाग में फैली बाघ परियोजना हैं.

प्राकृतिक सुस्थिति में बसा यह अभ्यारण्य राजस्थान आने वाले तथा देशी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहता हैं. इसका कुल क्षेत्रफल 392 वर्ग किमी ही हैं. यह अपने चारों ओर अरावली तथा विंध्याचल पर्वत श्रृंखलाओं के बीच घिरा हुआ हैं.

राजस्थान का इतिहास प्रसिद्ध रणथम्भौर दुर्ग तथा गणेश जी का मंदिर भी यही स्थित हैं. बाघ, बघेरा, चीतल, सांभर, नीलगाय, रीछ, जरख एवं चिंकारा आदि जानवर यहाँ बहुतायत पाए जाते हैं.

दम तालाब, राजबाग, मलिक तालाब, गिलाई सागर, मानसरोवर एवं लाभपुर झीलें इसी उद्यान में स्थित हैं. धौंक वृक्ष तथा ढाक वनस्पतियां विशेष रूप से रणथम्भौर अभयारण्य में पाई जाती हैं. रामगढ़ विषधारी अभ्यारण्य को अब इसमें शामिल कर दिया गया हैं.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान- भरतपुर में स्थित इस वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को घना पक्षी विहार के नाम भी जाना जाता हैं. घना राजस्थानी शब्द का अर्थ मात्रा में अधिक होता हैं.

अर्थात यह सर्वाधिक पक्षियों की स्थिति होने के कारण घना पक्षी विहार तथा सबसे बड़ी प्रणयस्थली, पक्षी प्रेमियों का तीर्थ, हिम पक्षियों का शीत बसेरा, पक्षियों का स्वर्ग आदि नामों से भी जाना जाता हैं.

यह राज्य के स्वर्णिम त्रिकोण पर स्थित होने कारण यहाँ अधिक लोग पहुच पाते हैं. 981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया यहाँ पर कामन क्रेन, दुर्लभ साइबेरियन सारस, गीज, पोयार्ड, लेपबिंग, बेगर्टल एवं रोजी पोलीकन प्रजाति के वन्य जीव पाए जाते हैं. सन् 1985 में 29 वर्ग किमी में फैले इस अभ्यारण्य को वेल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया गया हैं.

मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान का तीसरा राष्ट्रीय वन्य जीव अभ्यारण्य हैं. 9 जनवरी, 2012 को यह राष्ट्रीय उद्यान बना. यह कोटा व चितौड़गढ़ में 199.55 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ हैं.

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