Tika Ram Paliwal Biography In Hindi टीकाराम पालीवाल का जीवन परिचय महज आठ महीने के लिए राज्य के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री रहे टीका राम जी को भूमि सुधारों का जनक भी कहा जाता हैं.
कांग्रेस की खेमेबाजी में पालीवाल ने मोरारजी गुट को चुना और एक कद्दावर और बगावती नेता के रूप में जाने गये. आज की जीवनी में हम इन्ही के बारे में विस्तार से पढ़ेगे.
टीकाराम पालीवाल का जीवन परिचय Tika Ram Paliwal Biography In Hindi
पूरा नाम | टीका राम पालीवाल |
पहचान | पूर्व राजस्थान के मुख्यमंत्री |
जन्म | 24 अप्रैल 1909, मांडवाड़ |
मृत्यु | 8 फ़रवरी 1995, जयपुर |
पार्टी | कांग्रेस, जनता दल |
कार्यकाल | 1952–1952 |
चुनाव-क्षेत्र | महुआ |
पालीवाल का जन्म सवाईमाधोपुर जिले के मंडावर गाँव में हुआ. पालीवाल की शिक्षा दिल्ली तथा मेरठ में हुई तथा इसको राजनैतिक कार्य करने की प्रेरणा इनके गुरू प्रोफेसर रघुनंदन शरण से मिली.
1929 ई में पालीवाल ने दिल्ली में विद्यार्थी यूथ लीग की स्थापना की. और इसके माध्यम से सार्वजनिक सभा, जुलूस तथा प्रदर्शनों के द्वारा दिल्ली में सामाजिक एवं राजनैतिक चेतना उत्पन्न करने का प्रयास किया.
1930 ई में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान नमक बनाकर अपनी गिरफ्तारी दी. पालीवाल दरियागंज दिल्ली में एक सत्याग्रह आश्रम का संचालन भी किया.
1938 ई में उसने हिंडौन में वकालत करनी शुरू कर दी. और प्रजामंडल की गतिविधियों से जुड़ गये. टीकाराम पालीवाल 3 मार्च 1951 ई को राजस्थान के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री बने.
राजस्थान में पहला लोकसभा चुनाव 1952 में सम्पन्न हुआ था. उस समय कांग्रेस के लोकप्रिय नेता और लोकनायक जयनारायण व्यास दोनों सीट से चुनाव हार गये ऐसी स्थिति में हीरालाल शास्त्री पहले मुख्य मंत्री एवं पालीवाल को इस विधानसभा के लिए उप मुख्यमंत्री बनाए गये.
जब व्यास चुनाव नहीं जीत पाए तो पालीवाल को मुख्यमंत्री बनाया गया. यही से राजस्थान की राजनीति में व्यास और पालीवाल के बीच जंग छिड़ गई. व्यास उस अवसर के इंतजार में थे जब उप चुनाव हो और वो विजयी होकर सीएम बन जाए.
व्यास ने चुनाव भी जीता और मुख्यमंत्री भी बने और पद संभालते ही पालीवाल को उप मुख्यमंत्री का पद दिया गया. मगर व्यास के इस चक्रव्यूह के चलते उन्होंने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया.
पहनाई थी पूरे स्कूल को टोपी
एक दिन टीकाराम पालीवाल 13 साल की उम्र में पढ़ाई करने के लिए अलवर हाई स्कूल चले गए। वहां पर स्कूल में एण दिन एक अन्य विद्यार्थी गांधीजी वाली टोपी पहन कर आया था उस विद्यार्थी को देख कर के अंग्रेज अधिकारी गुस्से से लाल पीले हो गए।
इसके बाद अंग्रेज अधिकारी के आदेश पर उस लड़के को बुला करके खूब मारा पीटा गया और उसे स्कूल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
टीकाराम ने भी इस घटना को अपनी आंखों से देखा था और फिर अगले दिन विद्यालय में ऐसा नजारा दिखाई देता है कि विद्यालय में अधिकतर स्टूडेंट्स गांधी जी वाली टोपी पहन कर आए हुए हैं। यह टीकाराम का ही कमाल था।
इसके बाद स्कूल के प्रिंसिपल के द्वारा सभी विद्यार्थियों को यह आदेश दिया गया कि वह अगले दिन अपने अभिभावक को ले करके ही स्कूल आएंगे। हालांकि इसी दिन टीकाराम पालीवाल को भी स्कूल से निकाल दिया गया। हालांकि जाते-जाते उसने स्कूल में सभी को टोपी पहना ही दी।
जब लोगों ने टीकाराम से वकील बनने को कहा
टीकाराम और उनके अन्य जो भी साथी थे उनके ऊपर साल 1930 में अदालत में केस का ट्रायल स्टार्ट हुआ और इस केस में जो जज थे उनका नाम एफबी पुल था।
जब केस की बहस चालू हुई तो पालीवाल की तरफ से कोई भी वकील नहीं था। ऐसे में विपक्ष के वकील के द्वारा अपनी बात को अदालत में प्रस्तुत किया गया और इसके बाद विपक्ष की दलीलों को सुनने के बाद अंग्रेजी जज के द्वारा सजा सुनाना चालू किया गया।
हालाकी बीच में टीकाराम ने यह कहा कि वह अपने केस की पैरवी खुद करेंगे। इसके बाद टीकाराम ने अपने केस की पैरवी कुछ इस प्रकार से की कि, अदालत में उपस्थित सभी लोगों ने तालियां बजाकर के टीकाराम पालीवाल का उत्साहवर्धन किया।
इस घटना के कारण टीकाराम काफी ज्यादा प्रसिद्ध हो गए। टीकाराम के द्वारा की गई शानदार पैरवी से प्रसन्न होकर के जेल में बंद कुछ क्रांतिकारियों ने टीकाराम से यह तक कह दिया कि उन्हें मास्टरी छोड़ कर के वकालत में अपना हाथ आजमाना चाहिए क्योंकि उनकी बात करने की कला और पैरवी करने की कला बहुत ही शानदार है।
क्रांतिकारियों के द्वारा कहने पर टिका राम ने जेल से बाहर आने के बाद मेरठ के एक कानून के कॉलेज में एडमिशन प्राप्त कर लिया और यहीं से उन्होंने डिग्री भी हासिल की और डिग्री पाने के बाद वह राजस्थान राज्य के हिंडौन शहर में चले गए और वहां पर जाकर के उन्होंने वकालत का काम करना चालू किया।
जब लोग तलवार लेकर पहुंचे टीकाराम पालीवाल को मारने
हिंडौन शहर में कुछ दिनों तक वकालत का काम करने के बाद टीकाराम पालीवाल ने अपने आप को राजस्थान राज्य के ही जयपुर शहर में स्थानांतरित कर लिया और यहां पर आकर के वह प्राजमंडल में शामिल हो गए और यहीं पर रहते रहते उनकी मुलाकात हीरालाल शास्त्री से हुई जो कि राजस्थान के पहले सीएम भी बने थे।
जब भारत देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ तो राजस्थान की गवर्नमेंट में टीकाराम को राजस्व मंत्री का पद प्राप्त हुआ था और राजस्व मंत्री का पद पाने के बाद टीकाराम ने सबसे पहले जागीरदारी प्रथा और बेगारी प्रथा को बंद करने का ऐलान किया था जिसके कारण कुछ लोग टीकाराम के प्रति गुस्से से आगबबूला हो गए और वह लोग तलवार लेकर के टीकाराम पालीवाल को मारने उनके घर चले गए।
हालांकि वह लोग ऐसा नहीं कर पाए, क्योंकि टीकाराम पालीवाल ने काफी हिम्मत के साथ उनका सामना किया, जिसके कारण जो लोग टीकाराम पालीवाल को मारने आए थे, उन्होंने अपनी तलवारे नीचे रख दी।
जब टीकाराम पालीवाल ने कांग्रेस से ही कर दी बगावत
1957 में विधानसभा के इलेक्शन में टीकाराम पालीवाल एक बार फिर से विधायक के पद के लिए चुने गए, तो उन्हें नेहरू गवर्नमेंट के द्वारा सीधा नई दिल्ली बुला लिया गया। उस टाइम कांग्रेस में दो गुट थे जिसमें पहला गुट था इंदिरा गांधी का और दूसरा गुप्ता मोरारजी देसाई का।
टीका राम पालीवाल मोरारजी देसाई वाले गुट में शामिल हो गए। हालांकि बाद में इंदिरा गांधी का गुट भारी पड़ने लगा। इसके बाद कांग्रेस में बंटवारा हुआ और इस बंटवारे में टीकाराम पालीवाल इंदिरा गांधी के विरुद्ध वाले गुट में चले गए और उस गुट की दुर्गति साल 1971 के लोकसभा के इलेक्शन में हो गई।
इसके बाद इंदिरा गांधी के द्वारा इमरजेंसी की घोषणा की गई और जब इमरजेंसी खत्म हुई तो जनता पार्टी उभर कर सामने आई। इसके बाद टीकाराम पालीवाल ने कांग्रेस से बगावत कर दी और जनता पार्टी का अध्यक्ष मास्टर आदित्येंद्र को बनाने में भैरव सिंह शेखावत क साथ दिया।
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