संत पीपाजी के दोहे अर्थ के साथ | Sant Pipa Ke Dohe With Meaning In Hindi

संत पीपाजी के दोहे अर्थ के साथ Sant Pipa Ke Dohe With Meaning In Hindi: राजस्थान के लोक संत महान समाज सुधारक व कवि pipa ji maharaj का जन्म स्थल झालावाड़ जिले  के कालीसिल और आहू  के संगम पर  बने गागरोन  दुर्ग में हुआ था.

विक्रम संवत १३८० को प्रतापराय खीची का जन्म चौहान खीची परिवार में हुआ था. पिताजी जेतमाल के निधन के बाद प्रतापराय गागरोन  के शासक बने.

फिरोजशाह तुगलक के साथ हुए  युद्ध में इन्होने विजय पाई मगर  युद्ध में हुए खून खराबे  से इनका मन हिंसा से विरक्त हो गया तथा रामानंद के शिष्य बनकर pipaji maharaj ने ईश्वर आरधना में सम्पूर्ण जीवन लगा दिया.

Sant Pipa Ke Dohe With Meaning

संत पीपाजी के दोहे अर्थ के साथ | Sant Pipa Ke Dohe With Meaning In Hindi

संत पीपाजी के दोहे अर्थ

pipa ji maharaj history, pipa ji maharaj jeevani, pipa wiki, pipa bhagat:  माँ भवानी के  भक्त संत  pepaji ने अपना अंतिम जीवन द्वारिका में बिताया.

कबीर, नानक और रैदास जी sant pipaji महाराज के समकालीन थे,  आध्यात्म की ओर प्रवृत होने के बाद संत pipaji ने स्वयं के  हाथों से सिले वस्त्र पहने थे.

इस कारण दर्जी समाज  इन्हें अपना आराध्य  देव मानते हैं. pipa ji ने कई साखी शब्द तथा दोहों की रचना की. आज के लेख में हम पूज्य लोक संत पीपा (peepaa/peepa) के लोकप्रिय dohe अर्थ के साथ साझा कर रहे हैं.

संत पीपाजी के दोहे अर्थ- Sant Pipa Ke Dohe With Meaning In Hindi

जो ब्रहमंडे सोई पिंडे जो खोजे सो पावै॥

अर्थ:-जो प्रभु पूरे ब्रह्माड मे विद्यमान है, वह मनुष्य के हृदय मे भी उपस्थित है


पीपा प्रणवै परम ततु है, सतिगुरु होए लखावै॥

अर्थ:-पीपा परम तत्व की साधना करता है, जिसके दर्शन पूर्ण सतिगुरु द्वारा किये जाते है।


काया देवा काया देवल,काया जगम जाती।
काया धूप दीप नइबेदा,काया पूजा पाती।
काया के बहुखड खोजते,नवनिधि तामे पाई। 
ना कछु आइबो ना कछु जाइबो, राम जी की दुहाई।
जो ब्रह्मडे सोई पिडे,जो खोजे सो पावे।
पीपा प्रणवै परम तत्त है,सतगुरु होय लखावै।

अर्थ:- मानव की आत्मा में ही ईश्वर का वास होता हैं. उनके भीतर ही ईश्वर और मन्दिर दोनों हैं. मानव शरीर ही चेतन यात्री हैं यही धूप दीप फूल पत्ते तथा यही सच्चे देवता हैं.

हम जिन निधियों को संसार में विभिनन जगहों पर खोजते हैं वे हमारे अंदर ही हैं अविनाशी मूल तत्व समस्त ब्रह्मांड भी हमारी देह में ही हैं सतगुरु की कृपा से हम उनका दर्शन पा सकते हैं.

जीव मार जौहर करै, खातां करै बखाण |
पीपा परतख देख ले, थाळी माँय मसाँण ||
पीपा पाप न कीजियै, अळगौ रहीजै आप |
करणी जासी आपरी, कुण बेटौ कुण बाप ||

संत पीपाजी की शिक्षाएं व दोहे

अहंकारी पावै नहीं, कितनोई धरै समाध |
पीपा सहज पहूंचसी, साहिब रै घर साध ||

भारत में एक बड़ा समुदाय संत पीपाजी का अनुयायी हैं. विशेषकर राजस्थान,गुजरात , मालवा और देश के अन्य भागों में रहने वाला दर्जी समाज के बारे में कहा जाता हैं ये पूर्व में राजपूत ही थे,

बाद में क्षत्रिय  कर्म छोड़कर  सिलाई का  कार्य करने लगे  जो आज तक कर रहे हैं. चैत्र-पूर्णिमा के दिन देशभर में पीपाजी की जयंती मनाई जाती हैं. संत पीपाजी से जुड़े कई स्थल हैं जो उनके अनुयायियों के लिए पवित्र धाम हैं

इनमें गागरौन में पीपाजी का मंदिर, छतरी और बाग़ काशी में पीपाकूप द्वारिका के पास आर माड़ा में ‘पीपावट’, अमरोली (गुजरात) में ‘पीपाबाव’ है

इसके अलावा  राजस्थान के जोधपुर शहर का पीपाड़ कस्बा लोक संत जुड़ा स्थल हैं, जिन्होंने यहाँ एक पीपल के नीचे तपस्या की थी. कालीसिंध तथा आहू नदियों के संगम पर पीपाजी की गुफा स्थित  हैं. 

पीपा के पंजर बस्यो रामानंद को रूप
सर्व अँधेरा मिटी गया, देख्या रतन अनूप

अर्थ:- लोकसंत पीपा जी में अपने गुरु रामानंद जी का स्वरूप बस गया हैं. ऐसा होने से उसके भीतर का अज्ञान रुपी अँधेरा मिट गया हैं और उन्होंने परम तत्व के दर्शन कर लिए. अपने सद्गुरु को पारस रुपी पत्थर तथा स्वयं को लौह मानते हुए आगे कहते हैं.

लोहा पलट कंचन भया, सतगुरु रामानंद
पीपो पदरज दे सदा, मिटया जगत का फंद

अर्थ:- गुरु के स्पर्श से शिष्य लोहे से स्वर्ण बन गये. उनकी चरणों की धूल से इस दुनियां का फंदा मिट गया. संत पीपा सगुण निर्गुण में कोई भेद नहीं करते उनका मानना हैं कि गुरु जैसा ज्ञान दे उसे बिना किसी भय के ग्रहण करना चाहिए.

सगुण मीठो खांड सो, निर्गुण कड़वो नीम
पीपा गुरु जो पुरस दे, निर्भय होकर जीम

अर्थ:- सगुण भक्ति तो मीठी खांड की तरह हैं वही निर्गुण तो नीम के कड़वे पत्तों जैसा होता हैं. मगर निर्गुण और सगुण में से गुरु जो पर्स दे उसे बिना किसी भय के स्वीकार कर लेना चाहिए.

Best sant pipa dohe In Hindi

Best sant pipa dohe In Hindi

जो ब्रहमंडे सोई पिंडे, जो खोजे सो पावै।
पीपा प्रणवै परम ततु है, सतिगुरु होए लखावै॥1॥


काया देवा काया देवल, काया जंगम जाती।
काया धूप दीप नइबेदा, काया पूजा पाती॥2॥


काया के बहुखंड खोजते, नवनिधि तामें पाई।
ना कछु आइबो ना कछु जाइबो, रामजी की दुहाई॥3॥


अनत न जाऊं राजा राम की दुहाई।
कायागढ़ खोजता मैं नौ निधि पाई॥4॥


हाथां सै उद्यम करैं, मुख सौ ऊचरै राम।
पीपा सांधा रो धरम, रोम रमारै राम॥5॥


उण उजियारे दीप की, सब जग फैली ज्योत।
पीपा अन्तर नैण सौ, मन उजियारा होत॥6॥


पीपा जिनके मन कपट, तन पर उजरो भेस।
तिनकौ मुख कारौ करौ, संत जना के लेख॥7॥


जहां पड़दा तही पाप, बिन पडदै पावै नहीं।
जहां हरि आपै आप, पीपा तहां पड़दौ किसौ॥8॥

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