Rao Gopal Singh Kharwa Biography In Hindi | राव गोपाल सिंह खरवा का जीवन परिचय: ये राजस्थान की खरवा रियासत के जागीरदार थे. राव गोपालसिंह का जन्म १९ अक्टूबर १८७३ को पिता राव माधोसिंह जी तथा माता कुंवरीजी चुण्डावत के घर हुआ था. इनके पिता श्री कुंवर के पद पर थे. इनमें बचपन से ही साहस एवं निर्भीकता के गुण थे. ये निशानेवाजी और घुड़सवारी के शौकीन थे. ये जनप्रिय एवं अंग्रेज विरोधी शासक थे, इस कारण गोपाल सिंह को चार सालों के लिए टोडगढ़ दुर्ग की जेल में बंद करके रखा गया.
Rao Gopal Singh Kharwa Biography In Hindi
खरवा देशप्रेम का दीवाने थे उन्होंने अपने वतन की खातिर अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया था. यहाँ तक वो जिस जागीर के शासक थे उसका त्याग कर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए सशस्त्र क्रांति का आगाज कर चुके थे. गोपाल सिंह संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, इतिहास, राजनीती व वेदांत आदि विषयों के जानकार थे,
इन्होने उच्च शिक्षा के लिए मेयो कॉलेज अजमेर में दाखिला लिया, वे अंग्रेज के भी जानकार थे. मगर देश भक्ति ने उन्हें कॉलेज छोड़कर शस्त्र उठाने को प्रेरित किया. जब पिता श्री राव माधोसिंह के देहांत के बाद जिस वर्ष इनका राज्याभिषेक हुआ. उस साल भयंकर अकाल पड़ा. लोगों के पास खाने के लिए अन्न तथा पशुओं को खिलाने के लिए चारा नहीं था.
ऐसी स्थिति में एक जन सेवक की भूमिका निभाते हुए गोपाल सिंह ने अपने राजकोष के भंडार प्रजा के लिए खोल दिए. उन्होंने अपने जागीर की जनता को अकाल से उबारने के लिए खरवा की जागीर को अजमेर के बनियों के पास गिरवी रखकर अकाल पीड़ित लोगों की मदद की.
खरवा के राव गोपालसिंह विदेशी शासन के उन्मूलन के लिए सदैव तैयार रहने वाले क्रन्तिकारी थे. 21 जनवरी 1915 ई को जब सशस्त्र क्रांति की योजना बनी तो राजस्थान में क्रांति का दायित्व राव गोपालसिंह एवं भूपसिंह को सौपा गया.
राव गोपाल सिंह ने नसीराबाद और अजमेर की सैनिक टुकड़ियों से सम्पर्क कर उन्हें सहायता देने के लिए राजी कर दिया. कि संकेत पाते ही वे अंग्रेज अधिकारियों को समाप्त कर देंगे. 21 जनवरी 1915 की रात्रि को दो हजार सशस्त्र क्रांतिकारी सैनिकों के साथ राव गोपाल सिंह खरवा रेलवे स्टेशन के निकट जंगलों में छिप गये.
कि पंजाब से क्रांति की सूचना मिलते ही अंग्रेज ठिकानों पर धावा बोल देगे. परन्तु क्रांति का भंडाफोड़ हो जाने से सारी योजना धरी रह गई. अजमेर के कमिशनर ने गोपाल सिंह के साथ समझौता कर उन्हें टाडगढ़ में नजरबंद कर दिया. कुछ दिनों बाद यह टाडगढ़ से फरार हो गये.
लेकिन सलेमाबाद में पकड़े गये और बंदी बनाकर अजमेर की तिहाड़ जेल में रखा गया. 1920 ई में जेल से छूटने के बाद राव गोपाल सिंह खरवा रचनात्मक कार्यों एवं पीड़ित व्यक्तियों की सेवा में लग गये.
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