Rao Gopal Singh Kharwa Biography In Hindi | राव गोपाल सिंह खरवा का जीवन परिचय: ये राजस्थान की खरवा रियासत के जागीरदार थे.
राव गोपालसिंह का जन्म १९ अक्टूबर १८७३ को पिता राव माधोसिंह जी तथा माता कुंवरीजी चुण्डावत के घर हुआ था. इनके पिता श्री कुंवर के पद पर थे. इनमें बचपन से ही साहस एवं निर्भीकता के गुण थे.
ये निशानेवाजी और घुड़सवारी के शौकीन थे. ये जनप्रिय एवं अंग्रेज विरोधी शासक थे, इस कारण गोपाल सिंह को चार सालों के लिए टोडगढ़ दुर्ग की जेल में बंद करके रखा गया.
राव गोपाल सिंह खरवा का जीवन परिचय
पूरा नाम | राव गोपालसिंह खरवा |
जन्म | १९ अक्टूबर १८७३ ई. |
घराना | खरवा |
पिता | राव माधोसिंह |
शिक्षा | मेयो कोलेज अजमेर |
संस्थापक | वीर भारत सभा |
डाक टिकट | 30 मार्च, 1989 |
मृत्यु | १२ मार्च १९३९ |
खरवा देशप्रेम का दीवाने थे उन्होंने अपने वतन की खातिर अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया था. यहाँ तक वो जिस जागीर के शासक थे उसका त्याग कर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए सशस्त्र क्रांति का आगाज कर चुके थे. गोपाल सिंह संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, इतिहास, राजनीती व वेदांत आदि विषयों के जानकार थे,
इन्होने उच्च शिक्षा के लिए मेयो कॉलेज अजमेर में दाखिला लिया, वे अंग्रेज के भी जानकार थे. मगर देश भक्ति ने उन्हें कॉलेज छोड़कर शस्त्र उठाने को प्रेरित किया.
जब पिता श्री राव माधोसिंह के देहांत के बाद जिस वर्ष इनका राज्याभिषेक हुआ. उस साल भयंकर अकाल पड़ा. लोगों के पास खाने के लिए अन्न तथा पशुओं को खिलाने के लिए चारा नहीं था.
ऐसी स्थिति में एक जन सेवक की भूमिका निभाते हुए गोपाल सिंह ने अपने राजकोष के भंडार प्रजा के लिए खोल दिए. उन्होंने अपने जागीर की जनता को अकाल से उबारने के लिए खरवा की जागीर को अजमेर के बनियों के पास गिरवी रखकर अकाल पीड़ित लोगों की मदद की.
खरवा के राव गोपालसिंह विदेशी शासन के उन्मूलन के लिए सदैव तैयार रहने वाले क्रन्तिकारी थे. 21 जनवरी 1915 ई को जब सशस्त्र क्रांति की योजना बनी तो राजस्थान में क्रांति का दायित्व राव गोपालसिंह एवं भूपसिंह को सौपा गया.
राव गोपाल सिंह ने नसीराबाद और अजमेर की सैनिक टुकड़ियों से सम्पर्क कर उन्हें सहायता देने के लिए राजी कर दिया. कि संकेत पाते ही वे अंग्रेज अधिकारियों को समाप्त कर देंगे.
21 जनवरी 1915 की रात्रि को दो हजार सशस्त्र क्रांतिकारी सैनिकों के साथ राव गोपाल सिंह खरवा रेलवे स्टेशन के निकट जंगलों में छिप गये.
कि पंजाब से क्रांति की सूचना मिलते ही अंग्रेज ठिकानों पर धावा बोल देगे. परन्तु क्रांति का भंडाफोड़ हो जाने से सारी योजना धरी रह गई. अजमेर के कमिशनर ने गोपाल सिंह के साथ समझौता कर उन्हें टाडगढ़ में नजरबंद कर दिया. कुछ दिनों बाद यह टाडगढ़ से फरार हो गये.
लेकिन सलेमाबाद में पकड़े गये और बंदी बनाकर अजमेर की तिहाड़ जेल में रखा गया. 1920 ई में जेल से छूटने के बाद राव गोपाल सिंह खरवा रचनात्मक कार्यों एवं पीड़ित व्यक्तियों की सेवा में लग गये.
क्रांतिकारियों के संरक्षक थे खरवा नरेश राव गोपालसिंह
राव गोपाल सिंह उन इने गिने महापुरुषों में से थे जिन्होंने देश व धर्म के लिए सर्वस्व त्याग देने में ही अपने जीवन की सार्थकता समझीं. जबकि विदेशी शासकों की कूटनीति के कारण भारत के प्रतापी राजा महाराजा भी अपने गत गौरव को भूल चुके है.
ऐसे समय में स्वर्गीय राव साहिब ने अपने अपूर्व त्याग और बलिदान द्वारा देश के सामने एक अनोखा आदर्श रखा. यह उन्हीं वीर बांकुरो का साहस था जो कि अपनी वंश परम्परागत जागीर की चिंता किये बिना अपने आपको देश उद्धारक कार्यों में लगा दिया तथा भारत के क्रांतिकारी इतिहास में एक अनोखी मिसाल कायम की.
राव साहिब का जन्म खरवा राज्य परिवार में कार्तिक कृष्णा 11 संवत् 1930 के दिन माधोसिंह की पटरानी चुण्डावतजी के गर्भ से हुआ था. बाल्यकाल से ही आपको देश के प्राचीन गौरवपूर्ण इतिहास ने अत्यंत प्रभावित किया.
आप प्रताप और शिवाजी की वीर गाथाएं सुनकर पुलकित हो उठते थे. राव साहिब ईश्वर प्रदत्त गुणानुसार बचपन से ही बड़े गंभीर निर्भय और शिकार खेलने के इच्छुक थे.
आपकी शिक्षा मेयो कॉलेज अजमेर में हुई. किन्तु वहां की गंदी शिक्षा प्रणाली से आपको घ्रणा हो गई तथा 19 साल की आयु में ही आपने मेयो कॉलेज को तिलांजली दे दी.
आपने देखा कि धनिक वर्ग एवं राजा महाराजा अपने स्वार्थों में लीन होकर राष्ट्रीय हित पर कुठाराघात करने पर तुले हुए हैं. गौतम बुद्ध की भांति आप भी भरी जवानी में घर से निकल गये और चार भुजा जी के दर्शन करते हुए जोधपुर चले गये.
संवत 1951 में जोधपुर नरेश के स्वर्गवास हो जाने पर आप अजमेर आ गये. आपकी रूचि सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक कार्यों में बढ़ने लगी. आप जंगलों में घुड़सवारी करते हुए कई साधू सन्यासियों के सम्पर्क में आए जिससे आपकी रूचि योग विद्या की ओर हुई.
आपके पिता के स्वर्गवासी होने पर कार्तिक कृष्णा 1 संवत् 1944 को आप खरवा राजगद्दी पर बैठे. आपके राजस्व काल में संवत 1956 का भयंकर अकाल पड़ा जिसे छ्प्पनियाँ का काल नाम से पुकारते हैं. यह बात आज से सवा सौ साल पुरानी हैं. आपने अकाल पीड़ित जनता के लिए सच्चा प्रजा पालक की भांति अपने राज्य का खजाना खोल दिया.
आपकी विशाल उदारता का यश चहुँ और फ़ैल गया. हजारों बच्चे नर कंकाल और पशु स्थान स्थान पर भूख के मारे तडप तडप कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे थे.
उस समय उस पुनीत कार्य से अल्प समय में आपकी ख्याति सारे भारतवर्ष में फ़ैल गई तथा देश के विख्यात संस्थाओं द्वारा आप भारत भूषण, धर्म भूषण और राजस्थान केसरी आदि उपाधियो से अलंकृत किये गये.
आप शिक्षा प्रेमी थे. अपने खर्च से सैकड़ो विद्यार्थियों को पढाया और कुछ को यूरोप शिक्षार्थ भेजा. आपके पढाए छात्रों में से कुछ तो अग्र क्रांतिकारी बन गये जिनमें से सोमदत्त, नारायण सिंह, गाढ़सिंह और कुछ सरकारी उच्च पदों पर आसीन हो गये.
विद्यानुराग, समाज सेवा तथा धार्मिक भावनाओं से ओत प्रेत होने के साथ साथ आप एक उच्च कोटि के क्रांतिकारी नेता भी थे और इसलिए आपने सन 1902 में विष्णुदत्त शर्मा जैसे क्रांतिकारी को उपदेशक बनाकर भारत के अनेकों स्थानों पर भ्रमणार्थ भेजा था. अक्टूबर 1909 में योगिराज अरविन्द घोष, स्वामी कुमारान्न्द के साथ आपके खरवा में पधारे व आपके पास ठहरे.
भारत व्यापी सन 1914 की क्रांति के प्रमुख आयोजकों में से आप भी एक थे. जिसमें से रासबिहारी बोस, सरदार अजित सिंह, राजा महेंद्र प्रताप, बडौदा नरेश, इंदौर नरेश, इडर नरेश, गंगासिंह, महाराणा फतह सिंह, अर्जुन लाल सेठी, सेठ दामोदर दास राठी, ठाकुर केसरी सिंह ठाकुर जोरावर सिंह, खुदीराम बोस, राजेन्द्र लाहिड़ी, विजय सिंह पथिक, ठाकुर मोड़सिंह, पंडित जगदीश सिंह, बालकृष्ण शर्मा, श्री विष्णुदत्त, श्री सोमदत्त, श्री रूद्रदत्त आदि थे.
इस क्रांतिकारी संगठन की विशालता कश्मीर से सिंगापूर तक चली गई थी. दुर्भाग्य से एक जयचंद द्वारा सशस्त्र क्रांति की योजना का भंडाफोड़ अंग्रेजी शासन को करा दिए जाने से अंग्रेजी सरकार ने पैशाचिकता से अत्याचार कर क्रांति को दबा दिया और क्रांतिकारी को यातनाएं देकर मार डाला, राव साहिब भी 29 जून 1914 में टाटगढ़ में नजरबंद कर दिए गये.
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