रक्तदंतिका देवी की गाथा मंदिर । Raktadantika Devi Temple Sadhana Stotra

रक्तदंतिका देवी की गाथा मंदिर । Raktadantika Devi Temple Sadhana Stotra रक्तदंतिका देवी की कथा के अनुसार माना जाता हैं कि एक बार वैप्रचिती नाम के एक असुर ने बहुत ही कुक्रम करके मनुष्य जीवन को व्याकुल कर दिया। उस दैत्य न केवल इन्सानों को बल्कि देवताओं को भी बहुत दुख दिया।

देवताओं और प्रथ्वी की प्रार्थना पर उस समय देवी दुर्गा ने रक्तदंतिका नाम से अवतार लिया और वैप्रचिती आदि असुरों को प्रथ्वी से समाप्त कर दिया। यह देवी असुरों को मारकर उनका रक्तपान किया करती थी। इस कारण इनका नाम रक्तदंतिका विख्यात हुआ।

रक्तदंतिका देवी की गाथा मंदिर

दुर्गा सप्तशती में रक्तदंतिका देवी के बारे मे विवरण मिलता हैं इन्हे हाड़ा चौहान शासकों की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता था। सनथूर नामक कस्बे मे देवी की मुख्य शक्तिपीठ है.

जहाँ नवरात्रि के अवसर पर दिल्ली, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान से हजारों भक्त माँ के दर्शन करने पहुचते हैं। माँ के मंदिर को सजाकर इस समय सुबह तथा शाम को भव्य आरती की जाती हैं।

रक्तदंतिका माता के मंदिर सथूर गांव में निर्मित हैं। इस गाँव को सथूर नाम के एक शासक द्वारा बाहरवी सदी में बसाया था।

चन्द्रभागा नदी के तट पर स्थित यह गाँव कई बार उजड़ने के बाद देवी के मंदिर निर्माण के बाद आबाद हैं। कहा जाता हैं कि मंदिर की प्रथम प्रतिमा मिट्टी से निर्मित थी।

मां रक्तदंतिका कौन है?

मां रक्तदंतिका मां दुर्गा का ही स्वरूप मानी जाती हैं। वैप्रचिति नामक दानव का विनाश करने के लिए मां दुर्गा ने मनुष्य रूप धारण किया था।

दानवों के साथ युद्ध के समय माता ने राक्षसों का भक्षण किया था जिसके कारण उनके दांतो के मसूड़े अनार के दाने की भांति फूल गए थे इसी कारण उन्हें मां रक्तदंतिका कहा जाता है। 

मां रक्तदंतिका की कहानी

हजारों वर्ष पूर्व ब्रह्मांड में महा भयंकर राक्षस वैप्रचिति नामक दानवों के वंश ने हर तरफ त्राहि त्राहि कर दी थी। उस काल में उन्होंने सबसे ज्यादा पाप किए गए थे और इन दानवों ने ना सिर्फ मनुष्य को बल्कि जीव जंतुओं यहां तक कि देवताओं को भी थर थर कांपने पर मजबूर कर दिया था। 

इन दानवों के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवी देवताओं ने मां अंबिका का स्मरण करना शुरू किया। देवताओं की विनती को सुनकर मां अंबिका ने मनुष्य रूप धारण किया। उनके अवतार लेने के बाद वैप्रचिति राक्षसों और मां के बीच काफी घमासान युद्ध हुआ। 

राक्षसों ने मां को चारों तरफ से घेर लिया था लेकिन मां की एक हुंकार से वह लोग दूर चले गए। दानवों का विनाश करने के लिए मां ने दानवों को खाना शुरू कर दिया था। इस युद्ध में मां ने समस्त वैप्रचिति दानव वंश का संहार कर दिया था। 

इन दानवों का भक्षण करने के बाद माता के दांतों के मसूड़े फूल गए थे जो अनार के दाने के समान नजर आ रहे थे। इसी कारण माता का नाम रक्तदंतिका रखा गया। 

मां रक्तदंतिका की पूजन विधि

नकारात्मक विचारों व बुरी किस्मत को दूर करने के लिए मां रक्तदंतिका की पूजा की जाती है। पूजा में मां रक्तदंतिका की तस्वीर के सामने चमेली के तेल से दीपक जलाया जाता है और गुग्गुल से धूप दिखाया जाता है साथ ही अनार के फूल और सिंदूर पूजा के दौरान चढ़ाया जाता है।

माता को प्रसन्न करने के लिए लाल मेवा का भोग लगाया जाता है। ‌ और फिर पूजा संपन्न हो जाने के बाद माता के भोग को सभी के बीच वितरित किया जाता है। 

मां रक्तदंतिका देवी मंदिर की जानकारी

मां रक्तदंतिका देवी का मंदिर 12 वीं शताब्दी में बसाए गए सथूर गांव में स्थित है। राजस्थान में स्तिथ इस गांव को बसाने के बाद कई बार यह गांव उजड़ गया.

लेकिन जबसे इस गांव में मां रक्तदंतिका देवी का मंदिर स्थापित किया गया तब से यह गांव हर तरह की आपदाओं से बचा हुआ है। इस गांव में मां रक्तदंतिका देवी की प्रतिमा मिट्टी से बनाई गई हैं।

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