संत पीपा जी का जीवन परिचय इतिहास | Sant Pipa Ji Maharaj Biography In Hindi

संत पीपा जी का जीवन परिचय इतिहास Sant Pipa Ji Maharaj Biography In Hindi: राजस्थान में मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत पीपा जी खीची राजवंश से सम्बन्धित थे.

इनकी माता का नाम लक्ष्मीवती था. पीपा जी के बालपन का असली नाम राजकुमार प्रतापसिंह था. ये माँ दुर्गा के भक्त थे बाद में रामानंद को अपना गुरु बनाया.

पीपा जी का जीवन परिचय Sant Pipa Ji Maharaj Biography In Hindi

संत पीपा जी का जीवन परिचय इतिहास | Sant Pipa Ji Maharaj Biography In Hindi

दर्जी समुदाय के लोग पीपाजी को अपना आराध्य मानते हैं. बाड़मेर के समदड़ी कस्बे में इनका विशाल मंदिर है जहाँ हर वर्ष मेला भरता है. गागरोन और मसुरिया जोधपुर में भी पीपा जी का मेला भरता हैं.

इन्होने चितावानी जोग नामक ग्रन्थ की रचना की. संत ने अपना अंतिम समय टोडा में बिताया चैत्र कृष्ण नवमी को यही उनका देहांत हो गया. इस स्थान को आज पीपाजी की गुफा के नाम से जानते हैं.

कालीसिंध नदी पर बना प्राचीन गागरोंन दुर्ग संत पीपा की जन्म स्थली रहा है. इनका जन्म विक्रम संवत् 1417 चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को खिचीं राजवंश परिवार में हुआ था. वे गागरोंन राज्य के वीर साहसी एवं प्रजापालक शासक थे.

शासक रहते हुए उन्होंने दिल्ली सल्तनत के सुलतान फिरोज तुगलक से संघर्ष करके विजय प्राप्त की, लेकिन युद्ध जनित उन्माद, हत्या, जमीन से जल तक रक्तपात को देखा तो उन्होंने सन्यासी होने का निर्णय ले लिया.

ऐसी मान्यता है कि ये अपनी कुलदेवी से नित्य प्रत्यक्ष साक्षात्कार किया करते थे. वर्ष 1400 में पिताजी के देहांत के पश्चात पीपानन्दाचार्य जी का राज्याभिषेक होता है तथा ये अपने शासनकाल में फिरोजशाह तुगलक, मलिक जर्दफिरोज और लल्लन पठान जैसे यौद्धाओं को रण में धुल चटाते हैं.

संत पीपा जी के पिता पूजा पाठ व भक्ति भावना में अधिक विश्वास रखते थे. पीपाजी की प्रजा भी नित्य आराधना करती थी. देवकृपा से राज्य में कभी भी अकाल व महामारी का प्रकोप नही हुआ.

किसी शत्रु ने आक्रमण भी किया तो परास्त हुआ. राजगद्दी त्याग करने के बाद संत पीपा रामानन्द के शिष्य बने. रामानन्द के 12 शिष्यों में पीपा जी भी एक थे.

वे देश के महान समाज सुधारकों की श्रेणी में आते है. संत पीपा का जीवन व चरित्र महान था. इन्होने राजस्थान में भक्ति व समाज सुधार का अलख जगाया. संत पीपा ने अपने विचारों और कृतित्व से समाज सुधार का मार्ग प्रशस्त किया.

पीपाजी निर्गुण विचारधारा के संत कवि एवं समाज सुधारक थे. पीपाजी ने भारत में चली आ रही चतुर वर्ण व्यवस्था में नवीन वर्ग, श्रमिक वर्ग सृजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इनके द्वारा सृजित यह नवीन वर्ग ऐसा था जो हाथों से परिश्रम करता और मुख से ब्रह्म का उच्चारण करता था. समाज सुधार की दृष्टि से संत पीपाजी ने बाहरी आडम्बरों , कर्मकांडो एवं रूढ़ियों की कड़ी आलोचना की तथा बताया कि ईश्वर निर्गुण व निराकार है वह सर्वत्र व्याप्त है.

मानव मन में ही सारी सिद्धिया व वस्तुएं व्याप्त है. ईश्वर या परम ब्रह्म की पहचान मन की अनुभूति से है. संत पीपा सच्चे अर्थों में लोक मंगल की समन्वयकारी पद्धति के पोषक थे.

उन्होंने संसार त्याग कर भक्ति करते हुए कभी भी पलायन का संदेश नही दिया. उन्होंने ऐसें संतो की खुली आलोचना की जो केवल वेशभूषा से संत थे आचरण से नही. उंच, नीच की भावना, पर्दाप्रथा का कठोर विरोध उतरी भारत में पहली बार संत पीपा जी ने ही किया.

इसका प्रत्यक्ष उदाहरण उन्होंने स्वयं से दिया. अपनी पत्नी सीता सह्सरी को आजीवन बिना पर्दे के ही रखा, जबकि राजपूतों में पर्दा प्रथा का विशेष प्रचलन था. गुरु भक्ति की भावना संत पीपा जी में कूट कूट कर भरी हुई थी. उनको जानकारी थी कि वे गुरु के बिना माया जाल से मुक्ति संभव नही है.

जीवन की प्रमुख चमत्कारी घटनाएं:- 

1. द्वारिका भगवद्दर्षन- 

ऐसा कहा जाता है कि संत पीपा ने अपनी पत्नी सीता सहित द्वारका पहुंचे और वहां के पंडों से पूछा कि भगवान कहां मिलेंगे। पंडों ने उन्हें बावला समझकर ‘समुद्र में होंगे’ ऐसा कह दिया था।

कृष्ण-रुकमणि के दर्शन की उत्कृष्ठ लालसा में संत पीपा व उनकी पत्नी सीता समुद्र में कूद गए। इनकी भक्ति-भावना देखकर भगवान् ने प्रत्यक्ष दर्शन दिए और नौ दिन दोनों पति-पत्नी समुद्र में भगवत् सान्निध्य में रहे। अंततः भगवान् ने पीपा को ब्रह्मज्ञान देकर पुनः धरती  पर भेज दिया। 

2. सीता जी का अपहरण- 

द्वारका से गागरोन की ओर आने पर इनको एक पठान मिला, जो इनकी पत्नी सीता जी के रूप पर मोहित हो गया। उसने पीपाजी से सीता को छीन लिया।

दोनों पति-पत्नी ने इस घोर विपत्ति के समय गोविन्द का स्मरण किया। भगवान् ने पठान को दण्ड देकर सीता को उसके चंगुल से छुड़ा दिया। 

3. हिंसक बाघ को उपदेष देना- 

एक बार द्वारिका से लौटते हुए पीपाजी रास्ता भटक गए। निर्जन वन से जाते समय मार्ग में उन्हें एक शेर मिला। जिसने पीपा दंपती पर आक्रमण कर दिया।

इनकी भगवद्भक्ति के चमत्कार से सिंह पीपा के चरणों में नतमस्तक हो गया और भविष्य में शिकार नहीं करने की प्रतिज्ञा की। 

4. द्वारका के चंदोवे की आग टोडा कस्बे में सत्संग करते हुए बुझाना-

 एक समय जब संत पीपा टोड़ा गांव में सत्संग का लाभ जनता को दे रहे थे, तभी वे अचानक वहां से उठे और अपने हाथों को आपस में रगड़ने लगे।

टोड़ा नरेश के पूछने पर उन्होंने बताया कि द्वारका में दीपक से द्वारकाधीष के चंदोवे में आग लग गई थी, इसलिए मैंने बुझा दी। दूत भेज कर ज्ञात किया गया तो यह घटना सत्य निकली। 

5. सर्प दंष से ब्राह्मण बालक की जीवन रक्षा- 

एक बार  नगर में एक ब्राह्मण के पुत्र को सांप ने डस लिया था और उसकी तत्काल ही मृत्यु हो गई। पीपाजी वहां से गुजर रहे थे। ब्राह्मण दंपती बालक को संत पीपा के चरणों में रखकर रोने लगे। संत पीपा ने दया कर ईश्वर से प्रार्थना की और वह बालक जीवित हो गया।

संत पीपा जी के मेले

राजस्थान के बाड़मेर जिले के समदड़ी कस्बे में संत पीपा का एक विशाल मंदिर बना हुआ है जहां पर तीव्र संत पीपा जी का विशाल मेला भरता है इसके अतिरिक्त मसूरिया जोधपुर और गागरोन झालावाड़ में भी संत पीपाजी के विशाल मेले भरते हैं।

संत पीपा जी की मृत्यु 

संत पीपा जी ने अपना अंतिम समय टोंक जिले के ‘ टोडा ग्राम ‘ में स्थित एक गुफा में भजन करते हुए बताया । जहाँ पर संत पीपा जी चैत्र कृष्ण नवमी को देवलोक (मृत्यु) को प्राप्त हुए ।

यह  गुफा वर्तमान में ” संत पीपा की गुफा’ (तहसील-टोड़ारायसिंह, जिला टोंक) के नाम से जानी जाती है।

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