संत कंवर राम की जीवनी इतिहास Sant Kanwar Ram Biography History In Hindi

संत कंवर राम की जीवनी इतिहास Sant Kanwar Ram Biography History In Hindi सनातन काल से भारतवर्ष के संत महात्माओ,ऋषि मुनियों योगी और वैराग्यो ने अपने कर्म-धर्म साधना से न केवल श्रृंगार किया बल्कि मानवता के कल्याण के अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किये.

जिनमे सिंध समाज के संत कंवरराम भी थे. भारत भूमि और उस पर स्थापित हमारे समाज ने उनका अनुसरण करते हुए सभ्य,संस्कारित एवं सर्वहितकारी जीवन यापन करने के अवसर प्रदान किये.

भारत भूमि को संत और संतत्व की ईश्वर प्रदत अनूठी देन हैं. जिसके रहते ही भारत विश्व गुरु के रूप में स्थापित हो सका.

संत कंवर राम की जीवनी इतिहास Sant Kanwar Ram Biography Hindi

संत कंवर राम की जीवनी इतिहास Sant Kanwar Ram Biography History In Hindi

संत एक अद्भुत व्यक्तित्व कृतित्व से भरे-पुरे होते हैं जो अपने जीवन में अर्जित ज्ञान, तपस्या, साधनामय शरीर समाज और उसके जरुरतमंद हिस्सों को समर्पित करना ही जीवन का लक्ष्य मानते हैं. ऐसे ही एक संत अखंड भारत के सिंध प्रान्त में प्रतिष्टित रहे हैं, जिनका नाम हैं-संत कंवरराम

सिंध प्रान्त के सक्खर जिले में जरवारारण गाँव में 13 अप्रैल 1885 को माता तीर्थ बाई और पिता ताराचंद के घर जन्मे संत कंवरराम बाल्यकाल से ही साधू स्वभाव के थे. उन्होंने संगीतज्ञ गुरु हासाराम से गायन वादन की शिक्षा प्राप्त की.

कालान्तर में संत कंवरराम अपने गुरु सतराम दास के सानिध्य में रहे. उनकी सेवा से इनके जीवन में अनोखे बदलाव से सत्तव उतर आया. वे सादगी, सेवा, परोपकार व विनम्रता की प्रतिमूर्ति बन गये.

संत कंवर राम अपनी झोली में आई घन सामग्री गरीब विधवाओं और विशेष योग्यजनों में बाटते और जन हित में खर्च करते थे.

वे दुसरो के बारे में ही सोचते थे. अपने जीवन का गुजारा चलाने के लिए वे प्रतिदिन माँ के हाथों के बने कुहर बेचते थे. इससे प्राप्त आमदनी से अपना व अपने परिवार का गुजारा करते थे.

संत कंवर राम का विवाह मध्राझ गाँव के जमीदार नोतूमल की सुपुत्री काकनी बाई के साथ 1903 में सम्पन्न हुआ. संत कंवर राम के जीवन आदर्शो से प्रभावित होकर काकनी बाई भी समाज सेवा में सलग्न हो गईं. काकनी बाई की कोख से एक पुत्र पेसुराम और दो पुत्रियों ने जन्म लिया.

संत कंवर राम का इतिहास (History of Saint Kanwaram)

लगभग 26 वर्षो तक काकनी बाई ने इनसे कंधे से कंधा मिलाकर समाज सेवा की. भोजन भंडारे की व्यवस्था काकनी ही संभालती थी.

सन 1929 में निमोनिया हो जाने के कारण काकनी बाई की म्रत्यु हो गई. भंडारे की व्यवस्था बिगड़ने लगी. दो वर्ष बाद सन 1931 में मीरपुर के श्री सामाणामला जी की पुत्री गंगा बाई से संत कंवरराम ने लोगों के आग्रह पर दूसरा विवाह कर लिया.

गंगा बाई भी श्रदा भाव से साधू संतो की सेवा करती थी. गंगाबाई की कोख से तीन संताने जन्मी. गरीबो, अनाथो और मोहताजो के कल्याण के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले संत कंवरराम ने अपने समस्त कार्यो को मात्र भजन और उपदेशो तक सिमित नही रखा,

वे अपने हाथों से काम करना पहली प्राथमिकता रखते थे. एक बार रह्डकी में दरबार की सेवा का काम चल रहा था. संत कंवरराम भी अपने सत्संगीयों के साथ गारे की तगारी उठाकर सेवा में लगे थे, तभी उनके दर्शन करने दो स्नेही वहा आ गये.

उन दोनों स्नेहियो ने पहले कभी संत कंवरराम को देखा नही था. सिर्फ उनके बारे में और इनका नाम सुना हुआ था. दरबार की सेवा में काम करने वालों से पूछ-पूछकर एक सत्संगी से संत कंवर राम के बारे में पुछा तो इशारा करके उन्होंने बताया कि वे संत हैं.

उन्हें विशवास ही नही हुआ. वे विचार में पड़ गये, इतने में संत कंवरराम तगारी खाली करके स्वय उनके पास आ गये और उन्होंने मेहमानों से पूछा ”आपकों क्या चाहिए”

संत कंवरराम जी की कहानी (Story of Saint Kanwaram ji)

उस स्नेही मेहमान ने कहा मुझे कंवरराम के दर्शन करने हैं और यह आदमी हमसे मजाक कर रहा है. कि आप ही संत हैं, भला संत कैसे तगारी उठा सकते हैं.

कंवर राम हंसकर बोले- कंवर इस मिटटी के पुतले का ही नाम हैं, दरबार की सेवा ही परमात्मा की सेवा हैं, जो बगैर तगारी उठाए कैसे पूरी हो सकती हैं.

अब आप ही बताओ ने मेरे लिए क्या हुक्म हैं-आगन्तुक संत कंवर राम सादगी, सहजता और विनम्रता देखकर दंग रह गये. वे पैरो में गिरकर आशीर्वाद की प्रार्थना करने लगे. उनकी संत प्रकृति के कारण आज भुई उनका नाम बड़े आदर सत्कार के साथ लिया जाता हैं.

एक बार की घटना हैं. संत कंवरराम सुबह शिकारपुर शहर के शाहीबाग में भजन करने में मुग्ध थे. अचानक एक महिला ने रेशमी कपड़े में लिपटे हुए मृत बालक को संत के हाथ में देते हुए विनती की- साईं कृपा कर इस बालक को लौरी दीजिए, लौरी देते समय ही उन्हें ज्ञात हुआ कि बालक में हरकत नही हैं.

उन्होंने कपड़ उठाकर देखा बालक जीवित नही हैं. संत लोरी देते हुए ईश्वर आराधना में लीन हो गये. कुछ देर पश्तात आँखे खोली. बच्चा ऊअ ऊया करके रोने लगा. संत ने बच्चा माँ को देते हुए कहा-” माता मेरी ऐसी परीक्षा ना लिया करो”

इस प्रकार की एक घटना सिंध के कुम्भलेमन ग्राम में भजन सुनाते घटी, भजन में हजारो की संख्या में हिन्दू-मुसलमान उपस्थित थे. वर्षा हो रही थी. जिसके कारण लोग परेशान हो रहे थे.

एक जमीदार ने संत कंवरराम की शक्ति परखने के लिए वर्षा रोकने को कहा. संत जैसे ही सोरठ राग गाने लगे देखते ही देखते आसमान से बादल बिखरने लगे और आसमान साफ़ हो गया.

संत कंवरराम के चमत्कार (The wonders of Saint Kanwarram)

एक बार शहर में भजन करते समय एक श्रदालु ने सारंग राग गाने का अनुरोध किया. संत कंवरराम ने कहा” सारंग राग से वर्षा होगी व आपकों बहुत कष्ट होगा भोजन व्यवस्था चौपट हो जाएगी.

श्रदालु ने अपना आग्रह नही छोड़ा. इस पर संत कंवरराम ने सारंग राग गाना आरम्भ कर दिया. चारों ओर से बादल उमड़-घुमड़ कर आने लगे तभी मूसलाधार वर्षा होने लगी, लोगों ने प्रार्थना की और संत ने गाना बंद कर दिया.

इस प्रकार संत के चमत्कारो से सिंध का सम्पूर्ण समाज उनसे अधिक प्रभावित होता गया.संत कंवरराम और कृतित्व और व्यतित्व जीवन प्रेरणास्पद रहा हैं. अपना सम्पूर्ण जीवन गरीबों अपाहिजों और विधवाओं की सेवा में लगा दिया.

अनाथ और बेसहारा बालिकाओ की शादी करवाने के लिए जीवन पर्यन्त सार्थक प्रयास किये. संत कंवरराम के उन्ही सार्थक प्रयासों का परिणाम हैं कि आज उनकी प्रेरणा से में बड़ी संख्या में विद्यालय, धर्मशाला, विधवा विवाह और अनाथ बालक-बालिकाओं को सम्बलन देने के धर्मान्ध कार्य हजारो लोग जुड़कर समजोउत्थान का कार्य कर रहे हैं.

संत कंवरराम ने सतगुरु सतरदास के स्वर्ग सिधारने के बाद अकेले ही समाजोउत्थान के सत्संग में लगे रहे, अपनी मधुर वाणी व भजनों से जनजीवन में प्रेम भक्ति का संदेश देते.

उनके संगीतमय भजनों के माधुर्य के साथ-साथ पीडितो का दर्द बया होता था. उनकी आवाज पर हजारो लोग मोहित हो जाते थे. पैरो के घुघरूओ की पायल, कानों में कुंडल, सर पर लाल जाफरानी रंग की पगड़ी, तन पर श्वेत जामा और कमर में बांधनी बाध कर संगीत में झुमने की छटा देखते ही बनती थी.

संत कंवरराम की मृत्यु (Death of Saint Kanwaram)

इन संत कंवरराम को अपनी मृत्य का आभास सात दिन पूर्व हो गया था. उन्होंने दादू में अपना भजन मारू राग में समाप्त किया. मारू राग शोक के समय गाया जाता हैं.

1 नवम्बर 1939 को संत अपनी टोली के साथ सक्खर जाने के लिए रुख स्टेशन पहुचे . हमेशा की तरह डिब्बे में खिड़की के पास यात्रा के लिए बैठे ज्यो ही इंजन ने सिटी बजाई कातिलों ने संत पर गोलियां चलाई एक गोली संत कंवरराम के माथे पर जा लगी. उनके मुख से अंतिम शब्द निकला, हरे राम.

हरे राम की आवाज अनत में शामिल हो गईं. गाडी में हा-हाकार मच गया. गाड़ी दस मिनट में आराई में रुकी तब संत के प्रान पखेरू उड़ चुके थे. संत की अंतिम सात रातों को ” सात रातों” के नाम से पुकारा जाता हैं. उनके भक्ति गीत हैं.

संत कंवरराम के भक्ति गीत भजन,Devotional song Bhajan of Saint Kanwaram

राम सुमर प्रभात मेरे मन
नाले अलख जे बेडो तारि मुहिजो
किअ रिझाया किअ परिचाया
.या थिया हिन्दू, पाया वेश जामो
या थिया मोमिन पढ़ा बुत खानों
.या तो बनू हिन्दू पढ़ गीता
या तो बनू मोमिन पढू कुरआन शरीफ

संत कंवरराम के भजन आज भी विभिन्न शहरों,गाँवों, एवं ढाणियों में प्रे, एकता और सर्वधर्म सद्भाव के संदेश दे रहे हैं.

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