भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Preamble In Indian Constitution In Hindi

भारतीय संविधान की प्रस्तावना Preamble In Indian Constitution In Hindi  दुनिया के सबसे बड़े संविधान भारत के संविधान की प्रस्तावना उद्देशिका को संविधान का ह्रदय भी कहा जाता हैं.

मुख्य रूप से प्रस्तावना में सम्पूर्ण संविधान के उद्देश्यों का वर्णन इसमें प्रस्तुत किया जाता है जिसकी शुरुआत हम भारत के लोग वाक्य से होती हैं, आज हम जानेगे कि भारत के संविधान में प्रस्तावना का महत्व क्या है हिंदी पीडीऍफ़ में सम्पूर्ण प्रस्तावना के मूल बिंदु  दिए गये हैं.

भारतीय संविधान प्रस्तावना Preamble In Indian Constitution In Hindi

भारतीय संविधान प्रस्तावना Preamble In Indian Constitution In Hindi

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Meaning Of Preamble In Indian Constitution In Hindi

प्रत्येक संविधान के प्रारम्भ में एक प्रस्तावना होती है जिसके द्वारा संविधान के मूल उद्देश्यों को स्पष्ट किया जाता हैं. जिससे संविधान की क्रियान्वती तथा उसका पालन संविधान की मूल भावना के अनुसार किया जा सके. संविधान के गौरव पूर्ण मूल्यों को संविधान की प्रस्तावना में रखा गया हैं.

संविधान की मूल प्रस्तावना (Original Preamble Of Indian Constitution In Hindi)

भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रतात्मक, गणराज्य बनाने के लिए तथा समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा

उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता सुनिश्चित कराने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.

संविधान में 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 की धारा 2 के द्वारा (3.1.77 के अनुसार) प्रस्तावना में निम्न संशोधन किये गये हैं.

  1. प्रभुत्व सम्पन्न लोक तंत्रात्मक गणराज्य के स्थान पर सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य प्रतिस्थापित किया गया हैं.
  2. राष्ट्र की एकता के स्थान पर राष्ट्र की एकता और अखंडता को प्रतिस्थापित किया गया हैं. इस संशोधन के बाद प्रस्तावना निम्नानुसार हैं.

हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त करने के लिए

तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.

संविधान की प्रस्तावना की विस्तृत विवेचना (Description Of Preamble)

घोषणात्मक भाग (Declaratory Part)

हम भारत के लोग- संविधान के निर्माताओं के अनुसार संप्रभुता अन्तः जनता में निहित है. सरकार के पास अथवा राज्य सरकार के विभिन्न अंगों के पास जो शक्तियाँ है वे सब जनता से मिली है.

प्रस्तावना में प्रयुक्त हम भारत के लोग इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित व आत्मार्पित करते हैं. पदावली से यह स्पष्ट है कि भारतीय संविधान का स्रोत भारत की जनता है अर्थात जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधियों की सभा द्वारा संविधान का निर्माण किया गया हैं.

उद्देश्य भाग (Obejective Part)

सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न– इस पदावली से यह व्यक्त होता है कि भारत पूर्ण रूप से प्रभुता सम्पन्न राज्य है आंतरिक और विदेशी मामलों में किसी अन्य विदेशी शक्ति के अधीन नही है.

समाजवाद– समाजवाद शब्द को 42 वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया हैं. प्रस्तावना में समाजवाद शब्द को सम्मिलित करके उसे और अधिक स्पष्ट किया गया हैं.

इसमें समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने और आर्थिक विषमता को दूर करने का प्रयास करने के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया हैं.

पंथ निरपेक्ष- 42 वें संविधान संशोधन के द्वारा 1976 में इसे जोड़ा गया था. इसका अर्थ यह है कि भारत धर्म के क्षेत्र में न तो धर्म विरोधी है न धर्म प्रचारक, बल्कि वह तटस्थ है जो सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता हैं.

लोकतंत्रात्मक– इससे तात्पर्य है कि भारत में राज सत्ता का प्रयोग जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि करते है और वे जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं. संविधान सभी को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय का आश्वासन देता हैं.

गणराज्य- इसका अर्थ यह है कि भारत में राज्याध्यक्ष या सर्वोच्च व्यक्ति वंशानुगत न होकर निर्वाचित होता हैं. भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा होता हैं.

भारतीय संविधान की प्रस्तावना का विवरणात्मक भाग (Distributory Part)

सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय-

  • सामाजिक न्याय- सामाजिक न्याय का अर्थ है कि सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समानता प्राप्त हो. जाति, धर्म, वर्ग, लिंग, नस्ल या अन्य किसी आधार पर नागरिकों में भेदभाव नहीं हो.
  • आर्थिक न्याय- अनुच्छेद 39 में आर्थिक न्याय के आदर्शो को स्वीकार किया गया हैं. इसमें राज्यों को अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करने के लिए कहा गया है कि समान रूप से नागरिकों को आजीविका के साधन प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त हो, समुदाय की भौतिक सम्पति का स्वामित्व और वितरण इस प्रकार हो जिसमें अधिकाधिक सामूहिक हित संभव हो सके. पुरुषों व स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले, उत्पादन व वितरण के साधनों का अहितकर केन्द्रीयकरण न हो.
  • राजनीतिक न्याय- भारतीय संविधान वयस्क मताधिकार की स्थापना, संवैधानिक उपचारों द्वारा राजनीतिक न्याय के आदर्श को मूर्त रूप प्रदान करता हैं.

स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व

  • स्वतंत्रता- भारतीय संविधान में नागरिकों को विचार अभिव्यक्त, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता दी गई हैं.
  • समानता– देश के सभी नागरिकों को प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्रदान की गई हैं.
  • बन्धुत्व- प्रस्तावना में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता की भावना बढ़ाने के लिए संकल्प किया गया हैं.

व्यक्ति की गरिमा व राष्ट्र की एकता व अखंडता

  • व्यक्ति की गरिमा व राष्ट्र की एकता– हमारे संविधान निर्माता भारत की विविधताओं के अंतर्गत विद्यमान एकता से परिचित थे. वे चाहते थे कि हमारे नागरिक, प्रांतवाद, भाषावाद व सम्प्रदायवाद को महत्व न देकर देश की एकता के भाव को अपनाएं. इसलिए हमारे संविधान में बंधुत्व का आदर्श दो आधारों पर टिका है. यह आधार हैं- राष्ट्र की एकता व व्यक्ति की गरिमा.
  • अखंडता- 42 वें संविधान संशोधन द्वारा उद्देशिका में अखंडता शब्द को सम्मिलित किया गया हैं. इसका मूल उद्देश्य भारत की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करता हैं.

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रस्तावना या उदेशिका में संविधान के मूलभूत आदर्शों को दर्शाया गया हैं.

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