Essay On Our Social Problems In Hindi – भारत की सामाजिक समस्याएँ पर निबंध –समाज में types of social problems in Indian society Essay On Our Social Problems.
samajik samasya/ social evils. भारत की सामाजिक समस्याएँ में कट्टरता, जाति प्रथा, अंधविश्वास, नारी शोषण, दहेज, गरीब शोषण,बेरोजगारी तथा अन्य कुछ Social Problems In India,
list of Our Social Problems के बारे में इस सामाजिक समस्याएँ निबंध के बारे में जानकारी दी गईं हैं.
भारत सामाजिक समस्याएँ निबंध Essay On Our Social Problems Hindi
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giving in 700 to 1000 words in Hindi, this social issues list essay can use for class 1, 2, 3, 4, 5 ,6, 7 , 8, 9, 10.
Our Social Problems In Hindi- भारत की सामाजिक समस्याएँ
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं. समाज में रहते हुए उसे समाज द्वारा बनाए गये नियमों का पालन अनिवार्य रूप से करना होता हैं.
यदि वह ऐसा नही करता हैं, तो इससे सामाजिक मूल्यों (Social values) का हास होता हैं. साथ ही हमारे समाज व देश में बहुत सारी सामाजिक समस्याओं को पनपने का मौका भी मिलता है.
धार्मिक कट्टरता, जाति प्रथा, अंधविश्वास, नारी शोषण, दहेज प्रथा, सामाजिक शोषण, बेरोजगारी, अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि, भ्रष्टाचार, गरीबी आदि मुख्य सामाजिक समस्याए हैं.ऐसा नही हैं, कि ये सामाजिक समस्याएं हमेशा से हमारे समाज में विद्यमान रही.
कुछ सामाजिक समस्याओं की जड़ हमारी सामाजिक कुरीतियाँ हैं, तो कुछ ऐसी समस्याएं भी हैं, जिन्होंने सदियों की गुलामी के बाद समाज में अपनी जड़े स्थापित कर ली.
जबकि कुछ समस्याओं के मूल में दूसरी समस्याएं हैं. आइए, कुछ उल्लेखनीय सामाजिक समस्याओं के निबंध में विस्तार से इन्हें जानते हैं.
धार्मिक कट्टरता-
इतिहास साक्षी हैं, कि अनेक धर्मों, जातियों एवं भाषाओं वाला यह देश अनेक विसंगतियों के बावजूद सदा एकता के सूत्र में बंधा रहा.
यहाँ अनेक जातियों का आगमन हुआ और उनकी परम्पराएँ, विचारधाराएं और संस्कृति इस देश के साथ एक रूप हो गईं.
इस देश के हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई सभी परस्पर प्रेम से रहना चाहते हैं. लेकिन भ्रष्ट राजनेता उन्हें बांटकर अपना उल्लू सीधा करने में जुटे रहते हैं. कहा जा सकता हैं, कि धार्मिक कट्टरता के मूल में कुछ स्वार्थी लोगो का हाथ हैं.
जाति प्रथा-
प्राचीन काल में हमारे देश में गुण एव कर्म के अनुसार वर्ण-व्यवस्था का निर्धारण किया गया था एक व्यक्ति जो मंदिर में पूजा कराता एव बच्चो को शिक्षा प्रदान करता था वह वह ब्राह्मण कहलाता था, जबकि उसी का बेटा समाज की रक्षा के कार्य में सलग्न रहता था,
तो उसे क्षत्रिय माना जाता था. अर्थात जाति निर्धारण का आधार व्यक्ति का कर्म था. किन्तु समय के अनुसार वर्ण व्यवस्था विकृत हो गईं और जाति निर्धारण का आधार कर्म न होकर जन्म हो गया.
फिर धीरे-धीरे उंच नीच, छुआछूत इत्यादि सामाजिक बुराइयों ने अपनी जड़े जमा ली. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जाति प्रथा हमारे समाज के लिए तब अभिशाप बन गई,
जब क्षुद्र तथा स्वार्थी राजनेताओं ने जातिवाद की राजनीति कर हमारी एकता एवं अखंडता को चोट पहुचाना शुरू कर दिया. जातिवाद समाज के विघटन के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार रहा हैं.
अंधविश्वास-
धर्म एवं ईश्वर की आड़ में कुछ लोग गरीब एवं भोली भाली जनता को मुर्ख बनाते हैं. समाज में अंधविश्वास के मूल में धार्मिक आडम्बर एवं ईश्वर का भय ही हैं.
भूत प्रेत, ईश्वर के नाम पर चढ़ावा एवं बलि ये सब अंधविश्वास के ही रूप हैं. इसके कारण सामाजिक प्रगति बाधित होती हैं.
600 Words Essay On Social Problems In Hindi – वर्तमान समस्याएं एवं निराकरण में युवाओं का योगदान
प्रस्तावना- प्रत्येक व्यक्ति समाज का एक अंग होता हैं. वह समाज को बनाता है और उसे प्रभावित भी करता हैं. समाज में वर्ण, जाति, धर्म, वर्ग आदि तरह के लोग रहते हैं. और हर समाज की अपनी अपनी समस्याएं होती हैं. कुछ समस्याएं कुछ काल बाद स्वत समाप्त हो जाती हैं.
तो कुछ का निराकरण करने का प्रयास करने पर भी हल नहीं होती हैं. समस्याएं जितनी अधिक होती है, उनसे समाज उतना ही अधिक दबा रहता हैं. और प्रगति का मार्ग रूक सा जाता हैं.
वर्तमान भारत की समस्याएं- हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही अनेक समस्याएं उभरी. छुआछूत, अशिक्षा, दहेज प्रथा, अशिक्षा, बाल विवाह, जनसंख्या वृद्धि, कुपोषण, शोषण उत्पीड़न, बेरोजगारी, अंध विश्वास, आर्थिक विषमता आदि अनेक समस्याओं से हमारा देश आक्रांत हैं.
परन्तु वर्तमान में कुछ समस्याएं अधिक विकराल रूप धारण कर रही हैं. ऐसी समस्याएँ है भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई वृद्दि, जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक विषमता, स्वार्थपरता आदि. आज शासन तंत्र से लेकर सामान्य जन जीवन में भ्रष्टाचार चरम चीमा तक पहुच गया हैं.
बेरोजगारी बढने से युवा शक्ति अपराधों में प्रवृत हो रही हैं. महंगाई इतनी बढ़ गई है कि आटा डाल की व्यवस्था करना कठिन हो रहा हैं.
आज सारे नेता समाज सेवा की आड़ में अपना घर भर रहे हैं. स्वार्थ साध रहे हैं. और सरकारी सुविधाओं का जमकर दुरूपयोग कर रहे हैं.
इससे आर्थिक विषमता और बढ़ रही हैं. जनसंख्या वृद्धि भी एक ज्वलंत समस्या हैं. जिससे सुख सुविधाओं की कमी पड़ रही हैं.
कालाबाजारी, राहजनी, चोरी, धोखेबाजी आदि बुरी प्रवृत्तियां लगातार बढ़ रही हैं. जिससे आज सारा सामाजिक परिवेश आक्रान्त हैं.
समस्याओं से हानि- इन सभी समस्याओं से आज समाज का सारा वातावरण दूषित हो गया हैं. लोगों का आपस में विश्वास उठ रहा हैं. हर कोई स्वार्थ साधने की खातिर दूसरों का अहित कर रहा हैं.
शोषण और उत्पीड़न बढ़ रहा हैं. नशाखोरी, फैशनपरस्ती और अनैतिकता का खूब प्रचार हो रहा हैं. इन सब बुराइयों से आज हमारा सामाजिक और राष्ट्रीय अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा हैं.
समस्याओं के निराकरण में युवाओं का योगदान- वर्तमान काल की समस्याओं के समाधान में युवा शक्ति अनेक प्रकार से योगदान कर सकती हैं.
युवावर्ग बेरोजगारी को दूर करने के लिए स्वावलम्बी कार्य कर सकते हैं. वे भ्रष्टाचार करने वालों का विरोध कर जनता का मनोबल उठा सकते हैं.
महंगाई पर नियंत्रण के लिए वे कालाबाजारी एवं कुशासन को समाप्त करने के लिए आगे आ सकते हैं. आशय यह है कि युवावर्ग में यदि कुछ करने का जूनून पैदा हो जाए, तो सभी समस्याओं का निराकरण हो सकता हैं.
उपसंहार- वर्तमान में अनेक समस्याओं से सामाजिक जीवन में अशांति व्याप्त हैं. एक लोकतन्त्रात्मक राष्ट्र में ऐसी समस्याओं का समाधान करने में युवाओं का विशेष योगदान हो सकता हैं.
वे ही जन जागरण के द्वारा युवा शक्ति को सामाजिक उन्नयन की चेतना से मंडित कर सकते हैं.
वर्तमान समस्या एवं उनके निराकरण में युवाओं का योगदान
समाज और समस्याएं– प्रत्येक व्यक्ति समाज का एक अंग माना जाता हैं. वह समाज को बनाता हैं. और उसे प्रभावित भी करता हैं. समाज में वर्ण, जाति, धर्म, वर्ग आदि सभी तरह के लोग रहते है और हर समाज की अपनी अपनी समस्याएं होती हैं.
कुछ समस्याएं कुछ काल बाद स्वत समाप्त हो जाती हैंतो कुछ का निराकरण करने का प्रयास करने पर ही हल नहीं होती हैसमस्याएं जितनी अधिक होती हैं, उनसे समाज या देश उतना ही अधिक दबा रहता हैं. और प्रगति का मार्ग रूक सा जाता हैं.
वर्तमान समस्याएं– हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही अनेक समस्याएं उभरी हैं, छुआछूत, अशिक्षा, दहेज़ प्रथा, बाल विवाह, जनसंख्या वृद्धि, कुपोषण, भाग्यवादिता, शोषण उत्पीड़न, बेरोजगारी, अन्धविश्वास, आर्थिक विषमता आदि अनेक समस्याओं से हमारा देश आक्रान्त हैं.
परन्तु वर्तमान में कुछ समस्याएं इतनी अधिक विकराल रूप धारण कर रही हैं. ऐसी समस्याएं हैं भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई वृद्धि, जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक विषमता, स्वार्थपरता आदि.
आज शासनतंत्र से लेकर सामान्य जन जीवन में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर फ़ैल गया हैं. बेरोजगारी बढ़ने से युवा शक्ति अपराधों में प्रवृत हो रही हैं. महंगाई इतनी बढ़ गई हैं कि आटा दाल की व्यवस्था करना कठिन हो रहा हैं.
आज सारे नेता समाज की सेवा की आड़ में अपने घर भर रहे हैं, स्वार्थ साध रहे हैं और सरकारी सुविधाओं का जमकर दुरूपयोग कर रहे हैं.
इससे आर्थिक विषमता और बढ़ रही है. जनसंख्या वृद्धि भी एक ज्वलित समस्या हैं, जिससे सुख सुविधाओं की कमी पड़ रही हैं.
कालाबाजारी, राहजनी, चोरी, धोखेबाजी आदि ऐसी बुरी प्रवृत्तियों बढ़ रही हैं जिनसे आज सारा सामाजिक परिवेश आक्रान्त हैं.
समस्याओं से हानि– इन सभी समस्याओं से आज समाज का सारा वातावरण दूषित हो गया हैं. लोगों का आपस में विश्वास उठने लगा हैं. हर कोई स्वार्थ साधने की खातिर दूसरों का अहित कर रहा हैं.
शोषण एवं उत्पीड़न बढ़ रहा हैं. नशाखोरी, फैशन परस्ती एवं अनैतिकता का प्रसार हो रहा हैं. इन सब बुराइयों से आज हमारा सामाजिक एवं राष्ट्रीय अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा हैं.
समस्याओं के निराकरण में युवाओं का योगदान– वर्तमान काल की समस्याओं के समाधान के युवा शक्ति अनेक प्रकार से योगदान कर सकती हैं. युवा वर्ग बेरोजगारी दूर करने के लिए स्वाबलंबी कार्य कर सकते हैं.
वे भ्रष्टाचार करने वालों का विरोध कर जनता का मनोबल उठा सकते हैं. महंगाई पर नियंत्रण के लिए वे कालाबाजारी एवं कुशासन को समाप्त करने में आगे आ सकते हैं.
आशय यह है कि युवा वर्ग में यदि कुछ करने का जूनून पैदा हो जाये, तो सभी समस्याओं का सहज निराकरण हो सकता हैं.
उपसंहार- वर्तमान में अनेक समस्याओं से सामाजिक जीवन में अशांति व्याप्त हैं. एक लोकतंत्रात्मक राष्ट्र में ऐसी समस्याओं का समाधान करने में युवाओं का विशेष योगदान रह सकता हैं.
वे ही जन जागरण के द्वारा जन शक्ति को सामाजिक उन्नयन की चेतना से मंडित कर सकते हैं.