Poem On Soil In Hindi: नमस्कारान् दोस्तों आज हम मेरी मिट्टी पर कविता शेयर कर रहे हैं. कहाँ गया है कि माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती हैं.
अपनी मिट्टी की सुगंध, खुशबू हर किन्ही के जीवन में प्रसन्नता, सुख और आनन्द की अनुभूति देने वाली होती हैं.
लोगों ने अपनी मिट्टी पर आधारित कविताएँ एवं शायरी लिखी हैं आज इस लेख में हम soil पर लिखी कुछ हिंदी पॉएम यहाँ पढ़ेगे.
Poem On Soil In Hindi
यहाँ हम मिट्टी और मैं (Poem On Soil) प्रस्तुत कर रहे हैं. इसे Aalay Imran जी ने विडियो ब्लॉग के जरिये शेयर किया हैं.
हमारा अपनी मिट्टी के साथ क्या भावनात्मक सम्बन्ध होता हैं, इसे हम यह कविता पढ़ने के बाद आसानी से समझ सकते हैं.
उम्मीद करते हैं आपकों आलय इमरान की यह मिट्टी और मैं शीर्षक की कविता जरुर पसंद आएगी.
Mitti Aur Main poetry on Our Relation with soil
रिश्ता तब से है जब मुझे
चलना भी नहीं आता था
इतनी ज्यादा नादानी थी
कि मैं इसे ही खा जाता था.
फिर माँ धीरे से धुल झाड़कर
दूर कही बैठा देती थी
और मैं भी कहाँ मानने वाला
मिट्टी पर ही आ जाता था.
फिर कुछ समय बीता
और दो पैरों पर चलना आया
बादलों का घेरा लगा था
और बूंदों का झरना आया
धरती की उस मिट्टी ने
पानी से दोस्ती कर ली
दो चार दोस्त मिले हम भी
और कीचड़ में मस्ती कर ली
फिर क्या था
वो दिन हमें अब भी याद है
पापा को क्यों भेजा था
माँ से आज भी ये फरियाद है.
दोस्ती उससे अब भी
बेइन्तहा बरकरार है
पर उतना मिलना
नहीं हो पाता हैं.
और जब भी उसकी सोनी
खुशबू पुकारती है बरसातों में
तो मुझसे बिलकुल भी
रहा नहीं जाता हैं.
उस प्यारी खुशबू से मदहोशी सी
हो जाती है
घंटों बैठकर देखा करता हूँ
उसे और खामोशी सी हो जाती हैं
सिर्फ मेरा ही क्या सभी
का ये दस्तूर होगा
हर किसी का दिल
मिट्टी की मासूमियत में चूर होगा.
हाँ माना किसी को इतना
लगाव नहीं हो शायद
पर बने तो है मिट्टी से
और ये सच कैसे दूर होगा.
मानो या ना मानों
ये तो खुदा का फरमान हैं
मिट्टी से ही हुआ है आगाज
और मिट्टी में ही अंजाम है.
जिसे तीर्थ की मिट्टी मिलती कविता शचीन्द्र भटनागर
हर पानी को पंचतत्व में एक रोज मिल जाना है
जिसे तीर्थ की मिट्टी मिलती है, उसे परम पद पाना है
कितनो की कामना अधूरी जीवन में रह जाती है
किन्तु पुण्यतोया गंगा की बूंद नहीं मिल पाती है
पर होती है अनायास ही धन्य यही मानव काया
अंत समय पाकर गंगा की गोद हिमालय की छाया
उसे अमरता का पथ होता फिर जाना पहचाना है
जिसे तीर्थ की मिट्टी मिलती है, उसे परम पद पाना है.
अटल सत्य है यह जीवन का. जो आता वह जाता है
किन्तु सफल है जो ईश्वर का सहयोगी बन जाता है
जीवन की आखिरी साँस तक गुरु का कर्ज चुकाता है
सही अर्थ में जीवन जीना सिर्फ उसी को आता है
ऐसे मान को युग युग तक करता याद जमाना है
जिसे तीर्थ की मिट्टी मिलती, उसे परम पद पाना है.
किसी भयंकर अनहोनी को महाकाल ने टाला है,
कोई भी हो देश दीन वह सबका ही रखवाला है
देकर थोड़ी चोट, बड़ी से उसने हमें उबारा है
दिया आत्मचिंतन का उसने अवसर हमें दुबारा है
यह हम सबके परिष्कार का केवल एक बहाना है
जिसे तीर्थ की मिट्टी मिलती उसे परम पद पाना है.
कलम से शचीन्द्र भटनागर
Nice