Soil Of Rajasthan In Hindi: प्रकृति प्रदत उपहारों में मिट्टी का स्थान सर्वोपरी है. यह कृषक की अमूल्य संपदा है. इस पर सम्पूर्ण कृषि उत्पादन निर्भर करता है. राजस्थान (rajasthan geography) एक कृषि प्रधान राज्य है.
यहाँ के लोगों का कृषि के साथ साथ पूरक व्यवसाय पशुपालन है, अतः राजस्थान में मिट्टियों का महत्व बढ़ जाता है. आज हम राजस्थान की मृदा तथा इसके विविध प्रकार को जानेगे.
राजस्थान की मृदा व इसके प्रकार | Types OF Soil in Rajasthan
प्राकृतिक पर्यावरण में विद्यमान विविधता मृदा के विविध प्रकारों को जन्म देती है. मिट्टी के प्रकार उच्चावच जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, समय आदि कारकों का प्रभाव पड़ता है. पैतृक पदार्थ, जल, वायु व हयुमरस मिट्टी के चार प्रमुख घटक है जो इसमें पाए जाते है.
मिट्टी ठोस द्रव व गैसीय पदार्थों का मिश्रण है. जो चट्टानों के अपक्षय, जलवायु, पौधों व अनन्त जीवाणुओं के बिच होने वाली अतंक्रिया का परिणाम है.
राजस्थान में मृदा के प्रकार (Types of Soil in Rajasthan)
राजस्थान की मिट्टियों को रंग गठन व उपजाऊपन के आधार पर छ भागों में बांटा गया है. जो निम्न है.
मरुस्थलीय मिट्टी (desert soil in rajasthan)
यह मृदा पश्चिमी राजस्थान में पायी जाती है. जालोर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, चुरू, झुंझुनू, नागौर आदि जिलों के अधिकांश क्षेत्रों में यह मिट्टी पाई जाती है. यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है.
अधिक तापमान और भौतिक अपक्षय इस मिट्टी के प्रमुख निर्धारक तत्व है. इसके निर्माण प्रधानता भौतिक अपक्षय द्वारा प्रारम्भ होता है.
यह मृदा पवनों के द्वारा स्थानांतरित होती रहती है. इसमें उपजाऊ तत्वों की मात्रा व कम लवणता पाई जाती है, इसमें जल धारा की क्षमता कम पाई जाती है.
लाल पीली मिट्टी (red and yellow soil in rajasthan)
इस प्रकार की मृदा सवाईमाधोपुर, सिरोही, राजसमन्द, उदयपुर व भीलवाड़ा जिले के पश्चिम भागों में पाई जाती है. इस मृदा में उपजाऊ तत्वों की कमी होती है. यह मृदा ग्रेनाईट, शिस्ट व नीस चट्टानों के विखंडन से निर्मित है. इसमें चूना व नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है.
लौह अंश के कारण इस मिट्टी का रंग लाल व पीला होता है, यह मृदा मूंगफली व कपास की कृषि के लिए उपयुक्त है.
लैटेराइट मिट्टी (laterite soil in rajasthan)
यह डूंगरपुर, उदयपुर के मध्य व दक्षिणी राजसमन्द जिले में मिलती है. यह प्राचीन सफ्टकीय व कायांतरित चट्टानों से निर्मित होती है. इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, ह्यूमरस आदि की कमी पाई जाती है.
लौह तत्व की उपस्थिति के कारण इस मिट्टी का रंग लाल दिखाई देता है, इस मृदा में मक्का, चावल व गन्ने की खेती की जाती है.
मिश्रित लाल व काली मृदा (Mixed red and black soil in rajasthan)
यह मिट्टी बाँसवाड़ा, पूर्वी उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ व भीलवाड़ा जिलों में मिलती है. इसमें चूना व नाइट्रोजन व फास्फोरस की कमी पाई जाती है. पोटांश की पर्याप्त मात्रा मिलती है.
इस मिट्टी में चीका की अधिकता पाई जाती है. यह उपजाऊ मिट्टी है, इसमें कपास, गन्ना, मक्का आदि की खेती की जाती है.
काली मिट्टी (black soil in Rajasthan)
यह मृदा राज्य के दक्षिणी पूर्वी जिलों कोटा, बूंदी, बारां व झालावाड़ में पाई जाती है. यह चीका प्रधान दोमट मिट्टी है. इस मिट्टी में कैल्शियम व पोटांश की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है.
पर नाइट्रोजन की कमी मिलती है. यह उपजाऊ मिट्टी है, जिसमें व्यापारिक फसलों, गन्ना, धनिया, चावल व सोयाबीन की अच्छी पैदावार होती है.
कछारी मिट्टी (Alluvial soil in Rajasthan)
यह राज्य के उत्तरी पूर्वी जिलों गंगानगर, हनुमानगढ़, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, दौसा, जयपुर व टोंक में मिलती है. यह हल्कें भूरे लाल रंग की होती है. यह गठन में रेतीली दोमट प्रकार की है. यह मिट्टी उपजाऊ होती है.
इसमें चूना, फास्फोरस, पोटांश व लौह अंश भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है पर नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है. यह मिट्टी गेहू, सरसों, कपास, चावल व तम्बाकू के लिए उपयोगी है.
राजस्थान की मिट्टीयों का नई पद्धति से वर्गीकरण
मृदा वैज्ञानिकों ने एक ऐसा वर्गीकरण तैयार करने में सफलता पाई है जिसकी श्रेणियों में दुनियां के भिन्न भिन्न भागों में पाई जाने वाली मिट्टी को भी शामिल किया जा सके.
अमेरिका के कृषि विज्ञान के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित इस नवीन प्रणाली में मिट्टी के उत्पत्ति के कारणों तथा उनके गुणों को महत्व देते हुए वर्गीकरण तैयार किया हैं. इस क्लासिफिकेशन में राजस्थान की मिट्टियों को इस श्रेणियों में रखा गया है.
श्रेणी नाम | क्षेत्र |
एन्टी सोल्स (रेगिस्तानी) | पश्चिमी राजस्थान |
एरिडोसोल्स (बालु मिट्टी) | चूरू, सीकर, झुंझूनू, नागौर, जोधपुर, पाली, जालौर |
वर्टीसोल्स (काली मिट्टी) | झालावाड़, बारां, कोटा, बूँदी |
इनसेप्टी सोल्स (पथरीली मिट्टी) | सिरोही, पाली, राजसमन्द, उदयपुर, भीलवाड़ा, झालावाड़ |
अल्फी सोल्स | जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र |
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना राजस्थान
भारत सरकार ने राजस्थान के किसानों को नजदीकी कृषि विज्ञान सेंटर से मृदा की जाँच करवाने के लिए सॉयल हेल्थ कार्ड जारी कर मुफ्त में मिट्टी जांच की स्कीम शुरू की हैं. फरवरी 2015 में भारत सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की थी.
इस स्कीम के तहत कृषक अपने खेत की मिट्टी की उर्वरता तथा पोषक तत्वों की अधिकता, कमी तथा गुणवता की जाँच करा पाएगे. साथ ही मिट्टी जांच केंद्र कृषकों को इस जमीन पर उचित फसल के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाएगे.
राज्य में मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाएं
मिट्टी की गुणवत्ता और पोषक तत्वों आदि के परीक्षण के लिए मृदा जांच करवाई जाती हैं. राजस्थान में मुख्य रूप से तीन बड़ी प्रयोगशालाएँ है जिनमें मिट्टी का परीक्षण किया जाता हैं.
सामान्य मिट्टी प्रयोगशाला | जयपुर |
समस्याग्रस्त मिट्टी प्रयोगशाला | जोधपुर |
केन्दीय भू-संरक्षण बोर्ड कार्यालय | कोटा, जोधपुर |
मृदा अपरदन
भूमि की ऊपरी परत में विद्यमान उपजाऊ मिट्टी का एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाना इसे मृदा अपरदन या मिट्टी का कटाव कहा जाता हैं. यह कई माध्यमों के जरिये हो सकता है जैसे तेज हवा या जल बहाव के कारण भी एक स्थान की मिट्टी दूसरी जगह स्थानांतरित हो जाती हैं.
कोटा, बूंदी, धौलपुर, भरतपुर, जयपुर तथा सवाई माधोपुर इन जिलों में मिट्टी के कटाव से बने गहरी घाटियों और नालों की समस्या बहुतायत हैं. इसके अन्य कारणों में अत्यधिक पशु चारण, अवैज्ञानिक कृषि तकनीक तथा वनों की कटाई शामिल हैं.
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