रणथम्भौर नेशनल पार्क डिटेल्स इतिहास Ranthambore National Park History In Hindi

रणथम्भौर नेशनल पार्क डिटेल्स इतिहास Ranthambore National Park History In Hindi-हठीले हम्मीर की पुण्य धरा रणथम्भौर का स्मरण आते ही सभी के मन में इस धरा को देखने की इच्छा स्वत ही होती हैं.

आपकों घर बैठे रणथम्भौर नेशनल पार्क की यात्रा करवा रहे हैं. अब यह क्षेत्र वन्य क्षेत्र के रुप में विकसित हैं.

अरावली एवं विध्यांचल की सुरम्य पर्वतमाला के मध्य स्थित विश्व प्रसिद्ध रणथम्भौर बाघ अभयारण्य को देखने की उत्कंठा परिवार के सभी सदस्यों को हुई. सभी ने मिलकर रणथम्भौर भ्रमण का कार्यक्रम तैयार किया.

रणथम्भौर नेशनल पार्क इतिहास Ranthambore National Park History In Hindi

रणथम्भौर नेशनल पार्क डिटेल्स इतिहास Ranthambore National Park History In Hindi

रंथाम्बोरे नेशनल पार्क/रणथम्बोर नेशनल पार्क के लिए हम सभी 9 अक्टूबर रात्री 11 बजे जयपुर से रेल द्वारा सवाईमाधोपुर के लिए रवाना हुए.

एकाएक मेरी बेटी ने पूछा ‘ यहाँ से सवाईमाधोपुर कितना दूर हैं’ मेने बेटी को बताया कि रेलमार्ग द्वारा जयपुर से सवाईमाधोपुर की दुरी लगभग 132 किलोमीटर हैं.

हम रात्रि ढाई बजे सवाईमाधोपुर पहुचे. वहां हमने रेलवे स्टेशन के पास ही होटल में एक कमरा लिया कुछ समय आराम किया.

प्रात 5 बजे उठकर सभी जल्दी-जल्दी स्नानादि से निवृत होकर बुकिंग खिड़की के लिए चल पड़े. बुकिंग खिड़की हमारी होटल से लगभग 1 किलोमीटर दूर थी. और बुकिंग खिड़की से प्रथम पारी भ्रमण के लिए टिकट लेना था.

बुकिंग खिड़की से उद्यान भ्रमण के लिए जिप्सी या केंटर मिलते हैं, जिसके द्वारा उद्यान का भ्रमण करवाया जाता हैं. वहां हमने पांच टिकट लिए और केंटर में बैठकर प्रातः 6 बजे रणथम्भौर के लिए निकल पड़े.

मै आपकों बता दू कि रणथम्भौर भ्रमण के लिए आए परिवार के सदस्यों में, मै, मेरी पत्नी, मेरी दौ बेटिया शिवांगी व श्रेया तथा बेटा शुभम इस प्रकार पांच सदस्य थे. हम पांचो केंटर में बैठकर रणथम्भौर अभ्यारण्य की ओर निकल पड़े.

रणथम्भौर बाघ अभयारण्य क्षेत्र की शुरुआत खिलचीपुर ग्राम पंचायत के गनेशधाम तिराहे से होती हैं. जिसकी दुरी सवाईमाधोपुर रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर हैं. यहाँ रणथम्भौर नेशनल पार्क में प्रवेश के लिए चेक पोस्ट बनी हुई हैं.

हम बातों ही बातों में गणेशधाम तिराहे पर कब पहुच गये पता ही नही चला. सच पूछो तो इसके दो कारण थे. एक तो रणथम्भौर के प्रति उत्सुकता और दूसरी बच्चों द्वारा पूछे जा रहे नये नये सवाल.

रणथम्भौर नेशनल पार्क की यात्रा

वैसे तो रणथम्भौर की हरीतिमा सवाईमाधोपुर नगर से निकलते ही प्रारम्भ हो जाती हैं. लेकिन गणेशधाम तिराहे के पश्तात घने जंगल की शुरुआत होती हैं.

हमने साथ में एक गाइड भी लिया था जो हमे नई नई जानकारियाँ दे रहा था. ज्यो ही हमने हरियाली से आच्छादित क्षेत्र में प्रवेश किया, उस सुरम्य द्रश्य को देखकर सभी रोमांचित हो उठे.

सर्वप्रथम हमने मिश्रदरा दरवाजा देखा. वहां कल-कल बहते झरने व गोमुख से गिरता पानी देखा. बहुत ही मनोहारी द्रश्य था.

मेरी बेटी शिवांगी ने गाइड से बातों ही बातों में जानकारी ली. शिवांगी-भैया-यहाँ पानी कहा से आ रहा हैं ? गाइड-पहाड़ो के उपरी छोर से एकत्र पानी बहकर झरने के रूप में आ रहा हैं.

शिवांगी-भैया ये रणथम्भौर रणथम्भोर अभ्यारण्य क्षेत्र कितने वर्ग किलोमीटर में फैला हैं. गाइड-पूर्व में रणथम्भौर बाघ आरक्षित क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 1334.6 वर्ग किलोमीटर था.

बाघों की बढती संख्या और परस्पर टकराव की आशंका के कारण इस रणथम्भौर अभ्यारण्य क्षेत्र को 1700 वर्ग किलोमीटर ओर बढ़ाया गया. शिवांगी- बाघों की बढती संख्या और परस्पर टकराव से क्या कारण हैं.

गाइड-पूर्व में बाघों के शिकार किये जाने के कारण इनकी संख्या काफी घट गयी थी. केंद्र व राज्य सरकार तथा वन विभाग ने बाघों के शिकार पर रोक लगा दी.

और बाघों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी. बाघ अपना निर्धारित क्षेत्र बनाते हैं. जिसका क्षेत्रफल लगभग 2 वर्ग किलोमीटर होता हैं. उस क्षेत्र में दुसरे बाघ के प्रवेश पर करने पर उनमे टकराव की स्थति बन जाती हैं.

शिवांगी- इस क्षेत्र में लगभग कितने बाघ होंगे ?

गाइड- वर्तमान में यहाँ लगभग 55 से 60 बाघ हैं.

इस प्रकार बाते करते हुए और रणथम्भौर की छटा को निहारते हुए हम रणथम्भौर बाघ अभ्यारण्य के मुख्य प्रवेश द्वार पर जा पहुचें.

Ranthambore Forest Resort And Visit Story- रणथम्भौर वन रिसोर्ट और यात्रा कहानी

प्रात 7 बजे ज्यो ही मुख्य द्वार खुला, हमारा केंटर सघन वन क्षेत्र में आगे बढ़ा. बिच-बिच में पड़ने वाले नाले और झरने मोहक द्रश्य उपस्थित कर रहे थे.

जैसे-जैसे गाड़ियाँ आगे बढ़ रही थी. हमारी उत्सुकता भी वैसे-वैसे बढ़ रही थी. घोक के सघन झाड़ीदार वन बाघों के लिए अच्छी आश्रय स्थली हैं. बाघ खुले में रहना कम पसंद करते हैं.

सबसे पहले हम मलिक तालाब पर पहुचे. तालाब के किनारे हरिणों का झुण्ड दिखाई दिया. हरिणों के झुण्ड में छोटे-छोटे मर्ग छोने भी थे. सुनहरी त्वचा पर चकते और अजीब से श्रंगो वाले हरिणों के झुण्ड ज्यो ही हमारी गाड़ी उनके पास पहुची,

वे चौकड़िया भरने लगे ऐसा अद्भुत नजारा पहले कभी नही देखा था. मैंने उत्सुकता वंश बच्चों की ओर देखा था. बच्चे तो हिरनों की तस्वीरे कैमरों में कैद करने में व्यस्त थे. गाइड ने हरिणों की जानकारी देते हुए कहा कि इन हरिणों को चीतल भी कहते हैं.

गाइडे के निर्देश पर गाडी को दाहिने ओर बढाया गया. यह रास्ता कुछ पथरीला और उबड़ खाबड़ था. गाड़ियों की कूदा फादी और उपर नीचे की चाल ने सभी को हिलाकर रख दिया. लगभग 500 मीटर आगे चलने पर हमे एक तालाब दिखाई दिया.

उस तालाब में तैरते मगरमच्छ को देखकर बच्चों का मन गद गद हो गया. इस तालाब पर विचरण करते साभर, नीलगाय आदि वन्य प्राणी भी देखे साथ ही विभिन्न प्रकार के पक्षियों की कलरव की ध्वनि मनमोहक थी.

गाइड ने बताया कि इन पक्षियों चाहचहत से यह पता लग जाता हैं कि बाघ इस क्षेत्र में दिखाई दे सकता हैं. गाइड ने बताया कि सबसे प्रमुख कोल बन्दर की मानी जाती है. जब बाघ इस क्षेत्र में आने वाला होता हैं. तो बन्दर अजब तरह की आवाज निकालकर सभी को सावचेत कर देता हैं.

गाइड के निर्देश पर हमारी गाड़ी आगे बढ़ी. थोड़ी दुरी चलने पर गाडी अचानक रुक गईं. गाड़ी के बिलकुल सामने झरने के पास एक बाघ और बाघिन धुप सकते दिखाई दिए.

प्रात काल की गुनी धुप में दोनों मस्त हो बैठे थे. बाघिन बाघ के बालों को अपनी जीभ से साफ़ कर रही थी. गाइड ने बताया कि इस स्थान पर चिडिखोह हैं.

तथा ये बाघ बाघिन माँ बेटे हैं. बाघिन का नाम नूर और बेटे का नाम सुलतान हैं. यहाँ रणथम्भौर अभ्यारण्य में बाघों को नाम और नंबर दिए हुए हैं.

रणथम्भौर बाघ परियोजना

जिससे इनकी पहचान होती है बाघ -बघिन की अठखेलिया हमने लगभग आधे घंटे तक निहारी|धुप उनके बदन की चमक को बढ़ा रही थी बाघ बहुत सावधान ओर चौकन्ना वन्य प्राणी होता है पानी के किनारे पसरे बाघों को हमारा वहा जमे रहना पसद नही आता है .

वे दोनों आराम से उठे अपनी रोबिली मुद्रा में पन्छ उठाई और झाड़ियो की ओर ओझल हो गये. गाइड के निर्देश पर हमारी गाडी आगे बढ़ गये. जंगल में हमने कई जंगली जानवर देखे.

जिनमे चिंकारा बघेरा भालू लंगूर बन्दर, जंगली बिल्ली व अनेक प्रकार के पक्षी भी थे, गाइड ने बताया कि इस रणथम्भौर अभ्यारण्य में लगभग तीन सौ पक्षी हैं.

भ्रमण की समयसीमा नजदीक आ जाने के कारण हम मुख्य द्वार की ओर बढ़े और लगभग साधे 10 बजे हम रणथम्भौर के ऐतिहासिक दुर्ग के मुख्य द्वार में पर पहुच गये.

रणथम्भौर दुर्ग को देखते ही जान पड़ता हैं, कि यह इतिहास में बहुत प्राचीन और अभेध्य दुर्ग हैं. गाइड ने बताया कि इस दुर्ग के निर्माण का कही कोई इतिहास नही मिलता हैं.

सन 1300 इसवी में यहाँ के प्रतापी राजा राव हम्मीर हुए थे. अंत माना जाता हैं कि इस दुर्ग का निर्माण 1300 इश्वी से पूर्व हुआ था.

मेरी बेटी श्रेया ने गाइड से राव हम्मीर के बारे में पूछा. गाइड ने बताया कि राव हम्मीर महान प्रतापी और शरणगत वछ्चल रजा थे.

इन्होने अलाउद्दीन खिलजी के भगोड़े सैनिक माहिंशाह को चरण दी और मरते दम तक उसकी रक्षा की. गाइड ने बताया कि रणथम्भौर के राव हम्मीर चौहान वंशीय शासक जैत्रसिंह के छोटे पुत्र थे.

रणथम्भौर अभ्यारण्य के दर्शनीय स्थल

इस प्रकार जानकारी लेते हुए हम पैदल ही बढ़ रहे थे, चलते चले हम दुर्ग के प्रथम द्वार पर पहुचे, क्या विशाल दरवाजा था. देखते ही हमारी आँखे फटी की फटी रह गईं, इसे नौलखा दरवाजा कहते हैं.

नौलखा के दरवाजे में प्रवेश कर हम आगे की बढे और हाथीपोल दरवाजे की ओर बढे. यहाँ से दुर्ग की दीवार बिलकुल सीधी हैं. कहते हैं यहाँ हम्मीर का घोड़ा यहाँ से हम्मीर को लेकर सीधा पर चढ़ा था. घोड़े के खुर के निशान देखकर आश्चर्यचकित रह गये.

दुर्ग का मनोहारी दर्शय देखते देखते हम अँधेरी दरवाजे पर पहुचे. यहाँ पर एकसाथ तीन दरवाजे हैं. तथा इन दरवाजो पर अँधेरा रहता हैं, अँधेरी दरवाजे को पार कर हम दुर्ग के उपरी छौर पर पहुचे.

वहां से चारों और देखने पर हरियाली से आच्छादित जंगल बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा था. यहाँ से थोडा आगे बढ़ने पर हमे 32 खम्भ की छतरी दिखाई दी.

लगभग 1 किलोमीटर की दुर्ग की दुर्गम चढाई के बाद हम इस 32 खम्भों की छतरी में जाकर बैठे तो वहा छितल बयार बह रही थी. हमने वहा सुकून का अनुभव किया और पसीना सुखाया. यहाँ बैठने से हमारी सम्पूर्ण थकावट दूर हो गईं.

गाइड ने बताया कि दुर्ग के सपाट मैदान पर निर्मित यह छतरी राव हम्मीर के शासनकाल में चारों ओर से हवा खोरी, सभा, दरबार, विचार विमर्श, विश्राम व आमोद प्रमोद की जगह थी.

जिसका उपयोग अब भी पर्यटक इन कामों के लिए करते हैं. हमने इस छतरी पर आधे घंटे विश्राम किया. विश्राम पश्चात हम आगे बढ़े. सपाट मैदानी एक ओर राव हम्मीर का महल अविचल खड़ा दिखाई दिया. लेकिन हम इस महल को अंदर से नही देख पाए.

पदमला और रानीहोद तालाब

इसका कारण यह था. कि पुरातत्व विभाग ने इसे पर्यटकों के लिए बंद कर रखा था. थोडा सा आगे बढ़ने पर हमे दौ तालाब दिखाई दिए. रास्ते बाए ओर पदमला तालाब और रास्ते के दाए ओर थोडा पीछे आने पर रानी होद तालाब हैं.

पदमला तालाब बहुत बड़े क्षेत्र में फ़ैला हैं. तथा इसमे अथाह पानी हैं. कहा जाता हैं कि राव हम्मीर की पुत्री पद्मावती ने इस तालाब में पारस पत्थर लेकर कूद गई थी. पद्मावती के आत्मबलिदान के कारण इस तालाब का नाम पदमला पड़ा.

इस तालाब के पानी से रणथम्भौर किले जलापूर्ति की जाती थी. हमने रानी होद तालाब को देखा. काली मन्दिर के पास अथाह जल से भरा यह तालाब रानियों के स्नान करने के लिए था.

लेकिन राव हम्मीर के हार की गलत सुचना पाकर यहाँ की सभी रानियों ने तालाब में छलांग लगाकर जल जौहर किया था.

रणथम्भौर नेशनल पार्क का गणेश मन्दिर

यहाँ से हम आगे आगे बढ़े. और लाभभाग मध्यावधि 12 बजे त्रिनेत्र गणेश जी के मन्दिर पहुचे. वहा ढप-ढोल और म्रदंग के साथ श्रृंगार के साथ आरती हो रही थी. हम सभी आरती में खड़े हुए आँखे बंद की.

प्रथम पूज्य गणेश जी की अराधना की त्रिनेत्र गणेश जी की मनोहारी छवि के दर्शन कर हम धन्य हो गये. मन्दिर में पहुचने पर हमे अपार शांति का अनुभव हुआ.

गणेश मन्दिर के पुजारी जी से जानकारी ली. तो पुजारी जी ने बताया कि यह त्रिनेत्र धारी गणेश जी का एक मात्र मन्दिर हैं. जो विश्व प्रसिद्ध हैं.

पुजारी जी ने बताया कि इस मूर्ति की यह खासियत हैं कि यह स्थापित मूर्ति न होकर भूमि स्वउदभव मूर्ति हैं. विवाह आदि शुभ कार्यो के अवसर पर लोग प्रथम पूज्य गणेश जी को सर्वकार्य सीधी बाबत न्यौता देने आते हैं.

जो व्यक्ति स्वय नही आ सकते हैं, उनकी निमन्त्रणपाती आती हैं. जिसे गणेश जी को सुनाया जाता हैं. गणेश दर्शन के बाद हमने दुर्ग में स्थित रघुनाथ जी का मन्दिर, जैन मन्दिर, मस्जिद, महल, गुप्त गंगा, जौरा-भौरा आदि दर्शनीय स्थलों को देखा.

रणथम्भौर नेशनल पार्क यात्रा

रणथम्भौर में और भी कई दर्शनीय स्थान हैं. लेकिन हमारे पास समय का अभाव होने से उन स्थानों को नही देख पाए. दुर्ग में शेष रहे ऐतिहासिक स्थलों को देखने की जिज्ञासा को अधूरी छोड़ गाडी में बैठकर सवाईमाधोपुर आ गये, वहां होटल में सभी ने खाना खाया व साय सभी रेल के द्वारा जयपुर के लिए प्रस्थान किया.

यहाँ के रणथम्भौर की प्राक्रतिक छटा वन्य जीवो का स्वछन्द विचरण दुर्ग के पुरातात्विक स्थलों को देख मन गद्गद हो गया. बच्चों के चेहरे खिल उठे. बच्चों की प्रसन्नता को देख मुझे अपार सुख की अनुभूति हुई.

Ranthambhore Safari Rates In Hindi

यदि आपने रणथम्भौर नेशनल पार्क यात्रा का मन बना लिया हैं, तो यहाँ आपकों सफारी के टैरिफ की जानकारी बता रहे हैं. यह जानकारी रणथम्भौर की अधिकारिक वेबसाइट से ली गईं हैं,

30 जून 2016 को तय की गईं कीमतों के मुताबिक एक भारतीय पर्यटक को जीप के लिए 1200 रूपये और केंटर के लिए 900 रूपये प्रति यात्री का भुगतान करना होता हैं.

भारत से बाहर का कोई पर्यटक होने की स्थति में इन्हे जीप के लिए 2250 और केंटर के लिए 1800 रूपये खर्च करने होंगे.

Ranthambhore Safari Charges Rules in Hindi

  • सफारी की ये कीमते राजस्थान सरकार तय करती हैं, जिनमे कभी भी बदलाव किया जा सकता हैं.
  • इस अभयारण्य की एक पारी में अधिकतर 15 जिप्सी और 20 केंटर के प्रवेश की अनुमति हैं.
  • एक जिप्सी या केंटर में कम से कम 6 जने चाहिए. पर्याप्त संख्या न होने पर अकेले उनका भुगतान भी कर सकते हैं.
  • ranthambhore safari यात्रा का अच्छा समय अक्टूबर और मार्च के मध्य रहता हैं.
  • आपका कोई एक परिचय पत्र आपके पास होना चाहिए-वोटर आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस नंबर, पैन कार्ड नंबर, स्कूल / कॉलेज आईडी, सरकारी आईडी
  • विदेशी पर्यटकों के लिए पासपोर्ट को ही उनका पहचान पत्र माना जाता हैं.
  • जीप या केंटर की बुकिंग के समय पर्यटक को वन विभाग का निर्धारित शुल्क भी जमा करवाना होता हैं.
  • यदि आप यात्रा को रद्द करते हैं तो इस स्थति में धन राशि वापस करने का कोई प्रावधान नही हैं.

Ranthambore National Park Hotels, Prices Details In Hindi

यदि आप रणथम्भौर नेशनल पार्क के आस-पास रहने के लिए अच्छी होटल और मनपसन्द प्राइस देख रहे हैं. तो आप इन होटल्स में ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीको से बुकिंग करवा सकते हैं.

ऑनलाइन होटल बुकिंग के लिए makemytrip.com, booking.com, trivago.in अथवा hotelscombined.com पर जा सकते हैं. यहाँ आपकों कुछ बेहतरीन होटल्स के नाम बता रहे हैं. जिनमे आप रह सकते हैं.

इन होटल्स में आपकों लाँड्री इंटरनेट मनोरंजन क्षेत्र तरण ताल रेस्तरां आदि की सुविधाए मिलेगी. आपकों यहाँ बताना चाहेगे. प्रति 2 व्यक्ति के लिए यहाँ दिए जाने वाले एक रात्री का किराया 3500 रूपये से लेकर 52000 रूपये तक हैं.

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